Prabhat Prakashan
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Amar Krantidoot Chapekar Bandhu (PB)
चापेकर बंधु–दामोदर हरी चापेकर, बालकृष्ण हरी चापेकर तथा वासुदेव हरी चापेकर–तीनों भाइयों को क्रांतित्रयी कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। चापेकर बंधु पुणे के पास चिंचवड के निवासी थे और बाल गंगाधर तिलक को अपना गुरु मानते थे। आरंभ से ही उनके मन में भारत को विदेशी दासता से मुक्त कराने की दृढ़ भावना थी । सन् 1896 में जब पुणे में प्लेग महामारी फैली तो इसकी रोकथाम के लिए सरकार ने रैंड नामक एक अधिकारी को तैनात किया । रैंड के गोरे अधिकारी जाँच के नाम पर घर-घर लोगों पर अत्याचार करने लगे। इन अत्याचारों ने चापेकर बंधुओं को अंदर तक आक्रोशित करके रख दिया। उन्होंने रैंड से बदला लेने की ठान ली।
एक दिन जब रैंड और उसका साथी एक उत्सव में भाग लेकर लौट रहे थे तो बालकृष्ण ने रैंड के साथी आयस्रट को तथा दामोदर ने रैंड को गोली मारकर दोनों का काम तमाम कर दिया। घर के भेदी द्रविड़ बंधुओं की चुगलखोरी के कारण दामोदर तथा बालकृष्ण को गोरी सरकार ने फाँसी दे दी। इससे क्षुब्ध सबसे छोटे वासुदेव हरी चापेकर ने अपने मित्र महादेव रानाडे की मदद से चुगलखोर द्रविड़ बंधुओं को मार गिराया और खुद भी फाँसी पर चढ़ गया।
इस प्रकार अंग्रेजों से लोहा लेकर चापेकर बंधुओं ने जिस शौर्य का प्रदर्शन किया, उसने देशवासियों के मन में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति की आग को और तेज करने का काम किया।
माँ भारती के सपूतों चापेकर बंधुओं की प्रेरक जीवनगाथा।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Amar Shaheed Ashfaqullah Khan
“भारत को आजाद कराने में क्रांतिकारियों की भूमिका अहम रही है। मैं उन अमर शहीदों की याद में खो जाता हूँ, जो बीर थे। महान् बलिदानी, त्यागमूर्ति, जो सिर पर कफन बाँधकर देश से अंग्रेजों की क्रूर सत्ता का उच्छेद करने निकल पड़े थे।
प्रस्तुत पुस्तक में संक्षेप में यह बताया गया है कि मातृभूमि की बेदी पर कितने वीरों ने शीश चढ़ाए थे। ऐसे अमर बलिदानियों की याद को ताजा रखना हमारा अभिप्राय है, जिससे भावी पीढ़ी को देशप्रेम और देशभक्ति की प्रेरणा मिलती रहे। अमर शहीद अशफाकउल्ला खान एक ऐसे ही अमर बलिदानी हैं। अशफाक हिंदू-मुसलिम एकता के पक्षधर थे। इस सुंदर, सौम्य, साहसी शहीद की शहादत को नमन है।”
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Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Amar Shaheed Bhagat Singh
“प्रिय कुलतार, आज तुम्हारी आँखों में आँसू देखकर बहुत दु:ख हुआ। आज तुम्हारी बातों में बड़ा दर्द था। तुम्हारे आँसू मुझसे सहन नहीं होते। बरखुरदार, हिम्मत से शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का खयाल रखना। हौसला रखना। और क्या कहूँ… ‘उसे यह फिक्र है हरदम, नया तर्जे जफा क्या है? हमें यह शौक देखें, सितम की इंतेहा क्या है? दहर से क्यों खफा रहें, चर्ख का क्यों गिला करें? सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें। कोई दम का मेहमान हूँ, ए अहले महफिल! चरागे सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ। मेरी हवाओं में रहेगी, खयालों की बिजली यह मुश्त-ए-खाक हूँ, रहे, रहे न रहे।’ अच्छा, रुखसत। ‘खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं।’ हौसले से रहना।” —भगत सिंह युवावस्था में ही ‘रष्ट्र सर्वोपरि’ का मंत्र जपकर जिसने भारत की स्वतंत्राता के लिए फाँसी के फंदे को चूम लिया और अपनी शहादत से युवाओं के लहू में देशभक्ति का उबाल पैदा करके मिशन-ए-आजादी का महामंत्र फूँका, ऐसे महान् क्रांतिकारी एवं राष्ट्र-चिंतक अमर शहीद भगतसिंह की प्रेरणादायक जीवनी|
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
AMARNATH YAATRA
यात्रा जीवन का रोमांच है। यात्रा का बाहरी-सुख अंतस के आनंद को भी झंकृत करता है। इसलिए यात्रा करना जहाँ आनंदप्रद होता है, वहीं यह उस स्थान की सभ्यता-संस्कृति को भी जानने का अवसर देती है। तीर्थ स्थलों की यात्रा आनंद के साथ-साथ हमें भक्ति और श्रद्धा से ओत-प्रोत कर देती है।
ऐसी ही एक अत्यंत पवित्र अमरनाथ-यात्रा संपूर्ण दृष्टि से सत्यं शिवं सुंदरम् का जीवंत रूप है। अमरनाथ-यात्रा के दौरान, जब प्रकृति का अनुपम सौंदर्य, अनायास उद्घाटित होता है, तभी यह समझ आता है कि हिंदू-परंपरा में सौंदर्य को सत्य और शिव के समकक्ष क्यों स्थान दिया गया है! यों ही यात्रा में तीर्थयात्रियों की अप्रतिम श्रद्धा, सेना की चुस्ती और स्थानीय-कश्मीरियों के अकल्पनीय-सहयोग से एक शुभ और संगीतमय वातावरण निर्मित हो जाता है। यहाँ शुभ से मिलन है। अमरनाथ-यात्रा भारत की आत्मा का गहन अवलोकन भी है। भारत सत्य के प्रयोग की अनूठी भूमि रही है। यहाँ सत्य की गहरी प्यास देखी जा सकती है। अमरनाथ-यात्रा इसकी बानगी प्रस्तुत करती है।
अमरनाथ-यात्रा की इस वृत्तांत-गंगा में डुबकी लगाने के लिए आप सभी पाठकों का आमंत्रण है। बस आपको पूर्व धारणाओं, किस्सों और मान्यताओं का वस्त्र अनावतरित करना पड़ेगा। यह थोड़ा कठिन है, परंतु असंभव नहीं। तभी इस डुबकी में हमें आनंद की झलक मिल सकेगी। संपूर्ण अमरनाथ यात्रा का सरस एवं तथ्यपरक रोमांचक वर्णन।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Anandmath (Hindi)
जीवानंद ने महेंद्र को सामने देखकर कहा, ‘‘बस, आज अंतिम दिन है। आओ, यहीं मरें।’’महेंद्र ने कहा, ‘‘मरने से यदि रण-विजय हो तो कोई हर्ज नहीं, किंतु व्यर्थ प्राण गँवाने से क्या मतलब? व्यर्थ मृत्यु वीर-धर्म नहीं है।’’जीवानंद- ‘‘मैं व्यर्थ ही मरूँगा, लेकिन युद्ध करके मरूँगा।’’कहकर जीवानंद ने पीछे पलटकर कहा, ‘‘भाइयो! भगवान् के नाम पर बोलो, कौन मरने को तैयार है?’’अनेक संतान आगे आ गए। जीवानंद ने कहा, ‘‘यों नहीं, भगवान् की शपथ लो कि जीवित न लौटेंगे।’’—इसी पुस्तक से‘आनंद मठ’ बँगला के सुप्रसिद्ध लेखक बंकिमचंद्र चटर्जी की अनुपम कृति है। स्वतंत्रता संग्राम के दौर में इसे स्वतंत्रता सेनानियों की ‘गीता’ कहा जाता था। इसके ‘वंदे मातरम्’ गीत ने भारतीयों में स्वाधीनता की अलख जगाई, जिसको गाते हुए हजारों रणबाँकुरों ने लाठी-गोलियाँ खाइऔ और फाँसी के फंदों पर झूल गए। देशभक्ति का जज्बा पैदा करनेवाला अत्यंत रोमांचक, हृदयस्पर्शी व मार्मिक उपन्यास।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास
Antas
‘अंतस’ डॉ. यशिका के अंतकरण की अनुभूतियों का सीधा-सरल काव्यानुवाद है। किसी काव्य-कौशल की स्पर्धा में प्रस्तुत संग्रह की कविताएँ खुद को शामिल नहीं करतीं, ये केवल मन की निष्पाप, पवित्र और प्रांजल अनुभूतियों की छलकन हैं और फिर भी पूर्ण हैं। भारतीय स्त्री के संस्कार, उसका सहज समर्पण और नेह जैसे इन कविताओं में साकार देह पाकर इठला रहा है।
मन्नत पूरी हो जाने जैसी उपलब्धि और जिस्मोजान निछावर कर डालने के समर्पित अहसास, सामीप्य की सिहरन और दूरी होते ही हृदय का अरमान बना लेने की सोच…एक स्त्री के समर्पण और प्रेम का इससे आगे क्या उदाहरण हो सकता है?
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Antriksh Prashnottary
प्रस्तुत पुस्तक में अंतरिक्ष के विभिन्न विषयों- अंतरिक्ष स्टेशन, तारकीय / क्षुद्र ग्रहीय ” पुच्छल तारा अभियान, अंतरिक्ष परिवहन स्पेस शटल, अंतरिक्ष में प्रमोचन की प्रक्रिया, अंतरिक्ष के रिकॉर्ड, अंतरिक्ष दूरबीनें, कृत्रिम उपग्रह, स्पेस वॉक, अंतरिक्ष परिघटनाओं तथा अंतरिक्ष चयन और प्रशिक्षण का रोचक वर्णन किया गया है । आज अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में हो रहे विभिन्न अनुसंधानों -स्पेस एलीवेटर ( अंतरिक्ष परिवहन का भविष्य का सबसे सस्ता साधन), भूकंपों के पूर्वानुमान में उपग्रहों की भूमिका और सौर ऊर्जा उपग्रहों के बारे में भी रोचक व ज्ञानप्रद जानकारी दी गई है ।
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Prabhat Prakashan, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books), राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Apane Chanakya Swayam Banen
Prabhat Prakashan, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books), राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रApane Chanakya Swayam Banen
चाणक्य ने अपने पिता की हत्या के बाद बचपन से ही जीवन का उद्देश्य बना लिया था मगध को एक नेक, सुशील, ईमानदारी और प्रतापी राजा प्रदान करना। अपने इस संकल्प को पूर्ण करने के लिए उन्होंने दिन-रात एक कर दिया। उन्होंने सदाचारी और पराक्रमी युवराज खोजने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया और चंद्रगुप्त को ढूँढ़ निकाला। चंद्रगुप्त का पूरा व्यक्तित्व चाणक्य के द्वारा ही गढ़ा गया था। उन्होंने अपने अनेक शिष्यों को जीवन के पाठ पढ़ाए। वे यहीं तक नहीं रुके अपितु अपने ज्ञान को ‘अर्थशास्त्र’ पुस्तक में समेट दिया। अर्थशास्त्र का ग्रंथ आज अनेक रूपों में समाज के पास उपलब्ध है; बस आवश्यकता है तो उस ग्रंथ को गहनता से पढ़ने की, समझने की और जानने की।
चाणक्य ने अपने बुद्धि-कौशल से हर तरह की बाधा से पार पाने के उपाय निकाले हुए थे, जो आज भी उपयोगी हैं। सफलता पाने के लिए यथेष्ट है कि व्यक्ति चाणक्य के व्यक्तित्व को पढ़ें, समझें, जानें और फिर खुद को पहचानें। ऐसा करके प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को एक नए बिंदु पर ले जा सकता है। वह नया बिंदु संतुष्टि, सुख, खुशी, स्वास्थ्य, समृद्धि सबकुछ प्रदान करता है।
यह पुस्तक आचार्य चाणक्य के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने को उनके अनुरूप ढालकर सफलता के शिखर छूने का एक प्रबल माध्यम है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Aparajita (PB)
यह पुस्तक सिर्फ महाभारत की कथा का पुनर्पाठ भर नहीं है, अपितु महाभारत के एक प्रमुख महिला पात्र, पांडवों की माता ‘कुंती’ के साथ तात्कालिक समय की मनोयात्रा भी है। पुस्तक बताती है कि कुंती समस्त कथा में परदे के पीछे रहकर भी इतनी महत्त्वपूर्ण क्यों हैं। दरअसल महाभारत में पांडवों की मानसिक गुरु कुंती ही हैं। महाभारत युद्ध कुरुक्षेत्र में अवश्य लड़ा गया, परंतु इसकी पटकथा उस दिन से रचित होना प्रारंभ हो गई थी, जब कुंती ने पांडवों के साथ वनवास न चुनकर विदुर के धर्मगृह में रहना चुना था । बड़े युद्ध न बड़े हथियारों से जीते जाते हैं, न बड़ी सेनाओं से, न बड़े वचनों से; बड़े युद्ध जीते जाते हैं तो बड़े संकल्प से… कुंती ने यह सिद्ध किया ।
कुंती अपराजिता इसलिए नहीं हैं कि वे कभी पराजित नहीं हुईं, बल्कि वे अपराजिता इसलिए हैं कि उन्होंने किसी भी पराजय को स्वयं पर आरोहित नहीं होने दिया, कैसी भी पराजय उनको पराजित नहीं कर पाई। कुंती के साथ-साथ यह पुस्तक कृष्ण की धर्मनीति की भी विवेचना करती है, जो कहती है-धर्म का उद्देश्य एक है, परंतु समय के साथ पथ में सुधार अवश्यंभावी है; पथ-विचलन नहीं होना चाहिए, परंतु पथसुधार आवश्यक है। यह पुस्तक तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था, गुप्तचर व्यवस्था व युद्धनीति की भी झलक प्रस्तुत करती है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Apne Kurukshetra Mein Akela (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Apne Kurukshetra Mein Akela (PB)
जीवन एक कुरुक्षेत्र है, जहाँ निरंतर कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध चलता रहता है। पांडवों की अवश्यंभावी जीत सदा ही दुर्धर्ष संघर्षों के पश्चात् ही प्राप्त होती है । यह संघर्ष तामसी और सात्त्विक प्रवृत्तियों के बीच, अच्छे और बुरे के बीच, शोषक और शोषित के बीच, गाँव और शहर के बीच सहित विभिन्न रूपों में निरंतर जारी है। महत्त्वपूर्ण यह है कि हर व्यक्ति अपने जीवन के महाभारत में अकेला होता है, यह युद्ध उसे स्वयं ही लड़ना होता है। अयोध्यानाथ मिश्र के इस कहानी- संकलन ‘अपने कुरुक्षेत्र में अकेला’ की कहानियों में जीवन और समाज की विषमताओं और उनके विरुद्ध संघर्ष की व्यंजना को जनपदीय सरोकारों और रचनात्मक विवेक के साथ बहुत ही प्रतिबद्धता से दर्ज किया गया है ।
अयोध्यानाथ मिश्र अपनी कहानियों में लोक में प्रचलित उक्तियों एवं मुहावरों का बहुत ही सुंदरता से प्रयोग करते हैं। उनकी कहानियाँ भोजपुरी अंचल में व्याप्त देशज व्यवहार एवं मनोजगत् का भूगोल रचती हैं। इनकी कहानियों में जो जीवन का प्रवाह, सौंदर्य, दुविधाएँ, नैतिक संघर्ष एवं सुख-दुःख का भाव – संसार सृजित होता है, वह अत्यंत प्रामाणिक एवं जीवनानुभव से ओतप्रोत प्रतीत होता है। इस संग्रह की कहानियाँ पाठकों का प्यार पाएँगी ऐसी मुझे आशा है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Apratim Bharat
ओ मेरे मन, इस पुण्यतीर्थ में हौले से जाग
यह भारत, मानवता का पारावार है
कोई नहीं जानता, किसके आह्वान पर
जानें कितनी धाराएँ मनुष्यता की
दुर्वार वेग से बहती हुई आई यहाँ
खो गई इस महासमुद्र में
—————
जाने कौन-कौन आए, सब इसमें समाए
कोई भी अलग नहीं, कोई विलग नहीं
अब सब एक, एक अस्तित्व है
मेरे ही भीतर है, सारे वे
कोई मुझसे दूर नहीं, सब मेरे मीत हैं
मेरे इस रक्त में सबका संगीत है
गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर के गीत की उपर्युक्त पंक्तियाँ भारत की सनातन संस्कृति और जीवन दर्शन को प्रतिबिंबित करती हैं, जिसमें हम अपने देश की अतुल्य, अप्रतिम और अनुपम जीवनदृष्टि को देख सकते हैं। आज के संदर्भ में उसको अधिक गहनता से, एक बड़े केनवास पर 41 हिंदी तथा अंग्रेजी के आलेखों के माध्यम से समझने और जानने का जिज्ञासा भाव ही ‘अप्रतिम भारत’ के प्रकाशन का उद्देश्य है। भारत की उस एकात्म तथा सर्वात्म जीवनदृष्टि को सही परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए ग्रंथ का शुभारंभ भारत के योद्धा संन्यासी स्वामी विवेकानंद के पुण्य स्मरण से किया गया है। वर्ष 1893 में शिकागो के विश्वधर्म सम्मेलन में उनके संबोधन के 125 वर्ष पूर्ण होने की जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा विज्ञान भवन में युवा पीढ़ी को दिया गया व्याख्यान हम सबको ऊर्जा से भरेगा, ऐसा हमारा विश्वास है। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश तथा भारतीय मनीषा के गहन अध्येता श्री रमेश चंद्र लाहोटी, महामनीषी डॉ. विद्यानिवास मिश्र, प्रखर राजनेता एवं विचारक डॉ. मुरली मनोहर जोशी, सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं चिंतक प्रो. रमेश चंद्र शाह, भारतीय चिंतन परंपरा के अग्रणी व्याख्याता श्री कैलाश चंद्र पंत, इतिहासवेत्ता प्रो. रामेश्वर मिश्र ‘पंकज’, पुण्यश्लोक डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल, डॉ. राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी के विद्वतापूर्ण आलेखों में हमें आज के परिवेश में भारतीय जीवनदर्शन को समझने में सहायता मिलेगी। नारी विमर्श के अंतर्गत मध्यकाल से आज तक भारतीय नारी जीवन और सोच में आए बदलाव से रुबरु करा रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार श्री विश्वनाथ सचदेव। भारतीय राजनीति को एक नया दृष्टिबोध देनेवाले समाज चिंतक पं. दीनदयाल उपाध्याय के मुंबई में दिए गए व्याख्यान का पुनर्स्मरण हमारी युवा पीढ़ी को समाज परिवर्तन के लिए नए तरीके से सोचने को मजबूर करेगा। जीवन के अर्थ को बहुत ही गहनता से समझा रहा है, सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं गांधीवादी पत्रकार श्री अनुपम मिश्र का आलेख। अमेरिका से भारतीय विद्या की गहन अध्येता डॉ. मृदुल कीर्ति का उपनिषद् का हिंदी अनुवाद पाठकों को पुलकित करेगा और वाराणसी की साहित्य विदुषी श्रीमती नीरजा माधव का लेख भारतीय दर्शन एवं तत्वज्ञान के वैज्ञानिक पहलुओं से परिचित कराएगा। संस्कृति एवं कला विमर्श की दृष्टि से भारतीय संविधान में निवेशों के अभाव से परिचित करा रहे हैं मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग के मुख्य सचिव श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव। प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित और डॉ. तंकमणि अम्मा के लेख हमें वर्तमान समय में सांस्कृतिक नीति तथा भारतीय संस्कृति और मूल्यों में आए बदलाव से अवगत करा रहे हैं, वहीं भारतीय कला-संगीत के मूल्यों के उजले पक्ष से परिचित करा रहे हैं विख्यात कला समीक्षक श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय। वेदों पर श्री सुरेश चतुर्वेदी तथा श्री दीनानाथ चतुर्वेदी के भारतीय जीवन में चार के अंक का महत्त्व आपको पसंद आएँगे। साथ ही व्यक्ति के तन-मन पर भारतीय संगीत के असर से परिचित करा रही हैं, कहानीकार श्रीमती अल्का अग्रवाल सिग्तिया। डॉ. हंसा प्रदीप के लेख में आपको लोरी का शिशु पर पड़नेवाले प्रभावों की जानकारी मिलेगी।
अंग्रेजी भाषा के खंड में 15 आलेख हैं, जिनमें पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का राष्ट्र को आह्वान का पुनर्स्मरण; प्रख्यात उद्योगपति अजीम प्रेमजी का राष्ट्र निर्माण के लिए शिक्षा प्रणाली में आमूल परिवर्तन का आह्वान तथा डॉ. रवींद्र कुमार का नव-शिक्षा पर आलेख; श्री आर. चिदंबरम का प्राचीन विज्ञान तथा आधुनिक प्रौद्योगिकी पर विद्वतापूर्ण आलेख; श्री रतन शारदा का भारतीय संस्कृति और आज की समस्या के निदान पर विचारोत्तेजक आलेख; सर्वश्री अमीष त्रिपाठी, शेफाली वैद्य, एच.सी. पारीख, संदीप सिंह तथा राजन खन्ना एवं कमला देवी चट्टोपाध्याय के जीवन के विविध पहलुओं पर आलेख सुधी पाठकों को भारतीय संस्कृति के विविध पक्षों से अवगत कराएँगे। डॉ. गौरी माहुलीकर तथा श्री नीरज चावला के आलेख आपको पर्यावरण, प्रकृति तथा पशु-पक्षियों के मनोरम जगत् से परिचित कराएँगे और डॉ. वरुण सूथरा का आलेख एक ऐसे व्यक्ति से परिचित कराएगा, जो भारतीय संस्कृति का जीवंत प्रतीक है। कुल मिलाकर ‘अप्रतिम भारत’ ग्रंथ आप सुधी पाठकों को भारतीय जीवन मूल्यों के अनछुए पहलुओं की गंगा में अवगाहन कराएगा, जिसमें सराबोर होकर आप स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करेंगे।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Arthik Evam Videsh Neeti
आर्थिक एवं विदेश नीति से संबंधित सरदार पटेल की सोच और दृष्टिकोण अत्यंत व्यावहारिक थे। अधिक उत्पादन एवं समान वितरण उनकी आर्थिक नीति के मूल तत्त्व थे। आम जनता को उपयोगी वस्तुओं की आपूर्ति हेतु भरपूर उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने सरकार पर अपना प्रभाव दिखाते हुए श्रम और पूँजी निर्माण पर जोर दिया। मंत्रिमंडल की बैठकों में समय-समय पर उन्होंने आर्थिक एवं विदेश नीति से संबंधित अपने विचार और दृष्टिकोण प्रस्तुत किए। विदेश नीति पर भी उनका दृष्टिकोण काफी स्पष्ट व व्यावहारिक रहा है। राष्ट्रमंडल की सदस्यता प्राप्त करने और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा हेतु उन्होंने जोरदार प्रयास किए थे। उनके सुझाव के आधार पर एक ऐसी नीति तैयार की गई, जिससे भारत को एक सार्वभौम एवं स्वतंत्र गणराज्य के रूप में राष्ट्रमंडल का सदस्य बने रहने में मदद मिली।
सरदार पटेल को चीन की ओर से किए गए मित्रता-प्रदर्शन तथा ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ में विश्वास नहीं था। उन्होंने चीन की तिब्बत नीति पर एक लंबा-चौड़ा नोट तैयार किया था, जिसमें इसके परिणामों के प्रति देश को चेताया भी था।
प्रस्तुत पुस्तक सरदार पटेल के व्यावहारिक एवं विशद चिंतन की यात्रा करवाती है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Athashri Vedavyasa Katha (HB)
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Athashri Vedavyasa Katha (HB)
Athashri Vedavyasa Katha “अथ श्री वेदव्यास कथा” Book In Hindi – Omprakash Pandey
महर्षि व्यास भारतीय वाङ्मय के शिखर प्रणेता हैं। उनकी प्रसिद्धि कृष्ण द्वैपायन, वेदव्यास और महर्षि पाराशर के रूप में भी है। उन्होंने चारों वेदों का वर्गीकरण, महाभारत जैसी शतसाहस्री संहिता, अष्टादश पुराणों और वेदांत के ब्रह्मसूत्रों का भी प्रणयन किया। उन्होंने कुरुवंश को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। पांडवों और कुरुओं, दोनों को ही समय-समय पर सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। द्वापर दुविधा का युग था। अपने युग के दिग्भ्रमित समाज को उन्होंने वासुदेव कृष्ण के साथ सही दिशा देने का भगीरथ प्रयत्न किया। कुरुक्षेत्र के रणस्थल पर श्रीकृष्ण के श्रीमुख से उपदिष्ट गीता का तत्वज्ञान महाभारत के अंतर्गत होने के कारण ही अभी तक हमें उपलब्ध है। इसका श्रेय भी द्वैपायन व्यास को ही है। दशावतार की अवधारणा भी वेदव्यास के प्रयत्न से ही सुरक्षित है। भगवान् श्रीकृष्ण की संपूर्ण जीवन-कथा और विचारराशि को व्यास ने ही श्रीमद्भागवत के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाने का भगीरथ प्रयत्न किया है। श्रीकृष्ण यदि अपने युग के निर्माता हैं, तो व्यास भी उनके समानांतर ही युगद्रष्टा हैं। द्वापर की यह सबसे बड़ी उपलब्ध है, जो उसे वासुदेव कृष्ण और कृष्ण द्वैपायन के रूप में दो कृष्ण प्राहृश्वत हुए। महाभारत और पुराणों में भगवान् श्रीकृष्ण की कथा तो विस्तार से मिल जाती है, लेकिन व्यासजी ने अपने विषय में कुछ भी नहीं कहा। व्यासजी के जीवन-विषय में जनसामान्य की अजस्र जिज्ञासा आज भी है, जिसे ध्यान में रखकर ही उपलब्ध साक्ष्यों और सूत्रों को सँजोकर इस ‘अथश्री वेदव्यास कथा’ का प्रणयन किया गया है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Atulya Bharat Ki Khoj
समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, विविध पर्यटक आकर्षण, कई धार्मिक तीर्थ केंद्रों का घर तथा कई बड़ी पवित्र नदियों का समागम है भारत। वर्षों से इसकी संस्कृति अलग, अनोखी एवं अद्वितीय रही है। बहुधार्मिक, बहुभाषी तथा पारंपरिक भारतीय पारिवारिक मूल्यों से सम्मिलित इस देश को रचनाकार आदर से प्रणाम करते हैं। लेखक को भारत के 31 राज्यों को जानने और समझने का मौका मिला। भारत की गरिमामयी मिट्टी से प्राप्त अनुभवों को लेखक ने इस पुस्तक में सँजोया है। भारत की सांस्कृतिक विरासत की सुगंध से मन आज भी महक उठता है, परंतु मोक्ष एवं ज्ञान का प्रवेश-द्वार कहे जानेवाले भारत की विरासत के रहस्य को एक तरफ समस्त संसार देखने आता है तो दूसरी तरफ खुद भारतीय ही इसे भूलते जा रहे हैं। लेखक अपनी इस पुस्तक में भारत की अनूठी सांस्कृतिक उपलब्धियों तथा अपने अनुभवों का सुंदर वर्णन करते हुए अत्यंत गौरवान्वित हैं। अपनी इस भ्रमण यात्रा को इस पुस्तक में ‘अतुल्य भारत की खोज’ का नामकरण दिया गया है, जो स्वयं में इस उपमा को चरितार्थ करता है कि भारत जैसा अनुपम देश दुनिया में दूसरा नहीं है।
भाग्यशाली हूँ मैं जो इस पावन धरा पर मेरा जन्म हुआ, भारत माँ की गोद में खेलकर जीवन मेरा धन्य हुआ, काश! कभी चुका पाऊँ कर्ज इस धरा का, रात-दिन ध्यान रहता सी का।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Autobiography of A Yogi (Hindi Version)
श्री परमहंस योगानंद जी भारत के उन प्राचीन ऋषियों एवं संतों के आदर्श प्रतिनिधि रहे हैं, जो भारत का वैभव हैं। इस संसार में योगानंदजी की उपस्थिति अंधकार के बीच चमकने वाले प्रकाश-पुंज की तरह थी। परमहंस योगानंद, एक आध्यात्मिक प्रकाशस्तंभ, जिनकी जीवनी दैवीय कृपा और आत्म-प्राप्ति की धुनों से गूँजती है।
इस आत्मकथा में हम योगानंद के जीवन की गहराइयों में उतरते हैं, भारत की प्राचीन आध्यात्मिक भूमि से लेकर अमेरिका के जीवंत तटों तक उनके कदमों का पता लगाते हैं, जहाँ उन्होंने कालातीत ज्ञान के बीज बोए थे। उनकी कहानी मात्र एक ऐतिहासिक वृत्तांत नहीं है, बल्कि हर इनसान के भीतर निहित असीम संभावनाओं की गहन खोज है। अपनी शिक्षाओं के माध्यम से योगानंद ने दुनिया भर में साधकों के आध्यात्मिक उत्साह को प्रज्वलित किया, आत्म-खोज और ईश्वर के साथ संवाद का मार्ग आलोकित किया।
इस आत्मकथा में योगानंद के असाधारण जीवन के सार को समाहित करने, उनके आध्यात्मिक विकास, उनके परिवर्तनकारी अनुभवों और उनकी अमूल्य शिक्षाओं के धागों को एक साथ बुना गया है। यह आत्मकथा प्रेरणा की किरण के रूप में काम करे, जो आपको शांति, ज्ञान और दिव्य प्रेम के आंतरिक क्षेत्रों की ओर मार्गदर्शन करे, जिसे योगानंद ने दुनिया के साथ साझा करने के लिए बड़ी उत्सुकता से उद्घाटित किया है।
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Prabhat Prakashan, इतिहास
Ayodhya Ka Chashmadeed (PB)
अयोध्या का मतलब है, जिसे शत्रु जीत न सके। युद्ध का अर्थ हम सभी जानते हैं। योध्य का मतलब, जिससे युद्ध किया जा सके। मनुष्य उसी से युद्ध करता है, जिससे जीतने की संभावना रहती है। यानी अयोध्या के मायने हैं, जिसे जीता न जा सके। पर अयोध्या के इस मायने को बदल ये तीन गुंबद राष्ट्र की स्मृति में दर्ज हैं। ये गुंबद हमारे अवचेतन में शासक बनाम शासित का मनोभाव बनाते हैं। सौ वर्षों से देश की राजनीति इन्हीं गुंबदों के इर्द-गिर्द घूम रही है। आजाद भारत में अयोध्या को लेकर बेइंतहा बहसें हुईं। सालों-साल नैरेटिव चला। पर किसी ने उसे बूझने की कोशिश नहीं की। ये सबकुछ इन्हीं गुंबदों के इर्द-गिर्द घटता रहा। अब भी घट रहा है। अब हालाँकि गुंबद नहीं हैं, पर धुरी जस-की-तस है। इस धुरी की तीव्रता, गहराई और सच को पकड़ने का कोई बौद्धिक अनुष्ठान नहीं हुआ, जिसमें इतिहास के साथ-साथ वर्तमान और भविष्य को जोड़ने का माद्दा हो, ताकि इतिहास के तराजू पर आप सच-झूठ का निष्कर्ष निकाल सकें। उन तथ्यों से दो-दो हाथ करने के प्रामाणिक, ऐतिहासिक और वैधानिक आधार के भागी बनें।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सही आख्यान (True narrative)
AYODHYA KA ITIHAS (Rai Bahadur Lala Sitaram)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सही आख्यान (True narrative)AYODHYA KA ITIHAS (Rai Bahadur Lala Sitaram)
लाला सीताराम ने 1932 में अयोध्या का इतिहास लिखा था। इनके पूर्वज राम के अनन्य भक्त थे। इसलिए जौनपुर छोड़ अयोध्या नगरी में बस गए थे। लाला सीताराम ने अयोध्या में अपने घर के एक कमरे में रामायण मंदिर भी बना रखा था। यहाँ रहते हुए उन्होंने ‘अयोध्या का इतिहास’ लिखना प्रारंभ किया। वेद से लेकर पुराणों में अयोध्या का उल्लेख तो मिलता है लेकिन अयोध्या के इतिहास पर कोई समग्र दृष्टि डालती पुस्तक का अभाव लगातार उन्हें यह इतिहास लिखने के लिए प्रेरित करता रहा। लाला सीताराम ने गहन शोध कर वेद काल से लेकर ब्रिटिश काल के अयोध्या पर प्रकाश डाला है। अयोध्या न सिर्फ हिंदुओं का एक पवित्रतम तीर्थ है वरन् जैन, बौद्ध और सिख के लिए भी उतना ही पावन और श्रद्धा का केंद्र है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Ayodhya Ka Sach
इस संकलन में प्रस्तुत लेख सन् १९८६ से २००३ तक लिखे गए हैं। इन लेखों में अयोध्या आंदोलन के विभिन्न चरणों एवं रूपों का विहंगम चित्र प्रस्तुत किया गया है। लेखक स्वयं इस विवाह के ऐतिहासिक पक्ष से जुड़ी बहस में सहभागी रहा है। इन लेखों को पढ़ने से प्रकट होगा कि लेखक ने अयोध्या प्रश्न को एक स्थानीय मंदिर-मसजिद के रूप में देखने की बजाय विदेशी आक्रमणकारियों की मजहबी असहिष्णुता एवं विस्तारवाद की मध्य युगीन विचारधारा की विध्वंस लीला के लक्षण और प्रतीक के रूप में देखता है।
लेखका का मानना है कि इस विध्वंस लीला के लिए भारतीय मुसलमानों की वर्तमान पीढ़ी को कदापि उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता; किंतु यह भी उतना ही सच है कि जब तक उनकी वर्तमान पीढ़ी मजहबी असहिष्णुता और विस्तारवाद, हिंसा और विध्वंस की उस मध्य युगीन विचारधारा से संबंध-विच्छेद करके अपनी इसलाम पूर्व की ऐतिहासिक परंपरा को शिरोधार्य नहीं करती तब तक खंडित भारत में राष्ट्रीयता और पंथनिरपेक्षता का पौधा लहलहा नहीं सकता। इसलिए लेखक की दृष्टि में अयोध्या आंदोलन अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक समाजों में वर्चस्व का युद्ध न होकर राष्ट्रीयता और पंथनिरपेक्षता के सनातन भारतीय आदर्श के साथ भारतीय मुसलमानों को जोड़ने का एक रचनात्मक राष्ट्रीय आंदोलन है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Ayodhya Ne Kaise Badal Di Bambai
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिAyodhya Ne Kaise Badal Di Bambai
“6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी ढाँचे के विध्वंस के बाद पूरा भारत दंगों की चपेट में आ गया था। सांप्रदायिक अशांति को लेकर हमेशा ही अतिसंवेदनशील रही मुंबई में दिसंबर 1992 और फिर जनवरी 1993 में जो हिंसा हुई, वह अभूतपूर्व थी। दो महीने बाद, मार्च के महीने में सिलसिलेवार धमाकों ने शहर को दहला दिया, जिसमें 250 से अधिक लोग मारे गए और 700 से अधिक घायल हो गए। सांप्रदायिक दंगों के बाद छिड़े गैंगवार और अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाओं ने शहर को तहस-नहस कर दिया। इन सबने मुंबई को हमेशा के लिए बदल दिया।
प्रस्तुत पुस्तक बताती है कि पिछले तीन दशकों में मुंबई ने अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव का कैसा दौर देखा है। 1992 के बाद, मुंबई अंडरवल्र्ड में एक विभाजन ने राजनीति में नए समीकरणों को जन्म दिया, जिसने शहर की जनसांख्यिकी को बदल दिया और नई नई बस्तियों को जन्म दिया। कुछ समय की खामोशी के बाद, वर्ष 2002 में एक बार फिर धमाकों और आतंकवादी हमलों ने इसे हिला दिया। यह हिंसा का एक ऐसा चक्र था, जो 2008 में 26/11 के भयानक आतंकवादी हमलों के साथ चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया। मुंबई को जिन प्रमुख घटनाओं और लोगों ने वर्तमान रूप दिया है, उनके विषय में बताने के साथ ही, इस पुस्तक ने शहर के चरित्र में बदलाव, इसके भौतिक रूप और नागरिक मुद्दों से लेकर इसकी अर्थव्यवस्था, रियल एस्टेट और राजनीति तक में बदलाव को शब्दों में बुना है।”SKU: n/a -
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Ayodhya Revisited
This work of monumental research is atreatise on Ayodhyã with utmostauthenticity and absolute accuracy. Basedon original sources and scientificinvestigation it propounds a new thesis,which demolishes many popularperceptions. It exonerates the intrepidwarrior Babur from the charge ofdemolishing a temple on the birth-site ofRãma and constructing the mosque whichhas been a source of contention anddissension for long. It further shows howinscriptions in the mosque were factitiousand Mir Baqi of inscriptions is a fictitiousperson different from Baqi Tashkindi/Shegawal of the Baburnama.The book produces incontrovertibleevidence which indubitably proves thatthere existed a Rãma temple on the Rãmajanmabhùmi.The exact birthplace ofRãma was earmarked by a rectangularBedi measuring 18 ft. 9 inches in lengthand 15ft. in width, and was located in theinner portion of the disputed shrine. Thedemolition of the temple and theconstruction of the mosque did not takeplace in 1528 A.D. but in c. 1660 A.D.when Fedai Khan was the Governor ofAurangzeb at Ayodhyã. It is a historicalfact that until the British takeover ofAwadh administration in 1858 both theHindus and Muslims used to perform pujaand offer Namaz respectively inside it.All Mughal Emperors from Babur toShah Jahan were magnanimous and liberalrulers and the Bairãgìs of Ayodhyã enjoyedpatronage of the first four Nawabs ofAwadh. However, during the long rule ofAurangzeb the country was engulfed in thefire of fanaticism. It has been shown in thisbook how an absolutely unfounded rumourin 1855 A.D. that the Hanumangarhitemple was constructed on the site of amosque created cleavage between the twocommunities, and the resultant festeringwounds have not healed despite bestefforts by saner elements of both thecommunities.The book exposes many eminenthistorians’ hypocrisy and their lack ofcertitude in writing history and it may besaid that their presentation of contrivedhistory on Ayodhya has caused irreparabledamage to the cause of harmonizingcommunal relations in the country. Incontrast, this text earnestly tries to takeaway the toxin from the polluted body ofIndian politics. For the first time a numberof unexplored documents have beenincorporated in this book as evidence, andit may be proclaimed with pride that thisbook contains much more information onAyodhya than available hitherto.Justice G.B. Patnaik, a former ChiefJustice of India, after going through themanuscript, has endorsed the author’sthesis in his Foreword. It is hoped that thebook will put a quietus to the long-standingdispute.
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Ayodhya: Beyond Adduced Evidence
Ayodhya: Beyond Adduced Evidence is a sequel to the author’s earlier book Ayodhya Revisited. It highlights how the Rama Janma Bhumi at Ayodhya is an essential and integral part of Hinduism. On the basis of unimpeachable evidence it establishes the exact location of the Rama Janma Bhumi. It proves beyond any shade of doubt that a Rama temple built in the 12th century existed on the disputed site and that was demolished by Fedai Khan, the Governor of Aurangzeb in 1660 A.D.
Based on the law laid down in scriptures it demonstrates that the bhumi of the temple having a consecrated idol gets the status of a deity. From the in-depth analysis of scriptures and inscriptions it has been concluded that a temple converted into a mosque can be legitimately restored to its original character of a temple.
The question of the title of the disputed land has been discussed at length both in historical and legal perspectives and it has been found that the title vests in both the Rama Janma Bhumi and numerous deities who reside there forever. But it was unlawfully grabbed by the British authorities in 1858 and that wrong remains unrectified till today.
The historical fact that many Mughal monarchs, Awadh Nawabs and Muslim nobles liberally granted land at Ayodhya for the construction of temples and mutts to the Bairagi sadhus has been highlighted in the book.
So far the title of the mosque is concerned, it is found that almost all evidences claimed in favour of the mosque are fake and fabricated. Moreover, whatever the title it had, that extinguished in 1858 after Lord Canning confiscated the disputed land. Thereafter, the Muslims had the permissive possession of a part of the mosque for offering nemaz.
Besides, the gun of the claim of adverse possession is fired against a wrong target as it has been directed against the Hindus; whereas the ownership of the land lies with the Government.
The author has shown the striking similarities and stark contrasts in the situations of Somanatha and Ayodhya, and has deeply probed as to why Somanatha succeeded, whereas solution is still eluding Ayodhya. It has been proved that Rama’s worship has continued for more than 2000 years and his saga is India’s most pervasive and enduring instrument of acculturation. Besides, it has been shown in the book that Rama has been regarded as the embodiment of Dharma since Valmiki wrote the Ramayana.
The book is indispensable for any student, scholar and lawyer interested in knowing the history of and the title to the disputed land at Ayodhya.
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Contents
Preface —Pgs. xxi
Part – I
1. Why is Ayodhya so important? —Pgs. 1
2. Where is the Rama Janmabhumi located? —Pgs. 19
3. Did there exist a temple on the disputed land? —Pgs. 35
4. What happens after a temple is desecrated or an idol is defiled? —Pgs. 65
5. Can any temple be restored to its original character after desecration or defilement? —Pgs. 79
6. Is the Title vested in the Hindu Deity? —Pgs. 87
Part – II
7. How is Buchanan’s Inscription so crucial for the history of the disputed shrine? —Pgs. 145
8. Will the Title tilt in favour of Baburi mosque? —Pgs. 165
9. Who demolished the temple on the Rama Janma Bhumi and built the mosque thereon? —Pgs. 221
10. Is Sir Jadunath Sarkar’s list of the temples demolished by Aurangzeb complete? —Pgs. 247
11. Is there any similarity between the historical events at Somanatha and Ayodhya? —Pgs. 259
Part – III
12. Rama’s worship has continued for more than 2000 years —Pgs. 273
13. Rama’s Saga is India’s most pervasive and enduring instrument of acculturation —Pgs. 297
14. Rama’s references in Buddhist texts are, by and large, based on Valmiki’s Ramayana —Pgs. 315
15. Rama is the embodiment of Dharma —Pgs. 325
List of Appendices —Pgs. 341
Appendices —Pgs. 345
List of Illustrations —Pgs. 723
Index of proper names & books —Pgs. 725SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, कहानियां, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Azad Bachpan Ki Ore
Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, कहानियां, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)Azad Bachpan Ki Ore
अस्सी के दशक के बाद से विगत कुछ वर्षों तक लिखे गए मेरे लेखों ने बाल मजदूरी, बाल दुर्व्यापार, बाल दासता, यौन उत्पीड़न, अशिक्षा आदि विषयों को सैद्धांतिक और व्यावहारिक आधार दिया। जहाँ तक मेरी जानकारी है, ये बच्चों के अधिकारों से संबंधित विषयों पर लिखे गए सबसे शुरुआती लेख हैं। मैं आपको विनम्रतापूर्वक बताना चाहूँगा कि ये लेख ऐसे ऐतिहासिक दस्तावेज हैं, जिन्होंने भारत में ही नहीं, दुनिया भर में बाल अधिकारों के आंदोलन को जन्म दिया। साधारण लोगों से लेकर बुद्धिजीवियों, कानून निर्माताओं तथा संयुक्त राष्ट्र संघ तक में हलचल पैदा की। मैंने पैंतीस सालों में इन्हीं विचारों की ताकत को संगठनों व संस्थाओं के निर्माणों, सरकारी महकमों के गहन शोध प्रबंधों, br>
‘कॉरपोरेट जगत् की नीतियों, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कानूनों और सरकारी बजटों में परिवर्तित होते देखा है। —br>—कैलाश सत्यार्थी.SKU: n/a