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Hindi Books, Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature, Suggested Books, पाठ्य-पुस्तक
Vastu Vidya
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature, Suggested Books, पाठ्य-पुस्तकVastu Vidya
‘अनंत शयन संस्कृत ग्रंथावली’ के तीसवाँ (३०) अंक का प्रसिद्ध ‘वास्तु विद्या’ का यह द्वितीय संस्करण है। यह ११०६वें वर्ष (कोलंबाब्द) में आरम्मुळ वासुदेव मूस महाशय से प्राप्त वास्तु विद्या का केरल भाषा में लिखित व्याख्या के आधार पर, इसी ग्रंथालय में तात्कालिक अध्यक्ष, श्री महादेव शास्त्री के द्वारा प्रस्तुत लघु विवृत्ति नाम के व्याख्यान को अर्थ स्पष्टीकरण के लिए संयोजित किया है। वास्तु संबंधी ज्ञान इस ग्रंथ से प्राप्त हो, अतः इसका ‘वास्तु विद्या’, संज्ञा करण समुचित लगता है।
और यह ‘साधन कथन’ से आरंभ होकर, ‘मृल्लोष्ट विधान’ तक सोलह अध्यायों में सगुंफित है। ग्रंथ के सोलहवें अध्याय के अंत में, समाप्ति प्रकटन का कोई दूसरा वाक्य उपलब्ध नहीं है। ‘इति वास्तु विद्या समाप्त’, ऐसा दृश्यमान होने पर भी—
“दारुस्वीकरणं वक्ष्ये निधिगेहस्य लक्षणे।”
(अध्याय १३)
अर्थात् निधि गेह के लक्षण में दारु ग्रहण (लकड़ी का चयन) करना बताऊँगा।
इस प्रकार ग्रंथकर्ता के ‘दारुस्वीकरण’ आदि स्वयं की वचनबद्धता से बोध के अभाव से (अज्ञानता या भ्रम के कारण) लेखक के द्वारा (‘इति वास्तु विद्या समाप्त’ ऐसा) लिखित होना संभावित होता है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Ve Pandrah Din
उन पंद्रह दिनों के प्रत्येक चरित्र का, प्रत्येक पात्र का भविष्य भिन्न था! उन पंद्रह दिनों ने हमें बहुत कुछ सिखाया।
माउंटबेटन के कहने पर स्वतंत्र भारत में यूनियन जैक फहराने के लिए तैयार नेहरू हमने देखे। लाहौर अगर मर रहा है, तो आप भी उसके साथ मौत का सामना करो” ऐसा जब गांधीजी लाहौर में कह रहे थे, तब राजा दाहिर की प्रेरणा जगाकर, हिम्मत के साथ, संगठित होकर जीने का सूत्र’ उनसे मात्र 800 मील की दूरी पर, उसी दिन, उसी समय, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्रीगुरुजी’ हैदराबाद (सिंध) में बता रहे थे।
कांग्रेस अध्यक्ष की पत्नी सुचेता कृपलानी कराची में सिंधी महिलाओं को बता रही थी कि ‘आपके मैकअप के कारण, लो कट ब्लाउज के कारण मुसलिम गुंडे आपको छेड़ते हैं। तब कराची में ही राष्ट्र सेविका समिति की मौसीजी हिंदू महिलाओं को संस्कारित रहकर बलशाली, सामर्थ्यशाली बनने का सूत्र बता रही थीं ! जहाँ कांग्रेस के हिंदू कार्यकर्ता, पंजाब, सिंध छोड़कर हिंदुस्थान भागने में लगे थे और मुसलिम कार्यकर्ता मुसलिम लीग के साथ मिल गए थे, वहीं संघ के स्वयंसेवक डटकर, जान की बाजी लगाकर, हिंदू सिखों की रक्षा कर रहे थे। उन्हें सुरक्षित हिंदुस्थान में पहुँचाने का प्रयास कर रहे थे।
फर्क था, बहुत फर्क था-कार्यशैली में, सोच में, विचारों में सभी में।
स्वतंत्रता प्राप्ति 15 अगस्त, 1947 से पहले के पंद्रह दिनों के घटनाक्रम और अनजाने तथ्यों से परिचित करानेवाली पठनीय पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Ve Pandrah Din(PB)
उन पंद्रह दिनों के प्रत्येक चरित्र का, प्रत्येक पात्र का भविष्य भिन्न था! उन पंद्रह दिनों ने हमें बहुत कुछ सिखाया।
माउंटबेटन के कहने पर स्वतंत्र भारत में यूनियन जैक फहराने के लिए तैयार नेहरू हमने देखे। लाहौर अगर मर रहा है, तो आप भी उसके साथ मौत का सामना करो” ऐसा जब गांधीजी लाहौर में कह रहे थे, तब राजा दाहिर की प्रेरणा जगाकर, हिम्मत के साथ, संगठित होकर जीने का सूत्र’ उनसे मात्र 800 मील की दूरी पर, उसी दिन, उसी समय, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्रीगुरुजी’ हैदराबाद (सिंध) में बता रहे थे।
कांग्रेस अध्यक्ष की पत्नी सुचेता कृपलानी कराची में सिंधी महिलाओं को बता रही थी कि ‘आपके मैकअप के कारण, लो कट ब्लाउज के कारण मुसलिम गुंडे आपको छेड़ते हैं। तब कराची में ही राष्ट्र सेविका समिति की मौसीजी हिंदू महिलाओं को संस्कारित रहकर बलशाली, सामर्थ्यशाली बनने का सूत्र बता रही थीं ! जहाँ कांग्रेस के हिंदू कार्यकर्ता, पंजाब, सिंध छोड़कर हिंदुस्थान भागने में लगे थे और मुसलिम कार्यकर्ता मुसलिम लीग के साथ मिल गए थे, वहीं संघ के स्वयंसेवक डटकर, जान की बाजी लगाकर, हिंदू सिखों की रक्षा कर रहे थे। उन्हें सुरक्षित हिंदुस्थान में पहुँचाने का प्रयास कर रहे थे।
फर्क था, बहुत फर्क था-कार्यशैली में, सोच में, विचारों में सभी में।
स्वतंत्रता प्राप्ति 15 अगस्त, 1947 से पहले के पंद्रह दिनों के घटनाक्रम और अनजाने तथ्यों से परिचित करानेवाली पठनीय पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Vedant: Bhavishya Ka Dharma
“उनतालीस वर्ष की अल्पायु में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए, वे आनेवाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।वे केवल संत ही नहीं थे, एक महान् देशभक्त, ओजस्वी वक्ता, प्रखर विचारक, रचनाधर्मी लेखक और करुणा से ओतप्रोत मानवताप्रेमी भी थे।
अमेरिका से लौटकर उन्होंने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा था, “नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भड़भूजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से; निकल पड़े झाड़ियों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से ।”
और जनता ने स्वामीजी की पुकार का उत्तर दिया। वह गर्व के साथ निकल पड़ी। गांधीजी को आजादी की लड़ाई में जो जन-समर्थन मिला, वह विवेकानंद के आह्वान का ही फल था। इस प्रकार वे भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के भी प्रमुख प्रेरणास्नोत बने ।
प्रस्तुत पुस्तक ‘वेदांत भविष्य का धर्म’ में स्वामीजी ने भारतीय अध्यात्म के दो आधारभूत ग्रंथों ‘रामायण’ और “महाभारत’ के माध्यम से भारत के समाज का आध्यात्मिक, सामाजिक और मानसिक दृश्य खींचा है, जो भारतीय जनमानस के भावों का दिग्दर्शन कराता है।”
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedas Sanhita Set of 4
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVedas Sanhita Set of 4
वेद चार हैं, ऋग्वेद ज्ञानकाण्ड है, यजुर्वेद कर्मकाण्ड, सामवेद उपासनाकाण्ड तथा अथर्ववेद विज्ञानकाण्ड है। ऋग्वेद मस्तिष्क का वेद है, यजुर्वेद हाथों का वेद है, सामवेद हृदय का वेद है और अथर्ववेद उदर=पेट का वेद है।
वेद में भी परमात्मा के आदेश, उपदेश और सन्देश हैं। महर्षि दयानन्द के शब्दों में ‘वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।‘ स्वयं वेद पढ़ो, उनपर आचरण करो।
हमने चारों वेदों को शुद्धतम छापने का संकल्प किया था। अपनी ओर से हमने पूर्ण प्रयत्न किया है। अब तक जितने भी संस्करण छपे हैं और जहाँ से भी छपे हैं, यह उनमें सर्वोत्कृष्ट हैं।
इस संस्करण की कुछ विशेषताएँ निम्न हैं-इन वेदों के ईक्ष्यवाचन प्रूफ रीडिंग में विषेष ध्यान रक्खा गया है। इतने शुद्ध, नयनाभिराम और सस्ते वेद अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं होंगे। इसकी टाइप अन्य संस्करणों की अपेक्षा मोटी रक्खी गई है। कम्प्यूटर की कम्पोजिंग, उत्तम कागज, बढ़िया छपाई, टिकाऊ पक्की जिल्द, इसकी अन्य विशेषताएँ हैं। पाठगण ! इन्हे आप स्वयं क्रय कीजिए और अन्यों को प्रेरित कीजिए।
गुरुकुलों में अभ्यास के लिए, वेद पाठ के लिए, वेद परायण यज्ञों के लिए तथा वेद-मन्त्रों को कण्ठस्त करने के लिए इन चारों वेदों (मूल मात्र) के यह संस्करण अत्यन्त उपर्युक्त हैं।
सामवेद में स्वर-चिह्न मन्त्रों पर जो 1, 2, 3, आदि संख्या डली हुई हैं, ये संख्याएँ उदात्त, अनुदात्त और स्वरित के चिह्न हैं। ऋग्वेद आदि अन्य वेदों में अनुदात्त का चिह्न पड़ी रेखा से और स्वरित का चिह्न खड़ी रेखा से दिखाया जाता है।
अनेक विशेषताओं से युक्त होने पर भी इसका मूल्य प्रचार-प्रसार की दृष्टि से रक्खा गया है। हम वेद का स्वाध्याय करें, वेद के अर्थों को जानें, वेद को जीवन में उतारकर अपने जीवन को सुजीवन बनाएँ।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedic Sanskriti ka Sandesh
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVedic Sanskriti ka Sandesh
जिस बिन्दु पर जीवन-यात्रा के अनेक मार्ग फूटते हैं, वहां से मैं किधर जाउं! कौनसा रास्ता सही है, ये प्रष्न प्रत्येक युवक और युवती के हदय में किसी न किसी समय उठते हैं।
वैदिक संस्कृति, भोगवाद तथा त्यागवाद पर समन्वयात्मक दृष्टि प्रस्तुत करते हुए सही पथ प्रदर्षित करती है, जिसे विद्वान लेखक ने सर्व-साधारण तक पहुंचाने के लिए यह अनुपन ग्रन्थ लिखा है।
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedic Vangmay ka Itihas Set of 3
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVedic Vangmay ka Itihas Set of 3
वैदिक वाड्मय का इतिहास 3 खण्ड में प्रकाषित किया गया है।
इसके प्रथम खण्ड में मुख्यतः वैदिक शाखाओं पर विचार किया गया है। विद्वान लेखक ने भाषा शास्त्र तथा भारत के प्राचीन इतिहास विषयक अपने मौलिक चिन्तन का सार भी प्रस्तुत किया है। पं. भगवद्दत्त जी की धारणाऐं और उपपत्तियां विद्वत् संसार में हड़कम्प मचा देने वाली थीं।
इसके द्वितीय खण्ड में लेखक ने ब्राहाण और आरण्यक साहित्य का विचार किया। उपलब्ध और अनुपलब्ध ब्राहाणों के विवरण के पष्चात् इन ग्रन्थों पर लिखे गये भाष्यों और भाष्यकारों की पूरी जानकारी दी गई है।
इस ग्रन्थ के तीसरे खण्ड में अनेक ऐसे भाष्यकारों की चर्चा हुई है जिनके अस्तित्व की जानकारी भी लोगों को नहीं थी।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedon Ki Kathayen- Harish Sharma
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVedon Ki Kathayen- Harish Sharma
कहते हैं धर्म वेदों में प्रतिपादित है। वेद साक्षात् परम नारायण है। वेद में जो अश्रद्धा रखते हैं, उनसे भगवान् बहुत दूर हैं। वेदों का अर्थ है—भिन्न-भिन्न कालों में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा आविष्कृत आध्यात्मिक सत्यों का संचित कोष। वास्तव में जीवन को सुंदर व साधक बनानेवाला प्रत्येक विचार ही मानो वेद है। मैक्स म्यूलर का तो यहाँ तक कहना था कि वेद मानव जाति के पुस्तकालय में प्राचीनतम ग्रंथ हैं।
वेद संख्या में चार हैं—ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद। वेद का शाब्दिक अर्थ है ‘ज्ञान’ या ‘जानना’। ये हमारे ऋषि-तपस्वियों की निष्कपट, निश्छल भावना की अभिव्यक्ति हैं। इनमें जीवन को सद्मार्ग पर प्रशस्त करने का आह्वान है। इतना ही नहीं, वेदों में आत्मा-परमात्मा, देवी-देवता, प्रकृति, गृहस्थ-जीवन, सृष्टि, लोक-परलोक के साथ-साथ नाचने-गाने आदि की बातें भी निहित हैं। इन सबका एक ही उद्देश्य है—मानव-कल्याण।
एक ओर जहाँ वेदों में ईश-भक्ति और अध्यात्म की महिमा गाई गई है, वहीं दूसरी ओर कर्म को ही कल्याण का मार्ग कहा गया है।
वेद हमारे अलौकिक ज्ञान की अनुपम धरोहर हैं। अत: इनके प्रति जन-सामान्य की जिज्ञासा होना स्वाभाविक है, इसलिए वेदों के गूढ़ ज्ञान को हमने कथारूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। इन कथा-कहानियों के माध्यम से सुधी पाठक न केवल इन्हें पढ़-समझ सकते हैं, बल्कि पारंपरिक वैदिक ज्ञान को आत्मसात् कर लोक-परलोक भी सुधार सकते हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Veer Kunwar Singh Ki PremKatha
इस पुस्तक की रचना का मूल मकसद रणबाँकुरे वीर कुँवर सिंह जी के कृतित्व को आम जनमानस तक पहुँचाना है। जाति-धर्म से परे होकर बाबू साहब ने जिस प्रकार सबके साथ आत्मीयता निभाई, उसको दिग्दर्शित करते हुए इस पुस्तक की रचना की गई है। उपलब्ध तथ्यों, लोककथाओं, लोकगीतों सहित अनेक माध्यमों को आधार बनाकर यह पुस्तक तैयार की गई है। बाबू साहब की देशभक्ति के साथ-साथ प्रजा के प्रति उनके अगाध स्नेह, प्रेम और दायित्व को केंद्रित कर इसकी रचना की गई है। इस पुस्तक को पढ़ने में पाठकों की रुचि बनी रहे, इसलिए कथानकों को संवाद के रूप में भी प्रस्तुत किया गया है। इसे संगृहीत अंशों का एक संकलन भी कहा जा सकता है। प्रस्तुत पुस्तक इतिहास के साथ-साथ फिक्शन स्टोरी भी कही जा सकती है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Veer Nariyan
सैनिक हमारे लोकतंत्र के ऐसे स्तंभ हैं, जो देश के लिए अपने जीवन को स्वेच्छा से बलिदान कर देते हैं। उनका हम पर यह ऋण है कि हम वीर नारियों को सशक्त बनाएँ और उन्हें वह सब दें, जिसकी वे वास्तव में हकदार हैं और भविष्य की चुनौतियों से निपटने में उनकी मदद करें। यों तो बताने के लिए वीर नारियों की ऐसी हजारों कहानियाँ हैं, लेकिन इस पुस्तक में कुछ कहानियों को पाठकों तक पहुँचाने की कोशिश की है। कुछ ऐसी कहानियाँ, जो संघर्ष की आँच में तपकर सफल हुई वीर नारियों को प्रतिबिंबित करती हैं।
प्रत्येक महिला की यात्रा हृदयविदारक, लेकिन अनेक तरीकों से प्रेरक थी। इस पुस्तक को लिखना और सिरे तक पहुँचाना एक लंबी और थका देनेवाली प्रक्रिया रही है, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में लेखिका नें जीवनभर के लिए कुछ साथी बनाए हैं। कई-कई दिन साथ बिताने के कारण एक-दूसरे से दिल की बातें करने लगे थे, जिसमें हलका-फुलका हँसी-मजाक भी शामिल था तो गंभीर चिंताएँ भी; लेकिन अब हम जानते हैं कि अच्छे-बुरे वक्त में हम साथ हैं। हमारी रक्षा पृष्ठभूमि ने हमें एक-दूसरे से जोडक़र रखा है, यह एक सुंदर सूत्र है, जिसने इस रिश्ते को अत्यंत खास बनाया है। इनमें से कुछ महिलाएँ बहिर्मुखी थीं तो कुछ अंतर्मुखी, कुछ आज भी भय में जी रही हैं, लेकिन फिर भी ये सभी नारियाँ हम सभी के लिए अपने आप में एक प्रेरणा हैं।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Veer Satsai
वीर सतसई (सूर्यमल्ल मिश्रण कृत) : सूर्यमल्ल मिश्रण जी के वीर सतसई ग्रन्थ को राजस्थान में स्वाधीनता के लिए वीरता की उद्घोषणा करने वाला अपूर्व ग्रन्थ माना जाता है। इस ग्रन्थ के पहले ही दोहे में वे ”समे पल्टी सीस“ का घोष करते हुए अंग्रेजी दासता के विरुद्ध विद्रोह के लिए उन्मुख होते हुए प्रतीत होते हैं। यह सम्पूर्ण कृति वीरता का पोषण करने तथा मातृभूमि की रक्षा के लिए मरने मिटने की प्रेरणा का संचार करती है। यह राजपूती शौर्य के चित्रण तथा काव्य शास्त्र की दृष्टि से उत्कृष्ट रचना है।
राजस्थानी साहित्य में जो विविध काव्य-रूप विकसित हुए उनमें संख्यापरक काव्य-रूपों का विशेष स्थान है। संख्यापरक रचनाओं में हजारा, सतसई, शतक, अष्टोत्तरी, बहोत्तरी, बावनी, छत्तीसी, बत्तीसी, पच्चीसी, चैबीसी, बीसी, अष्टक आदि नाम की सहस्त्राधिक कृतियाँ उपलब्ध होती हैं। सामान्यतः ये रचनाएँ मुक्तक होती है।
इन विविध संज्ञापरक रचनाओं में ‘सतसई’ का विशिष्ट स्थान है। ‘सतसई’ संज्ञक रचनाओं में सामान्यतः सात सौ अथवा इसके लगभग की संख्या में रचित दोहों का संग्रह कर दिया जाता है। वीर भावों को आधार बनाकर सर्वाधिक सतसइयाँ राजस्थानी में लिखी गई। वीररसावतार सूर्यमल्ल मिश्रण ने ‘वीर सतसई’ का निर्माण कर सतसई-परम्परा को नया मोड़ दिया। उन्होंने अपनी सतसई में किसी विशिष्ट सामन्त, राजा या ठाकुर को अपना आलम्बन नहीं बनाया। उनका आलम्बन बना सामान्य वीर पुरुष और सामान्य वीर नारी। वीर भावों की ऐसी सार्वजनिक सामान्यीकृत अभिव्यक्ति अन्यत्र दुर्लभ है।
सूर्यमल्ल मिश्रण जी की प्रतिभा और विद्वता का पता तो इस बात से ही चल जाता है कि मात्र 10 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने ‘रामरंजाट’ नामक खंड-काव्य की रचना कर दी थी। सूर्यमल्ल मिश्रण के प्रमुख ग्रन्थ ‘वंश भास्कर’ एवं ‘वीर सतसई’ सहित उनकी समस्त रचनाओं में चारण काव्य-परम्पराओं की स्पष्ट छाप अंकित है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Veer Savarkar(PB)
यदि भारत अपनी स्वाधीनता के 75वें वर्ष की ओर देखता है तो वह देश के विभाजन के 75वें वर्ष की ओर भी देखता है। यह संभवत: बीसवीं शताब्दी की विकटतम मानव त्रासदी थी, जिसने बड़े पैमाने पर अभूतपूर्व हिंसा देखी; और इस हिंसा की प्रणेता वे इच्छुक पार्टियाँ थीं, जिन्होंने अपने राजनीतिक एवं विचारधारात्मक कारणों से उसे भड़काया था। विभाजन की ओर प्रवृत्त करनेवाले वास्तविक कारणों का विश्लेषण करें तो उसका पाठ भारत की एकता एवं अखंडता में निहित है, जिसका प्रमाण वीर सावरकर द्वारा विभाजन को रोकने के लिए किए गए अथक प्रयासों में मिलता है। तार्किक रूप से भारत की राष्ट्रीय अखंडता के महानतम प्रतीक सावरकर को ओर से भारत की सुरक्षा के प्रति जो चेतावनियाँ दी गई थीं, वे विगत सात दशकों में सत्य सिद्ध हुई हैं।
“वीर सावरकर” पुस्तक सावरकर जैसे तपोनिष्ठ चिंतक एवं भारत की सुरक्षा के जनक के उस पक्ष को प्रस्तुत करती है, जिससे भारत के विभाजन को रोका जा सकता था।
इस पुस्तक में देश एवं उसकी नई पीढ़ी के समक्ष भारत विभाजन, जोकि तुष्टीकरण की राजनीति के कारण हुआ था, को सत्य कथा को प्रस्तुत करने एवं इतिहास को परिवर्तित करने की उर्वरा है। आज देश को एकजुट बनाए रखने के लिए सावरकरवादी दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Veer Vinod – Mewar Ka Itihas Set Of 4 Vol.
AUTHOR : महामहोपाध्याय कविराज श्यामलदास (MAHAMAHOPADHYAYA KAVIRAJA SHYAMALDAS)
वीर विनोद – मेवाड़ का इतिहास (भाग 1 से 4)
राजस्थान के इतिहास का एक विशालकाय और चिरस्मरणीय ग्रन्थ है। यह सन् 1886 ई. में मुद्रित हुआ था और अब एक दीर्घ अन्तराल के पश्चात् प्रथम बार इसका पुनर्मुद्रण किया जा रहा है। उर्दू-मिश्रित हिन्दी में लिखित एवं एक निराली स्पष्टोक्तिपूर्ण शैली में रचित इस ग्रन्थ ने हिन्दी के शुरू के भारतीय-इतिहास-साहित्य में बहुत उच्च स्थान प्राप्त कर लिया था। चार जिल्दों और 2716 पृष्ठों में मुद्रित यह ऐतिहासिक वृत्तान्त मेवाड़ को राजपूत वैभव, शौर्य एवं पराक्रम के केन्द्र के रूप में प्रदर्शित करता है। इसमें प्रमुख घटनाओं से उत्पन्न हलचलों का, उनकी चुनौतियों का तथा विभिन्न महाराणाओं के नेतृत्व में मेवाड़वासियों ने उनका जिस साहस और वीरता के साथ सामना किया, उसका सजीव वर्णन किया गया है। इसके प्रत्येक पृष्ठ पर अस्त्रों की घनघनाहट एवं राजपूत शौर्य के अभूतपूर्व कारनामे अंकित हैं।
ग्रंथकार ने राजस्थानी इतिहास का वर्णन संपूर्ण विश्व के परिप्रेक्ष्य में किया है। इसमें यूरोप, अफ्रीका, उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका, आस्ट्रेलिया तथा एशिया महाद्वीपों का सामान्य सर्वेक्षण किया गया है; भारत पर सिकन्दर के आक्रमण एवं मुसलमानों के आगमन को चित्रित किया गया है; भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर घटनेवाली उन घटनाओं का गंभीर विवेचन-विश्लेषण किया गया है, जिन्होंने मेवाड़ के जन-जीवन को प्रभावित किया तथा हिमालय की गोद में बसे हुए नेपाल-राज्य के इतिहास की भी सूक्ष्म छानबीन की गई है। राजस्थान के राजनीतिक, आर्थिक एवं प्रशासनिक पहलुओं पर प्रकाश डालने वाली प्रचुर सामग्री बहुमूल्य अभिलेखों, राजकीय दस्तावेजों, अनेक फरमानों तथा आंकड़ों के रूप में इस ग्रंथ में संगृहीत है। भारतीय विद्वानों, अनुसंधानकर्ताओं, छात्रों एवं सामान्य पाठकों के द्वारा लम्बे अरसे से इस कृति के पुनर्मुद्रण की मांग की जा रही थी और स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् तो यह मांग और भी जोर पकड़ गई थी। इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए प्रस्तुत प्रयास किया गया है। कविराज श्यामलदास, जिन्होंने यह ग्रंथ लिखा है, मेवाड़ के महाराणा सज्जनसिंह (1859-84) के दरबार को सुशोभित करने वाले राजकवि थे। उनके विशाल ज्ञान एवं पाण्डित्य से अभिभूत होकर उन्हें ‘महामहोपाध्याय’ तथा ‘कैसर-ए-हिन्द’ की सम्मानजनक उपाधियों से विभूषित किया गया था। ‘वीर विनोद’ उनकी प्रधान रचना है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Vibhajan Ki Trasadi
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Vibhajan Ki Trasadi
आजादी का जश्न अभी क्षितिज तक भी न चढ़ सका था कि मुल्क के दो फाड़ होने का बिगुल बज गया और सांप्रदायिक सद्भाव तार-तार हो गया, जिसके साथ ही दोनों तरफ की बेकसूर आवाम के खून का एक दरिया बह निकला। लाखों लोग मारे गए। करोड़ों बेघर हुए। लगभग एक लाख महिलाओं, युवतियों का अपहरण हुआ। यही बँटवारा इस पुस्तक का मुख्य मुद्दा है, जो लेखक की कड़ी मेहनत और बरसों की शोध का नतीजा है। बँटवारे में मरनेवालों का सरकारी आँकड़ा केवल छह लाख दर्ज है, लेकिन इस संदर्भ में अगर तत्कालीन अंग्रेज अधिकारी मोसले पर गौर करें तो वह गैरसरकारी आँकड़ा दस लाख दरशाता है, यानी कि बँटवारे में छह लाख नहीं, बल्कि दस लाख लोग मारे गए। गौरतलब है कि न पहले और न ही बाद में, इतना बड़ा खून-खराबा और बर्बरता दुनिया के किसी भी देश में नहीं हुई।
अब एक बड़ा सवाल उठता है कि देश का विभाजन आखिर सुनिश्चित कैसे हुआ? क्या जिन्ना का द्विराष्ट्रवाद इसके लिए जिम्मेदार था या फिर अंग्रेजों की कुटिल नीति? क्या गांधी और कांग्रेस के खून में बुनियादी रूप से मुसलिम तुष्टीकरण का बीज विद्यमान था, जिसने अंततः बँटवारे का एक खूनी वटवृक्ष तैयार किया और जिसकी तपिश आज भी ठंडी नहीं हो पाई है।
विभाजन की त्रासदी और विभीषिका का वर्णन करती पुस्तक, जो पाठक को उद्वेलित कर देगी।SKU: n/a -
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Vibhajan Ki Vibheeshika
भारत का विभाजन विश्व के सबसे बड़े नरसंहार के रूप में हिंदुओं और सिखों की महिलाओं की छाती पर हुआ। इसमें 30 लाख से अधिक लोगों की नृशंस हत्या हुई। विभाजन के समय हिंदू और सिख पुरुषों को एक लाइन में खड़ा करके पाकिस्तानी सेना ने गोलियों से भून दिया।
एक लाख से अधिक महिलाओं का अपहरण व बलात्कार करके अधिकांश को मौत के घाट उतार दिया गया | उनकी संपत्ति को हड़प लिया अथवा उसे आग के हवाले कर दिया । विश्व में यह एकमात्र ऐसा उदाहरण है, जब करोड़ों की जनसंख्या का विनिमय बिना किसी योजना एवं पूर्व प्रबंधों के अचानक कर दिया गया।
पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित इन दंगों में 1.5 करोड़ लोग विस्थापित हुए। विभाजन का यह काला अध्याय विस्थापित हुए, भगाए गए, मारे गए और भटककर मौत को गले लगानेवाली मनुष्यता के खून के छींटों से भरा हुआ है। यह इतिहास के चेहरे पर पुती वह कालिमा है, जिसे कभी साफ नहीं किया जा सकेगा। इसका दंश इस पीढ़ी ने झेला, पर उसका दर्द और मार वहाँ से विस्थापित हुए परिवार आज भी झेल रहे हैं।
विभाजन का दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह है कि इसके लिए उत्तरदायी नेता अपने इस अमानवीय कुकृत्य के लिए कभी शर्मिंदा नहीं हुए, बल्कि विभीषिका को “रक्तहीन क्रांति’ कहकर स्वयं को गौरवान्वित करते रहे । इन्हीं खून के धब्बों की लोमहर्षक घटनाओं पर उकेरा गया है यह अत्यंत मर्मस्पर्शी एवं संवेदनशील उपन्यास–‘विभाजन की विभीषिका ।SKU: n/a -
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Vibhajit Bharat (HB)
Ram Madhavराम माधव राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर हैं और भू-राजनीतिक, सामरिक एवं सुरक्षा अध्ययन तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में विशेष दिलचस्पी रखते हैं। उन्होंने अनेक देशों की यात्राएँ की हैं और 20 से अधिक देशों के विश्वविद्यालयों तथा अन्य कार्यक्रमों में व्याख्यान दे चुके हैं। सन् 1990 से 2001 के बीच, एक दशक से भी ज्यादा समय तक वे सक्रिय पत्रकारिता कर चुके हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेख भी लिखते हैं। अंग्रेजी और तेलुगु में उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें प्रमुख हैं—डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी की ‘ए बायोग्राफी’ (तेलुगु), कान्होजी आंग्रे की ‘द मराठा नेवल हीरो’ (तेलुगु), ‘विविसेक्टेड मदरलैंड’ (तेलुगु), ‘इंडिया-बँगलादेश बॉर्डर एग्रीमेंट 1974—ए रिव्यू’ (अंग्रेजी) और ‘कम्युनल वॉयलेंस बिल अगेंस्ट कम्युनल हार्मोनी’ (अंग्रेजी)।
वे दिल्ली स्थित सामरिक अध्ययन एवं अंतरराष्ट्रीय संबंध अध्ययन के विचार केंद्र इंडिया फाउंडेशन के निदेशक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री हैं।
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