Hindi Sahitya Sadan
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Hindi Sahitya Sadan, उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास
Aur Jamana Badal Gaya
Jamana Badal gaya series-4
भारत के विषय में भी हमारा कहना यही है। सन् 1857 से लेकर 1947 तक के सतत संघर्ष से हमने भारत से अंग्रेजो को निकाल दिया, परन्तु इसे निकालने के प्रयास में हमने भारत की आत्मा की हत्या कर दी है। हमने अंग्रेजों को निकाल कर अपनी गर्दन नास्तिक अभारतीयों और मूर्खों के हाथ में दे दी है। जहाँ देश के दोनों द्वार भारत विरोधियों (पाकिस्तानियों) के हाथ में दे दिये हैं, वहाँ भारत का राज्य ऐसे नेताओं के हाथ में सौंप दिया है, जो धर्म-कर्म विहीन हैं और कम्यूनिस्टों के पद-चिह्नों पर चलने लगे हैं।
द्वितीय विश्व-व्यापी युद्ध का इतिहास लिखने वाले एक विज्ञ लेखक ने लिखा है कि वह युद्घ तो जीत लिया गया था, परन्तु शान्ति के मूल्य पर उसके शब्द हैं-‘We won war but lost peace’। उस लेखक ने इसका कारण भी बताया है। उसके कथन का अभिप्राय यह है कि मित्र-राष्ट्रों की सेनाओं ने और जनता ने तो अतुल साहस और शौर्य का प्रमाण दिया था, परन्तु युद्ध-संचालन करने वाले राजनीतिज्ञ भूल-पर-भूल करते रहे। उनकी भूलों ने हिटलर को हटाकर, उसके स्थान पर स्टालिन को स्थापित कर दिया।SKU: n/a -
Hindi Sahitya Sadan, उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास
Badal Raha Hai Jamana
Jamana Badal gaya series-3
भारत के विषय में भी हमारा कहना यही है। सन् 1857 से लेकर 1947 तक के सतत संघर्ष से हमने भारत से अंग्रेजो को निकाल दिया, परन्तु इसे निकालने के प्रयास में हमने भारत की आत्मा की हत्या कर दी है। हमने अंग्रेजों को निकाल कर अपनी गर्दन नास्तिक अभारतीयों और मूर्खों के हाथ में दे दी है। जहाँ देश के दोनों द्वार भारत विरोधियों (पाकिस्तानियों) के हाथ में दे दिये हैं, वहाँ भारत का राज्य ऐसे नेताओं के हाथ में सौंप दिया है, जो धर्म-कर्म विहीन हैं और कम्यूनिस्टों के पद-चिह्नों पर चलने लगे हैं।
द्वितीय विश्व-व्यापी युद्ध का इतिहास लिखने वाले एक विज्ञ लेखक ने लिखा है कि वह युद्घ तो जीत लिया गया था, परन्तु शान्ति के मूल्य पर उसके शब्द हैं-‘We won war but lost peace’। उस लेखक ने इसका कारण भी बताया है। उसके कथन का अभिप्राय यह है कि मित्र-राष्ट्रों की सेनाओं ने और जनता ने तो अतुल साहस और शौर्य का प्रमाण दिया था, परन्तु युद्ध-संचालन करने वाले राजनीतिज्ञ भूल-पर-भूल करते रहे। उनकी भूलों ने हिटलर को हटाकर, उसके स्थान पर स्टालिन को स्थापित कर दिया।SKU: n/a -
Hindi Sahitya Sadan, उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास
Badalte Jamane Ka Aagaaz
Jamana Badal gaya series-2
इस उपन्यास के प्रथम भाग की भूमिका में हमने संक्षिप्त रूप में यह बताने का यत्न किया था कि भारत की दासता का कारण एक ओर तो बौद्ध-जैन मीमांसा तथा दूसरी ओर नवीन वेदान्त है। जहाँ बौद्ध-जैन मतावलम्बी भारत के जन-मानस को वेदों से पृथक् करने के लिए यत्नशील रहे, वहाँ नवीन वेदान्तियों ने जन-मानस को वेदों से दूर तो नहीं किया, परन्तु वेदों को जन-मानस से दूर कर दिया। हमारा अभिप्राय यह है कि वेदों के स्थान पर उपनिषद और गीता को लाकर प्रतिष्ठित कर दिया। यह एक विडम्बना-सी प्रतीत होती है कि स्वामी शंकराचार्यजी ने अपने प्रस्थानत्रयी के भाष्य में अनेक स्थलों पर वेद-संहिताओं को कर्मकाण्ड की पुस्तकें कह कर उन्हें केवल अज्ञानियों के लिए स्वर्गारोहण के निमित्त बताया है। परन्तु किसी भी स्थल पर संहिताओं का प्रमाण नहीं दिया। एक ढंग से चारों वेदों को, जिनका नव-संकलन श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यासजी ने किया था, उन्होंने अनादर की वस्तु बना कर केवल उपनिषदों को ही परम ज्ञान की वस्तु सिद्ध करने का ही प्रयास किया है।
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Hindi Books, Hindi Sahitya Sadan, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)
Balraj Madhok: Jindagi Ka Safar (Sampoorna)
-10%Hindi Books, Hindi Sahitya Sadan, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)Balraj Madhok: Jindagi Ka Safar (Sampoorna)
प्रोफेसर बलराज मधोक (२५ फ़रवरी १९२० – ०२ मई २०१६) भारत के एक राष्ट्रवादी विचारक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक, जम्मू-कश्मीर प्रजा परिषद के संस्थापक और मन्त्री, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्थापक, भारतीय जन संघ के एक संस्थापक और अध्यक्ष थे। वे उन्नीस सौ साठ के दशक के वरिष्ट राजनेता थे। वे संसद (लोकसभा) के दो बार सदस्य रह चुके हैं। वे गणमान्य शिक्षाविद, विचारक, इतिहासवेत्ता, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक भी थे। न वह खरी-खरी बोलने में हिचकते थे न किसी के सामने अपनी बात रखने में। किसी दौर में वो भारत की दक्षिणपन्थी राजनीति के सिरमौर हुआ करते थे। १९६० के दशक में उन्होने गौहत्या विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व किया।
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Hindi Sahitya Sadan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Bharat mein Rashtr
जीवन पद्घति का नाम धर्म है और धर्म का सार है कि जो व्यवहार अपने साथ किया जाना पसन्द नहीं करते वह किसी के साथ न करो।
राष्ट्र एक अवस्था है। राष्ट्रवाद उस अवस्था की सार्थकता का सिद्धान्त है एवं राष्ट्रीयता उक्त अवस्था की भावना है।–गुरुदत्त
1947 से जब से भारत को स्वत्रन्त्रता मिली है, कांग्रेसी नेता, तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर उनके छुटे-भय्ये तक, हिन्दू राष्ट्र की कल्पना का विरोध करते रहे हैं। हिन्दू राष्ट्र की भावना और घोषणा को देश के लिये घातक करते रहे हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Hindi Sahitya Sadan, Suggested Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatvarsh Ka Brihad Itihas (A Set of Two Books)
-10%Hindi Books, Hindi Sahitya Sadan, Suggested Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिBharatvarsh Ka Brihad Itihas (A Set of Two Books)
पुस्तक का नाम – भारतवर्ष का बृहद इतिहास
लेखक – पंडित भगवद्दत्त जी
भारतीयों का एक प्राचीन ,गौरवशाली इतिहास रहा है | इस इतिहास का संकलन प्राचीन शास्त्रों ,शिलालेखो , सिक्को , विदेशी यात्रियों के वृतान्तो पर है | इनके दुरपयोग और दुर्विश्लेष्ण से अनेको इतिहासकारो ने भारतीय इतिहास ,भारतीय ऋषियों ,महापुरुषो पर मिथ्यारोप किये और काल गणना को अशुद्ध निकाला | भारत का इतिहास अर्वाचीन सिद्ध करने की कोशिस की |
पंडित भगवद्दत्त जी ने अथक प्रयास और अनेको स्थानों के भ्रमण ,अनेको पांडुलिपियों के अध्ययन से भारतवर्ष का बृहद इतिहास नाम पुस्तक लिखी इसके प्रथम भाग में –
प्रथम अध्याय में – इतिहास आदि उन्नीस शब्दों का यथार्थ अर्थ प्रदर्शित किया है | जिससे ज्ञात होगा कि भारत में प्राचीन काल से इतिहास का सम्मान था |
द्वितीय अध्याय में – ब्रह्मा ,नारद ,उशना आदि के काव्यो द्वारा भारत में इतिहास का असाधारण आदर दिखाया है | प्राचीन काल में इतिहास ग्रंथो की विपुलता का परिचय इस अध्याय में मिलेगा | पाश्चात्य लोगो ने तिथि निर्धारण में जो मनमानी कल्पनाये की है उनका आभास भी यहा मिलेगा |
तृतीय अध्याय में – इतिहास के विकृति के कारण पर प्रकाश डाला है |
चतुर्थ अध्याय में – भारतीय इतिहास के स्त्रोत निर्देशित है |
पंचम अध्याय में – प्राचीन वंशावलियो की सत्यता प्रमाणिक की गयी है |
षष्ठ अध्याय में – दीर्घजीवी पुरुष कौन थे ? मानव ऋषि देव आयु का रहस्य खोला गया है |
सप्तम अध्याय में – पुरातन काल मान का संक्षिप्त वर्णन है | सतयुग ,द्वापर,त्रेता कलियुग आदि युगों की शंकाओं का समाधान है |
अष्टम अध्याय में – ब्राह्मण ग्रन्थ और इतिहास का मतैक्य प्रदर्शित किया है |
नवम अध्याय में – वैदिक ग्रंथो एवं महाभारत के रचनाक्रम का स्पष्टीकरण है |
दशम अध्याय में – भारतीय इतिहास को संसार इतिहास की तालिका सिद्ध किया है | कालडिया ,मिश्र ,ईरान ,आदि देशो ने भारत से क्या क्या सीखा यह सब बताया है |
एकादश अध्याय में – भारतीय इतिहास की तिथि गणना के मूलाधार स्तम्भों का उलेख है | विंटर्निटज , जवाहरलाल नेहरु , बट श्रीकृष्ण घोष आदि की कल्पनाओं को अपास्त किया है |
द्वादश अध्याय में –“मिथ “ शब्द पर विचार किया है | पाश्चात्य इतिहासकार द्वारा मिथ बताये जाने वाले इतिहास की वास्तविकता दिखलाई है |
द्वितीय भाग में –
प्रथम अध्याय में – जलपल्लवन की घटना का उलेख किया है |
द्वितीय अध्याय में – पार्थिव उत्पति का क्रम दर्शाया है |
तृतीय अध्याय में – उद्भिज सृष्टि का प्रदुर्भाव बताया है |
चतुर्थ अध्याय में – स्वाम्भुव मन्वन्तर , ब्रह्मा आदि और सतयुग पर प्रकाश डाला है |
पंचम अध्याय में – आदियुग ,स्वाम्भुव मनु उनका राजपाठ ,मनुस्मृति आदि विषयों पर लिखा है |
षष्टम अध्याय में – पितृयुग ,मानुष नामकरण , सप्त ऋषियों की उत्पति को बताया है |
सप्तम अध्याय में – जम्बूदीप का वर्षविभाग ,भारतवर्ष ,भारत की प्रजा ,भारत का विस्तार दर्शाया है |
अष्टम अध्याय में – चाक्षुष मन्वन्तर और वेन पुत्र राजा पृथु का इतिहास बताया है |
नवम अध्याय में – सतयुग के अंत में असुरो का प्रभाव ,देवयुग ,बारह आदित्यो का परिचय .आदि विषय पर लेखन किया है |
दशम अध्याय में – दक्ष प्रजापति का जीवन वृंत लिखा है |
एकादश अध्याय में –मनु की सन्तान और भारतीय राजवंशो का विस्तार बताया है |
द्वादश अध्याय में – ऐल वंश का परिचय ,विस्तार दिया है |
त्र्योदश अध्याय में – इक्ष्वाकु से ककुत्स्थ तक वंश परिचय है |
चतुर्दश अध्याय में- ऐल पुरुरवा से पुरु तक के वंश का इतिहास है |
पंचदश अध्याय में – बृहस्पति और उशना के काव्यो का परिचय और उनमे इतिहास सामग्री का उलेख दिखाया है |
षोडश अध्याय में – कोसल जनपद अंतर्गत अनेना से मान्धाता तक वंशो का राजकाल बताया है |
सप्तदश अध्याय में –जनमजेय से मतिनार पर्यन्त तक राजाओं की वंशावली तथा ऐतिहासिकता को बताया है |
अष्टादश अध्याय में- चक्रवती शशबिंदु ,मरुत का वर्णन किया है |
एकोनविंश अध्याय में – आनवकुल ,पुरातन पंजाब का स्वरूप बताया है |
विशतित अध्याय में – ऋग्वेद सम्बन्धित लेख
एकविशतितं अध्याय में – मतिनारपुत्र तंसु से अजमीढ पर्यन्त ,चक्रवती भरत , चक्रवती सुहोत्र का इतिहास है |
द्वाविश अध्याय में – पुरुकुत्स से हरिश्चंद पर्यन्त इतिहास है |
त्रयोविश अध्याय में – यादव वंशज हैहय अर्जुन के बारे में है |
चतुर्विश अध्याय में – रोहित से श्री रामचन्द्र पर्यन्त इतिहास है | त्रेता द्वापर संधि का क्रम और इतिहास दर्शाया है |
पंचविशति अध्याय में – त्रेता के अंत की घटनाओं का उलेख है वाल्मीक आदि मुनियों का जीवनवृंत ,रचनाओं का उलेख किया है |
षडविशति अध्याय में – अजमीढ पुत्र ऋक्ष से कुरुपर्यन्त इतिहास है |
सप्तविशति अध्याय में – रामपुत्र कुश से भारतयुद्ध पर्यन्त इतिहास है |
अष्टाविशति अध्याय में – कुरु से भारतयुद्ध पर्यन्त वृतातं और कुरुसालव युद्ध का दर्शन कराया है |
ऊनत्रिशत अध्याय में – भारतयुद्ध से लगभग सौ वर्ष पूर्व आर्यदेश की स्थिति का उलेख है |
त्रिशत अध्याय में – विचित्रवीर्य से भारत युद्ध पर्यन्त इतिहास का लेखा जोखा है |
एकत्रिशत अध्याय में – भारतयुद्ध कालीन भारत देश, उदीच्य देश , मध्यदेश , प्राच्य जनपद , विन्ध्य जनपद ,दक्षिण जनपद आदि जनपदों का विस्तार की जानकारी दी हुई है |
द्वात्रिशत अध्याय में – भारत युद्ध का काल लगभग ३००० विक्रम पूर्व सिद्ध किया है |
त्रियस्त्रियशत अध्याय में – भारतयुध्द के आसपास लिखे वांगमयो का परिचय है |
चतुस्त्रिशत अध्याय में – भारतयुद्ध के पश्चात से आर्षकाल तक के अंत तक का ऐतिहासिक वृत्तांत लिखा है |
पंचत्रिशत अध्याय में – युद्धिष्टर के राजपाठ का उलेख है |
षटत्रिशत अध्याय में – चौबीस इक्ष्वाकु राजाओ का वर्णन है |
सप्तत्रिशत अध्याय में – दीर्घ सत्र से गौतम बुद्ध पर्यन्त इतिहास है |
अष्टात्रिशत अध्याय में – गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी आदि के काल और जीवनी का उलेख है |
नवत्रिशत अध्याय में – अवन्ति के राजवंश का उलेख किया है |
चत्वारिशत अध्याय में – वत्सराज उदयन के राजवंश का वर्णन है |
एकचत्वारिशत अध्याय में – बुद्ध से नन्दवंश तक का इतिहास है |
द्विचत्वारिशत अध्याय में –तत्कालीन अन्य राजवंशो का परिचय दिया है |
त्रिचत्वारिशत अध्याय में – नन्द राज्य का दिग्दर्शन कराया है |
चुतुश्चत्वारिशत अध्याय में –मौर्य वंश के उद्गम और राज्य का उलेख किया है |
पंचचत्वारिशत अध्याय में – शुंग राज्य वंश का उलेख है |
षटचत्वारिशत अध्याय में –यवन राज्य आक्रमण आदि समस्याओ का वर्णन है |
सप्तचत्वारिशत अध्याय में – काण्व साम्राज्य का वर्णन किया है |
अष्टचत्वारिशत अध्याय में – आंध्र साम्राज्य और उनके राजाओं का उलेख किया है |
नवचत्वारिशत अध्याय में – विक्रामादित्य प्रथम का राजवंश बताया है |
पंचाशत अध्याय में – आन्ध्रपुरीन्द्रसेन के साम्राज्य का वर्णन है |
एकपंचाशत अध्याय में – अभी तक वर्णित राज्यवंशो का कुल काल निर्धारण किया गया है |
द्विपंचाशत अध्याय में – अभीर , शक , यवन ,तुषार आदि जातियों का इतिहास लिखा है |
त्रिपंचाशत अध्याय में – गुप्त काल का काल निर्धारित किया है |
चतु पंचाशत अध्याय में – गुप्त राजकाल की अवधि बताई है |
पंचपञ्चाशत अध्याय में – गुप्त साम्राज्य का विस्तार ,वंशावली का वर्णन है |
प्रस्तुत पुस्तक इतिहास के शोधार्थियों और इतिहास विशेषज्ञों को नई दिशा प्रदान करेगी |
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Bharatvarsh Ka Sanshipt Itihaas
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भारतवर्ष का संक्षिप्त इतिहास
रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं। विज्ञान की पृष्ठभूमि पर वेद, उपनिषद् दर्शन इत्यादि शास्त्रों का अध्ययन आरम्भ किया तो उनको ज्ञान का अथाह सागर देख उसी में रम गये। वेद, उपनिषद् तथा दर्शन शास्त्रों की विवेचना एवं अध्ययन अत्यन्त सरल भाषा में प्रस्तुत कराना गुरुदत्त की ही विशेषता है।
मनीषि स्व० श्री गुरुदत्त ने इस ग्रन्थ की रचना लगभग सन् 1979-80 में की। इसकी पाण्डुलिपि को पढ़ने से तथा उनके जीवनकाल में उनसे परस्पर वार्तालाप करने से यह आभास मिलता था कि वे भारतीय स्रोतों के आधार पर भारत वर्ष का प्रामाणिक इतिहास लिखना चाहते थे। पाश्चात्य इतिहास-लेखकों की पक्षपातपूर्ण एवं संकुचित दृष्टि से लिखे गए इतिहास की सदा उन्होंने भर्त्सना की। वे बार-बार यही कहा करते थे कि ‘‘भारतवर्ष का प्रामाणिक इतिहास लिखा जाना चाहिए।’’
अन्यान्य ग्रंन्थों की रचना करते हुए उन्होंने इतिहास पर भी लेखनी चलानी आरम्भ की और मनु आरम्भ कर राम जन्म तक का ही वे यह प्रामाणिक इतिहास लिख पाए थे कि काल के कराल हाथों ने उन्हें हमसे छीन लिया।SKU: n/a