Prabhat Prakashan
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Vibhajan Ki Trasadi
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Vibhajan Ki Trasadi
आजादी का जश्न अभी क्षितिज तक भी न चढ़ सका था कि मुल्क के दो फाड़ होने का बिगुल बज गया और सांप्रदायिक सद्भाव तार-तार हो गया, जिसके साथ ही दोनों तरफ की बेकसूर आवाम के खून का एक दरिया बह निकला। लाखों लोग मारे गए। करोड़ों बेघर हुए। लगभग एक लाख महिलाओं, युवतियों का अपहरण हुआ। यही बँटवारा इस पुस्तक का मुख्य मुद्दा है, जो लेखक की कड़ी मेहनत और बरसों की शोध का नतीजा है। बँटवारे में मरनेवालों का सरकारी आँकड़ा केवल छह लाख दर्ज है, लेकिन इस संदर्भ में अगर तत्कालीन अंग्रेज अधिकारी मोसले पर गौर करें तो वह गैरसरकारी आँकड़ा दस लाख दरशाता है, यानी कि बँटवारे में छह लाख नहीं, बल्कि दस लाख लोग मारे गए। गौरतलब है कि न पहले और न ही बाद में, इतना बड़ा खून-खराबा और बर्बरता दुनिया के किसी भी देश में नहीं हुई।
अब एक बड़ा सवाल उठता है कि देश का विभाजन आखिर सुनिश्चित कैसे हुआ? क्या जिन्ना का द्विराष्ट्रवाद इसके लिए जिम्मेदार था या फिर अंग्रेजों की कुटिल नीति? क्या गांधी और कांग्रेस के खून में बुनियादी रूप से मुसलिम तुष्टीकरण का बीज विद्यमान था, जिसने अंततः बँटवारे का एक खूनी वटवृक्ष तैयार किया और जिसकी तपिश आज भी ठंडी नहीं हो पाई है।
विभाजन की त्रासदी और विभीषिका का वर्णन करती पुस्तक, जो पाठक को उद्वेलित कर देगी।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Vibhajan Ki Vibheeshika
भारत का विभाजन विश्व के सबसे बड़े नरसंहार के रूप में हिंदुओं और सिखों की महिलाओं की छाती पर हुआ। इसमें 30 लाख से अधिक लोगों की नृशंस हत्या हुई। विभाजन के समय हिंदू और सिख पुरुषों को एक लाइन में खड़ा करके पाकिस्तानी सेना ने गोलियों से भून दिया।
एक लाख से अधिक महिलाओं का अपहरण व बलात्कार करके अधिकांश को मौत के घाट उतार दिया गया | उनकी संपत्ति को हड़प लिया अथवा उसे आग के हवाले कर दिया । विश्व में यह एकमात्र ऐसा उदाहरण है, जब करोड़ों की जनसंख्या का विनिमय बिना किसी योजना एवं पूर्व प्रबंधों के अचानक कर दिया गया।
पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित इन दंगों में 1.5 करोड़ लोग विस्थापित हुए। विभाजन का यह काला अध्याय विस्थापित हुए, भगाए गए, मारे गए और भटककर मौत को गले लगानेवाली मनुष्यता के खून के छींटों से भरा हुआ है। यह इतिहास के चेहरे पर पुती वह कालिमा है, जिसे कभी साफ नहीं किया जा सकेगा। इसका दंश इस पीढ़ी ने झेला, पर उसका दर्द और मार वहाँ से विस्थापित हुए परिवार आज भी झेल रहे हैं।
विभाजन का दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह है कि इसके लिए उत्तरदायी नेता अपने इस अमानवीय कुकृत्य के लिए कभी शर्मिंदा नहीं हुए, बल्कि विभीषिका को “रक्तहीन क्रांति’ कहकर स्वयं को गौरवान्वित करते रहे । इन्हीं खून के धब्बों की लोमहर्षक घटनाओं पर उकेरा गया है यह अत्यंत मर्मस्पर्शी एवं संवेदनशील उपन्यास–‘विभाजन की विभीषिका ।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास
Vibhajit Bharat (HB)
Ram Madhavराम माधव राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर हैं और भू-राजनीतिक, सामरिक एवं सुरक्षा अध्ययन तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में विशेष दिलचस्पी रखते हैं। उन्होंने अनेक देशों की यात्राएँ की हैं और 20 से अधिक देशों के विश्वविद्यालयों तथा अन्य कार्यक्रमों में व्याख्यान दे चुके हैं। सन् 1990 से 2001 के बीच, एक दशक से भी ज्यादा समय तक वे सक्रिय पत्रकारिता कर चुके हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेख भी लिखते हैं। अंग्रेजी और तेलुगु में उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें प्रमुख हैं—डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी की ‘ए बायोग्राफी’ (तेलुगु), कान्होजी आंग्रे की ‘द मराठा नेवल हीरो’ (तेलुगु), ‘विविसेक्टेड मदरलैंड’ (तेलुगु), ‘इंडिया-बँगलादेश बॉर्डर एग्रीमेंट 1974—ए रिव्यू’ (अंग्रेजी) और ‘कम्युनल वॉयलेंस बिल अगेंस्ट कम्युनल हार्मोनी’ (अंग्रेजी)।
वे दिल्ली स्थित सामरिक अध्ययन एवं अंतरराष्ट्रीय संबंध अध्ययन के विचार केंद्र इंडिया फाउंडेशन के निदेशक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री हैं।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास
Vibhajit Bharat (PB)
Ram Madhavराम माधव राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर हैं और भू-राजनीतिक, सामरिक एवं सुरक्षा अध्ययन तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में विशेष दिलचस्पी रखते हैं। उन्होंने अनेक देशों की यात्राएँ की हैं और 20 से अधिक देशों के विश्वविद्यालयों तथा अन्य कार्यक्रमों में व्याख्यान दे चुके हैं। सन् 1990 से 2001 के बीच, एक दशक से भी ज्यादा समय तक वे सक्रिय पत्रकारिता कर चुके हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेख भी लिखते हैं। अंग्रेजी और तेलुगु में उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें प्रमुख हैं—डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी की ‘ए बायोग्राफी’ (तेलुगु), कान्होजी आंग्रे की ‘द मराठा नेवल हीरो’ (तेलुगु), ‘विविसेक्टेड मदरलैंड’ (तेलुगु), ‘इंडिया-बँगलादेश बॉर्डर एग्रीमेंट 1974—ए रिव्यू’ (अंग्रेजी) और ‘कम्युनल वॉयलेंस बिल अगेंस्ट कम्युनल हार्मोनी’ (अंग्रेजी)।
वे दिल्ली स्थित सामरिक अध्ययन एवं अंतरराष्ट्रीय संबंध अध्ययन के विचार केंद्र इंडिया फाउंडेशन के निदेशक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री हैं।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Vibhajit Savera
Prabhat Prakashan, उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Vibhajit Savera
मनु शर्मा के तीन उपन्यासों की शृंखला की यह तीसरी और अंतिम कड़ी है। इसका कालखंड आजादी के बाद का है। गुलामी की जंजीरें कटने के बाद देश ने आजादी का सवेरा देखा, पर यह सवेरा विभाजित था। देश दो भागों में बँट गया था—भारत और पाकिस्तान। अंग्रेज चाहते थे कि दोनों देश हमेशा एक-दूसरे के विरोधी बने रहें। एक ओर वे जिन्ना की पीठ ठोंकते। दूसरी ओर ‘अमनसभाइयों’ को भी उत्साहित करते। अमनसभाई तो थे ही सुराजियों के विरोधी। फिरंगियों ने इनका संगठन बनाया ही इसीलिए था। अमनसभाई अंग्रेज अफसरों के यहाँ ‘डालियाँ’ भिजवाते रहे और सुराजियों की गुप्त सूचनाएँ भी उन्हें देते रहे। इसी उलझन में भारतीय राजनीति आगे बढ़ रही थी कि एक सिरफिरे हिंदू ने गांधीजी को गोली मार दी। अहिंसा का पुजारी हिंसा के घाट उतार दिया गया। इसके कारणों पर भी उपन्यास में विचार हुआ है। ‘टु नेशन थ्योरी’ के आधार पर सांप्रदायिक हिंसा का जो नंगा नाच हुआ, उसका भी चश्मदीद गवाह है यह उपन्यास। ‘विभाजित सवेरा’ खंडित भारत का सार्थक, संवेदनापूर्ण और यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता है इसमें लेखक की अनुभूति की सघनता, आत्मीयता और भावुकता है। कथा अंत तक विभाजित सवेरे का दंश भोगती रहती है। आजादी की मरीचिका और देश के सामने मुँह बाए खड़ी ज्वंलत समस्याओं से अवगत कराता है—‘विभाजित सवेरा’।
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Vichar Pravah Book in Hindi
डॉ. लोहिया समाजवादियों से कहते थे कि तुम निरंतर अपने में बदलाव करते रहो। नीति और सिद्धांत का खूँटा पकडे़ रहो, परंतु रणनीति बदलते रहो। आज समग्रता में डॉ. लोहिया को पढ़ने, जानने और समझने की आवश्यकता है। वे कहा करते थे कि जब किसान का एक हाथ हल की मूठ पर रहेगा और दूसरी आँख दिल्ली की सत्ता पर रहेगी, उस दिन परिवर्तन आएगा। राह सही रहे, परंतु राही बदलते रहें तो चिंता नहीं— दृष्टि और दिशा सही रहनी चाहिए। मैं भी गाँववाला हूँ। किसान हूँ। अपनी भाषा में और अपनी दृष्टि से कुछ लिखता हूँ और बोलता हूँ। डॉ. लोहिया कहा करते थे कि कभी भी दो महापुरुषों में तुलना मत करना। समय, परिस्थति और कारण एक नहीं होते हैं। आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, प्रशासनिक और भौगोलिक परिस्थिति एक समान नहीं होती हैं। हर युग और समय में जो तत्कालीन और दीर्घकालीन परिस्थितियाँ होती हैं, उसी के अनुरूप काम करना पड़ता है। हर युग की अपनी समस्याएँ होती हैं, उनके निदान के उपाय खोजे जाते हैं। महापुरुषों की दृष्टि में समग्रता और व्यापकता के साथ-साथ करुणा होती है। वे समग्रता में चिंतन करते हैं और अपने तरीके से विश्लेषण करते हैं। भाषा और शब्दो में अंतर हो सकता है, परंतु भावना, चिंतन और दृष्टि में भेद नहीं होता है। समाजवादी विचारों से ओत-प्रोत आलेखों का संग्रह।
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Prabhat Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Vidhyarthiyon Ke Liye Gita (HB)
‘गीता’ कालजयी ग्रंथ है। यह भक्ति के साथ-साथ कर्म की ओर प्रवृत्त करती है। अपने कर्तव्य-पथ से भटक रहे अर्जुन को श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान देकर ही कर्म-पथ पर प्रवृत्त किया। इसलिए हमारे जीवन में गीता का बहुत व्यावहारिक उपयोग है, महती योगदान है।
विद्यार्थी काल में ही गीता का भाव समझ गए तो यह जीवन में पग-पग पर काम आएगा। जीने की कला आ जाएगी। आपत्तियों तथा कष्टकर परिस्थितियों में निराशा नहीं घेरेगी। अपने-पराए और मित्र-शत्रु के मोह से मुक्त होने का ज्ञान हो जाएगा। अधिकांश लोग सेवानिवृत्त होकर गीता पढ़ते हैं। जब सारा जीवन मोह, लोभ, काम, क्रोध और अहंकार की भेंट चढ़ गया, दुःख और संतापों का ताप सह लिया, तिल-तिल कर मरते रहे, फिर गीता पढ़ी तो क्या लाभ हुआ? पाप और पुण्य कर्मों का फल तो भोगना निश्चित ही हो गया!
इस पुस्तक को विशेष रूप से छात्रों-विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। गीता के हर अध्याय में जो महत्त्वपूर्ण श्लोक हैं, जिन्हें स्मरण किया जा सके, गाया जा सके, उन्हें संकलित किया गया है। स्पष्ट है कि यह संपूर्ण गीता नहीं है, बल्कि मात्र प्रेरणा है। इसे पढ़कर छात्र सन्मति पाएँ, नैतिक मूल्यों का पालन करते हुए सन्मार्ग पर चलकर जीवन में सफलता के शिखर पर पहुँचें, यही इस पुस्तक के लेखन का उद्देश्य है।
विद्यार्थियों के चरित्र-निर्माण तथा कर्तव्य-पथ पर सतत चलने की प्रेरणा देनेवाली एक अनुपम पुस्तक।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Vidhyarthiyon Ke Liye Gita (PB)
‘गीता’ कालजयी ग्रंथ है। यह भक्ति के साथ-साथ कर्म की ओर प्रवृत्त करती है। अपने कर्तव्य-पथ से भटक रहे अर्जुन को श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान देकर ही कर्म-पथ पर प्रवृत्त किया। इसलिए हमारे जीवन में गीता का बहुत व्यावहारिक उपयोग है, महती योगदान है।
विद्यार्थी काल में ही गीता का भाव समझ गए तो यह जीवन में पग-पग पर काम आएगा। जीने की कला आ जाएगी। आपत्तियों तथा कष्टकर परिस्थितियों में निराशा नहीं घेरेगी। अपने-पराए और मित्र-शत्रु के मोह से मुक्त होने का ज्ञान हो जाएगा। अधिकांश लोग सेवानिवृत्त होकर गीता पढ़ते हैं। जब सारा जीवन मोह, लोभ, काम, क्रोध और अहंकार की भेंट चढ़ गया, दुःख और संतापों का ताप सह लिया, तिल-तिल कर मरते रहे, फिर गीता पढ़ी तो क्या लाभ हुआ? पाप और पुण्य कर्मों का फल तो भोगना निश्चित ही हो गया!
इस पुस्तक को विशेष रूप से छात्रों-विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। गीता के हर अध्याय में जो महत्त्वपूर्ण श्लोक हैं, जिन्हें स्मरण किया जा सके, गाया जा सके, उन्हें संकलित किया गया है। स्पष्ट है कि यह संपूर्ण गीता नहीं है, बल्कि मात्र प्रेरणा है। इसे पढ़कर छात्र सन्मति पाएँ, नैतिक मूल्यों का पालन करते हुए सन्मार्ग पर चलकर जीवन में सफलता के शिखर पर पहुँचें, यही इस पुस्तक के लेखन का उद्देश्य है।
विद्यार्थियों के चरित्र-निर्माण तथा कर्तव्य-पथ पर सतत चलने की प्रेरणा देनेवाली एक अनुपम पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Vidrohi Sannyasi
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, धार्मिक पात्र एवं उपन्यासVidrohi Sannyasi
श्री नगर से कामरूप-कामाख्या और कलकत्ता से कोच्चि तक आदिशंकर के नाम की पारसमणि हमारा मार्ग प्रदीप्त करती गई। उस महान् यात्री के पदचिह्न खोजते हुए अनायास ही भारत भर की प्रदक्षिणा कब संपन्न हो गई पता नहीं चला।
हर सुधार कालांतर में स्वयं रूढि़ बन जाता है, हर क्रांति को पोंगापंथी बनते हुए और मुक्ति-योद्धाओं को तानाशाह बनते देखना इतिहास की आदत है। वे विद्रोही थे, उन्होंने मानव बलि समेत तत्समय के ढोंग, पाखंड, वामाचार का प्राणपण से विरोध किया। संन्यासी होते हुए उनमें यह कहने का साहस था कि मैं न मूर्ति हूँ, न पूजा हूँ, न पुजारी हूँ, न धर्म हूँ, न जाति हूँ।
आदिशंकराचार्य के पास आज के युवाओं के सभी प्रश्नों का उत्तर है, उनकी जिज्ञासाओं और कुंठाओं के भी। उनसे बड़ा प्रबंधन गुरु कौन होगा, जिसने शताब्दियों पहले केरल के गाँव से यात्रा प्रारंभ कर संपूर्ण राष्ट्र की चेतना और जीवन-पद्धति को बदल दिया।
जो संन्यासी संसार के सारे अनुशासनों से परे हुआ करते थे, उन्हें अखाड़ों और आश्रमों में संगठित कर अनुशासित और नियमबद्ध कर दिया। बौद्धों और हिंदुओं के संघर्ष को शांत कर दिया। शैवों, वैष्णवों, शाक्तों, गाणपत्यों, सभी को एक सूत्र में पिरो दिया।
उस अद्भुत तेजस्वी बालक, चमत्कारी किशोर और सम्मोहक युवा शंकर की यह कथा आपको उनके विख्यात जीवन के अज्ञात प्रसंगों का दिग्दर्शन करा पाएगी, यह इस पुस्तक का विनम्र उद्देश्य है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Vijayi Bhav
हम भारतीयों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सभी जरूरी संसाधन पर्याप्त मात्रा में देश में उपलब्ध हैं। हमारे यहाँ बहुत सी नीतियाँ और संस्थाएँ हैं। चुनौती है तो बस शिक्षकों, विद्यार्थियों और तकनीक-विज्ञान को एक सूत्र में पिरोकर एक दिशा में चिंतन करने की।
प्रस्तुत पुस्तक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में चिंतन के विविध आयामों को खोलती है, अनेक व्यावहारिक चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है और कई महत्त्वपूर्ण प्रश्न पाठकों के सामने रखती है। डॉ. कलाम देश के छात्र व युवा-शक्ति को भावनात्मक, नैतिक एवं बौद्धिक विकास की ओर प्रवृत्त होने का संदेश देते हैं। वैज्ञानिक और तकनीकी खोजों को सही ढंग से मनुष्य के विकास में उपयोग करने के विचार को बल देते हैं।
विजयी भव डॉ. कलाम के भारत को महाशक्ति बनाने के स्वप्न को दिशा देनेवाली कृति है। इसमें शिक्षा व शिक्षण की पृष्ठभूमि, मानव जीवन-चक्र, परिवारों के सदस्यों के बीच पारस्परिक संबंध, कार्य की उपयोगिता, नेतृत्व के गुण, विज्ञान की प्रकृति, अध्यात्म तथा नैतिकता पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है।
यह कृति डॉ. कलाम की पूर्व प्रकाशित पुस्तकों की श्रृंखला की महत्त्वपूर्ण कड़ी है, जो हमें सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन में अपनी प्रवीणताओं और कुशलताओं के साथ विजयी होने की प्रेरणा देती है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Vinashparva
यह विडंबना ही है कि स्वतंत्रता पाने के बाद जिन तथ्यों को लेखनीबद्ध करके देश की भावी पीढि़यों के लिए सहेजा जाना चाहिए था, वह कार्य आज भी अधूरा है। भारत की शिक्षा-व्यवस्था, भारत की स्वास्थ्य सेवाएँ और भारत के उद्योग, इन सबका हृस अंग्रेजी शासन में कैसे होता गया, इस पर विस्तार से कभी नहीं लिखा गया। अंग्रेजों की क्रूरता, बर्बरता, निर्ममता और भारतीयों पर किए हुए उनके अन्याय व अत्याचार के साथ ही अंग्रेजों द्वारा भारत की लूट का तथ्यपूर्ण विवरण इस पुस्तक में संकलित हैं। साथ ही अंग्रेजों के आने के पहले भारत की स्थिति क्या थी, अंग्रेजों ने कैसे भारत की जमी-जमाई व्यवस्थाओं को छिन्न-भिन्न किया और उनके जाने के बाद भारत की स्थिति क्या रही इस पर विस्तार से प्रकाश डालनेवाली यह पुस्तक अपनी सहज-सरल प्रस्तुति तथा प्रवाहपूर्ण भाषा-शैली के चलते नई पीढ़ी को अपनी ओर अवश्य आकर्षित करेगी।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, उपन्यास
Vinayak Sahasra Siddhai
भारतीय जनमानस में विनायक को लेकर जैसी श्रद्धा व विश्वास है, वही उसे लोक नायक बनाने के लिए पर्याप्त है। वह सामाजिक दृष्टि से रूढि़ग्रस्त समाज को दिशा देता है और सामाजिक सरोकारों से जुड़कर लोक-कल्याण को सर्वोपरि मानता है। भारत में आर्यावर्त के समय से ही या यों कहें, उससे पूर्व से ही गणेश, गणपति, गणनायक एक ऐसे नायक रहे हैं, जो अपने श्रेष्ठ कार्यों के कारण घर-घर में वंदनीय रहे। मानव समाज उन्हीं की वंदना करता है, जो सेवा के बदले कोई अपेक्षा नहीं करते।
विघ्नहर्ता-मंगलमूर्ति-लंबोदर गणेशजी पर केंद्रित इस औपन्यासिक कृति का लेखन इसी वर्ष में पूर्ण हुआ, जिसका आधार मार्कंडेयपुराण, अग्निपुराण, शिवपुराण और गणेशपुराण सहित अनेक संदर्भ ग्रंथों का अध्ययन है।
विनायक एक सामान्य विद्यार्थी से लेकर समाज के पथ-प्रदर्शक के रूप में पल-पल पर संघर्ष करता है और प्रतिगामी शक्तियों से मुकाबला करता है। विनायक ने हर उस घटना, कार्य और यात्रा को सामाजिक सरोकारों के साथ जोड़ा है, जिनसे वह गुजरता है। अपने मित्रों पर उसे अटूट विश्वास है। उसके पास अद्भुत संगठन क्षमता है। विनायक एक साधारण नायक से महानायक तक की यात्रा तय करता है; लेकिन मानव होने के नाते सारे गुण-अवगुण अपने भीतर समेटे हुए है। ‘विनायक त्रयी’ का यह भाग ‘विनायक सहस्र सिद्धै’ एक ऐसा ही उपन्यास है।
अत्यंत रोचक व पठनीय उपन्यास।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
VISHWA KA ITIHAS
इतिहास अतीत की घटनाओं का तथ्यात्मक वर्णन मात्र नहीं है, अपितु यह मानव केसुंदर भविष्य के निर्माण में भी अत्यंत सहायक है। इस प्रकार इतिहास हमारा पथ-प्रदर्शक है। ‘विश्व का इतिहास’ नामक इस पुस्तक में मानव सभ्यता केआरंभ से लेकर वर्तमान तक का विवरण प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। जैसा कि हम जानते हैं, इतिहास एक वृहद् विषय है तथा इसका आंकलन विभिन्न पक्षों, यथा सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक इत्यादि को दृष्टिगत रखकर किया जाता है। जब हम विश्व के इतिहास की बात करते हैं तो इसे लिखना एक चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि इसमें घटनाओं की महत्ता को देखते हुए उनका चयन करना होता है।
प्रस्तुत पुस्तक में मैंने विश्व की समस्त प्रमुख सभ्यताओं के बारे में जानकारी प्रदान करने का प्रयास किया है। इसमें विश्व के इतिहास की प्रमुख घटनाओं और स्थितियों को विवेचनात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है तथा तथ्यों की प्रामाणिकता के साथ-साथ विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण पर विशेष बल दिया गया है।SKU: n/a -
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Vishwa Patal Par Apana Desh (HB)
-17%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रVishwa Patal Par Apana Desh (HB)
Vishwa Patal Par Apana Desh “”विश्व पटल पर अपना देश”” Book in Hindi- R.K. Sinha
‘विश्व पटल पर अपना देश’ आर.के. सिन्हा के उन आलेखों का संग्रह है, जिसमें भारत की आन-बान और शान की चर्चा की गई है । बेशक भारत का अतीत गौरवशाली रहा है, लेकिन पिछले एक दशक से दुनियाभर में भारत का डंका फिर से बज रहा है और पुरजोर बज रहा है । इसमें भी दो राय नहीं कि ऐसा हमारी मजबूत सरकार और सक्षम नेतृत्व की वजह से ही संभव हो पाया है। सिन्हाजी अपनी बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते हैं । प्रस्तुत पुस्तक में उन्होंने न सिर्फ नए भारत का यशोगान किया है, बल्कि अपने ठोस तकों से यह साबित भी किया है कि ऐसा करना क्यों जरूरी है । नया भारत चीन की मार खाकर “हिंदी-चीनी भाई-भाई ‘ का नारा नहीं लगाता; वह पाकिस्तान के हर कुत्सित कार्य को छोटे भाई की नासमझी भी नहीं मानता; न ही अनावश्यक सुरक्षा जाँच के नाम पर अमेरिका में अपमानित होता है। बकौल सिन्हा, नरेंद्र मोदी का नया भारत जरूरत पड़ने पर चीन के गले में अँगूठा डालता है, पाकिस्तान के घर में घुसकर सर्जिकल स्ट्राक करता है और अमेरिका के राष्ट्रपति चाहे डोनाल्ड ट्रंप हों अथवा जो बाइडेन, न सिर्फ खुलकर गले लगाते हैं, बल्कि आगे बढ़कर अगवानी करते हैं और शान में रात्रिभोज कराते हैं। आज के भारत को जी-20 के देश अपनी अध्यक्षता का दायित्व सौंपते हैं और रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच विश्व के लोग शांति की राह दिखाने के लिए आशा भरी निगाह से देखते हैं । उम्मीद की जानी चाहिए कि यह पुस्तक हमारी विदेश नीति को समझने में सहायक होगी और शोधकर्ताओं के काम आएगी ।
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Vishwaguru Bharat: Kal, Aaj Aur Kal
चाहे योगासन हो या चिकित्सा केविभिन्न आयाम, चाहे ज्योतिषशास्त्र, गणित या साहित्य, संगीत, कला, वास्तु के विभिन्न आयाम और चाहे विज्ञान व तकनीक, भारत सदा से ही हर क्षेत्र में विश्व का सिरमौर रहा है। देववाणी संस्कृत को विश्व को सभी भाषाओं की जननी कहा जाता है।
आज परमाणु शक्ति-संपन्न भारत ने जहाँ प्रथम प्रयास में ही मंगल तक को यात्रा पूरी की है, वहीं औषधि निर्माण व निर्यात के क्षेत्र में ‘ विश्व का दवाखाना ‘ बन गया है ।रक्षा सहित प्रत्येक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की प्राप्ति का लक्ष्य रखकर भारत ने तेजी के साथ अपने पग बढ़ाए हैं और शीघ्र ही’दुनिया का दूसरा कारखाना’ बनने के लिए प्रयासरत है ।
सर्वे भवन्तु सुखिन: की मंगल-कामना करने वाला भारत अब पुन: अपनी’ विश्वगुरु’ की छवि प्राप्त करने लगा है ।कोविड काल में विश्व के अनेक देशों को जहाँ निःशुल्क टीका उपलब्ध कराकर भारत ने बिना किसी भेदभाव के सबके कल्याण की कामना की, वहीं आपातकाल में अनेक देशों की विभिन्न प्रकार से सहायता भी की । ‘ वसुधेव कुट्म्बकम्’की अवधारणा व तदनुरूप आचरण ने आज फिर से भारत को विश्वगुरु के पद पर प्रतिष्ठित कर दिया है और भगवान् बुद्ध का ‘ अप्प दीपो भव’ नाद पुन: विश्व में गूँजने लगा है ।
भारत के गौरवशाली अतीत को रेखांकितकर स्वर्णिम भविष्य का जयघोष कर हर भारतीय को गर्वित करने वाली पठनीय कृति।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास
Vishwamanav Rabindranath Tagore
आलौकिक प्रतिभा-संपन्न, साक्षात् प्रतिभासूर्य, भारतमाता के एक महान् सुपुत्र रवींद्रनाथ टैगोर। साहित्य, संगीत, कला— इन सभी क्षेत्रों में अभूतपूर्व योगदान देनेवाले गुरुदेव टैगोर सर्वार्थों में युगनिर्माता थे। आज के भूमंडलीकरण के युग में कई दशक पहले पूर्व-पश्चिम संस्कृतियों को मिलाकर दुनिया में एक नई अक्षय संस्कृति निर्माण होने का सपना देखनेवाले द्रष्टा एवं विश्वमानव!
रवींद्रनाथ की लोकोत्तर प्रतिभा, उनकी बहुश्रुतता, संवेदनशीलता, उनके अनुभवों की समृद्धि और उन अनुभवों को साहित्य, संगीत, कला के माध्यम से व्यक्त करने की असामान्य क्षमता रखनेवाले गुरुदेव वंदनीय हैं, अभिनंदनीय हैं। रवींद्र-साहित्य और रवींद्र-संगीत प्रभावशाली तथा लुभावने हैं। रवींद्रनाथ का साहित्य एक बार पढ़ा तो फिर भूल नहीं सकते। वह आपके मन में बार-बार गूँजता रहता है।
रवींद्रनाथ का पूरा जीवन काव्य-संगीत का, शब्द-सुरों का, कलाओं का महोत्सव है, आनंदोत्सव है। वैश्वीकरण के दौर में पली-बढ़ी नई पीढ़ी को रवींद्रनाथ का परिचय मिले तो कैसे?
इस उपन्यास में युगनिर्माता विश्वमानव रवींद्रनाथ टैगोर अलौकिक साहित्य रचना का, उनके सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्र के महान् कार्यों का अधिक परिपूर्ण ढंग से अध्ययन करने का मार्ग खुलेगा और पाठक ‘रवींद्र रंग’ में रँग जाएँगे।
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Vishwasghat Tatha Anya Kahaniyan
‘‘कहिए, मैं आपके लिए क्या कर सकती हूँ।’’
‘‘क्या यह अब्बास का घर है।’’
‘‘हाँ’’
‘‘क्या वे घर पर हैं।’’
‘‘नहीं, अभी वे ऑफिस गए हुए हैं। शाम को आएँगे।’’
‘‘आप कौन?’’
‘‘मैं उनकी पत्नी रुखसाना।’’
पीछे से एक बच्चा दौड़ता हुआ आया। यह सुनकर रेहाना का सिर चकरा गया। वह वहीं बैठ गई।
रुखसाना ने बात आगे बढ़ाई—‘‘आप कौन।’’
बड़ी मुश्किल से उसके मुँह से यह शब्द निकला—‘‘रेहाना’’
पर शायद रुखसाना को रेहाना और अब्बास के विषय में पता था। उसने उसे अंदर आने के लिए कहा।
‘‘आइए।’’ और अपना सामान एक कमरे में रख दिया। उसके लिए चायनाश्ता लगाकर वह दूसरे कमरे में चली गई। दिन भर दोनों औरतों में कुछ भी वार्त्तालाप नहीं हुआ। शाम को अब्बास आया तो रेहाना को देखकर चौंक पड़ा।
—इसी संग्रह से
कहानियाँ किसी भी समाज जीवन का आईना होती हैं। प्रस्तुत संग्रह की कहानियाँ समाज में व्याप्त विसंगतियों, विडंबनाओं और आपसी द्वंद्व की बानगी पेश करती है। मनोरंजकता से भरपूर पठनीय कहानियाँ।SKU: n/a -
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Vivah Sanskar Ki 100 Lok-Kahaniyan (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, कहानियां, सही आख्यान (True narrative)Vivah Sanskar Ki 100 Lok-Kahaniyan (PB)
“वैदिक साहित्य इस बात पर जोर देता है कि विवाह एक संस्कार है, जिसके बिना मनुष्य यज्ञ नहीं कर सकता। यज्ञ के बिना आप परिवार, देवताओं या पूर्वजों का भरण-पोषण नहीं कर सकते। फिर बिना विवाह आप किस काम के हैं?
आपको वर या वधू कैसे मिलती है? क्या आप प्रेम निवेदन करते हैं, उसे लुभाते हैं, अपहरण करते हैं या खरीदते हैं? क्या सहमति मायने रखती है? सभी संभावनाएँ मौजूद हैं, लेकिन सीमाओं के भीतर, जैसा कि हमेशा से व्याप्त ‘रोटी और बेटी’ नियम से संकेत मिलता है, जो केवल उन समुदायों के भीतर विवाह करने की अनुमति देता है, जो कभी समान व्यवसाय किया करते थे।
—इसी पुस्तक से
पौराणिक कथाकार देवदत्त पटनायक द्वारा लिखित ‘विवाह’ पुस्तक में विवाह से संबंधित भारतीय रीति-रिवाजों और मान्यताओं की विविधता तथा सहजता को उजागर करने के लिए वैदिक, पौराणिक, तमिल और संस्कृत साहित्य, क्षेत्रीय, पारंपरिक, लोक और जनजातीय संस्कृति, सुनी-सुनाई और भारतीय वाङ्मय के अनेक ग्रंथों से 3000 साल के इतिहास और 30 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले भूगोल की कहानियाँ सम्मिलित हैं।”
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Vivek-Choodamani (HB)
‘ब्रह्म सत्यं’ जगन्मिथ्येत्येवंरूपो विनिश्र्चयः,
सोअयं नित्यानित्यवस्तुविवेकः समुदाहतः।
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काव्यानुवाद—चौपाई छंद मेंब्रह्म सत्य और जगत है मिथ्या।
यहि दृढ़ अटल सत्य है तथ्या॥
अथ निश्चय दृढ़ अविचल एका। नित्यानित्यं वस्तु विवेका॥आत्म-अनात्म विवेक, नित्य-अनित्य विवेक, सत्य-असत्य विवेक सारा ज्ञान द्वैतात्मक है—विलोम की स्थिति के बिना कैसे दूसरे पक्ष को जाना जा सकता है। संसार, शरीर और अनात्म विषयों में उलझे मन यह भूल जाते हैं कि यथार्थ साधना अंतःकरण में संपन्न होती है। आत्मा नित्य है, अतः इसका कोई मूल तत्त्व या उपादान कारण नहीं है, आत्मा को आत्म-तत्त्व से ही जान पाना संभव है। परम तत्त्व का अनुसंधान, ब्रह्म विषयक ज्ञान, उस असीम को ससीम से जान पाना संभव नहीं। अंतर्वर्ती अंतश्चेतना का जागरण करते हुए, जीव-जगत्-जन्म में अनावश्यक आसक्ति के प्रति सजग रहते हुए, सर्वत्र शुद्ध भगवद्-दृष्टि पाकर सर्वथा जीवन्मुक्त अवस्था से कैवल्य पाना ही सर्वोत्तम सिद्धि है, जिसका ज्ञान और प्राप्ति ही ‘विवेक-चूड़ामणि’ का कथ्य विषय है।
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Vivekanand : Ek Khoj
स्वामी विवेकानंद आध्यात्मिक जगत् के ऐसे जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं, जिन्होंने अपनी आभा से भारत ही नहीं, संपूर्ण विश्व को प्रकाशमान किया। वे मात्र संत-स्वामी ही नहीं थे, एक महान् देशभक्त, ओजस्वी वक्ता, अद्वितीय विचारक, लेखक और दरिद्र-नारायण के अनन्य सेवक थे।
प्रसिद्ध लेखक रोम्याँ रोलाँ ने उनके बारे में कहा था—”उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है। वे जहाँ भी गए, प्रथम रहे। हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता। वे ईश्वर के सच्चे प्रतिनिधि थे। सबको अपना बना लेना ही उनकी विशिष्टता थी।’ ’
स्वामीजी ने मानवमात्र का आह्वïन किया—”उठो, जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ। अपने नर-जन्म को सफल करो और तब तक रुको नहीं, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।’ ’ उनतालीस वर्ष के छोटे से जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए, आनेवाली शताब्दियों तक वे मानव-पीढिय़ों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।
स्वामी विवेकानंद का चरित्र ऐसा है, जिससे प्रेरणा पाकर अनगिनत लोगों ने जीवन का सुपथ प्राप्त किया। भारतीय संस्कृति के उद्घोषक एवं मानवता के महान् पोषक स्वामी विवेकानंद और उनके जीवन-दर्शन को गहराई से जानने-समझने में सहायक क्रांतिकारी पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Vivekanand Ke Sapanon Ka Bharat
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गुरुभाइयों में सम्मानपूर्वक ‘स्वामीजी’ संबोधन प्राप्त करनेवाले नरेंद्रनाथ दत्त ने ऊहापोह की स्थिति में मठ छोड़कर भारत-भ्रमण करने का मन बनाया। अपने गुरुभाइयों को भी स्पष्ट निर्देश दिया कि अपना झोला उठाकर भारत का मानचित्र अपने साथ लो और भारत-भ्रमण के लिए निकल पड़ो। भारत को जानना एवं भारतवासियों को भारत की पहचान करा देना, यही हमारा प्रथम कार्य है। स्वामीजी ने धीर-गंभीर होकर कहा कि योगी बनना चाहते हो तो पहले उपयोगी बनो, भारतमाता के दुःख व कष्ट को समझो। उसे दूर करने के लिए अपने आपको उपयोगी बनाओ, तभी तो योगी बन पाओगे।
आज की वर्तमान पीढ़ी भी वर्ष 2020 तक विश्व को नेतृत्व प्रदान करनेवाले भारत को अपने हाथों सँवारना चाहती है। भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन, गोरक्षा, गंगा की पवित्रता, कालेधन की वापसी, राममंदिर-रामसेतु आदि मानबिंदुओं के सम्मान की रक्षा के आंदोलन, आसन्न जल संकट, पर्यावरण, कानून, सीमा-सुरक्षा, सांप्रदायिक सौहार्द, संस्कार-युक्त शिक्षा, संस्कृति रक्षा, राष्ट्रवादी साहित्य, महिला गौरवीकरण आदि के लिए हो रही गतिविधियाँ भारत निर्माण की छटपटाहट का ही प्रकटीकरण हैं। इन सभी क्रियाकलापों को नेतृत्व प्रदान करनेवाले लोग कम या अधिक मात्रा में स्वामी विवेकानंद से प्रेरणा पाकर उनके सपनों का भारत बनाने में लगे हैं।
स्वामी विवेकानन्द के सपनों के स्वावलंबी, स्वाभिमानी, शक्तिशाली, सांस्कृतिक, संगठित भारत के निर्माण को कृत संकल्प कृति।SKU: n/a