संतों का जीवन चरित व वाणियां
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Hindi Books, Lokbharti Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Aadi Shankaracharya : Jeevan Aur Darshan (HB)
-17%Hindi Books, Lokbharti Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांAadi Shankaracharya : Jeevan Aur Darshan (HB)
आठवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में जैन धर्म, बौद्ध धर्म तथा अन्य अनेक सम्प्रदायों और मत-मतान्तरों का बोलबाला था। जैन धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म अधिक शक्तिशाली सिद्ध हुआ। जैन धर्म को खुलकर चुनौती दी। जैन धर्म भी वैदिक धर्म का कम विरोधी नहीं था। बौद्ध और जैन धर्मों के अतिरिक्त सातवीं-आठवीं शताब्दी में अन्य धार्मिक सम्प्रदाय भी प्रचलित हो गए थे। उनमें भागवत, कपिल, लोकायतिक (चार्वाक), काणाडी, पौराणिक, ऐश्वर, कारणिक, कारंधमिन (धातुवादी), सप्ततान्त्व (मीमांसक), शाब्दिक (वैयाकरण), पांचेरात्रिक प्रमुख थे। ये सभी सम्प्रदाय वेद-विरोधक और श्रुति-निन्दक थे। ऐसी विषम और भयावह स्थिति में धार्मिक जगत में किसी ऐसे उत्कट त्यागी, निस्पृह, वीतराग, धुरंधर विद्वान, तपोनिष्ठ, उदार, सर्वगुण-संपन्न अवतारी पुरुष की महान आवश्यकता थी जो धर्म की विशृंखलित कड़ियों को एकाकार करके उसे सुदृढ़ बनाता और धर्म का वास्तविक स्वरूप सबके सम्मुख प्रस्तुत करता। मध्वाचार्य ने शंकराचार्य के अवतार का वर्णन विस्तार के साथ किया है। उसका सारांश इस प्रकार है—”भगवती भूदेवी और समस्त देवताओं ने जगत-सृष्टा ब्रह्मा के साथ कैलाश पर्वत पर जाकर पिनाकपाणी आशुतोष भगवान शंकर की आर्त्त वाणी में करबद्ध स्तुति की। तब भगवान शंकर उन लोगों के सम्मुख अत्यन्त तेजस्वी रूप में प्रकट हुए और उन्हें इस प्रकार आश्वासन दिया—‘हे देवगण, मैं समस्त घटनाओं से भली-भाँति विज्ञ हूँ। अतः मैं मनुष्य का रूप धारण कर आप लोगों की मनोकामना पूर्ण करूँगा। दुष्टाचार विनाश के लिए तथा धर्म के स्थापन के लिए, ब्रह्मसूत्र के तात्पर्य निर्णायक भाष्य की रचना कर, अज्ञानमूलक द्वैतरूपी अन्धकार को दूर करने के लिए मध्यकालीन सूर्य की भाँति चार शिष्यों के साथ चार भुजाओं से युक्त विष्णु के समान इस भूतल पर यतियों में श्रेष्ठ शंकर नाम से अवतरित होऊँगा। मेरे समान ही आप लोग भी मनुष्य-शरीर धारण कर मेरे कार्य में हाथ बँटाइए।’ इतना कहकर और देवताओं को अन्य आवश्यक निर्देश देकर भगवान शंकर अन्तर्धान हो गए!” आचार्य शंकर का भारतीय दार्शनिकों में अप्रतिम स्थान है। पाश्चात्य दार्शनिक भी उन्हें श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं और उनकी प्रतिभा के सम्मुख नतमस्तक हैं। उनके बाल्यकाल से देहलीला सँवरण तक की घटनाएँ चमत्कारिक एवं दैवी शक्ति से परिपूर्ण हैं। इसलिए उन्हें भगवान आशुतोष शंकर का अवतार माना जाता है। उन्होंने वैदिक धर्म का पुनरुद्धार किया और उसके वास्तविक स्वरूप को सही अर्थ में समझाने की चेष्टा की। इस महान प्रयास में उन्हें तत्कालीन धर्मों और सम्प्रदायों से लोहा लेना पड़ा। शैवों, शाक्तों, वैष्णवों, बौद्धों, जैनों एवं कापालिकों आदि से शास्त्रार्थ करना पड़ा। अपनी असाधारण प्रतिभा और अकाट्य तर्कों द्वारा उन्हें पराजित किया। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण में चार शंकराचार्य को अभिषिक्त कर भारतीय वैदिक संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन का उत्तरदायित्व उन्हें सौंपा। उन्होंने शैवों, शाक्तों एवं वैष्णवों को एक सूत्र में बाँधा। इससे वैदिक धर्म अत्यन्त शक्तिशाली हो गया। मात्र बत्तीस वर्ष की अल्पायु में उन्होंने अद्वितीय आश्चर्यजनक कार्य किए।
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Hindi Books, Rajkamal Prakashan, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Aadi Shankaracharya Jeevan Aur Darshan (PB)
-10%Hindi Books, Rajkamal Prakashan, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांAadi Shankaracharya Jeevan Aur Darshan (PB)
अपने अनुयायियों को मृत और आचार्य शंकर के शिष्यों और भक्तों को सुरक्षित देखकर क्रकच क्रोध से आगबबूला हो गया। उसी अवस्था में वह यतीन्द्र शंकर के समक्ष उपस्थित होकर कहने लगा, ‘‘हे नास्तिक, अब मेरी शक्ति का प्रभाव देखो। तुमने तो दुष्कर्म किये हैं, उनका फल भोगो।’’ इतना कहकर वह हाथ में मनुष्य की खोपड़ी लेकर आँख मूँदकर ध्यानमुद्रा में खड़ा हो गया। वह भैरव-तंत्र का प्रकाण्ड पंडित था। उसकी इस क्रिया के प्रभाव से रिक्त खोपड़ी मदिरा से भर गई। उसने आधी पी ली और पुनः ध्यानमुद्रा में स्थित हुआ। इतने में ही क्रकच के सम्मुख नरमुण्डों की माला पहने, हाथ में त्रिशूल लिये, विकट अट्टहास और गर्जन करते हुए, आग की लपट के समान लाल-लाल जटावाले महाकापाली भैरव प्रकट हो गये।
क्रकच ने अपने इष्टदेव को देखकर प्रसन्न भाव से प्रार्थना की, ‘‘हे भगवन्, आपके भक्तों से द्रोह रखने वाले इस शंकर को अपनी दृष्टिमात्र से भस्म कर दीजिए।’’ क्रकच की प्रार्थना सुनकर महाकापाली ने उत्तर दिया, ‘‘अरे दुष्ट, शंकर तो मेरे अवतार हैं। इनका वध करके, क्या मैं अपना ही वध करूँ? क्या तुम मेरे शरीर से द्रोह करते हो?’’ ऐसा कहकर भैरव महाकापाली ने क्रोध से क्रकच का सिर अपने त्रिशूल से काट दिया।SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Adhunik Bharat Ke Yug Pravartak Sant (PB)
Vishwavidyalaya Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांAdhunik Bharat Ke Yug Pravartak Sant (PB)
योग, साधना, तप, संयम इन भावों को जिन महान संतों ने अपने माध्यम से चरितार्थ ही नहीं किया; बल्कि दर्शन को एक नयी दिशा भी दी उन संन्यासियों में अग्रणी रामकृष्ण परमहंस देव थे। उनके पश्चात् यह शृंखला स्वामी विवेकानन्द, स्वामी रामतीर्थ, महॢष रमण, श्री अरविन्द, स्वामी रामानन्द के माध्यम से निरन्तर भारतीय संस्कृति को सम्मानित करती रही है, साथ ही भारतीय दर्शन को दिव्य अनुभूतिपरक दर्शन का बाना पहनाकर संसार में अग्रणी स्थान प्रदान करती रही है। आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो पुन: हमारा देश विपत्ति के भँवर में फँसा इन्हीं योगियों की ओर देख रहा है। इन्हीं योगियों की जीवन दृष्टि, इनके विचार ही मृतप्राय हो रही भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवन प्रदान कर सकते हैं। हम भूल चुके हैं हमारे देश की मिट्टïी में, जलवायु में अभी भी योग और साधना की शक्ति है। जिसके प्रति जागरूक होकर व्यक्ति अपनी चेतना को जागृत कर सकता है। भ्रमपूर्ण आसक्तियों पर, मन पर, शरीर पर अंकुश लगाकर जीवन के शाश्वत आनन्द की ओर अग्रसर हो सकता है। यह पुस्तक उन सभी दुर्लभ विचारों को प्रस्तुत करने की चेष्टा करती है जो व्यक्ति को दिशा प्रदान कर सकते हैं। इन योगियों की विशिष्टता यही है कि योग साधना एवं संन्यास का रास्ता अपनाकर भी इन्होंने निरन्तर मानव जाति के बीच रहकर बड़ी सरलता से, व्यक्ति की आत्म चेतना को जगाने का प्रयास किया है।
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Hindi Books, MANAV PRAKASHAN, Suggested Books, इतिहास, संतों का जीवन चरित व वाणियां, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)
Amit Kaal Rekha Adi Sankaracarya Aur Unka Avirbhav Kaal (507 – 475 Es. Pu.)
-20%Hindi Books, MANAV PRAKASHAN, Suggested Books, इतिहास, संतों का जीवन चरित व वाणियां, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)Amit Kaal Rekha Adi Sankaracarya Aur Unka Avirbhav Kaal (507 – 475 Es. Pu.)
पुरातात्विक मौद्रिक अभिलेखीय ऐतिहासिक आदि साक्ष्यों से परिपूर्ण शोध – ग्रंथ
एक अद्भुत पुस्तक मेरे हाथ लगी है। राम जन्मभूमि मामले में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सबसे अधिक समय तक बहस करने और स्कंद पुराण से श्रीराम जी के जन्म स्थल को पुरातात्विक साक्ष्यों से प्रमाणित करने वाले शंकराचार्य के वकील डॉ पी.एन.मिश्रा ने आदि शंकराचार्य की जन्मतिथि और काल निर्धारण के लिए अत्यंत श्रम साध्य कार्य करते हुए जो शोध प्रबंध लिखा है, वह ‘अमिट काल रेखा: आदि शंकराचार्य और उनका आविर्भाव काल'(507-475 ईसा पूर्व) इस पुस्तक के रूप में सामने है। यह पुस्तक दो बार में करीब दो दशक में लिखी गई है।
पहले मैं भी अंधेरे में था और सोचता था कि आदि शंकराचार्य का कार्य महत्वपूर्ण है, उनके जन्मतिथि से क्या लेना? परंतु जब पढ़ा तब पता लगा कि पश्चिमी इतिहासकारों व वितंडावादियों ने मूसा (यहूदी पैगंबर), ईसा(इसाई पैगंबर) और मोहम्मद(इस्लामी पैगंबर) के बाद आदि शंकर के जन्म की चाल क्यों चली? असल में उपनिषदों से एकेश्वरवाद (अद्वैत वेदांत दर्शन) को विश्व में सबसे पहले मजबूती से अदि शंकराचार्य ने स्थापित किया था। अपने दिग्विजय के दौरान उन्होंने शास्त्रार्थ से इसे संसार भर में स्थापित किया था। बाद में इसी एकेश्वरवाद के आधार पर मूसा, ईसा और मोहम्मद ने अपने अपने पंथों की रचना की।
आदि शंकराचार्य के जन्म की तिथि को 1000 साल कम करते ही, अब्राहमिकों की अवधारणा प्रथम हो गई और पश्चिमी इतिहासकारों ने यह वितंडा फैला दिया कि आदि शंकराचार्य ने अब्राहमिकों द्वारा स्थापित एकेश्वरवाद के विस्तार को देखते हुए भारतीयों को एकेश्वरवाद की ओर ले जाने का प्रयास किया!
अर्थात् आदि शंकर के जन्म को 1000 साल घटाते ही अब्राहमिकों को एकेश्वरवाद का क्रेडिट चला गया और सनातन वेदांत की अवधारणा लोगों को विस्मृत हो गई।
पश्चिम की इस साजिश को न समझते हुए कई भारतीय इतिहासकारों व विद्वानों ने भी यही वितंडा फैलाया। मैं स्वयं जनसंघ के संस्थापकों में एक दीन दयाल उपाध्याय की आदि शंकराचार्य पर लिखी पुस्तक को पढ़ कर शंकराचार्य के जन्म के समय केरल में इस्लाम के आगमन पर कंस्टीट्यूशन क्लब में मूर्खतापूर्ण भाषण दे चुका हूं। पी.एन. मिश्रा के इस शोध को पढ़कर मुझे अपनी मूर्खता पर आत्मग्लानि है। और दुख है कि लेफ्ट-राईट दोनों के इतिहासकार एक ही बात दोहराते हैं, बस उनके कहने का तरीका अलग होता है और उनके काल गणना में बस 100-200 वर्ष का अंतर होता है!
पी.एन.मिश्रा जी की इस पुस्तक से बुद्ध संबंधित जो बयान पुरी के शंकराचार्य जी देते हैं, उसकी भी पुष्टि हो जाती है। पुराणों में भगवान विष्णु के अवतार के रूप में आए पूर्व बुद्ध, शुद्धोधन पुत्र सिद्दार्थ गौतम बुद्ध से बहुत पहले थे। सिद्धार्थ बुद्ध से पहले कई और बुद्ध हो चुके हैं, जिनकी पूरी व्याख्या इस पुस्तक में है और यह बौद्ध ग्रंथों में भी है, बस हम सब ने ध्यान नहीं दिया था।
इस पुस्तक से आदि शंकराचार्य के समय राजा सुधन्वा की वंशावली भी मिल गई है। राजा सुधन्वा ने आदि शंकराचार्य के साथ सेना लेकर पुनः सनातन धर्म की स्थापना की थी।
इस पुस्तक से दो प्राचीन नगरों की खोज भी स्थापित होती है।
यह पूरी पुस्तक पुरातात्विक, मौद्रिक, अभिलेखीय, ताम्रपत्र और ऐतिहासिक साक्ष्यों पर आधारित शोध प्रबंध है।
दुख है कि यह पुस्तक अब नहीं मिलती। एक तो यह बहुत मोटी ग्रंथ है, दूसरा इसका मूल्य ₹2500 है। अतः प्रकाशक छापते ही नहीं। प्रकाशक के पास केवल तीन कॉपी बची थी, मैंने मूल्य भेजकर एक कॉपी अपने लिए मंगवा ली।
उनसे बात की कि यदि इच्छुक शोधार्थी या विद्वान पाठक यह पुस्तक मंगवाना चाहें तो कैसे मिलेगा? उनका कहना है कि 10 से अधिक लोगों की मांग यदि आप भेज दें तो डिजिटल प्रिंट करवा कर आपको भेज दूंगा। अतः जिनको वास्तव में आदि शंकराचार्य से जुड़ी वास्तविकता को जानना-समझना हो तो वह 8826291284 पर केवल WhatsApp कर दें। मूल्य न भेजें। 10 से अधिक लोगों का आर्डर यदि आ गया तो मैं मंगवाने का प्रयत्न करूंगा।
आगे इस पुस्तक की महत्वपूर्ण स्थापनाओं को छोटे-छोटे पोस्ट के रूप में भी मैं आपको देता रहूंगा। धन्यवाद।
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Vishwavidyalaya Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Baba Neeb Karauri Ke Alaukika Prasang [PB]
बाबा नीब करौरी अपने समय के महानतम संत थे। उनके जन्म काल के बारे में कोई प्रामाणिक विवरण उपलब्ध नहींं है लेकिन कुछ भक्त उनके जीवन का विस्तार 18वीं शताब्दी से २०वीं शताब्दी तक मानते हैं। बहरहाल उन्होंने ११ सितम्बर १९७३ को लौकिक शरीर त्याग दिया। वे सर्वज्ञ थे, सर्वशक्तिमान थे और सर्वव्यापक थे। वे कहते थे, ”मैं हवा हूँ, मुझे कोई रोक नहीं सकता। मैं धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए पृथ्वी पर आया हूँ”
बाबा ने कथा, प्रवचन, आडम्बर, प्रचार-प्रसार से दूर रह कर दीन-दु:खियों की सेवा में अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया। भक्तों का आर्तनाद सुनकर तुरन्त पहुँच जाते और उसे संकट से उबार देते। वे भक्त-वत्सल थे, गरीब नवाज थे और संकटमोचक थे।
बाबा नीब करौरी का सम्पूर्ण जीवन अलौकिक क्रिया-कलापों से भरा हुआ है। कोई शक्ति उन्हें एक जगह बाँध कर नहीं रख सकती थी। वे एक साथ भारत में भी होते और लंदन में भी। लखनऊ में भी और कानपुर में भी। पवन वेग से क्षण भर में ही कहीं भी अवतरित हो जाते। उन्हें कमरे में कैद करके रखना असम्भव था। सूक्ष्म रूप में बाहर निकल जाते और वांछित कार्य सम्पन्न कर लौट आते। महाराजजी का हर क्षण अलौकिक होता—वे स्वयं अलौकिक जो थे।
महाराजजी के भक्तों ने उनकी अलौकिक घटनाओं, लीलाओं और प्रसंगों को विभिन्न पुस्तकों में संकलित किया है। ये पुस्तकें अंग्रेजी में भी हैं और हिन्दी में भी। इस पुस्तक में महाराजजी के सभी अलौकिक किक्रया-कलापों को एक जगह संकलित करने का प्रयास किया गया है।
अनुक्रम : श्री चरणों में, सन्दर्भ, मेरे नीब करौरी बाबा, वाणीसिद्ध महात्मा १. बाबा नीब करौरी का जीवन और महाप्रयाण २. अलौकिक लीलाओं की लम्बी शृंखला ३. बाबा के महाप्रयाण के बाद की कुछ लीलाएँ ४. नीब करौरी बाबा के वैचारिक प्रसंग।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Baba Ramdev : Itihas evam Sahitya
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांBaba Ramdev : Itihas evam Sahitya
बाबा रामदेव : इतिहास एवं साहित्य : समृद्व और वैविध्यपूर्ण राजस्थानी लोक साहित्य में आये लोकोपकारी चरित्रों में बाबा रामदेव का स्थान सर्वोपरि है। अब तक इनके जीवन और साहित्य सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक ग्रंथ प्राप्त नहीं था। डॉ. सोनाराम बिश्नोई ने इस साहित्य का संग्रह सम्पादन कर, प्रथम बार इसका विवेचनात्मक समीक्षात्मक अध्ययन इस ग्रंथ में प्रस्तुत किया है, जो नवीन और मौलिक है। यह शोध दो खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड के प्रथम अध्याय में बाबा रामदेवजी की वंश परम्परा का ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय अध्याय में बाबा रामदेव जी के जन्म-स्थान, आविर्भाव कालीन परिस्थिति तथा उनके द्वारा सम्पादित विविध लौकिक-अलौकिक कार्यो का विवरण प्रस्तुत किया है। तृतीय अध्याय में बाबा रामदेव सम्बन्धी लोक साहित्य का परिचय दिया गया है। चतुर्थ अध्याय में इस लोक साहित्य का भक्ति, दर्शन, उपदेश, नीति, सामाजिक संस्कार और जीवनी आदि के आधार पर वर्गीकरण कर उसका विवेचन किया गया है। पंचम अध्याय में इस लोक साहित्य का साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक दृष्टि से मूल्यांकन किया गया है। इस मूल्यांकन द्वारा हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक, महान अछूतोद्वारक बाबा रामदेवजी का चरित्र उभरकर सामने आया है। द्वितीय खण्ड लेखक के अनवरत श्रम और दुरूह प्रयास का परिणाम है। इसके परिशिष्ट-क में बाबा रामदेव और उनके भक्त कवियों द्वारा रचित बाणियां, परिशिष्ट-ख में आठ कवियों द्वारा रचित बाबा रामदेव सम्बन्धी प्राचीन छंद (हिन्दी व्याख्या सहित) और परिशिष्ट-ग में तीन लोक वार्ताएं मौलिक परम्परा और हस्तलिखित ग्रंथो के आधार पर संकलित-सम्पादित की गई है, जो इस शोध ग्रंथ की महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Bauddha Kapalika Sadhna Aur Sahitya
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, संतों का जीवन चरित व वाणियांBauddha Kapalika Sadhna Aur Sahitya
बौद्ध कापालिक साधना और साहित्य : हिन्दी के आदिकालीन साहित्य और भक्तिकालीन साहित्य की भूमिका प्रस्तुत करनेवाली बौद्ध सिद्धों की अपभ्रंश रचनाओं का अध्ययन केवल हिन्दी ही नहीं सम्पूर्ण समकालीन साहित्य, किंबहुना तत्कालीन समग्र धर्मदार्शनिक एवं साधनात्मक जीवन के अध्ययन के लिए उपयोगी है; क्योंकि तंत्रदर्शन एवं साधना का अति व्यापक एवं गंभीर प्रभाव सर्वत्र दिखाई पड़ता है। इसी दृष्टि से बहुत पहले १९५८ में तांत्रिक बौद्ध साधना और साहित्य की रचना की गई थी।
यह ग्रन्थ उस अध्ययन के एक पक्ष का विस्तार है। बहुत पहले आचार्य डॉ० हजारीप्रसाद जी द्विवेदी ने अपने ग्रंथ ‘नाथ सम्प्रदाय’ में जालंधर पाद और कान्हुपा के कापालिक साधन और ‘बामारग’ की चर्चा नाथ सम्प्रदाय के परिप्रेक्ष्य में ही की थी। दूसरे उस समय बौद्धों के कापालिक साधन और दर्शन से सम्बन्धित किसी शास्त्रीय ग्रन्थ की सहायता नहीं ली गई थी। अतः बौद्धों के कापालिक तत्त्वों, साधनों, दार्शनिक सिद्धान्तों की मीमांसा भी नहीं हो पाई। यहाँ तक कि श्री स्नेलग्रोव ने हेवज्रतंत्र और उसकी टीका हेवज्रपंजिका का संपादन करके भी उसके कापालिक तत्त्वों का विस्तृत विवेचन नहीं किया और न एक पृथक् बौद्ध साधनाधारा के रूप में इसे प्रस्तुत ही किया।
यह ग्रंथ बौद्ध साधना और साहित्य के अनेक अछूते, विस्मृत, तिरस्कृत और महत्त्वपूर्ण सूत्रों को एकत्रित कर उनका व्यवस्थापन करते हुए बौद्धों के कापालिकतत्त्व का स्वरूप प्रस्तुत करता है। सामान्यतया केवल शैवों में ही कापालिकों की स्थिति माननेवालों को इस ग्रंथ से नया प्रकाश, नई सूचनाएँ एवं भारतीय कापालिक साधना का एक नया स्वरूप देखने को मिलेगा। कापालिक साधना के विषय में फैली अनेक भ्रांतियों का निराकरण भी होगा, इसमें संदेह नहीं।
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Gita Press, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Bhakt-Charit-Ank
भक्तों के चरित्र सदा ही नवीन तथा प्रेरणादायक हैं। त्याग, तपस्या, भगवद्भक्ति तथा पवित्र सेवाभाव आदि का सच्चा स्वरूप तो भक्त चरित्रों में ही प्रत्यक्ष देखने को मिलता है। इस विशेषांक में भगवद्विश्वास को बढ़ाने वाले उपासकों, साधकों तथा महात्माओं के जीवन-चरित्र का ऐसा दुर्लभ संग्रह है, जो पाठकों के हृदय में भगवद्भक्ति और भगवद्विश्वास का सहज ही संचार कर देता है। इसमें वर्णित कथाएँ रोचक, ज्ञानप्रद, अनुशीलनयोग्य, प्रेमानन्द को बढ़ाने वाली तथा शान्ति प्रदान करने वाली हैं।
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Patanjali-Divya Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Bhakti Geetanjali (Hindi)
This book is the collection of bhajans and songs of Swami Ramdevji Maharaj. It includes patriotic songs for social gatherings for inducing a feeling of patriotism among the citizens of our country. Bhakti Geetanjali is useful for people who are interested in listening bhajans and believe in patriotism.
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