सही आख्यान (True narrative)
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Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
1857 Ka Swatantraya Samar
-10%Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)1857 Ka Swatantraya Samar
Vinayak Damodar Savarkar
वीर सावरकर रचित ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ विश्व की पहली इतिहास पुस्तक है, जिसे प्रकाशन के पूर्व ही प्रतिबंधित होने का गौरव प्राप्त हुआ। इस पुस्तक को ही यह गौरव प्राप्त है कि सन् 1909 में इसके प्रथम गुप्त संस्करण के प्रकाशन से 1947 में इसके प्रथम खुले प्रकाशन तक के अड़तीस वर्ष लंबे कालखंड में इसके कितने ही गुप्त संस्करण अनेक भाषाओं में छपकर देश-विदेश में वितरित होते रहे। इस पुस्तक को छिपाकर भारत में लाना एक साहसपूर्ण क्रांति-कर्म बन गया। यह देशभक्त क्रांतिकारियों की ‘गीता’ बन गई। इसकी अलभ्य प्रति को कहीं से खोज पाना सौभाग्य माना जाता था। इसकी एक-एक प्रति गुप्त रूप से एक हाथ से दूसरे हाथ होती हुई अनेक अंत:करणों में क्रांति की ज्वाला सुलगा जाती थी।
पुस्तक के लेखन से पूर्व सावरकर के मन में अनेक प्रश्न थे—सन् 1857 का यथार्थ क्या है? क्या वह मात्र एक आकस्मिक सिपाही विद्रोह था? क्या उसके नेता अपने तुच्छ स्वार्थों की रक्षा के लिए अलग-अलग इस विद्रोह में कूद पड़े थे, या वे किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक सुनियोजित प्रयास था? यदि हाँ, तो उस योजना में किस-किसका मस्तिष्क कार्य कर रहा था? योजना का स्वरूप क्या था? क्या सन् 1857 एक बीता हुआ बंद अध्याय है या भविष्य के लिए प्रेरणादायी जीवंत यात्रा? भारत की भावी पीढ़ियों के लिए 1857 का संदेश क्या है? आदि-आदि। और उन्हीं ज्वलंत प्रश्नों की परिणति है प्रस्तुत ग्रंथ—‘1857 का स्वातंत्र्य समर’! इसमें तत्कालीन संपूर्ण भारत की सामाजिक व राजनीतिक स्थिति के वर्णन के साथ ही हाहाकार मचा देनेवाले रण-तांडव का भी सिलसिलेवार, हृदय-द्रावक व सप्रमाण वर्णन है। प्रत्येक भारतीय हेतु पठनीय व संग्रहणीय, अलभ्य कृति!SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Aarakshan Ka Dansh
Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Aarakshan Ka Dansh
आरक्षण का देश में विभिन्न संदर्भों, साक्ष्यों एवं वक्तव्यों के परिप्रेक्ष्य में प्रसिद्ध पत्रकार एवं चिंतक श्री अरुण शौरी ने यह बताने का प्रयास किया गया है कि आरक्षण को लेकर भारत की राजनीति किस दिशा में जा रही है। चूँकि आज राजनेता और राजनीतिक दल अपने कार्य-प्रदर्शन के आधार पर स्वयं को स्थापित नहीं कर पा रहे हैं; अत: इसके लिए उन सबने एक मानक तकनीक अपनाई है—कोई ऐसा बिंदु ढूँढ़ निकालना, कोई ऐसा दोष ढूँढ़ निकालना, जिससे यह दिखाया जा सके कि अमुक समूह या दल पिछड़ गया है—और फिर उस समूह के एकमात्र शुभचिंतक के रूप में, हिमायती के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करना। राजनेता कानून-पर-कानून पारित करते चले जाते हैं, लेकिन आरक्षण का दंश किसी भी रूप में कम होने का नाम नहीं लेता। जातिवादी राजनीति से अपना जीवन चलानेवाले राजनेताओं के लंबे-चौड़े और रटे-रटाए भाषणों से फैली पथभ्रष्टता और उसके लिए देश द्वारा चुकाई जा रही कीमत को बखूबी समझा जा सकता है।
इस पुस्तक का विषय आरक्षण पर चली आ रही सार्वजनिक बहस को सामने लाना है, जो विगत तीस वर्षों में अलग-अलग मोड़ और उतार-चढ़ाव लेती आ रही है। विषय को स्पष्ट करने एवं परिणामों को सामने लाने के लिए विद्वान् लेखक ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को माध्यम बनाया है। ‘आरक्षण’ का विषय अत्यंत चिंतनीय एवं विचारणीय है। इस बहस में सुधी पाठक भी शामिल हों तो इस पुस्तक का प्रकाशन सार्थक होगा।SKU: n/a -
Garuda Prakashan, Hindi Books, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Ambedkar Islam Aur Vampanth (PB)
-13%Garuda Prakashan, Hindi Books, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Ambedkar Islam Aur Vampanth (PB)
कभी मीम-भीम के नाम पर, तो कभी हिन्दू धर्म के विरोधी के तौर पर बाबा साहब अम्बेडकर को अपना बनाने को दोनों ही खेमे उत्सुक दिखाई देते हैं। पुस्तक में अम्बेडकर के विचारों को आज के परिप्रेक्ष्य में रख कर लेखक ने इन दोनों खेमों के कुत्सित तर्कों को बिंदुवार ध्वस्त किया है, और ये बताया है कि अम्बेडकर के विचार इस्लाम और वामपंथ, दोनों को लेकर कितने स्पष्ट थे और जिनसे ये स्थापित होता है कि वे इन दोनों के हिमायती तो बिलकुल भी नहीं थे और इसलिए इन दोनों खेमों द्वारा अम्बेडकर को अपना बताने के प्रयास एक छलावा हैं, जिससे वे आज की अपनी राजनीति का उल्लू सीधा करना चाहते हैं।
अम्बेडकर क्या सोचते थे इस्लाम और वामपंथ के बारे में? आज के इस्लामी और वामपंथी नेतृत्व में उन्हें अपना बनाने की होड़ के पीछे रंच मात्र भी सत्यता है क्या? मिथिलेश कुमार सिंह की पुस्तक इन सभी बातों को स्पष्टता से रखती है।
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EKA Prakashan, Westland Publisher, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
AMETHI SANGRAM (PB-Hindi)
EKA Prakashan, Westland Publisher, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)AMETHI SANGRAM (PB-Hindi)
पिछले कुछ दशकों में अमेठी की असली पहचान तो भुला ही दी गई। एक ऐसी भूमि, जो महर्षि च्यवन की तपस्थली, माता कालिकन देवी का धाम और राजा सोढ़ देव की वीरगाथाओं के साथ ही स्थानीय निवासियों की आस्था, विश्वास व श्रम से निर्मित होकर परिपूर्ण थी, उसने आजादी के बाद आगे बढ़ने की बजाय उलटी राह पकड़ ली। इस पर सियासत का एक कृत्रिम आवरण सा चढ़ गया और इसे एक राजनीतिक पर्यटन स्थल के रूप में तब्दील कर दिया गया।
अमेठी, कहने को तो वीवीआईपी क्षेत्र था, पर क्या स्थिति वाकई ऐसी थी? क्या इसे वह विशेष दर्जा प्राप्त हुआ था? 2014 के लोकसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार के रूप में स्मृति इरानी यहाँ पहुँचीं, तब अमेठी की पहचान का यह आवरण खुला।
अमेठी संग्रामउसी अनदेखे सच को उजागर करती है। इसमें स्मृति इरानी की वर्ष 2014 से वर्ष 2019 की संघर्ष यात्रा है। उनकी विजय के कारकों को समझने के बहाने भारतीय राजनीतिक दलों और नेताओं की कार्यशैली, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दूरदृष्टि, भाजपा की रणनीति, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता, गाँधी परिवार की ताकत का मिथक और क्षेत्रीय दलों के स्वार्थ का लेखा-जोखा है। इसके अलावा स्मृति इरानी की रणनीतिक, व्यवहारिक और राजनीतिक कार्यशैली को भी यह किताब सूक्ष्मता से खोलती है।
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Hindi Books, MANAV PRAKASHAN, Suggested Books, इतिहास, संतों का जीवन चरित व वाणियां, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)
Amit Kaal Rekha Adi Sankaracarya Aur Unka Avirbhav Kaal (507 – 475 Es. Pu.)
-20%Hindi Books, MANAV PRAKASHAN, Suggested Books, इतिहास, संतों का जीवन चरित व वाणियां, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)Amit Kaal Rekha Adi Sankaracarya Aur Unka Avirbhav Kaal (507 – 475 Es. Pu.)
पुरातात्विक मौद्रिक अभिलेखीय ऐतिहासिक आदि साक्ष्यों से परिपूर्ण शोध – ग्रंथ
एक अद्भुत पुस्तक मेरे हाथ लगी है। राम जन्मभूमि मामले में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सबसे अधिक समय तक बहस करने और स्कंद पुराण से श्रीराम जी के जन्म स्थल को पुरातात्विक साक्ष्यों से प्रमाणित करने वाले शंकराचार्य के वकील डॉ पी.एन.मिश्रा ने आदि शंकराचार्य की जन्मतिथि और काल निर्धारण के लिए अत्यंत श्रम साध्य कार्य करते हुए जो शोध प्रबंध लिखा है, वह ‘अमिट काल रेखा: आदि शंकराचार्य और उनका आविर्भाव काल'(507-475 ईसा पूर्व) इस पुस्तक के रूप में सामने है। यह पुस्तक दो बार में करीब दो दशक में लिखी गई है।
पहले मैं भी अंधेरे में था और सोचता था कि आदि शंकराचार्य का कार्य महत्वपूर्ण है, उनके जन्मतिथि से क्या लेना? परंतु जब पढ़ा तब पता लगा कि पश्चिमी इतिहासकारों व वितंडावादियों ने मूसा (यहूदी पैगंबर), ईसा(इसाई पैगंबर) और मोहम्मद(इस्लामी पैगंबर) के बाद आदि शंकर के जन्म की चाल क्यों चली? असल में उपनिषदों से एकेश्वरवाद (अद्वैत वेदांत दर्शन) को विश्व में सबसे पहले मजबूती से अदि शंकराचार्य ने स्थापित किया था। अपने दिग्विजय के दौरान उन्होंने शास्त्रार्थ से इसे संसार भर में स्थापित किया था। बाद में इसी एकेश्वरवाद के आधार पर मूसा, ईसा और मोहम्मद ने अपने अपने पंथों की रचना की।
आदि शंकराचार्य के जन्म की तिथि को 1000 साल कम करते ही, अब्राहमिकों की अवधारणा प्रथम हो गई और पश्चिमी इतिहासकारों ने यह वितंडा फैला दिया कि आदि शंकराचार्य ने अब्राहमिकों द्वारा स्थापित एकेश्वरवाद के विस्तार को देखते हुए भारतीयों को एकेश्वरवाद की ओर ले जाने का प्रयास किया!
अर्थात् आदि शंकर के जन्म को 1000 साल घटाते ही अब्राहमिकों को एकेश्वरवाद का क्रेडिट चला गया और सनातन वेदांत की अवधारणा लोगों को विस्मृत हो गई।
पश्चिम की इस साजिश को न समझते हुए कई भारतीय इतिहासकारों व विद्वानों ने भी यही वितंडा फैलाया। मैं स्वयं जनसंघ के संस्थापकों में एक दीन दयाल उपाध्याय की आदि शंकराचार्य पर लिखी पुस्तक को पढ़ कर शंकराचार्य के जन्म के समय केरल में इस्लाम के आगमन पर कंस्टीट्यूशन क्लब में मूर्खतापूर्ण भाषण दे चुका हूं। पी.एन. मिश्रा के इस शोध को पढ़कर मुझे अपनी मूर्खता पर आत्मग्लानि है। और दुख है कि लेफ्ट-राईट दोनों के इतिहासकार एक ही बात दोहराते हैं, बस उनके कहने का तरीका अलग होता है और उनके काल गणना में बस 100-200 वर्ष का अंतर होता है!
पी.एन.मिश्रा जी की इस पुस्तक से बुद्ध संबंधित जो बयान पुरी के शंकराचार्य जी देते हैं, उसकी भी पुष्टि हो जाती है। पुराणों में भगवान विष्णु के अवतार के रूप में आए पूर्व बुद्ध, शुद्धोधन पुत्र सिद्दार्थ गौतम बुद्ध से बहुत पहले थे। सिद्धार्थ बुद्ध से पहले कई और बुद्ध हो चुके हैं, जिनकी पूरी व्याख्या इस पुस्तक में है और यह बौद्ध ग्रंथों में भी है, बस हम सब ने ध्यान नहीं दिया था।
इस पुस्तक से आदि शंकराचार्य के समय राजा सुधन्वा की वंशावली भी मिल गई है। राजा सुधन्वा ने आदि शंकराचार्य के साथ सेना लेकर पुनः सनातन धर्म की स्थापना की थी।
इस पुस्तक से दो प्राचीन नगरों की खोज भी स्थापित होती है।
यह पूरी पुस्तक पुरातात्विक, मौद्रिक, अभिलेखीय, ताम्रपत्र और ऐतिहासिक साक्ष्यों पर आधारित शोध प्रबंध है।
दुख है कि यह पुस्तक अब नहीं मिलती। एक तो यह बहुत मोटी ग्रंथ है, दूसरा इसका मूल्य ₹2500 है। अतः प्रकाशक छापते ही नहीं। प्रकाशक के पास केवल तीन कॉपी बची थी, मैंने मूल्य भेजकर एक कॉपी अपने लिए मंगवा ली।
उनसे बात की कि यदि इच्छुक शोधार्थी या विद्वान पाठक यह पुस्तक मंगवाना चाहें तो कैसे मिलेगा? उनका कहना है कि 10 से अधिक लोगों की मांग यदि आप भेज दें तो डिजिटल प्रिंट करवा कर आपको भेज दूंगा। अतः जिनको वास्तव में आदि शंकराचार्य से जुड़ी वास्तविकता को जानना-समझना हो तो वह 8826291284 पर केवल WhatsApp कर दें। मूल्य न भेजें। 10 से अधिक लोगों का आर्डर यदि आ गया तो मैं मंगवाने का प्रयत्न करूंगा।
आगे इस पुस्तक की महत्वपूर्ण स्थापनाओं को छोटे-छोटे पोस्ट के रूप में भी मैं आपको देता रहूंगा। धन्यवाद।
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Hindi Books, Sasta Sahitya Mandal, रामायण/रामकथा, सही आख्यान (True narrative)
APNE APNE RAM
भारतीय वाङ्मय के आधिकारिक विद्वान श्री भगवान सिंह की अनुपम कृति है अपने-अपने राम’। राम का चरित्र भारतीय साहित्य में रमा हुआ है। उनके व्यक्तित्व की यह विशेषता है कि विभिन्न भाषाओं में अब तक राम को आधार बनाकर हजारों रचनाएँ लिखी जा चुकी हैं। इसके बावजूद रचनात्मक स्रोत रचनाकारों के लिए कम नहीं हुआ है। हिंदी में तुलसीदास से लेकर निराला तक और उसके बाद के रचनाकारों ने भी राम को आधार बनाकर महत्त्वपूर्ण कृति का सृजन किया। इस कड़ी में यह महाकाव्यात्मक औपन्यासिक रचना स्वयं में महान रचना स्थापित करता है।
इस पुस्तक के प्रकाशन के साथ ही पाठकों और समीक्षकों ने इसे हाथों-हाथ लिया। प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह ने विश्व की श्रेष्ठतम कृति कहा और यह भी माना कि इसमें कोई दोष नहीं है। ‘हंस’ के संपादक राजेंद्र यादव ने इसकी समीक्षा प्रमुखता से अपनी पत्रिका में छापी। इसकी लोकप्रियता बहुतों के लिए ईष्र्या का केंद्र भी बनी। सस्ता साहित्य मण्डल के लिए यह गौरव की बात है कि सभ्यता विमर्श की अनन्य रचना ‘ अपने-अपने राम’ का प्रकाशन वह करने जा रहा है। हमें पूरा विश्वास है कि अधिक-से- ‘अधिक पाठकों के बीच यह रचना मण्डल के माध्यम से पहुँचेगी, साथ ही ‘लोग अपने स्वजनों को उपहार के रूप में यह पुस्तक भेंट करेंगे।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Apne Kurukshetra Mein Akela (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Apne Kurukshetra Mein Akela (PB)
जीवन एक कुरुक्षेत्र है, जहाँ निरंतर कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध चलता रहता है। पांडवों की अवश्यंभावी जीत सदा ही दुर्धर्ष संघर्षों के पश्चात् ही प्राप्त होती है । यह संघर्ष तामसी और सात्त्विक प्रवृत्तियों के बीच, अच्छे और बुरे के बीच, शोषक और शोषित के बीच, गाँव और शहर के बीच सहित विभिन्न रूपों में निरंतर जारी है। महत्त्वपूर्ण यह है कि हर व्यक्ति अपने जीवन के महाभारत में अकेला होता है, यह युद्ध उसे स्वयं ही लड़ना होता है। अयोध्यानाथ मिश्र के इस कहानी- संकलन ‘अपने कुरुक्षेत्र में अकेला’ की कहानियों में जीवन और समाज की विषमताओं और उनके विरुद्ध संघर्ष की व्यंजना को जनपदीय सरोकारों और रचनात्मक विवेक के साथ बहुत ही प्रतिबद्धता से दर्ज किया गया है ।
अयोध्यानाथ मिश्र अपनी कहानियों में लोक में प्रचलित उक्तियों एवं मुहावरों का बहुत ही सुंदरता से प्रयोग करते हैं। उनकी कहानियाँ भोजपुरी अंचल में व्याप्त देशज व्यवहार एवं मनोजगत् का भूगोल रचती हैं। इनकी कहानियों में जो जीवन का प्रवाह, सौंदर्य, दुविधाएँ, नैतिक संघर्ष एवं सुख-दुःख का भाव – संसार सृजित होता है, वह अत्यंत प्रामाणिक एवं जीवनानुभव से ओतप्रोत प्रतीत होता है। इस संग्रह की कहानियाँ पाठकों का प्यार पाएँगी ऐसी मुझे आशा है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Athashri Vedavyasa Katha (HB)
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Athashri Vedavyasa Katha (HB)
Athashri Vedavyasa Katha “अथ श्री वेदव्यास कथा” Book In Hindi – Omprakash Pandey
महर्षि व्यास भारतीय वाङ्मय के शिखर प्रणेता हैं। उनकी प्रसिद्धि कृष्ण द्वैपायन, वेदव्यास और महर्षि पाराशर के रूप में भी है। उन्होंने चारों वेदों का वर्गीकरण, महाभारत जैसी शतसाहस्री संहिता, अष्टादश पुराणों और वेदांत के ब्रह्मसूत्रों का भी प्रणयन किया। उन्होंने कुरुवंश को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। पांडवों और कुरुओं, दोनों को ही समय-समय पर सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। द्वापर दुविधा का युग था। अपने युग के दिग्भ्रमित समाज को उन्होंने वासुदेव कृष्ण के साथ सही दिशा देने का भगीरथ प्रयत्न किया। कुरुक्षेत्र के रणस्थल पर श्रीकृष्ण के श्रीमुख से उपदिष्ट गीता का तत्वज्ञान महाभारत के अंतर्गत होने के कारण ही अभी तक हमें उपलब्ध है। इसका श्रेय भी द्वैपायन व्यास को ही है। दशावतार की अवधारणा भी वेदव्यास के प्रयत्न से ही सुरक्षित है। भगवान् श्रीकृष्ण की संपूर्ण जीवन-कथा और विचारराशि को व्यास ने ही श्रीमद्भागवत के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाने का भगीरथ प्रयत्न किया है। श्रीकृष्ण यदि अपने युग के निर्माता हैं, तो व्यास भी उनके समानांतर ही युगद्रष्टा हैं। द्वापर की यह सबसे बड़ी उपलब्ध है, जो उसे वासुदेव कृष्ण और कृष्ण द्वैपायन के रूप में दो कृष्ण प्राहृश्वत हुए। महाभारत और पुराणों में भगवान् श्रीकृष्ण की कथा तो विस्तार से मिल जाती है, लेकिन व्यासजी ने अपने विषय में कुछ भी नहीं कहा। व्यासजी के जीवन-विषय में जनसामान्य की अजस्र जिज्ञासा आज भी है, जिसे ध्यान में रखकर ही उपलब्ध साक्ष्यों और सूत्रों को सँजोकर इस ‘अथश्री वेदव्यास कथा’ का प्रणयन किया गया है।
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Suruchi Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Aur Desh Bat Gaya
Suruchi Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Aur Desh Bat Gaya
अंग्रेजों द्वारा भारत में सत्ता-हस्तान्तरण, देश-विभाजन और स्वाधीनता-संघर्ष तथा 1947 से पूर्व की मुस्लिम समस्या पर यद्यपि बहुत कुछ लिखा गया है, फिर भी विभाजन की दुर्भाग्यपूर्ण घटना और उससे सम्बन्धित अनेक प्रश्नों का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है। देश-विभाजन की उस विकराल विभीषिका में लाखों लोगों ने अपने प्राण गवाएँ, सगे-सम्बन्धी, परिवार-जन खोये। जान-माल के इस भीषण संहार, विनाशलीला, दुव्र्यवहार और करोड़ों लोगों को उनकी जन्म-भूमि से विस्थापित करने का मानव इतिहास में दूसरा दृष्टान्त नहीं मिलता।
जागरूक, अध्ययनशील और विचारवान् राष्ट्रसेवी व लेखक श्री हो. वे. शेषाद्रि ने इस पुस्तक में देश की इस त्रासदी का गहन अध्ययन व आकलन के आधार पर तथ्यपरक एवं यथार्थ विवेचन प्रस्तुत किया है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सही आख्यान (True narrative)
AYODHYA KA ITIHAS (Rai Bahadur Lala Sitaram)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सही आख्यान (True narrative)AYODHYA KA ITIHAS (Rai Bahadur Lala Sitaram)
लाला सीताराम ने 1932 में अयोध्या का इतिहास लिखा था। इनके पूर्वज राम के अनन्य भक्त थे। इसलिए जौनपुर छोड़ अयोध्या नगरी में बस गए थे। लाला सीताराम ने अयोध्या में अपने घर के एक कमरे में रामायण मंदिर भी बना रखा था। यहाँ रहते हुए उन्होंने ‘अयोध्या का इतिहास’ लिखना प्रारंभ किया। वेद से लेकर पुराणों में अयोध्या का उल्लेख तो मिलता है लेकिन अयोध्या के इतिहास पर कोई समग्र दृष्टि डालती पुस्तक का अभाव लगातार उन्हें यह इतिहास लिखने के लिए प्रेरित करता रहा। लाला सीताराम ने गहन शोध कर वेद काल से लेकर ब्रिटिश काल के अयोध्या पर प्रकाश डाला है। अयोध्या न सिर्फ हिंदुओं का एक पवित्रतम तीर्थ है वरन् जैन, बौद्ध और सिख के लिए भी उतना ही पावन और श्रद्धा का केंद्र है।
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Hindi Books, Hindi Sahitya Sadan, Pre Order Upcoming Books, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)
Balraj Madhok: Jindagi Ka Safar (Sampoorna)
-20%Hindi Books, Hindi Sahitya Sadan, Pre Order Upcoming Books, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)Balraj Madhok: Jindagi Ka Safar (Sampoorna)
नोट:- कृपया आर्डर करने से पहले ध्यान दें कि इस पुस्तक का अभी 20% छूट के साथ प्री-आर्डर लिया जा रहा है। जिनके भी प्री आर्डर होंगे उन सभी को यह पुस्तक नवंबर(2024) के पहले सप्ताह तक पहुंचा दिया जाएग। धन्यवादप्रोफेसर बलराज मधोक (२५ फ़रवरी १९२० – ०२ मई २०१६) भारत के एक राष्ट्रवादी विचारक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक, जम्मू-कश्मीर प्रजा परिषद के संस्थापक और मन्त्री, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्थापक, भारतीय जन संघ के एक संस्थापक और अध्यक्ष थे। वे उन्नीस सौ साठ के दशक के वरिष्ट राजनेता थे। वे संसद (लोकसभा) के दो बार सदस्य रह चुके हैं। वे गणमान्य शिक्षाविद, विचारक, इतिहासवेत्ता, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक भी थे। न वह खरी-खरी बोलने में हिचकते थे न किसी के सामने अपनी बात रखने में। किसी दौर में वो भारत की दक्षिणपन्थी राजनीति के सिरमौर हुआ करते थे। १९६० के दशक में उन्होने गौहत्या विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व किया।
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English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Beyond 370 : Jammu and Kashmir Spreads its Wings
-10%English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Beyond 370 : Jammu and Kashmir Spreads its Wings
Beyond 370: Jammu and Kashmir spreads its Wings’ is a comprehensive book that delves into the changes post-abrogation of Article 370 in 2019 and its profound impact on the development and progress of Jammu and Kashmir. The book offers an in-depth exploration of the region’s transformative journey as it navigates a new path towards growth and empowerment.
Through meticulous research and on-the-ground accounts, ‘Beyond 370’ delves into the multi- faceted aspects of development in Jammu and Kashmir. It highlights numerous government initiatives and policies aimed at fostering economic growth, infrastructural development, and job creation. The book also assesses the impact of these measures on the lives of the region’s residents, exploring the socio-economic changes that have unfolded.
‘Beyond 370’ is a balanced and insightful account that provides readers with a comprehensive understanding of how Jammu and Kashmir has progressed in the wake of Article 370’s abrogation. It acknowledges the complexities and aspirations of the region while offering a glimpse into the transformative changes that have propelled Jammu and Kashmir towards a promising future.
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Vitasta Publishing, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Bhagva Aatank ek shadyantra
-10%Vitasta Publishing, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Bhagva Aatank ek shadyantra
What role did ministers like shivraj Patil, br Chidambaram, to arouse antulay, digvijay Singh and officials like chitkala zutshi, Dharmendra Sharma, Hemant karkare, RV Raju play in the Hindu terror narrative. Here is a version of a man who almost was taken captive and was to be traded for release of ajax kasab, but saved by sheer Providence. In his insider account, author rvs Mani discloses how the country internal security establishment functioned in the period of 2004-2014 when India faced some of the bloodiest terrorist carnage. This former home Ministry official posted in the internal security division between 2006-2010 poses several questions which the nation should seek answers to.
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English Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Bhakti And The Bhakti Movement: A New Perspective
English Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Bhakti And The Bhakti Movement: A New Perspective
This book makes a total departure from some well-established notions about bhakti and the Bhakti movement. It questions and rejects the current academic definition of bhakti and the portrayals of the Bhakti movement in the light of that definition. Trying to recapture the generic meaning of the term bhakti, the author postulates that bhakti by itself does not suggest any ideational or doctrinaire position. According to her, a restricted and erroneous definition of bhakti has served as the substratum for all theorisations about the Bhakti movement, when taken as a whole. What is reckoned as the Bhakti movement, she states, is an amalgam of a number of devotional movements of a divergent nature. A monolithic view of these can be taken only if their common denominator bhakti is understood in its generic sense. Not otherwise. In short, the author has called into question the whole conceptual framework and the basic terms of reference used hitherto for the study of bhakti and the Bhakti movement. This is significant since they have had the sanction of more than one hundred years of scholarship, and have not been questioned till now. She has done so on the strength of her being able to trace back the origins of the errors she has underlined. The author has tried to establish the fact that the accepted academic definition of bhakti is a modern construction; and that it was artificially formulated by certain Western Indologists of the nineteenth century with the aid of criteria which had no relevance in the context of Hinduism. The process of its formulation has been examined historiographically in this critique to show how it had gradually taken shape between 1846 and 1909. The reasons for its subsequent incorporation in modern Indian scholarship have also been made clear. Adopting an interdisciplinary approach in this book, Dr. Sharma has grappled with many vital issues related to the Bhakti theme. It is hoped that this erudite work would serve as a landmark in the study of bhakti and the Bhakti movement.
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Garuda Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Bharat Akhandan (भारत अखण्डन)
-10%Garuda Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Bharat Akhandan (भारत अखण्डन)
‘भारत अखण्डन: अनुच्छेद 370 और नागरिकता संशोधन अधिनियम पर लिए गए निर्णय’ विभाजन के कारणों पर डॉ बी आर अम्बेडकर के विश्लेषण, तथा ‘पृथक राष्ट्र’ के इस्लामी मतवादीय सिद्धांत (जो सफल हुआ) – कि मुसलमान किसी गैर-मुसलमान शासन में अल्पसंख्यक की भाँति रहना कदापि स्वीकार नहीं करते – इन बातों का आधार लेते हुए आगे बढ़ती है। एक विद्वत्तापूर्ण विश्लेषण करते हुए श्री दीक्षित सीएए-विरोधी प्रदर्शनों और तदन्तर हुए दंगों की जड़ तक जाते हैं, जिनका प्रारूप वही था जिसे डॉ अम्बेडकर ने “राजनीति की गैंगस्टर पद्धति” की संज्ञा दी थी। यह पुस्तक ‘शांतिप्रिय सूफियों’, और यह कि मुसलमान भारत में इस कारण रुके क्योंकि उन्होंने ‘पंथनिरपेक्ष भारत’ की अवधारणा को चुना था, इन राजनैतिक लीपा-पोती से परिपूर्ण मिथकों को ध्वस्त करती है।
अनुच्छेद 370 के लिए श्री दीक्षित कश्मीर के इतिहास को तबसे खँगालते हैं, जब सुल्तान सिकंदर बुतशिकन (मूर्ति-भंजक) के अधीन कश्मीर से पहला बहिष्करण हुआ, और धरती के इस मनोहर स्वर्ग का इस्लामीकरण प्रारम्भ हुआ। 1989-90 का कश्मीरी हिन्दू बहिष्करण वास्तव में सातवाँ था।
यह पुस्तक उस इस्लामी रणनीति के अंतस में झाँकती है, जो निरन्तर जिहाद में विश्वास करती है, समाज को अर्ध-सत्य बता कर उन्हें दिग्भ्रमित करती है, ताकि उसका अंतिम लक्ष्य, जो कि दार-उल-इस्लाम बनाना है, प्राप्त किया जा सके।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Bharat Ka Arthik Itihas
भारत का आर्थिक इतिहास (1200-1947)
मुस्लिम काल से लेकर औपनिवेशिक कालीन भारत (1200-1947) के आर्थिक इतिहास पर हिन्दी में लिखी गयी यह नवीनतम पुस्तक है। accordingly पुस्तक की विषय वस्तु तीन अध्यायों, सल्तनत काल, मुगल काल तथा औपनिवेशिक काल में विभक्त है। भारत के आर्थिक इतिहास पर समग्र रूप से लिखी गयी पुस्तक का अभाव है। पुस्तक के लेखन का उद्देश्य विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं में हिन्दी माध्यम से अध्ययन करने वाले छात्रों को भारत के आर्थिक इतिहास पर पाठ्यक्रमानुसार विषय सामाग्री उपलब्ध कराना है। वस्तुतः यह पुस्तक मुस्लिम काल से ब्रिटिश राज तक की आर्थिक नीतियों और आम जनता पर पड़ने वाले प्रभावों के विभिन्न पहलुओं को सही रूप में समझने में सहायक सिद्ध होगी। Bharat Ka Arthik Itihas
surely लेखक ने जिन विषयों को विवेचन के लिए चुना है, उनमें मुस्लिम शासकों की भू-राजस्व नीति, कृषि व्यवस्था एवं किसानों की स्थिति, उद्योग धन्धे तथा व्यापार एवं वाणिज्य, मुद्रा नीति और बैंकिंग व्यवस्था शामिल है। इसी प्रकार ब्रिटिश शासन काल की भू-राजस्व व्यवस्था, कृषि की प्रवृत्तियाँ, व्यवसायिक संरचना, सिंचाई, अकाल, ऋणग्रस्तता, कृषि का व्यवसायीकरण, आयात एवं निर्यात, बाह्य व्यापार, ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन का प्रभाव तथा भारत में वि-औद्योगीकरण आदि से सम्बन्धित औपनिवेशिक नीति को सही परिप्रेक्ष में रखने का प्रयास किया गया है।
all in all पुस्तक की भाषा अत्यन्त सरल है जो इतिहास के विद्यार्थियों एवं इतिहास में रूचि रखने वाले पाठकों के लिए ज्ञानवर्धक तथा सामाजिक-आर्थिक विकास को व्यापक आधार पर समझने में अत्यन्त सहायक सिद्ध होगी।
Bharat Ka Arthik Itihas (Economic History of India)
इतिहास के लिए कोई विषय बस्तु न तो उसके गौरव के प्रतिकूल है और न ही कोई अध्ययन क्षेत्र उसके ज्ञान क्षेत्र के बाहर होता है। जनता के समस्त कृतित्व एवं उत्पीड़न इतिहास की विषय बस्तु होती है। आर्थिक इतिहास भी अध्ययन का कोई अलग विषय नहीं अपितु इतिहास से सम्बद्ध किसी देश के इतिहास के उस कालखण्ड के राजनीतिक- सामाजिक ढांचे के अन्तर्गत विद्यमान अर्न्तसम्बन्धों द्वारा रचा जाता है जिसमें जनता के आर्थिक क्रियाकलापों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Bharat Ke Mahan Swatantrata Senani
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“जिन लोगों ने देश को स्वाधीन कराने का स्वप्न देखा, इसकी कल्पना की और दृढ निश्चय कर अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया, उनका पुण्य स्मरण करना हमारा पुनीत कर्तव्य है। उनके बलिदान को आज की युवा पीढ़ी तक पहुँचाना हमारा परम धर्म है। जिस आजादी की हवा में हम साँस ले पा रहे हैं, अपने लिए, अपने घर-परिवार के लिए कुछ कर पा रहे हैं, इसमें कहीं-न-कहीं उन सभी के बलिदान की सुगंध है। इसलिए इन हुतात्माओं को कोटि-कोटि वंदन- अभिनंदन !
शहीदों से जुड़े स्थानों पर जाना, उनको समय-समय पर याद करना व उनको श्रद्धांजलि देना, यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा होना चाहिए। आनेवाली पीढ़ियों को अपने गौरवमयी अतीत व हमारे शूरवीरों के महान् जीवन से परिचय करवाना हम सबका धर्म बनता है।
राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करनेवाले हुतात्माओं की एक लंबी श्रृंखला है। उनमें से 50 अमर सपूतों के प्रेरणाप्रद जीवन से पाठकों को परिचित कराने का यह उपक्रम है, जो निश्चित रूप से हर भारतीय को पढ़ना ही चाहिए।”
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