अन्य कथेतर साहित्य
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, इतिहास
1000 MAHAPURUSH PRASHANOTTARI
1000 महापुरुष प्रश्नोत्तरी—राजेंद्र प्रताप सिंहयह पुस्तक पाठकों को भारतीय महापुरुषों से संबंधित अनेक महत्त्वपूर्ण संदर्भ सामग्री, जैसे—उनकी जन्म-तिथि व निर्वाण-तिथि एवं अन्य संबद्ध तिथियाँ, माता-पिता के नाम, संबंधित स्थल एवं घटनाएँ, उनके भाषण, उपदेश व संदेश, उपाधियाँ व सम्मान, उपनाम, ऐतिहासिक कर्तृत्व, उनकी विशिष्टताएँ, उल्लेखनीय कार्य, आदर्श कथन आदि के बारे में महत्त्वपूर्ण व उपयोगी जानकारियाँ उपलब्ध कराती है। इसमें भारत के 100 से अधिक महापुरुषों पर आधारित विभिन्न प्रकार की जानकारियाँ प्रश्नोत्तर शैली में दी गई हैं। इसमें 1,000 प्रश्न और उनके 4,000 वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं।
विश्वास है, पुस्तक छात्रों, शिक्षकों, पत्रकारों, संपादकों, वक्ताओं, लेखकों एवं विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े अध्येताओं सहित आम पाठकों के लिए भी उपयोगी एवं पठनीय सिद्ध होगी।SKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Aadi, Ant Aur Aarambha
अकसर कहा जाता है कि बीसवीं शती में जितनी बड़ी संख्या में लोगों को अपना देश, घर-बार छोड़कर दूसरे देशों में शरण लेना पड़ा, शायद किसी और शती में नहीं। किन्तु इससे बड़ी त्रासदी शायद यह है कि जब मनुष्य अपना घर छोड़े बिना निर्वासित हो जाता है, अपने ही घर में शरणार्थी की तरह रहने के लिए अभिशप्त हो जाता है। आधुनिक जीवन की सबसे भयानक, असहनीय और अक्षम्य देन ‘आत्म-उन्मूलन’ का बोध है। अजीब बात यह है कि यह चरमावस्था, जो अपने में काफी ‘एबनॉर्मल’ है, आज हम भारतीयों की सामान्य अवस्था बन गयी है। आत्म-उन्मूलन का त्रास अब ‘त्रास’ भी नहीं रहा, वह हमारे जीवन का अभ्यास बन चुका है। ऊपर की बीमारियाँ दिखाई देती हैं, किन्तु जो कीड़ा हमारे अस्तित्व की जड़ से चिपका है, जिससे समस्त व्याधियों का जन्म होता है- आत्म-शून्यता का अन्धकार- उसे शब्द देने के लिए हमें जब-तब किसी सर्जक-चिन्तक की आवश्यकता पड़ती रही है। हमारे समय के मूर्धन्य रचनाकार निर्मल वर्मा अकसर हर कठिन समय में एक सजग, अर्थवान् हस्तक्षेप करते रहे हैं। अलग-अलग अवसरों पर लिखे गये इस पुस्तक के अधिकांश निबन्ध- भले ही उनके विषय कुछ भी क्यों न हों- आत्म-उन्मूलन में इस ‘अन्धकार’ को चिद्दित करते रहे हैं। एक तरह से यह पुस्तक निर्मल वर्मा की सामाजिक-सांस्कृतिक चिन्ताओं का ऐतिहासिक दस्तावेज़ प्रस्तुत करती है।
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Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Acharya Chanakya Ki Kahaniyan
Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रAcharya Chanakya Ki Kahaniyan
चाणक्य के काल में पाटलीपुत्र (वर्तमान में पटना) बहुत शक्तिशाली राज्य मगध की राजधानी था। उस समय नंदवंश का साम्राज्य था और राजा था धनानंद। कुछ लोग इस राजा का नाम महानंद भी बताते हैं। एक बार महानंद ने भरी सभा में चाणक्य का अपमान किया था और इसी अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए आचार्य ने चंद्रगुप्त को युद्धकला में पारंपत किया।
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Gita Press, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य
Adarsh Upkaar 0159
यह पुस्तक कल्याण में समय-समय पर प्रकाशित सत्य घटनाओं का प्रेरक प्रसंगों के रूपमें ऐसा मार्मिक चित्रण है कि इसे पढ़ते-पढ़ते आँखों से प्रेमाश्रु छलक पड़ें। आदर्श उपकार, स्वप्न के स्वरूप में सत्य, बहू की बुद्धि, विद्यालय की मित्रता आदि 48 प्रसंगों के रूपमें वर्णित ये प्रेरक-प्रसंग पठनीय तथा अनुकरणीय हैं।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, उपन्यास
Antim Aranya
अन्तिम अरण्य यह जानने के लिए भी पढ़ा जा सकता है कि बाहर से एक कालक्रम में बँधा होने पर भी उपन्यास की अन्दरूनी संरचना उस कालक्रम से निरूपित नहीं है। अन्तिम अरण्य का उपन्यास-रूप न केवल काल से निरूपित है, बल्कि वह स्वयं काल को दिक् में-स्पेस में-रूपान्तरित करता है। उनका फॉर्म स्मृति में से अपना आकार ग्रहण करता है- उस स्मृति से जो किसी कालक्रम से बँधी नहीं है, जिसमें सभी कुछ एक साथ है -अज्ञेय से शब्द उधार लेकर कहें तो जिसमें सभी चीज़ो का ‘क्रमहीन सहवर्तित्व’ है। यह ‘क्रमहीन सहवर्तित्व’ क्या काल को दिक् में बदल देना नहीं है?… यह प्राचीन भारतीय कथाशैली का एक नया रूपान्तर है। लगभग हर अध्याय अपने में एक स्वतन्त्र कहानी पढ़ने का अनुभव देता है और साथ ही उपन्यास की अन्दरूनी संरचना में वह अपने से पूर्व के अध्याय से निकलता और आगामी अध्याय को अपने में से निकालता दिखाई देता है। एक ऐसी संरचना जहाँ प्रत्येक स्मृति अपने में स्वायत्त भी है और एक स्मृतिलोक का हिस्सा भी। यह रूपान्तर औपचारिक नहीं है और सीधे पहचान में नहीं आता क्योंकि यहाँ किसी प्राचीन युक्ति का दोहराव नहीं है। भारतीय कालबोध-सभी कालों और भुवनों की समवर्तिता के बोध-के पीछे की भावदृष्टि यहाँ सक्रिय है। -नन्दकिशोर आचार्य
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Akshaya Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Anubhasya on the Brahmastura
-10%Akshaya Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताAnubhasya on the Brahmastura
Anubhasya on The Brahmasutra by Mahaprabhu Sri Vallabhacharya with the commentary Bhasyaprakasa of Gosvami Sri Purusottamaji and the super-commentary Rasmi on the Bhasyaprakasa of Gosvami Sri Gopesvarji, edited with introduction and appendices etc. by Mulchandra Tulsidas Teliwala, with a new introduction in English and Sanskrit by Goswami Sri Shyam Manoharji Maharaj, Sasthapithadhisvara, Mandira Sri Mukundarayaji Sri Gopalalalaji, Kasi, 4 Volumes.
The present commentaries on Anubhasya known as Prakasa written by Sri Purusottama Carana, a descendent of Sri Vallabhacarya and another on the same known as Rasmi by Sri Yogi Gopesvara, of the same lineage, provide excellent and appropriate interpretation of the tradition. In fact, Anubhasya of Vallabhacarya with these two commentaries given by Sri Purusottamacarana and Gopesvaraji is the most authentic text for providing illuminating interpretation of the Brahmasutra.
This edition was originally printed by Nirnaysagar Press, Bombay, an institution known for publishing and printing the authentic editions. This work was published some eighty years ago, now printed again with a new Introduction in English and Sanskrit by one of the greatest scholars of modern times in the tradition.
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Govindram Hasanand Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य
Aryasamaj
लाला लाजपतराय अपनी युवा अवस्था से ही आर्यसमाज से जुड़े रहे तथा उन्होंने उन्मुक्त भाव से यह स्वीकार किया था कि देश की जो सेवा वह कर पाए हैं, उसका श्रेय आर्यसमाज एवं उसके संस्थापक महर्षि दयानंद को ही है, जिनसे प्रेरणा पाकर वह समाज तथा स्वराष्ट्र के लिए कुछ कर सके।
आर्यसमाज का सांगोपांग विवेचन प्रस्तुत करने का विचार लेकर ही लालाजी ने उस समय ‘दी आर्यसमाज‘ नामक अंग्रेजी ग्रंथ लिखा था। तब से लेकर अब तक आर्यसमाज आंदोलन ने जो उतार-चढ़ाव देखे हैं, उसके लिए तो अन्य विवेचन की अपेक्षा रहेगी ही, तथापि लालाजी जी का यह ग्रंथ भी कालजयी साहित्य की श्रेणी में आ गया है।
इस पुस्तक का अध्ययन वे लोग अवश्य करें जो संक्षेप में आर्यसमाज तथा उसके संस्थापक से परिचित होना चाहते हैं। आशा है नरकेसरी लालाजी का यह अमर ग्रंथ पाठकों में स्वदेश, स्वधर्म तथा स्वसंस्कृति के प्रति प्रेम जगाने में समर्थ होगा।SKU: n/a -
Patanjali-Divya Prakashan, Yog Ayurvedic books, अन्य कथेतर साहित्य
Astavarga Rahasya (Hindi)
Ayurveda is the science of eternal life. It is an important part of our prosperous and glorious history. Astavarga is a name of a group of eight vitality promoting and anti-aging medicinal plants (Jivaka, Rishabhaka, Meda, Mahameda, Kakoli, Ksirkakoli, Riddhi and Vriddhi) mentioned in Ayurveda. It is an important ingredient of “Cyavanaprasa”. This book is intended for attention of researchers, cultivators of medicinal plants, and the billions of people who wish to have knowledge of medicinal plants. It is an attempt for error free identification of Astavarga plants, to offer a reliable and detailed use of these valuable plants. The identification and description of Astavarga plants presented in this book is based on ancient ayurvedic literature and research of the complete shastras.
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Govindram Hasanand Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, अन्य कथेतर साहित्य
Athato Dharm Jigyasaa
धर्म के यथार्थ स्वरूप का दार्शनिक विवेचन-साधारण तौर पर लोगों के बीच धर्म या तो विवाद का विषय रहा है या फिर परंपरा का, जबकि यह चिंतन व विचार-विमर्श का विषय होना चाहिए। समाज में धर्म के विषय में फैली भ्रांतियों और असमंजस की स्थिति का निराकरण एवं इसके यथार्थ स्वरूप का उद्घाटन आवश्यक है। जिसकी चर्चा इस पुस्तक में तथ्य परक एवं तार्किक ढंग से की गई है।
इस पुस्तक में भौतिक तथ्यों एवं आंकड़ों का उल्लेख करके विषय को अधिक रोचक एवं प्रामाणिक बनाया गया है। धर्म ईश्वरोक्त है अर्थात् ईश्वर के द्वारा मनुष्य मात्र के लिए निर्धारित आचरण संबंधी निर्देश ही धर्म कहलाता है। प्रस्तुत पुस्तक में इस सिद्धांत का सफलता पूर्वक प्रतिपादन किया गया है।
‘धर्म का स्वरूप‘ इस पुस्तक का मुख्य अध्याय है। जिसके अंतर्गत धर्म के सूक्ष्म तत्व की विस्तृत व्याख्या की गई है। विशेष तौर पर अहिंसा, सत्य और विद्या जैसे विषयों की व्याख्या काफी रोचक और ज्ञानवर्धक है। धर्म के नाम से प्रचलित छः मुख्य संप्रदाय यह समूह (ईसाई, मुस्लिम, हिंदू, नास्तिक, बौद्ध, यहूदी) का संक्षेप विवरण ‘धर्माभास‘ नामक अध्याय में दिया गया है।
ताकि पाठकों को इनके बारे में साधारण तथ्य मालूम हो सकें। यह पुस्तक बुद्धिजीवी और तार्किक पाठकों को अवश्य पसंद आएगी। निःसंदेह इस उच्चकोटि की पुस्तक रचना के लिए लेखक को मेरा साधुवाद और इसकी सफलता हेतु बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
– डॉ. वागीष आचार्य, गुरुकुल एटाSKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
AULESYA TATHA ANYA KAHANIYAN
अलेक्सांद्र कुप्रीन की ‘ओलेस्या तथा अन्य कहानियाँ’ पुस्तक की कथा जंगल में रहने वाली एक समाज-बहिष्कृत सुंदर लड़की और उसकी दादी की है,जिन्हें गाँव वाले डायनें समझते हैं। कथानक उस अल्प- परिचित, अलप-उद्घघाटित विषय का है, जिस पर आज भी बहुत कम सहीतियक रचनाएँ सारे यूरोप- अमेरिका में मिलती हैं। कुप्रीन, और चेखव की ही परंपरा में,रूसी साहित्य के उस स्वर्ण-काल के लेखक हैं जिनके पास समाज के हर तबके के पात्र के लिए के अचूक अंतर्दृष्टि थी।
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Patanjali-Divya Prakashan, Yog Ayurvedic books, अन्य कथेतर साहित्य
Aushadh Darshan (English)
Acharya Balkrishna Ji, as a hobby, started studying several medicines used in ancient medical practices which exhibited miraculous effect on the chronic diseases. Soon his detailed collection was applauded to such an extent that it became a necessity to publish this research in the form of a book, named as, Ausadh Darshan. This book has gained rapid popularity and about 10 million copies have been sold till date. It consists of the most effective methods suggested by Swami Ramdev Ji and Acharya Balkrishna Ji in order to treat fatal diseases. Aushadh Darshan is available in multiple languages.
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Patanjali-Divya Prakashan, Yog Ayurvedic books, अन्य कथेतर साहित्य
Aushadh Darshan (Hindi)
Acharya Balkrishna Ji, as a hobby, started studying several medicines used in ancient medical practices which exhibited miraculous effect on the chronic diseases. Soon his detailed collection was applauded to such an extent that it became a necessity to publish this research in the form of a book, named as, Ausadh Darshan. This book has gained rapid popularity and about 10 million copies have been sold till date. It consists of the most effective methods suggested by Swami Ramdev Ji and Acharya Balkrishna Ji in order to treat fatal diseases. Aushadh Darshan is available in multiple languages.
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Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां
Azad Hind Fauz
‘आजाद हिंद फौज’ आज भी लाखों भारतवासियों के दिलों में अपना स्थान बनाए हुए है। आजाद हिंद फौज ने सन् 1944 में अंग्रेजों से आमने-सामने युद्ध किया और कोहिमा, पलेल आदि भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया। 22 सितंबर, 1944 को ‘शहीदी दिवस’ मनाते हुए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपने सैनिकों से मार्मिक शब्दों में कहा, ‘‘हमारी मातृभूमि स्वतंत्रता की खोज में है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।’’ किंतु दुर्भाग्यवश द्वितीय विश्वयुद्ध का पासा पलटा और जर्मनी ने हार मान ली, साथ ही जापान को भी घुटने टेकने पड़े। ऐसे में इन देशों ने आजाद हिंद फौज की मदद करने से इनकार कर दिया। इसी समय अंग्रेजों ने नेताजी पर नकेल कसने की रणनीति बनाई। इस वजह से नेताजी को टोक्यो की ओर पलायन करना पड़ा और कहते हैं कि हवाई दुर्घटना में उनका निधन हो गया। आजाद हिंद फौज भारत के गौरवशाली और क्रांतिकारी इतिहास को सुनहरे अक्षरों में कैद किए हुए है। देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करनेवाले स्वतंत्रता सेनानियों के सच्चे इतिहास से रूबरू कराती है यह पुस्तक। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी आंदोलन और राष्ट्रभक्त हुतात्माओं के बलिदान की प्रेरणागाथा बताती अत्यंत पठनीय पुस्तक।.
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां
Beech Bahas Mein
निर्मल वर्मा की करुणा आत्मदया नहीं है, यह एक समझदार और वयस्क करुणा है। यह करुणा जीवन में विसंगतियों को देखती है और उन्हें समझती है, गोकि कुछ करती नहीं। निर्मल वर्मा की कहानियों के पात्र एक-दूसरे को भीतर से समझते हैं, इसलिए उनमें आपस में कोई विरोध या संघर्ष नहीं है, वे एक-दूसरे को काटते नहीं, एक-दूसरे के अस्तित्व की प्रतिज्ञाओं को तोड़ते नहीं। एक अर्थ में वे यथास्थितिवादी हैं। वे अपने केन्द्र पर अपनी अनुभूति की पूरी सजीवता से डोलते हुए सिर्फ स्थिर रहना चाहते हैं, न अपने आपको, न अपने परिवेश को और न इन दोनों के सम्बन्ध को ही बदलना चाहते हैं। -मलयज बीच बहस में एक मौत हुई थी। लगा था कि दिवंगत के साथ ही उसके साथ होने वाली बहस भी समाप्त हो गयी। पर बहस समाप्त हुई नहीं। हो भी कैसे? बहस केवल उससे तो थी नहीं, जो चला गया। वह तो अपने आप से है, उनसे है जो बच रहे हैं। और जो मौत भी हुई है, वह कोई टोटल, सम्पूर्ण मौत तो है नहीं। क्यों कोई मौत टोटल होती है? -सुधीर चंद्र
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Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Bhagat Singh Ki Phansi Ka Sach
Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणBhagat Singh Ki Phansi Ka Sach
शहीद-ए-आजम भगत सिंह (1907-1931) एक ऐसे समय जी रहे थे, जब भारत का स्वतंत्रता संग्राम जोर पकड़ने लगा था और जब महात्मा गांधी का अहिंसात्मक, आंशिक स्वतंत्रता का शांत विरोध लोगों के धैर्य की परीक्षा ले रहा था। हथियार उठाने की भगत सिंह की अपील युवाओं को प्रेरित कर रही थी और उनके साथ ही हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की सैन्य शाखा के कॉमरेड मिलकर सुखदेव और राजगुरु की ललकार तथा दिलेरी उनमें जोश भर रही थी। ‘इनकलाब जिंदाबाद!’ का जो नारा उन्होंने दिया था, वह स्वतंत्रता की लड़ाई का जयघोष बन गया।
लाहौर षड्यंत्र केस में भगत सिंह के शामिल होने को लेकर मुकदमे का ढोंग चला और जब तेईस वर्ष की उम्र में, अंग्रेजों ने भगत सिंह को फाँसी दे दी, तब भारतीयों ने उनकी शहादत को उनकी जवानी, उनकी वीरता, और निश्चित मृत्यु के सामने अदम्य साहस के लिए पूजना शुरू कर दिया। इसके कई वर्षों बाद, 1947 में स्वतंत्रता मिलने पर, जेल में उनके लिखे लेख सामने आए। आज, इन लेखों के कारण ही भगत सिंह ऐसे कई क्रांतिकारियों से अलग दिखते हैं, जिन्होंने अपना जीवन भारत के लिए बलिदान कर दिया।
जानकारी से भरपूर और दिलचस्प यह पुस्तक भारत के महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक और अनूठी बौद्धिक ईमानदारी दिखानेवाले व्यक्ति का रोचक वर्णन है।SKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, इतिहास, कहानियां
Bharat Aur Europe : Pratishruti Ke Kshetra
पिछले वर्षों में यदि निर्मल वर्मा का कोई एक निबन्ध सबसे अधिक चर्चित और ख्यातिप्राप्त रहा है, तो वह भारत और यूरोप है, जो उन्होंने हाइडलबर्ग विश्वविद्यालय, जर्मनी में प्रस्तुत किया था। भारत और यूरोप महज दो इकाइयाँ न होकर दो ध्रुवान्त सभ्यताओं का प्रतीक रहे हैं…एक-दूसरे से जुड़कर भी दो अलग-अलग वास्तविकताएँ। पश्चिम से सर्वथा विपरीत भारतीय परम्परा में प्रकृति, कला और दुनिया के यथार्थ के बीच का सम्बन्ध हमेशा से ही पवित्र माना जाता रहा है। उसमें एक प्रकार की ईश्वरीय दिव्यता आलोकित होती है… शिव के चेहरे की तरह कला जीवन को परिभाषित नहीं करती, बल्कि स्वयं कलाकृति में ही जीवन परिभाषित होता दीखता है।’ भारत और यूरोप के लिए निर्मल वर्मा को 1997 में भारतीय ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। परम पावन दलाई लामा से पुरस्कार स्वीकार करते समय निर्मल वर्मा ने कहा कि उन्हें इस बात की प्रसन्नता है कि यह पुरस्कार उनके निबन्धों की पस्तक पर है। ‘ये निबन्ध मेरे उन अकेले वर्षों के साक्षी हैं जब मैं…अपने साहित्यिक समाज की पर्वनिर्धारित धारणाओं से अपने को असहमत और अलग पाता था…मैं अपने निबन्धों और कहानियों में किसी तरह की फाँक नहीं देखता। दोनों की तष्णाएं भले ही अलग-अलग हों, शब्दों के जिस जलाशय से वे अपनी प्यास बुझाते हैं, पर एक ही है। निबन्ध मेरी कहानियों के हाशिए पर नहीं, उनके भीतर के रिक्त-स्थानों को भरते हैं, जहाँ मेरी आकांक्षाएँ सोती हैं….
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Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Bharat Ka Samvidhan
संविधान का राष्ट्रीय लोक-विमर्श आज भी लगभग पूरी तरह अंग्रेजी भाषा का मुखापेक्षी है। इस विमर्श में आम आदमी की छवि एवं उनके सरोकार तो नजर आते हैं, किंतु आम आदमी की भाषा सुनाई नहीं देती। इस ग्रंथ में हिंदी में विवेकसंगत एवं संतुलित संविधान-विमर्श के साथ ही आम आदमी की समझ में आनेवाली भाषा प्रयोग की गई है। संविधान-रचना की पृष्ठभूमि और व्याख्या की दृष्टि से यह ग्रंथ हिंदी भाषा में संविधान-साहित्य को एक अमूल्य और बेजोड़ उपहार है।
प्रस्तुत ग्रंथ में संविधान के विविध पक्षों पर सरल एवं सुबोध भाषा में प्रकाश डाला गया है। इसमें संविधान के उलझे हुए प्रश्नों के विवेचन के साथ-साथ संविधान के विषयों का अनुच्छेद-आधारित उल्लेख भी है। संविधान की रचना की पृष्ठभूमि देते हुए बताया गया है कि कई ‘अर्धवैधानिक’ नियम भी संविधान एवं शासन प्रबंध की व्यावहारिकता में महत्त्वपूर्ण होते हैं। उन सबको लेकर एक सांगोपांग एवं सर्वतोमुखी संवैधानिक विवेचन इस ग्रंथ में समाविष्ट है, जिसमें इतिहास है, राजनीति है, समाजशास्त्र है।
इस ग्रंथ की विशेषता है कि यह सरल, सुबोध एवं सुव्यवस्थित होने के साथ-साथ अध्ययनशील स्पष्टता, प्रामाणिकता एवं गुणवत्ता से भी संपन्न है। —डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवीSKU: n/a