महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
1000 Mahabharat Prashnottari
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता1000 Mahabharat Prashnottari
1000 Mahabharat Prashnottari
क्या आप जानते हैं-‘ वह कौन पांडव वंशज था, जिसने एक बार अनजाने में ही भीम को मल्ल-युद्ध में पराजित कर दिया था ‘, ‘ धृतराष्ट्र का वह कौन पुत्र था, जो महाभारत युद्ध में जीवित बच गया था ‘, ‘ किस वीर से युद्ध करते हुए अर्जुन की मृत्यु हो गई थी ‘, ‘ द्रौपदी को ‘ याज्ञसेनी ‘ क्यों कहते थे ‘, ‘ हस्तिनापुर का नाम ‘ हस्तिनापुर ‘ कैसे पड़ा ‘, ‘ महाभारत युद्ध में कुल कितने योद्धा मारे गए थे ‘, ‘ उस अस्त्र को क्या कहते हैं, जिसके प्रयोग करने पर पत्थरों की वर्षा होने लगती थी ‘ तथा ‘ एक ब्रह्मास्त्र को दूसरे ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दबा देने से कितने वर्षों तक वर्षा नहीं होती थी?’ यदि नहीं, तो ‘ महाभारत प्रश्नोत्तरी ‘ पढ़ें । आपको इसमें इन सभी और ऐसे ही रोचक, रोमांचक, जिज्ञासापूर्ण व खोजपरक 1000 प्रश्नों के उत्तर जानने को मिलेंगे ।
इस पुस्तक में भीष्म, द्रोण, कर्ण, अर्जुन, भीम एवं अभिमन्यु जैसे पराक्रमियों के अद्भुत शौर्य का वर्णन तो है ही, विभिन्न शस्त्रास्त्रों, दिव्यास्त्रों एवं उनके प्रयोगों और प्रयोग के पश्चत् परिणामों की जानकारी भी दी गई है । इसके अतिरिक्त महाभारतकालीन नदियों, पर्वतों, राज्यों, नगरों तथा राज्याधिपतियो का सुस्पष्ट संदर्भ भी जानने को मिलता है । साथ ही लगभग दो सौ विभिन्न पात्रों के माता, पिता, पत्नी, पुत्र- पुत्री, पितामह, पौत्र, नाना, मामा आदि संबंधों का खोजपरक विवरण भी ।
यह पुस्तक आम पाठकों के लिए तो महत्त्वपूर्ण है ही, लेखकों संपादकों पत्रकारों वक्ताओं, शोधार्थियों, शिक्षकों व विद्यार्थियों के लिए भी अत्यंत उपयोगी है । वस्तुत: यह महाभारत का संदर्भ कोश है ।SKU: n/a -
Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
ADHIKAR : MAHASAMAR – 2
Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताADHIKAR : MAHASAMAR – 2
नरेन्द्र कोहली
‘अधिकार’ की कहानी हस्तिनापुर में पाण्डवों के शैशव से आरम्भ हो कर, वारणावत के अग्निकाण्ड पर जा कर समाप्त होती है। वस्तुतः यह खण्ड ‘अधिकारों’ की व्याख्या, अधिकारों के लिए हस्तिनापुर में निरन्तर होने वाले षड्यन्त्र, अधिकार को प्राप्त करने की तैयारी तथा संघर्ष की कथा है। राजनीति में अधिकार प्राप्त करने के लिए होने वाली हिंसा तथा राजनीतिक त्रास के बोझ में दबे हुए असहाय लोगों की पीड़ा की कथा समानान्तर चलती है। सतोगुणी राजनीति तथा तमोन्मुख रजोगुणी राजनीति का अन्तर इसमें स्पष्ट होता है। एक ओर निर्लज्ज स्वार्थ और भोग तथा दूसरी ओर अनासक्त धर्म-संस्थापना का प्रयत्न। दोनों पक्ष आमने-सामने हैं।
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Antral : Mahasamar – 5
नरेन्द्र कोहली
इस खण्ड में, द्यूत में हारने के पश्चात पाण्डवों के वनवास की कथा है। कुन्ती, पाण्डु के साथ शत्- श्रृंग पर वनवास करने गयी थी। लाक्षागृह के जलने पर, वह अपने पुत्रों के साथ हिडिम्ब वन में भी रही थी। महाभारत की कथा के अन्तिम चरण में, उसने धृतराष्ट्र, गान्धारी तथा विदुर के साथ भी वनवास किया था।…किन्तु अपने पुत्रों के विकट कष्ट के इन दिनों में वह उनके साथ वन में नहीं गयी। वह न द्वारका गयी, न भोजपुर। वह हस्तिनापुर में विदुर के घर रही। क्यों? पाण्डवों की पत्नियाँ देविका, बलंधरा, सुभद्रा, करेणुमती और विजया, अपने-अपने बच्चों के साथ अपने-अपने मायके चली गयीं; किन्तु द्रौपदी काम्पिल्य नहीं गयी। वह पाण्डवों के साथ वन में ही रही। क्यों? कृष्ण चाहते थे कि वे यादवों के बाहुबल से, दुर्योधन से पाण्डवों का राज्य छीनकर, पाण्डवों को लौटा दें, किन्तु वे ऐसा नहीं कर सके। क्यों? सहसा ऐसा क्या हो गया कि बलराम के लिए धृतराष्ट्र तथा पाण्डव, एक समान प्रिय हो उठे, और दुर्योधन को यह अधिकार मिल गया कि वह कृष्ण से सैनिक सहायता माँग सके और कृष्ण उसे यह भी न कह सकें कि वे उसकी सहायता नहीं करेंगे? इतने शक्तिशाली सहायक होते हुए भी, युधिष्ठिर क्यों भयभीत थे? उन्होंने अर्जुन को किन अपेक्षाओं के साथ दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए भेजा था? अर्जुन क्या सचमुच स्वर्ग गये थे, जहाँ इस देह के साथ कोई नहीं जा सकता? क्या उन्हें साक्षात् महादेव के दर्शन हुए थे? अपनी पिछली यात्रा में तीन-तीन विवाह करनेवाले अर्जुन के साथ ऐसा क्या घटित हो गया कि उसने उर्वशी के काम-निवेदन का तिरस्कार कर दिया। इस प्रकार के अनेक प्रश्नों के उत्तर निर्दोष तर्कों के आधार पर ‘अन्तराल’ में प्रस्तुत किये गये हैं। यादवों की राजनीति, पाण्डवों के धर्म के प्रति आग्रह, तथा दुर्योधन की मदान्धता सम्बन्धी यह रचना पाठक के सम्मुख, इस प्रख्यात कथा के अनेक नवीन आयाम उद्घाटित करती है। कथानक का ऐसा निर्माण, चरित्रों की ऐसी पहचान तथा भाषा का ऐसा प्रवाह -नरेन्द्र कोहली की लेखनी से ही सम्भव है।
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Akshaya Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Anubhasya on the Brahmastura
-10%Akshaya Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताAnubhasya on the Brahmastura
Anubhasya on The Brahmasutra by Mahaprabhu Sri Vallabhacharya with the commentary Bhasyaprakasa of Gosvami Sri Purusottamaji and the super-commentary Rasmi on the Bhasyaprakasa of Gosvami Sri Gopesvarji, edited with introduction and appendices etc. by Mulchandra Tulsidas Teliwala, with a new introduction in English and Sanskrit by Goswami Sri Shyam Manoharji Maharaj, Sasthapithadhisvara, Mandira Sri Mukundarayaji Sri Gopalalalaji, Kasi, 4 Volumes.
The present commentaries on Anubhasya known as Prakasa written by Sri Purusottama Carana, a descendent of Sri Vallabhacarya and another on the same known as Rasmi by Sri Yogi Gopesvara, of the same lineage, provide excellent and appropriate interpretation of the tradition. In fact, Anubhasya of Vallabhacarya with these two commentaries given by Sri Purusottamacarana and Gopesvaraji is the most authentic text for providing illuminating interpretation of the Brahmasutra.
This edition was originally printed by Nirnaysagar Press, Bombay, an institution known for publishing and printing the authentic editions. This work was published some eighty years ago, now printed again with a new Introduction in English and Sanskrit by one of the greatest scholars of modern times in the tradition.
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Anushangik : Mahasamar – 9
Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताAnushangik : Mahasamar – 9
नरेन्द्र कोहली
‘रजत संस्करण’ का यह नवम और विशेष खंड है। इसे ‘आनुषंगिक’ कहा गया, क्योंकि इसमें ‘महासमर’ की कथा नहीं, उस कथा को समझने के सूत्र हैं। हम इसे ‘महासमर’ का नेपथ्य भी कह सकते हैं। ‘महासमर’ लिखते हुए, लेखक के मन में कौन-कौन सी समस्याएँ और कौन-कौन से प्रश्न थे? किसी घटना अथवा चरित्र को वर्तमान रूप में प्रस्तुत करने का क्या कारण था? वस्तुतः यह लेखक की सृजनप्रक्रिया के गवाक्ष खोलने जैसा है। ‘महाभारत’ की मूल कथा के साथ-साथ लेखक के कृतित्व को समझने के लिए यह जानकारी भी आवश्यक है। यह सामग्री पहले ‘जहाँ है धर्म, वहीं है जय’ के रूप में प्रकाशित हुई थी। अनेक विद्वानों ने इसे ‘महासमर’ की भूमिका के विषय में देखा है। अतः इसे ‘महासमर’ के एक अंग के रूप में ही प्रकाशित किया जा रहा है। प्रश्न ‘महाभारत’ की प्रासंगिकता का भी है। अतः उक्त विषय पर लिखा गया यह निबंध, जो ओस्लो (नार्वे) में मार्च 2008 की एक अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में पढ़ा गया था, इस खंड में इस आशा से सम्मिलित कर दिया गया है, कि पाठक इसके माध्यम से ‘महासमर’ को ही नहीं ‘महाभारत’ को भी सघन रूप से ग्रहण कर पाएँगे। अंत में ‘महासमर’ के पात्रों का संक्षिप्त परिचय है। यह केवल उन पाठकों के लिए है, जो मूल ‘महाभारत’ के पात्रों से परिचित नहीं हैं। इसकी सार्थकता अभारतीय पाठकों के लिए भी है।
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Ashwatthama
अर्जुन को शस्त्रविद्या देते समय पिताश्री बहुधा गहन विचारों में डूब जाया करते। उनके मुख पर अनेक प्रकार के भाव आते-जाते रहते। आँखों में अनेक बार क्रोध झलक उठता। शब्द-भेदी बाण व अन्धकार में बाण चलाने की विद्या अर्जुन ने पिताश्री से ही प्राप्त की थी। सत्य कहता हूँ दिशाओ अर्जुन को लेकर सबके साथ पिताश्री का पक्षपाती व्यवहार मैं समझ नहीं सका। कठिन तप द्वारा ऋषि अगस्त्य से ब्रह्मास्त्र प्राप्त करने वाले द्रोणाचार्य, विद्या जिज्ञासु कर्ण को सूत पुत्र कहकर नकारने वाले भारद्वाज पुत्र द्रोण, अन्य शिष्यों से चुपचाप मुझे गूढ़तर विद्याओं का अभ्यास करवाते पिताश्री, निषादराज के पुत्र एकलव्य से गुरुदक्षिणा में अँगूठा माँग लेने वाले गुरु द्रोण, इन समस्त रूपों में कौन-सा सत्य रूप था गुरु द्रोण का, मैं कभी भी समझ नहीं सका। परन्तु राजकुमारों से गुरुदक्षिणा में द्रुपदराज को युद्ध में पराजित करने का वचन लेने वाले गुरु द्रोण को मैं आज समझ सकता हूँ। आज मुझे पिताश्री का अर्जुन से अधिक स्नेह का कारण समझ आ रहा है।
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Ashwatthama (PB)
अर्जुन को शस्त्रविद्या देते समय पिताश्री बहुधा गहन विचारों में डूब जाया करते। उनके मुख पर अनेक प्रकार के भाव आते-जाते रहते। आँखों में अनेक बार क्रोध झलक उठता। शब्द-भेदी बाण व अन्धकार में बाण चलाने की विद्या अर्जुन ने पिताश्री से ही प्राप्त की थी। सत्य कहता हूँ दिशाओ अर्जुन को लेकर सबके साथ पिताश्री का पक्षपाती व्यवहार मैं समझ नहीं सका। कठिन तप द्वारा ऋषि अगस्त्य से ब्रह्मास्त्र प्राप्त करने वाले द्रोणाचार्य, विद्या जिज्ञासु कर्ण को सूत पुत्र कहकर नकारने वाले भारद्वाज पुत्र द्रोण, अन्य शिष्यों से चुपचाप मुझे गूढ़तर विद्याओं का अभ्यास करवाते पिताश्री, निषादराज के पुत्र एकलव्य से गुरुदक्षिणा में अँगूठा माँग लेने वाले गुरु द्रोण, इन समस्त रूपों में कौन-सा सत्य रूप था गुरु द्रोण का, मैं कभी भी समझ नहीं सका। परन्तु राजकुमारों से गुरुदक्षिणा में द्रुपदराज को युद्ध में पराजित करने का वचन लेने वाले गुरु द्रोण को मैं आज समझ सकता हूँ। आज मुझे पिताश्री का अर्जुन से अधिक स्नेह का कारण समझ आ रहा है।
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Hindi Books, Sasta Sahitya Mandal, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Bharat Savitri (HB)
हमारे प्राचीन साहित्य में जिन महान् ग्रंथों को असाधारण लोकप्रियता प्राप्त हुई है, उनमें महाभारत का अपना स्थान है। भारत का शायद ही कोई ऐसा शिक्षत और अशिक्षित परिवार हो, जिसमें महाभारत का नाम न पहुंचा हो और जो उसकी महिमा को न जानता हो। रामायण की भांति इस अमर ग्रंथ को भी बड़ा धार्मिक महत्व प्राप्त है और इसकी कथा सर्वत्र बड़े चाव और आदर-भाव से पढ़ी और सुनी जाती है। प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय साहित्य के अध्येता तथा चिंतक श्री वासुदेवशरण अग्रवाल ने इस महान् ग्रंथ का एक नीवन एवं सारगर्भित अध्ययन प्रस्तुत किया है। यह अध्ययन वस्तुतः एक नई दृष्टि प्रदान करता है। यह पुस्तक तीन खंडों में प्रस्तुत की गई है। ‘विराट पर्व’ तक की सामग्री पहले खंड में आ गई है। युद्ध के अंत तक का अंश दूसरे खंड में, शेष तीसरे खंड में। इस प्रकार इन तीनों खंडों में संपूर्ण महाभारत का सार पाठकों को मिल जाता है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Bharatiya Laghu Chitra Shailiyon mein Ankit MAHABHARAT
-15%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनBharatiya Laghu Chitra Shailiyon mein Ankit MAHABHARAT
भारतीय लघु चित्रा शैलियों में अंकित “महाभारत”
भारतीय चित्रकला के इतिहास में कलाओं का जन्म धर्म के साथ ही हुआ है और धर्म ने कला के माध्यम से ही अपनी धार्मिक मान्यताओं को जनता तक पहुँचाया है। भारतीय धार्मिक ग्रन्थों में ‘महाभारत’ एक ऐसा ग्रन्थ है, जिसे किसी विशेष परिचय की आवश्यकता नहीं है। ‘महाभारत’ को संसार का सबसे बड़ा ‘महाकाव्य’ कहा जाता है। सर्व साधारण समाज के साथ-साथ महाभारत जैसे महाकाव्य की महत्ता को समझते हुए चित्रकार वर्ग भी अछूता नहीं रह सका। इस महान धार्मिक विषय को विभिन्न भारतीय लघु चित्र शैलियों में चित्रकारों ने शताब्दियों से अपने चित्रों का विषय बनाया। इन चित्रकारों ने अलग-अलग रियासतों के राजाओं के संरक्षण में रहते हुए अन्य धार्मिक विषयों के साथ-साथ महाभारत विषयक चित्रों का भी बहुतायत से चित्रण कार्य किया था। इन चित्रों को मुख्यतः क्षेत्रीय और शैलिगत विशेषताओं के आधार पर राजस्थानी शैली, मुगल शैली व पहाड़ी शैली के अन्तर्गत विभाजित कर अध्ययन किया जाता है।
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Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Bhramar Geet : Darshnik Vivechan (HB)
-10%Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनBhramar Geet : Darshnik Vivechan (HB)
‘श्रीमद्भागवत’ के दशम-स्कन्ध के अन्तर्गत चार गीत उपलब्ध होते हैं; ‘वेणु-गीत’, ‘गोपी-गीत’, ‘युगल-गीत’ और ‘भ्रमर-गीत’। ये गीत अत्यन्त भावपूर्ण हैं। इनके श्रवण, अध्ययन एवं मनन से अन्त:करण की शुद्धि होती है, साथ ही भगवत्-चरणारविन्दों में दृढ़ प्रीति का उदय होता है। दशम-स्कन्ध का 47वाँ अध्याय ‘भ्रमर-गीत’ आख्यात है; इस गीत में गोप-बालिकाओं ने भगवान् श्रीकृष्ण को उलाहना देने के ब्याज से उनका संकीर्तन किया है।
श्रीमद्भागवत में आनन्द-कन्द, परमानन्द, परमात्मा श्रीकृष्णचन्द्र के नाना प्रकार की लीलाओं का वर्णन है। यह लीलाएँ भी दो प्रकार की हैं—सम्प्रयोगात्मक एवं विप्रयोगात्मक। गोवर्धन-लीला, नाग नाथने की लीला, चीर-हरण लीला, दधि-दान लीला आदि सम्प्रयोगात्मक लीलाएँ हैं। इनमें श्रीभगवान् और उनके भक्तों के सम्मिलन की लीलाएँ हैं; विप्रयोगात्मक लीलाओं के अन्तर्गत भक्तों का भगवान् के साथ वियोग हो जाता है; भगवान् से वियुक्त होकर भक्त जिस अतुलनीय संताप का अनुभव करता है, वही विशेष महत्त्वपूर्ण है। जैसे आतप से संतप्त प्राणी ही छाया के सुख का यथार्थ अनुभव कर पाता है वैसे ही विप्रलम्भ से रस की निष्पत्ति होने पर ही संप्रयोग-सुख का गूढ़ स्वाद मिलता है। श्रृंगार-रस रूप अमृत के दो चषक हैं—एक सम्प्रयोगात्मक रस से और दूसरा विप्रयोगात्मक रस से परिपूर्ण है तथापि दोनों परस्पर पूरक हैं।
सम्प्रयोगात्मक सुख की पूर्ण उपलब्धि के लिए पूर्व-राग अनिवार्य है। प्रियतम-मिलन की सम्भावना ही पूर्व-राग है। सम्भावना के आधार पर ही उत्कट उत्कंठा वृद्धिगत होती है; उत्कट उत्कंठा से ही तीव्र प्रयास सम्भव होता है। ‘वेणुगीत’ में पूर्वराग का ही वर्णन है। भौतिक लाभ की तृष्णा से विनिर्मुक्त हो भगवत्-पदाम्बुज-सम्मिलन की आशा-लता को पल्लवित-प्रफुल्लित करना ही पूर्व-राग है।
भगवान के सौन्दर्य, माधुर्य, सौरस्य, सौगन्ध्य आदि के गुण-गणों का रसास्वादन ही भगवत्-सम्प्रयोग है। सम्भोग-सुख-प्राप्ति के अनन्तर वियोग हो जाने पर जो अतुलनीय ताप होता हैै वह पूर्व-राग के ताप की अपेक्षा कई गुणा अधिक होता है। ‘भ्रमर-गीत’ में विप्रलम्भ-शृंगार का ही वर्णन है।SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Bhramar Geet : Darshnik Vivechan (PB)
Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनBhramar Geet : Darshnik Vivechan (PB)
‘श्रीमद्भागवत’ के दशम-स्कन्ध के अन्तर्गत चार गीत उपलब्ध होते हैं; ‘वेणु-गीत’, ‘गोपी-गीत’, ‘युगल-गीत’ और ‘भ्रमर-गीत’। ये गीत अत्यन्त भावपूर्ण हैं। इनके श्रवण, अध्ययन एवं मनन से अन्त:करण की शुद्धि होती है, साथ ही भगवत्-चरणारविन्दों में दृढ़ प्रीति का उदय होता है। दशम-स्कन्ध का 47वाँ अध्याय ‘भ्रमर-गीत’ आख्यात है; इस गीत में गोप-बालिकाओं ने भगवान् श्रीकृष्ण को उलाहना देने के ब्याज से उनका संकीर्तन किया है।
श्रीमद्भागवत में आनन्द-कन्द, परमानन्द, परमात्मा श्रीकृष्णचन्द्र के नाना प्रकार की लीलाओं का वर्णन है। यह लीलाएँ भी दो प्रकार की हैं—सम्प्रयोगात्मक एवं विप्रयोगात्मक। गोवर्धन-लीला, नाग नाथने की लीला, चीर-हरण लीला, दधि-दान लीला आदि सम्प्रयोगात्मक लीलाएँ हैं। इनमें श्रीभगवान् और उनके भक्तों के सम्मिलन की लीलाएँ हैं; विप्रयोगात्मक लीलाओं के अन्तर्गत भक्तों का भगवान् के साथ वियोग हो जाता है; भगवान् से वियुक्त होकर भक्त जिस अतुलनीय संताप का अनुभव करता है, वही विशेष महत्त्वपूर्ण है। जैसे आतप से संतप्त प्राणी ही छाया के सुख का यथार्थ अनुभव कर पाता है वैसे ही विप्रलम्भ से रस की निष्पत्ति होने पर ही संप्रयोग-सुख का गूढ़ स्वाद मिलता है। श्रृंगार-रस रूप अमृत के दो चषक हैं—एक सम्प्रयोगात्मक रस से और दूसरा विप्रयोगात्मक रस से परिपूर्ण है तथापि दोनों परस्पर पूरक हैं।
सम्प्रयोगात्मक सुख की पूर्ण उपलब्धि के लिए पूर्व-राग अनिवार्य है। प्रियतम-मिलन की सम्भावना ही पूर्व-राग है। सम्भावना के आधार पर ही उत्कट उत्कंठा वृद्धिगत होती है; उत्कट उत्कंठा से ही तीव्र प्रयास सम्भव होता है। ‘वेणुगीत’ में पूर्वराग का ही वर्णन है। भौतिक लाभ की तृष्णा से विनिर्मुक्त हो भगवत्-पदाम्बुज-सम्मिलन की आशा-लता को पल्लवित-प्रफुल्लित करना ही पूर्व-राग है।
भगवान के सौन्दर्य, माधुर्य, सौरस्य, सौगन्ध्य आदि के गुण-गणों का रसास्वादन ही भगवत्-सम्प्रयोग है। सम्भोग-सुख-प्राप्ति के अनन्तर वियोग हो जाने पर जो अतुलनीय ताप होता हैै वह पूर्व-राग के ताप की अपेक्षा कई गुणा अधिक होता है। ‘भ्रमर-गीत’ में विप्रलम्भ-शृंगार का ही वर्णन है।SKU: n/a -
Akshaya Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Buddhiyoga of The Gita and Other Essays
The present volume contains nine essays, the first on Buddhiyoga being the most considerable. In these essays, Sri Anirvan covers a wide area and touches upon most of the salient points of Hindu spirituality, directly and indirectly. He roams through the vast territory of Hindu philosophical and;theosophical thought with ease and familiarity. He combines scholarship with sadhana supported by an intellect which is analytic as well as synthetic.
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Gita Press, Hindi Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण/रामकथा
Collection of Ramayana , Mahabharat , Geeta
-5%Gita Press, Hindi Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण/रामकथाCollection of Ramayana , Mahabharat , Geeta
रामायण/ गीता/ महाभारत
Collection of Ramayana , Mahabharat , Geeta1.Shrimad Valmikiya Ramayan- Vol.1 & 2 (Code 75 & 76)
2.Shrimadbhagvadgita Sadhak Sanjeevani
3 SANKSHIPT MAHABHARAT (Vol-1 & 2)SKU: n/a -
Rajpal and Sons, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Devki Ka Beta | देवकी का बेटा
Rajpal and Sons, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताDevki Ka Beta | देवकी का बेटा
श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास-ऐतिहासिक अध्ययन और यथार्थ सम्मत दृष्टि से महान पुरुषार्थी, योगेश्वर श्रीकृष्ण का सामान्य मनुष्य के रूप में चित्रण-यशस्वी उपन्यासकार रांगेय राघव की कलम से।
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Dharma : Mahasamar – 4
नरेन्द्र कोहली
‘महाभारत’ की कथा पर आधृत उपन्यास ‘महासमर’ का यह चौथा खण्ड है – ‘धर्म’! पाण्डवों को राज्य के रूप में खाण्डवप्रस्थ मिला है, जहाँ न कृषि है, न व्यापार। सम्पूर्ण क्षेत्र में अराजकता फैली हुई है। अपराधियों और महाशक्तियों की वाहिनियाँ अपने षड्यन्त्रों में लगी हुई हैं…और उनका कवच है खाण्डव-वन, जिसकी रक्षा स्वयं इन्द्र कर रहा है। युधिष्ठिर के सम्मुख धर्म-संकट है। वह नृशंस नहीं होना चाहता; किन्तु आनृशंसता से प्रजा की रक्षा नहीं हो सकती। पाण्डवों के पास इतने साधन भी नहीं हैं कि वे इन्द्र-रक्षित खाण्डव-वन को नष्ट कर, उसमें छिपे अपराधियों को दण्डित कर सकें। उधर अर्जुन के सम्मुख अपना धर्म-संकट है। उसे राज-धर्म का पालन करने के लिए अपनी प्रतिज्ञा भंग करनी पड़ती है और बारह वर्षों का ब्रह्मचर्य पूर्ण वनवास स्वीकार करना पड़ता है। किन्तु इन्हीं बारह वर्षों में अर्जुन ने उलूपी, चित्रांगदा और सुभद्रा से विवाह किये। न उसने ब्रह्मचर्य का पालन किया, न वह पूर्णतः वनवासी ही रहा। क्या उसने अपने धर्म का निर्वाह किया? धर्म को कृष्ण से अधिक और कौन जानता है? …अर्जुन और कृष्ण ने अग्नि के साथ मिलकर, खाण्डव-वन को नष्ट कर डाला। क्या यह धर्म था? इस हिंसा की अनुमति युधिष्ठिर ने कैसे दे दी? और फिर राजसूय यज्ञ! क्या आवश्यकता थी, उस राजसूय यज्ञ की? जरासन्ध जैसा पराक्रमी राजा भीम के हाथों कैसे मारा गया; और उसका पुत्र क्यों खड़ा देखता रहा? अन्त में हस्तिनापुर में होने वाली द्यूत-सभा। धर्मराज होकर युधिष्ठिर ने द्यूत क्यों खेला? अपने भाइयों और पत्नी को द्यूत में हारकर किस धर्म का निर्वाह कर रहा था धर्मराज? द्रौपदी की रक्षा किसने की? कृष्ण उस सभा में किस रूप में उपस्थित थे? – ऐसे ही अनेक प्रश्नों के मध्य से होकर गुजरती है ‘धर्म’ की कथा। यह उपन्यास न केवल इन समस्याओं की गुत्थियाँ सुलझाता है बल्कि उस युग का, उस युग के चरित्रों का तथा उनके धर्म का विश्लेषण भी करता है। हम आश्वस्त हैं कि इस उपन्यास को पढ़कर ‘महाभारत’ ही नहीं, धर्म के प्रति भी आपका दृष्टिकोण कुछ अधिक विशद होकर रहेगा।…और फिर भी एक यह समकालीन मौलिक उपन्यास है, जिसमें आपके समसामयिक समाज की धड़कनें पूरी तरह से विद्यमान हैं।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Divya Bhagwadgita Atma Se Parmatma Tak (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताDivya Bhagwadgita Atma Se Parmatma Tak (PB)
श्रीमद्भगवद्गीता के अतुलनीय महत्त्व के कारण विश्व की 75 विदेशी भाषाओं सहित लगभग 82 भाषाओं में इसका रूपांतरण हो चुका है तथा सहस्रों टीकाएँ इस पर लिखी जा चुकी हैं। तो फिर इस एक और टीका की आवश्यकता क्यों पड़ी? जिन-जिन विद्वानों के मन में त्रिगुणमयी प्रकृति के गुणों से जन्य जैसा भाव उनके अंतःकरण व बुद्धि में रहा, उसके अनुरूप ही उन्होंने ‘गीता’ को अपने शब्दों में सँजोकर अपनी-अपनी कृतियों में उड़ेल दिया है। इसीलिए ‘गीता’ में भगवान् श्रीकृष्ण का एक निश्चित मत होते हुए भी भिन्न-भिन्न विद्वानों की कृतियों में नाना प्रकार से मतों की विभिन्नता दिखाई पड़ती है, जो कि स्वाभाविक ही है। भगवद्गीता में भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा दिए गए उपदेशों में जो सारगर्भित निश्चित मत अंतर्निहित है, उसी को स्वरूप देने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है।
परमात्मा के दिव्य अमृत वचनों के रहस्य तो परमगुह्य, अकथनीय, विशद एवं अलौकिक हैं। प्रस्तुत कृति आधुनिक युग के मानव को शोक, संत्रास, अतृप्त तृष्णाओं के उद्वेगों से मुक्ति दिलाकर शाश्वत सच्चिदानंद परमात्मा के सायुज्य में लाने का एक विनम्र प्रयास है।SKU: n/a