Govindram Hasanand Prakashan
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Govindram Hasanand Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
A set of 26 books by Mahatma Anand Swami
इस सैट में सम्मिलित है-प्यारा ऋषि, अमृत पान, आनन्द गायत्री कथा, भगवान शंकर और दयानन्द, वैदिक सत्यनारायण कथा, उपनिषदों का सन्देश, मानव और मानवता, यह धन किसका है, दो रास्ते, तत्त्वज्ञान, प्रभु भक्ति, सुखी गृहस्थ, एक ही रास्ता, मानव जीवन गाथा, भक्त और भगवान, घोर घने जंगल में, प्रभु मिलन की राह, बोध कथाएँ, दंुनिया में रहना किस तरह, प्रभु दर्शन, महामन्त्र, त्यागमयी देवियाँ, माँ(गायत्री मन्त्र की महिमा), यज्ञ-प्रसाद, हरिद्वार का प्रसाद, महात्मा आनन्द स्वमी(जीवनी)
इन 26 पुस्तकों में स्वामी जी की आनन्द रस धारा का रसास्वादन कीजिए एवं सुख-सन्तोष दूसरों को भी बाँटिये।
सात पुस्तकें अंग्रेजी में भी उपलब्ध।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
A set of Six Darshan books (Yog, Nyaya, Sankhya, Vaisheshik, Vedant, Mimansa)
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिA set of Six Darshan books (Yog, Nyaya, Sankhya, Vaisheshik, Vedant, Mimansa)
भारतीय संस्कृति या वैदिक वाङ्गमय से सम्बन्ध रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति छः दर्शनों या षड्दर्शन के नाम से परिचित होता ही है। चंूकि ये दर्शन वेद को प्रमाणिक मानते हैं, इसलिए इन्हें वैदिक दर्शन भी कहा जाता है।
ये छः दर्शन हैं-न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त। छः दर्शनों से अभिप्राय छः महर्षियों द्वारा लिखे गए सूत्र ग्रन्थों से है। (महर्षि गौतम के न्याय सूत्र, महर्षि कणाद के वैशेषिक सूत्र, महर्षि कपिल के सांख्य सूत्र, महर्षि पतंजलि के योग सूत्र, महर्षि जैमिनि के मीमांसा सूत्र और महर्षि व्यास के वेदान्त सूत्र) बाद में इन्हीं सूत्र ग्रन्थों पर विद्वानों द्वारा विभिन्न भाष्य, टीकाएँ व व्याख्याएं लिखी गई।
परन्तु ऐसा भाष्य अपेक्षित था, जो विवेचनात्मक होने के साथ-साथ दर्षन के रहस्यों को सुन्दर, सरल भाषा में उपस्थित कर सके। आचार्यप्रवर पं. श्री उदयवीरजी शास्त्री दर्शनों के मर्मज्ञ विद्वान् थे। छः दर्शनों का विद्योदय भाष्य आचार्य जी के दीर्घकालीन चिन्तन-मनन का परिणाम है। इन भाष्यों के माध्यम से उन्होंने दर्षनसूत्रों के सैद्धान्तिक एवं प्रयोगात्मक पक्ष को विद्वज्जनों तथा अन्य जिज्ञासुओं तक पहुंचाने का सफल प्रयास किया है।
मूलसूत्रों में आये पदों को उनके सन्दर्भगत अर्थों से जंचाकर की गई यह व्याख्या दर्षनविद्या के क्षेत्र में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी। इन भाष्यों के अध्ययन से अनेक सूत्रों के गूढार्थ को जानकर दर्षन जैसे क्लिष्ट विषय को आसानी से समझा जा सकता है। आचार्य जी द्वारा प्रस्तुत इन भाष्यों की यह विशेषता है कि यह शास्त्रसम्मत होने के साथ-साथ विज्ञानपरक भी हैं।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य
Aryasamaj
लाला लाजपतराय अपनी युवा अवस्था से ही आर्यसमाज से जुड़े रहे तथा उन्होंने उन्मुक्त भाव से यह स्वीकार किया था कि देश की जो सेवा वह कर पाए हैं, उसका श्रेय आर्यसमाज एवं उसके संस्थापक महर्षि दयानंद को ही है, जिनसे प्रेरणा पाकर वह समाज तथा स्वराष्ट्र के लिए कुछ कर सके।
आर्यसमाज का सांगोपांग विवेचन प्रस्तुत करने का विचार लेकर ही लालाजी ने उस समय ‘दी आर्यसमाज‘ नामक अंग्रेजी ग्रंथ लिखा था। तब से लेकर अब तक आर्यसमाज आंदोलन ने जो उतार-चढ़ाव देखे हैं, उसके लिए तो अन्य विवेचन की अपेक्षा रहेगी ही, तथापि लालाजी जी का यह ग्रंथ भी कालजयी साहित्य की श्रेणी में आ गया है।
इस पुस्तक का अध्ययन वे लोग अवश्य करें जो संक्षेप में आर्यसमाज तथा उसके संस्थापक से परिचित होना चाहते हैं। आशा है नरकेसरी लालाजी का यह अमर ग्रंथ पाठकों में स्वदेश, स्वधर्म तथा स्वसंस्कृति के प्रति प्रेम जगाने में समर्थ होगा।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Atharvaveda
मन्त्र, शब्दार्थ, भावार्थ तथा मन्त्रानुक्रमणिका सहित प्रस्तुत। मन्त्र भाग स्वामी जगदीष्वरानन्दजी द्वारा सम्पादित मूल वेद संहिताओं से लिया गया है।
वेद चतुष्टय में अथर्ववेद अन्तिम है। परमात्मा प्रदत्त इस दिव्य ज्ञान का साक्षात्कार सृष्टि के आरम्भ में महर्षि अंगिरा ने किया था। इसमें 20 काण्ड, 111 अनुवाक, 731 सूक्त तथा 5977 मन्त्र हैं।
वस्तुतः अथर्ववेद को नाना ज्ञान-विज्ञान समन्वित बृहद् विश्वकोश कहा जा सकता है। मनुष्योपयोगी ऐसी कौन-सी विद्या है जिससे सम्बन्धित मन्त्र इसमें न हों। लघु कीट पंतग से लेकर परमात्मा पर्यन्त पदार्थों का इन मन्त्रों में सम्यक् विवेचन हुआ है।
केनसूक्त, उच्छिष्टसूक्त, स्कम्भसूक्त, पुरुषसूक्त जैसे अथर्ववेद में आये विभिन्न सूक्त विश्वाधार पामात्मा की दिव्य सत्ता का चित्ताकर्षक तथा यत्र-तत्र काव्यात्मक शैली में वर्णन करते हैं। जीवात्मा, मन, प्राण, शरीर तथा तद्गत इन्द्रियों और मानव के शरीरान्तर्गत विभिन्न अंग-प्रत्यंगों का तथ्यात्मक विवरण भी इस वेद में है।
जहाँ तक लौकिक विद्याओं का सम्बन्ध है, अथर्ववेद में शरीरविज्ञान, मनोविज्ञान, कामविज्ञान, औषधविज्ञान, चिकित्साविज्ञान, युद्धविद्या, राजनीति, प्रशासन-पद्धति आदि के उल्लेख आये हैं। साथ ही कृषिविज्ञान, कीटाणु आदि रोगोत्पादक सूक्ष्म जन्तुओं के भेद-प्रभेद का भी यहाँ विस्तारपूर्वक निरूपण किया गया है।
अथर्ववेद की नौ शाखाएँ मानी जाती हैं। इसका ब्राह्मण गोपथ और उपवेद अर्थवेद है।
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Govindram Hasanand Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, अन्य कथेतर साहित्य
Athato Dharm Jigyasaa
धर्म के यथार्थ स्वरूप का दार्शनिक विवेचन-साधारण तौर पर लोगों के बीच धर्म या तो विवाद का विषय रहा है या फिर परंपरा का, जबकि यह चिंतन व विचार-विमर्श का विषय होना चाहिए। समाज में धर्म के विषय में फैली भ्रांतियों और असमंजस की स्थिति का निराकरण एवं इसके यथार्थ स्वरूप का उद्घाटन आवश्यक है। जिसकी चर्चा इस पुस्तक में तथ्य परक एवं तार्किक ढंग से की गई है।
इस पुस्तक में भौतिक तथ्यों एवं आंकड़ों का उल्लेख करके विषय को अधिक रोचक एवं प्रामाणिक बनाया गया है। धर्म ईश्वरोक्त है अर्थात् ईश्वर के द्वारा मनुष्य मात्र के लिए निर्धारित आचरण संबंधी निर्देश ही धर्म कहलाता है। प्रस्तुत पुस्तक में इस सिद्धांत का सफलता पूर्वक प्रतिपादन किया गया है।
‘धर्म का स्वरूप‘ इस पुस्तक का मुख्य अध्याय है। जिसके अंतर्गत धर्म के सूक्ष्म तत्व की विस्तृत व्याख्या की गई है। विशेष तौर पर अहिंसा, सत्य और विद्या जैसे विषयों की व्याख्या काफी रोचक और ज्ञानवर्धक है। धर्म के नाम से प्रचलित छः मुख्य संप्रदाय यह समूह (ईसाई, मुस्लिम, हिंदू, नास्तिक, बौद्ध, यहूदी) का संक्षेप विवरण ‘धर्माभास‘ नामक अध्याय में दिया गया है।
ताकि पाठकों को इनके बारे में साधारण तथ्य मालूम हो सकें। यह पुस्तक बुद्धिजीवी और तार्किक पाठकों को अवश्य पसंद आएगी। निःसंदेह इस उच्चकोटि की पुस्तक रचना के लिए लेखक को मेरा साधुवाद और इसकी सफलता हेतु बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
– डॉ. वागीष आचार्य, गुरुकुल एटाSKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatvarsh Ka Itihas
-5%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिBharatvarsh Ka Itihas
भारत की सर्वप्रथम सभ्यता तो वैदिक सभ्यता ही थी, जिससे भारतवर्ष का इतिहास प्रारम्भ होता है। भारतीय इतिहास के प्रथम स्रोत भी वैदिक ग्रन्थ ही हैं, जैसे वेदों की वे शाखाएँ जिनमें ब्राह्मण-पाठ सम्मिलित हैं, ब्राह्मण ग्रन्थ, कल्प सूत्र, आरण्यक और उपनिषद् ग्रन्थ!
भारत युद्ध-काल के सहस्रों वर्ष पूर्व की अनेक ऐतिहासिक घटनाएँ वर्णित हैं। भारतीय वाङ्मय में स्थान-स्थान पर इतिहास की घटनाओं का वर्णन भरा पड़ा है, लेखक ने उन घटनाओं को क्रमबद्ध करने का संक्षिप्त प्रयास किया है। भारतीय इतिहास को बहुत विकृत कर दिया गया है। सत्य को असत्य प्रदर्शित किया जाता है और असत्य को सत्य बनाने का यत्न किया गया।
इसके भयंकर दुष्परिणाम हुए-भारतीय अपना भूत ही भूल गए वे इन मिथ्या कल्पनाओं को ही सत्य समझने लगे। लेखक ने अपने अध्ययन काल में ही निश्चय कर लिया था कि वह अपना सारा जीवन भारतीय संस्कृति और इतिहास के पाठ तथा स्पष्टीकरण में लगाएंगे। आशा है इतिहास के लेखक और पाठक उनके इस परिश्रम से लाभान्वित होंगे।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bhartiya Sanskriti Ka itihas
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिBhartiya Sanskriti Ka itihas
वैदिक संस्कृति-वाड्मय की चर्चा हो या संस्कृत साहित्य की या इन्हीं जैसे किसी विषय पर संगोष्ठी हो या लिखना हो तो पण्डित भगवद्दत्त जी के नाम का उल्लेख होना ही होना है।
वैदिक भारतीय संस्कृति का इतिहास उनकी प्रसिद्व रचना है। पण्डित जी ने इसमें वैदिक भारतीय संस्कृति का इतिहास खंगाला है और गहरे पानी पैठ की भांति उन्होंने इसमें संस्कृति के मूल तत्वों का विस्तार से विवेचन किया हैं।
भारतीय परम्परा का ज्ञान भुला सा जा रहा है, अतः लेखक ने उसके पुनर्जीवन का यह प्रयास किया है। इस इतिहास में भूमि सृजन से आरम्भ करके उत्तरोत्ततर-युगों के क्रम से घटनाओं का उल्लेख है।
अति विस्तृत विषय को यहां थोडे़ स्थान में ही लिपिबद्व किया गया है, अतः यह पुस्तक भारतीय संस्कृति का दिग्दर्षन मात्र है। इसे पढ़कर साधारण छात्र और विद्वान दोनों लाभ उठा सकेंगे।
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Govindram Hasanand Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Bhartiya Sanskriti ka Pravah
Govindram Hasanand Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनBhartiya Sanskriti ka Pravah
लेखक ने इस पुस्तक में भारत की संस्कृति के जीवन की गाथा सुनाने का यत्न किया है। भारत युग-युगांतरों के परिवर्तनों, क्रांतियों और तूफानों में से निकलकर आज भी उसी संस्कृति का वेष धारण किए विरोधी शक्तियों की चुनौतियों का उत्तर दे रहा है।
यद्यपि सदियों से काल चक्र हमारा शत्रु रहा है, तो भी हमारी हस्ती नहीं मिटी। इसकी तह में कोई बात है, वह बात क्या है? लेखक ने इन प्रश्नों का उत्तर देने का यत्न किया है।
यदि अतीत का अनुभव भविष्य का सूचक हो सकता है तो हमें आशा रखनी चाहिए की भविष्य में जो भी अंधड़ आयेंगे वह हमारी संस्कृति की हस्ती को न मिटा सकेंगे।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, इतिहास
Bhartiya Swatantrta Sangram me Arya Samaj ka 80% Yogdaan
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, इतिहासBhartiya Swatantrta Sangram me Arya Samaj ka 80% Yogdaan
निष्चित रूप से ब्रिटिष शासन से भारतवर्ष की स्वतंत्रता के लिए आर्य समाज ओदोलन के सदस्यों द्वारा प्रमुख (80 प्रतिषत) भूमिका निभाई गई।
यह पुस्तक आर्य समाज के उन वीर सैनिकों को समर्पित है, जिन्होंने आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती की राष्ट्रीय प्रेरणाओं को अनुसरण करते हुए स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया और तत्कालीन आर्य समाज के वीर पुरुषों और महिलाओं के सदस्यों ने अपने जीवन का बलिदान दिया।
इन्होंने अपनी आजीविका और पारिवारिक सुखों को छोड़ कर अंडमान द्वीप में सेलुलर जेल (काला पानी जेल) सहीत विभिन्न जेलों की यातनाएं सहीं जिन्हें अपनों के कल्याण की कोई चिन्ता नहीं थी।
कोई भी देष अपने नागरिकों के व्यापक समर्थन के बिना इतनी बड़ी स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर सकता। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी, अखिल भारतीय मुस्लिम लीग और अन्यों ने शेष 20 प्रतिषत के लिए काम किया लेकिन ऐसा लगता है कि अल्पसंख्यक 20 प्रतिषत ही भारत के स्वतंत्रता का पूरा श्रेय लेते हैं और आर्य समाज आंदोलन के बहुमत (80 प्रतिषत) प्रतिभागियों का कोई उल्लेख नहीं किया जाता। यह क्या उचित है?
हमने आर्य समाज द्वारा निभाई गई बहुमत की भूमिका को साबित करने के लिए अब तक के उपलब्ध महत्वपूर्ण तथ्यों को एकत्र किया है।
हम ईमानदारी से भारत का वर्तमान सरकार से अनुरोध करते हैं कि इस लंबे समय तक अनदेखे सत्य तथ्य को उचित मान्यता दें और आर्य समाज आंदोलन के सदस्यों को उपकृत करें।
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Govindram Hasanand Prakashan, Others, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Budape se Javani ki Ore
Govindram Hasanand Prakashan, Others, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)Budape se Javani ki Ore
यह पुस्तक एक ऐसी पुस्तक के आधार पर लिखी गई है जो हजारों रुपए खर्च कर देने पर भी दुर्लभ थी। आज से 350 वर्ष पहले फ्रांस की एक महिला मदाम डी लेनक्लोस निनोन, जो कि 91 वर्ष की होकर मरीं, तब भी उनके चेहरे पर एक भी झूरी नहीं पड़ी थी।
सन् 1710 में फ्रांस के लेखक जीन सौवल ने एक पुस्तिका प्रकाशित की थी जिसमें उन प्रयोगों तथा व्यायाम का उल्लेख था जो उक्त महिला के युवा-सम स्वास्थ्य का कारण थे।
इन प्रयोगों को आधार बनाकर सैन फ्रांसिस्को के श्री सैनफोर्ड बेनेट ने यह प्रयोग अपने ऊपर किए और उन्हें सफलता प्राप्त हुई। उस आधार पर उन्होंने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था ‘ओल्ड एज इट्स कॉजेज एंड प्रिवेंशन‘। यह पुस्तक मदाम निनोन के प्रयोगों के आधार पर लिखी गई थी। इसकी एक ही प्रति भारत में उपलब्ध थी, जिसे लेखक ने प्राप्त कर उसके आधार पर इस ग्रंथ की रचना की।
इस पुस्तक में जो लिखा गया है उसे नियम पूर्वक क्रिया में परिणत किया जाए, तो मनुष्य वृद्धावस्था में युवावस्था का-सा सुखद स्वास्थ्य तथा चेहरा-मोहरा कायम रख सकता है। इसलिए इस पुस्तक का नाम रखा है ‘बुढ़ापे से जवानी की ओर‘।
जिन प्रयोगों का इस पुस्तक में वर्णन है उनका वैज्ञानिक-विवेचन भी इसमें किया गया है। दीर्घ-जीवन का वैज्ञानिक दृष्टि से विवेचन करने के साथ-साथ, दीर्घ-जीवन की आसन, प्राणायाम, ब्रह्मचर्य आदि भारतीय-पद्धतियों का विवरण भी इसमें दिया है।
इस पुस्तक की यह भी विशेषता है कि इसमें वृद्धावस्था की अनेक शारीरिक समस्याओं के लिए होम्योपैथिक उपचार का भी निर्देश दिया गया है। बुढ़ापे के आने पर भी बुढ़ापा ना आए-इस उपाय को सामने रख देना इस पुस्तक का मुख्य लक्ष्य है।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Chanakyaniti Darpan
स्वामी जगदीश्वरानंद जी द्वारा चाणक्यनीति दर्पण ग्रंथ का हिंदी अनुवाद पढ़ने को मिला। चाणक्य का नाम भारतीय साहित्य में राजनीति के लिए भी प्रसिद्ध है। परंतु प्रस्तुत ग्रंथ में व्यवहार-नीति का वर्णन अधिक है। राजनीति का नहीं। यही कारण है कि जन-साधारण के लिए अपने जीवन मे किस तरह व्यवहार करना चाहिए-इसके लिये यह ग्रंथ अत्यंत महत्वपूर्ण है। पुस्तक इतनी हृदयग्राही है कि पढ़ते-पढ़ते छोड़ने का मन नहीं करता। इसमें केवल चाणक्यनीति के श्लोक ही नहीं दिए गए, जगह-जगह उस विचार को पुष्ट करने वाले अन्य ग्रंथों के भी श्लोक दिए गए हैं, जो पाठाक की रुचि को बनाये रखते हैं।
एक प्रकार से जीवन का पथ प्रदर्शन करनेवाले मुहावरों से युक्त इस पुस्तक का प्रत्येक श्लोक जीवन को कोई दिशा देता है। स्वामी जगदीश्वरानंद वैदिक एवं संस्कृत साहित्य के अगाध पंडित हैं और उनका यह पांडित्य पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ और प्रत्येक पृष्ठ के प्रत्येक श्लोक में झलकता है। यह एक तरह से सुभाषितों का विषकोश है। -सत्यव्रत सिद्धांतलंकारSKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Chhatrapati Shivaji
मराठा वीर शिवाजी ने किस प्रकार औरंगजेब की कट्टरवादी-संकीर्ण नीतियों का विरोध किया और अपने समकालीन स्वच्छाचारी शासकों से लोहा लिया, इसे लालाजी ने ऐतिहासिक तथ्यों से प्रमाणित किया है। महाकवि भूषण के शब्दों में-हिंदू, हिंदी और हिंद के रक्षक शिवाजी महाराज की स्फूर्तिदायक जीवनी के लेखन की पात्रता लालाजी जैसे देशभक्त में ही थी।
छत्रपति शिवाजी के इस जीवन चरित का ऐतिहासिक महत्व तो है ही जिसकी समीक्षा तो मराठा इतिहास के प्रमाणिक विद्वान् ही करेंगे, तथापि सर्वसाधारण को शिवाजी महाराज की एक सुंदर झांकी भी मिलेगी, इस विश्वास के साथ इस ग्रंथ को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Complate Ved Gujarati Set (8 Vol.)
-10%Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिComplate Ved Gujarati Set (8 Vol.)
સારના પ્રાચીનતમ જ્ઞાનનું ઉદ્ગમસ્થાનવેદો છે. વેદ એ ઈશ્વરીય જ્ઞાન-વિજ્ઞાન એ છે. એ જ્ઞાન-ગંગોત્રીનો પ્રવાહ સંસારના પટ પર અનેક વહેણોમાં પ્રવાહિત થયેલ છે, સર્વવિદ્વાનોએ બુદ્ધિની એરણ પર તર્કનાહથોડાથી ટીપીને પ્રતિપાદન કરેલ છે.
તેનું પર્વ અને પાશ્ચાત્ય વેદ એ ઈશ્વરોક્ત –પરમ સત્ય અને સર્વસત્ય વિદ્યાઓથી યુક્ત છે. સૃષ્ટિની આદિમાં ઋષિઓનાં હૃદયમાં પ્રેરણા દ્વારા જે સત્ય જ્ઞાનપ્રદાન કર્યું અને જેમણે તેનો આવિષ્કાર કર્યો, તે જ્ઞાનને વેદ કહે છે. તે વેદ સૃષ્ટિના આરંભથી લઈને ગુરુ-શિષ્ય પરંપરા દ્વારા ઉત્તરોત્તર સાંભળીને, કંઠસ્થ કરીને જાળવી રાખવામાં આવ્યા તેથી તેને “શ્રુતિ’ પણ કહે છે.
વેદ ચાર છે – તેમાં ઋગ્યેદ એ સંસારના પ્રાણી અને પદાર્થ સંબંધી, આત્મા અને પરમાત્મા સંબંધી-વિષયક જ્ઞાનકાંડ છે. યજુર્વેદ મનુષ્યોનાં કર્મસંબંધી કર્મકાંડ, સામવેદ ઉપાસના કાંડ અને અથર્વવેદવિજ્ઞાન કાંડ છે.
સામવેદ પરિચય : સામવેદની તેર વિભિન્ન શાખાઓનાં નામ ગ્રંથોમાં મળે છે. પરંતુ તેમાંથી વર્તમાનમાં
કૌથુમીય, રાણાયનીય અને જૈમિનીય એ ત્રણ શાખાઓ જ પ્રાપ્ત છે. કૌથુમીય અને રાણાયનીયમાં માત્ર પ્રપાઠકે = અધ્યાયો વગેરેની ભિન્નતા છે, પરન્તુ જૈમીની શાખામાં મંત્રોની શાખા અને પાઠમાં પણ ભિન્નતા જોવા મળે છે. સામવેદનું વર્ગીકરણ મુખ્ય આર્થિક અને ગાન એમ બે વિભાગમાં જોવા મળે છે, આર્થિકએ ઋચાઓ-મંત્રોનો સમૂહ છે, તેના પૂર્વાચિક અને ઉત્તરાચિકમુખ્ય બે ભાગ છે-વચ્ચે સંક્ષિપ્ત મહામાન્ય આર્થિક પણ છે.
પૂર્વાર્ચિકમાં રાણાયનીય શાખા અનુસાર છ પ્રપાઠક છે. તેને બે અને ત્રણ ભાગમાં પ્રપાઠકાઈ અને તેમાં દશતિ મંત્રોથી વિભક્ત કરેલ છે. કૌથુમ શાખામાં છ અધ્યાયમાં અનેકખંડો અથવાદશતિ =સક્ત અર્થાત્ મંત્રોનો સમૂહ આવેલ છે. દશતિથી દશ‘ત્ર-ઋચાઓ = મંત્રોનું ગ્રહણ થાય છે, પરન્તુ તેમાં અધિક અથવા ન્યૂન સંખ્યા પ – મળે છે.
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, इतिहास
Desh ke Dulare
संस्कृत का एक श्लोक कहता है-‘वह माता शत्रु है, वह पिता वैरी है, जो बालक-बालिका को शिक्षा नहीं दिलाता।‘ किंतु, शिक्षा या पढ़ाई-लिखाई कैसी हो? बेमतलब की मार-धाड़ से भरपूर कहानियाँ कितनी भी रोमांचक हों, फूल-जैसे बच्चों को रास्ते से भटका देती हैं।
बच्चों के लिए बहुत सावधानी से पुस्तकों का चुनाव करना चाहिए। देश की आजादी के लिए अपने जीवन भेंट चढ़ानेवालों के संघर्ष पर ध्यान दें, तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। यदि रोमांचक साहित्य ही बच्चों को प्रिय है, तो उन्हें क्रान्तिकारियों की जीवनियाँ पढ़ने को दें। बच्चे हों या प्रौढ़ हों, यदि उन्हें देश के दुलारे बनाना तो यह पुस्तक उन्हें चाव से भेंट करें।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Dharam ka Yatharth Swaroop
Govindram Hasanand Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, धार्मिक पात्र एवं उपन्यासDharam ka Yatharth Swaroop
भारतवर्ष मंे आज भी धार्मिक एवं जातिगत मतभेद विकट रूप में विद्यमान हैं। उपर्युक्त परिस्थितियों को सुनकर और देखकर लेखक के हृदय में एक विचार प्रस्फुटित हुआ कि क्यों न एक ऐसी पुस्तक का निर्माण किया जाए, जिसमें विभिन्न पन्थों के मूल सिद्धान्तों का परिचय और उसका उद्देश्य समाहित हो।
अतः चार महीने का अवकाश लेकर लेखक ने विभिन्न सम्प्रदायों की लगभग दो सौ पचास पुस्तकों का अध्ययन किया और उन विषयों के अधिकारिक विद्वानों से परस्पर विचार-विमर्श भी किया। तदुपरान्त यह समझ में आया कि सभी पन्थ अपने मूलरूप में परस्पर अत्यधिक साम्यता रखते हैं। सभी के मार्ग भले ही क्यों न पृथक्-पृथक् हों परन्तु सभी का लक्ष्य एक ही है।
ऋग्वेद के अनुसार ‘एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति‘। अर्थात् सत्य एक ही है, जिसे विद्वान् विभिन्न प्रकार से व्याख्यायित करते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न सम्प्रदायों के मूल सिद्धान्तों का उसी रूप में वर्णन किया गया है जिस रूप में वे सिद्धान्त उस पन्थ में विद्यमान हैं। निष्कर्ष में सभी पन्थों के सिद्धान्तों में विद्यमान पारस्परिक साम्यता का विवेचन किया गया है। आशा है कि जेखक का यह छोटा-सा प्रयास समाज में धर्म के नाम पर फैले अंधविश्वासों तथा वैमनस्य को दूर करेगा तथा भिन्न-भिन्न पन्थों के अनुयायियों के मध्य सौहार्द, परस्पर प्रेम को उत्पन्न करने में अपना सहयोग प्रदान करेगा और महिलाओं का यथोचित सम्मान एवं गरिमा प्रदान करने के लिए इस विकसित समाज को प्रेरित करेगा।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Ekadashopnishad
धारावाहिक हिंदी में, मूल तथा शब्दार्थ सहित (ग्यारह उपनिषदों की सरल व्याख्या)-आर्य संस्कृति के प्राण उपनिषद हैं। उपनिषदों के अनेक अनुवाद हुए हैं, परंतु प्रस्तुत अनुवाद सब अनुवाद से विशेषता रखता है।
इस अनुवाद में हिंदी को प्रधानता दी गई है। कोई पाठक यदि केवल हिंदी भाग पढ़ जाए तो भी उसे सरलता से उपनिषद्-ज्ञान स्पष्ट हो जाएगा। पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यही है की अनुवाद में विषय को खोलकर रख दिया गया है।
साधारण पढ़े-लिखे लोगों तथा संस्कृत के अगाध पंडितों, दोनों के लिए यह नवीन ढंग का ग्रंथ है। यही इस अनुवाद की मौलिकता है। पुस्तक को रोचक बनाने के लिए स्थान-स्थान पर चित्र भी दिए गए हैं।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Ganga Gyan Sagar in four volumes
पूज्य. प० गंगाप्रसाद जी उपाध्याय के साहित्य, लेखों तथा व्याख्यानों को संग्रहीत व सम्पादित करके हमने ‘गंगा ज्ञान सागर‘ नामक ग्रंथमाला (चार भागों मंे) के नाम से धर्मप्रेमी स्वाध्यायशील जनता के सामने श्रद्धा-भक्ति से भेंट किया। आर्यसमाज के इतिहास में यह सबसे बड़ी और सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थमाला है। यह इस ग्रन्थमाला का तृतीय संस्करण है। देश की प्रादेशिक भाषाओं में भी इसका पूरा व आंशिक अनुवाद निरन्तर छपता जा रहा है।
हमने अपने विद्यार्थी जीवन में ही उपाध्याय जी के लेखों, ट्रैक्टों व पुस्तकों को सुरक्षित करने का यज्ञ आरम्भ कर दिया। योजनाबद्ध ढंग से उर्दू, अंग्रेजी में प्रकाशित लेखों पुस्तकों का अनुवाद अत्यन्त श्रद्धा-भक्ति से किया। एक ही विषय पर लिखे गये मौलिक लेखों व तर्कों का मिलान करके आवश्यक, ज्ञानवर्द्धक व पठनीय पाद टिप्पणयाँ देकर इस ग्रन्थ माला की गरिमा बढ़ाने के लिये बहुत लम्बे समय तक हमने श्रम किया। यह ज्ञान राशि पूज्य उपाध्याय जी के 65 वर्ष की सतत् साधना व तपस्या का फल है।
गंगा-ज्ञान सागर के प्रत्येक भाग को इस प्रकार से संग्रहीत व सम्पादित किया गया है कि प्रत्येकभाग अपने आप में एक ‘पूर्ण ग्रन्थ‘ है। हमारे सामने एक योजना थी कि प्रत्येक भाग में सब मूलभूत वैदिक सिद्धान्त आ जायें, यह इस ग्रन्थ माला की सबसे बड़ी विषेषता है। संगठन व इतिहास विषय में भी बहुत सामग्री दी है। बड़े-बड़े विद्वानों व युवा पीढ़ी द्वारा प्रशंसित इस ग्रन्थ माला में क्या नहीं है? बहुत सी सामग्री जो सर्वत्र लोप या अप्राप्य हो चुकी थी-हमने अपने भण्डार से निकाल कर साहित्य पिता का स्मरण करवा दिया है। इतनी सूक्तियाँ व वचन सुधा किसी ग्रन्थ माला में नहीं देखी होंगी। अजय जी को सहयोग करके आर्य जन धर्मलाभ प्राप्त करें। ऋषि ऋण चुका कर यश के भागीदार बनें। -प्रा. राजेन्द्र ‘जिज्ञासु‘SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Gau Mata Vishv ki Prandata
इस पुस्तक को क्यों पढ़ें? – इस पुस्तक के लेखक अपनी विद्वत्ता व खोज के लिए विश्व प्रसिद्ध थे। संसार के सब महाद्वीपों में जहाँ-जहाँ गये वहाँ गऊ की महिमा पर व्याख्यान दिये और गऊ के बारे में गहन अनुसंधान भी करते रहे।
इस पुस्तक के विद्वान लेखक ने धर्म, दर्शन, विज्ञान, अर्थशास्त्र, स्वास्थ्य, चिकित्सा शास्त्र व कृषि विज्ञान आदि सब दृष्टियों से गो-पालन की उपयोगिता पर पठनीय प्रकाश डाला है।
लेखक कई भाषाओं के ऊँचे विद्वान थे। इस पुस्तक में पूर्व और पश्चिम के अनेक विद्वानों व पत्र-पत्रिकाओं को उद्धृत करके अपने विषय व पाठकों से पूरा न्याय किया है। पुस्तक में मौलिकता है, रोचकता है। पुस्तक विचारोत्तेजक है और प्रेरणप्रद शैली में लिखी गई है।
पुस्तक के अनुवादक व सम्पादक ने अपने सम्पादकीय में पाठकों को बहुत ठोस व खोजपूर्ण जानकारी दी है। यह पुस्तक सत्तर वर्ष पूर्व लिखी गई थी। पुराने आँकड़े अप्रासंगिक हो गए थे सो चार नये परिशिष्ठ देकर पाठकों को गो-विषयक नवीनतम अनुसंधान से लाभान्वित किया गया है।
पुस्तक गागर मंे सागर है। गो-पालकों व विचारकों के करोड़ों वर्षों के अनुभवों का इसमें निचोड़ मिलेगा।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, इतिहास
Hyderabad ke Aryon ki Sadhna aur Sangharsh
आर्यसमाज का जन्म यों तो क्रान्ति की घड़ियों में ही हुआ। 1857 की क्रान्ति हो चुकी थी, अंग्रेजों का दमनचक्र भी अपनी पराकाष्ठा पर था, जुबानों पर ताले डाले दिए गए थे। लोग समझने लगे थे कि स्वाधीनता की बात करने वाला दशब्दियों तक भी कोई नहीं होगा। ऐसी विषम परिस्थितियों में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्यसमाज की नींव रखी। पर सुदूर दक्षिण में यह हवा कुछ देर से पहुँची।
हिन्दुओं पर जो जुल्म उन दिनों निजाम की हुकूमत में ढ़ाए जा रहे थे, उन्हें याद करके भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। आर्यसमाज ने यहाँ एक नई दिशा हिन्दू समाज को दी।
हैदराबाद में आर्यसमाज के आधे से अधिक इतिहास के तो लेखक स्वयं नायक हैं। स्वाधीनता की लहर भी हैदराबाद में आर्यसमाज के द्वारा ही पहले पहल चली। सामाजिक और राजनैतिक, दोनों तरह की क्रान्ति में आर्यसमाज ही अगुआ बना रहा। इस पुस्तक को लिखकर पंडित नरेन्द्रजी ने बहुत-सी बिखरी हुई उन स्मृतियों को इकट्ठा कर दिया है जो देर होने से विस्मृति के गर्त में दबती चली जातीं। -प्रकाशवीर शास्त्रीSKU: n/a -
English Books, Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Inside Vedas
1951 में भारतीय विद्या भवन से डॉ आर. सी. मजूमदार के निर्देशन में ‘वैदिक ऐज‘ भाग एक प्रकाशित हुआ था। इस भाग में वेदों के विषय में जो विचार प्रस्तुत किये गए थे, वे मुख्यतः सायण, महीधर के वाममार्गी भाष्यकारों और मैक्समूलर, ग्रिफ्फिथ के पश्चिमी अनुवादों पर आधारित थे। स्वामी दयानन्द के वेद विषयक क्रांतिकारी चिंतन की पूर्णतः अनदेखी की गई थी। बहुत कम लोगों को ज्ञात रहा कि अंग्रेजी में आर्यसमाज के सिद्धस्त लेखक श्री पन्नालाल परिहार द्वारा ‘इनसाईड वेदास‘ के नाम से वैदिक ऐज का प्रतिउत्तर प्रकाशित हुआ था। जो अपने आप में अनुपम कृति थी।
इस पुस्तक में लेखक ने अंग्रेजी भाषा में अनेक पाठों के माध्यम से वेदों की उपयोगिता, वेदों की विषय वस्तु, वेदों के भाष्यों और वेदार्थ प्रक्रिया, वेदों के विषय में भ्रांतियां, वेदों में आये विभिन्न सूक्तों में बताये गए सन्देश आदि का परिचय दिया हैं। लेखक ने सायण-महीधर के वेद भाष्य में गलतियां और स्वामी दयानन्द के वेद भाष्य में सत्यार्थ का अच्छा विवरण दिया हैं। वैदिक ऐज में वेद विषयक भ्रांतियों का लेखक ने सुन्दर और सटीक प्रतिउत्तर देकर भ्रमनिवरण किया हैं।
यह पुस्तक अंग्रेजी भाषा में लिखी एक अनुपम कृति हैं। मेरे विचार से विदेशों, दक्षिण भारत और महानगरों में रहने वाले युवाओं को वेद विषयक जानकारी देने में यह पुस्तक एक स्तम्भ का कार्य करेगी। ऐसी पुस्तक को विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के पाठयक्रम में लगाया जाना चाहिए। वर्तमान परिवेश को देखते हुए वेद विषयक अंग्रेजी पुस्तकों की आर्यसमाज को नितांत आवश्यकता हैं। इसके लिए दूरगामी नीति बननी चाहिए।
-डॉ विवेक आर्यSKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Italy ke Mahatma Guisep Mejini ka Jivan Charit
Govindram Hasanand Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणItaly ke Mahatma Guisep Mejini ka Jivan Charit
बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि लाला लाजपतराय को देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा इटली को स्वाधीनता दिलाने वाले और अपनी मातृभूमि को यूरोप की तत्कालीन साम्राज्यवादी शक्तियों के पंजे से छुड़ाने वाले महापुरुषों-गैरीबाल्डी तथा मेजिनी से मिली थी।
यह जीवन-वृतांत इटली के पूजनीय माने जाने वाले महात्मा ग्वीसेप मेजिनी का है, जिन्होंने सैकड़ों वर्षों से चली आ रही दासता के खिलाफ आंदोलन शुरू किया तथा अपने देशवासियों को स्वतंत्रता प्राप्त करने का मार्ग दिखाया।
अपने देशवासियों को इन महापुरुषों की जीवनगाथा तथा कार्यों से परिचित कराने वाले प्रथम लेखक लालाजी ही थे। तत्कालीन ब्रिटिश शासकों को इस बात की आशंका थी कि स्वदेश की आजादी के लिए सर्वस्व त्याग करने वाले इन वीरों की गाथाएं कहीं भारतवासियों में भी आजादी की तड़प पैदा ना कर दे, इसलिए लालाजी द्वारा लगभग 100 वर्ष पहले लिखें गए इन जीवन चरितों को गौरी सरकार ने जप्त कर लिया था।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Mahabharatam (HB)
महाभारत धर्म का विष्वकोष है। व्यास जी महाराज की घोषणा है कि ‘जो कुछ यहां है, वही अन्यत्र है, जो यहां नहीं है वह कहीं नहीं है।‘ इसकी महत्ता और गुरुता के कारण इसे पन्चम वेद भी कहा जाता है।
लगभग 16000 श्लोकों में सम्पूर्ण महाभारत पूर्ण हुआ है। श्लोकों का तारतम्य इस प्रकार मिलाया गया है कि कथा का सम्बन्ध निरन्तर बना रहता है। इस पुस्तक में आप अपने प्राचीन गौरवमय इतिहास की, संस्कृति और सभ्यता की, ज्ञान-विज्ञान की, आचार-व्यवहार की झांकी देख सकते हैं।
यदि आप भ्रातृप्रेम, नारी का आदर्ष, सदाचार, धर्म का स्वरुप, गृहस्थ का आदर्ष, मोक्ष का स्वरुप, वर्ण और आश्रमों के धर्म, प्राचीन राज्य का स्वरुप आदि के सम्बन्ध में जानना चाहते हैं तो एक बार इस ग्रन्थ को अवश्य पढ़ें।
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Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), English Books, Govindram Hasanand Prakashan, इतिहास
Major (80%) Role of Arya Samaj in Freedom Strugle of Bharat
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), English Books, Govindram Hasanand Prakashan, इतिहासMajor (80%) Role of Arya Samaj in Freedom Strugle of Bharat
Major (80%) Role was played by the members of Arya Samaj movement for the independence of Bharatvarsh from the British rule.This book is dedicated to those brave soldiers of Arya Samaj, who followed the foot prints of founder of Arya Samaj Maharishi Dayanand Saraswati.These men and women members of Arya Samaj of that time, sacrificed their lives, their livelihood, suffered the tortures of various jails including Cellular jail ( Kala Pani jail) in Andman island instead of comforts of their family homes. They did not worry about the welfare of their loved ones after they had gone.No country can achieve anything like independence, without the massive support of their citizens. Indian National Congress party, All-India Muslim League and others made for the remaining 20%. But minorities (20%) seem to take full credit of Independence of Bharat with no mention of majority (80%) participants of Arya Samaj movement. How unfair?We have collected all the available facts, available till now to prove the majority role played by Arya Samaj.We sincerely request the present Government of Bharat to give long over due recognition of this true fact and oblige members of the Arya Samaj movement.Is it too much to ask for? -Narendra Kumar
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