ओशो साहित्य
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AANKHON DEKHI SANCH
एक ज्ञान बाहर है, एक प्रकाश बाहर है। अगर आपको गणित सीखनी है, केमिस्ट्री सीखनी है, फिजिक्स सीखनी है, इंजीनियरिंग सीखनी है, तो आप किसी स्कूल में भरती होंगे, किताब पढ़ेंगे, परीक्षाएं होंगी और सीख लेंगे। यह लर्निंग है; नॉलेज नहीं। यह सीखना है; ज्ञान नहीं। विज्ञान सीखा जाता है, विज्ञान का कोई ज्ञान नहीं होता। लेकिन धर्म सीखा नहीं जाता, उसका ज्ञान होता है। उसकी लर्निंग नहीं होती, उसकी नॉलेज होती है। एक प्रकाश बाहर है, जिसे सीखना होता है; एक प्रकाश भीतर है, जिसे उघाड़ना होता है, जिसे डिस्कवर करना होता है। ओशो
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Akath Kahani Prem Ki
सुप्रसिद्ध संत शेख फरीद के कुछ अनूठे पदों के माध्यम से ओशो के दस अमृत प्रवचनों का संकलन। इस वार्तालाप में प्रति दूसरे दिन ओशो ने जिज्ञासुओं की विभिन्न जिज्ञासाओं और प्रश्नों के उत्तर दिए हैं। ‘शेख फरीद प्रेम के पथिक हैं और जैसा प्रेम का गीत फरीद ने गाया है; वैसा किसी ने नहीं गाया। कबीर भी प्रेम की बात करते हैं, लेकिन ध्यान की भी बात करते हैं। दादू भी प्रेम की बात करते हैं, लेकिन ध्यान की बात को बिलकुल भूल नहीं जाते।
पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
प्रेम है वासना से मुक्ति; ध्यान है विचार से मुक्ति
प्रेम दुस्साहस है
धार्मिक क्रांति ही एकमात्र क्रांति है
प्रेम का प्रारंभ है, अंत नहींSKU: n/a -
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AMRIT DWAR
“‘सदगुरु के शब्द तो वे ही हैं जो समाज के शब्द हैं। और कहना है उसे कुछ, जिसका समाज को कोई पता नहीं। भाषा तो उसकी वही है, जो सदियों-सदियों से चली आई है—जराजीर्ण, धूल-धूसरित। लेकिन कहना है उसे कुछ ऐसा नित-नूतन, जैसे सुबह की अभी ताजी-ताजी ओस, कि सुबह की सूरज की पहली-पहली किरण! पुराने शब्द बासे, सड़े-गले, सदियों-सदियों चले, थके-मांदे, उनमें उसे डालना है प्राण। उनमें उसे भरना है उस सत्य को जो अभी-अभी उसने जाना है—और जो सदा नया है और जो कभी पुराना नहीं पड़ता ” – ओशो
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ANANT KI PUKAR
यह पुस्तक अपने-आप में अनूठी है, अद्वितीय है। यहां ओशो अपने कार्य, उसकी रूप-रेखा और उसके व्यावहारिक पहलुओं पर बात करते हैं, और साथ ही उन सबको भी संबोधित करते हैं जो इस कार्य का हिस्सा होना चाहते हैं। ओशो बताते हैं कि किस प्रकार इस कार्य में सहभागी होना आत्म-रूपांतरण की एक विधि बन सकता है, और कहां-कहां हम चूक सकते हैं, कैसे इस चूकने से बच सकते हैं। ओशो कहते हैं, किसी को कोई संदेश-वाहक नहीं बनना है। संदेश को जीना है, स्वयं संदेश बनना है। तब तुम एक रूपांतरण से गुजरोगे और तुम्हारा होना मात्र ही संदेश को उन सब तक पहुंचा देगा जो प्यासे हैं।
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ASTROLOGY
Astrology Superstition, Blind Faith In this fascinating volume, Osho reclaims astrology from the pop psychologists and “fortune tellers” and shares the deep insights that first brought this unique science of the stars into being. From ancient India to the lost civilization of Sumer, from Pythagoras to Paracelsus to Piccardi, we discover that for thousands of years there has been a thread of awareness of how all things in the universe are interconnected – an awareness that modern physics is still struggling to define in scientific terms today.
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Dhyan Darshan
‘ध्या्न दर्शन’ एक छोटी सी पुस्तक है जो साधना-पथ का मूल आधार बन सकती है। ओशो कहते हैं: जीवन के दो आयाम हैं—पहले जानना, फिर करना, जिसे हम विज्ञान का नाम देते हैं। दूसरा आयाम है—पहले करना, फिर जानना, जिसे हम धर्म का नाम देते हैं। पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु: डाइनैमिक ध्यान-प्रयोग की उपयोगिता ध्यान: आध्यात्मिक विज्ञान ध्यान से स्वास्थ्य का क्या संबंध है? कैथार्सिस, रेचन और आपका स्वास्थ्य साउंड थेरेपी, ध्वनि-चिकित्सा और आपका स्वास्थ्य संकल्प का मूल्य
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DHYAN KE KAMAL
प्रस्तुत पुस्तक के प्रवचनों के माध्यम से हम ध्यान की जिस भावदशा में प्रविष्ट हो सकते हैं उसकी पूर्व तैयारी के लिए ओशो हमें ध्यान के कुछ ऐसे प्रयोगों में उतारते हैं जिन्हें करने के पश्चात हम विश्रांति की झील बन जाते हैं और प्रतीक्षा करते हैं चेतना के कमल के खिलने की। कहीं पर ओशो ने समर्पण के लिए भी संकल्प के प्रयोग की चर्चा की है तो कहीं कीर्तन का उपयोग रेचन के लिए किया है। शरीर से तादात्म्य तोड़ने के छोटे-छोटे प्रयोग हैं जिनमें सबसे अधिक बल उन्होंने श्वास पर दिया है। वे कहते हैं कि श्वास पर जोर देने पर शरीर में छिपा हुआ विद्युत-स्रोत सजग हो उठता है। और शरीर मिट्टी-मांस-मज्जा का नहीं वरन विद्युत किरणों से निर्मित है और यह बायो-एनर्जी, जीव-ऊर्जा ईंधन का काम करती है और ध्यान की कुंजी हाथ लगती है—ध्यानं निर्विषयं मन:।
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DHYANYOGA: PRATHAM AUR ANTIM MUKTI
Dhyanyog: Pratham Aur Antim Mukti – ध्यानयोग: प्रथम और अंतिम मुक्ति
इक्कीसवीं सदी का जीवन जितनी तेज गति से भाग रहा है उतनी ही तेज गति से व्यक्ति के लिए तनाव बढ़ता जा रहा है। शांत बैठकर ध्यान में उतर जाना अब उतना सरल नहीं है जितना कि बुद्ध के समय में था।
ध्यानयोग: प्रथम और अंतिम मुक्ति ओशो द्वारा सृजित अनेक ध्यान विधियों का विस्तृत व प्रायोगिक विवरण है, विशेषतः ओशो सक्रिय ध्यान विधियों व ओशो मेडिटेटिव थेरेपीज़ का, जो कि आधुनिक जीवन के तनावों से सीधे निपटती हैं व हमें ताजा व ऊर्जावान कर जाती हैं। ओशो बहुत सी प्राचीन विधियों की भी चर्चा करते हैं: विपस्सना व झाझेन, केंद्रीकरण की विधियां, प्रकाश व अंधकार पर ध्यान, हृदय के विकास की विधियां…।
साथ ही ओशो ध्यान संबंधी प्रश्नों के उत्तर भी देते हैं व हमें बताते हैं कि ध्यान क्या है, कैसे ध्यान करना शुरू करें। और कैसे अपनी अंतर-यात्रा को निर्बाध रूप से जारी रख सकें।
‘‘ध्यान की शुरुआत तो है, पर उसका कोई अंत नहीं है। वह अंनत तक अनवरत चलता चला जाता है। मन तो छोटी सी चीज है, ध्यान तुम्हें पूरे अस्तित्व का हिस्सा बना देता है। यह तुम्हें स्वतंत्रता देता है कि तुम पूर्ण के साथ एक हो जाओ।’’
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Ek naya dwar
निरीक्षण, ऑब्जर्वेशन चाहिए। क्या हो रहा है, उसे देखने के लिए पूरी सजगता होनी चाहिए। पूरे होश, पूरी अटेंशन से जो देखता है…। विज्ञान में ही निरीक्षण जरूरी है, ऐसा नहीं; धर्म में तो और भी ज्यादा जरूरी है। क्योंकि विज्ञान तो पदार्थों की खोज करता है, धर्म तो आत्मा की। विज्ञान में निरीक्षण जरूरी है, लेकिन धर्म में तो निरीक्षण और भी अनिवार्य है। विज्ञान बाहर के पदार्थों का निरीक्षण करता है, धर्म स्वयं के भीतर जो चित्त है उसका। चित्त का निरीक्षण करें। जागें, और जागें, और जागें और देखें चित्त को। देखते-देखते यह क्रांति घटित होती है और चित्त परिवर्तित हो जाता है। ओशो पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु: जीवन का क्या अर्थ है? सरलता का क्या अर्थ है? हमारा चित्त इतना जटिल क्यों हो गया है? चित्त को बदलने के उपाय कार्य के साथ चित्त की सजगता के उपाय
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FROM SEX TO SUPERCONSCIOUSNESS
About From Sex to Superconsciousness
This small, infamous volume has been a bestseller for decades. Why? – because sex is our basic life energy, and transformation our longing.Osho approaches the whole subject of sex humanly, humorously and scientifically. No one is born an expert on love and sex; one of life’s joys is to discover its sacredness, simplicity and naturalness. And once we bring understanding and harmony to sex, a door to superconsciousness opens.
“What is needed is an understanding, not a suppression. The deeper the understanding, the higher human beings rise. The less the understanding, the more human beings try to suppress. There are never any successful and healthy results out of suppression. Sex is the greatest energy in human life. But one has not to stop at it. Sex has to be transmuted into superconsciousness.”
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JEEVAN HI HAI PRABHU
Jeevan Hi Hai Prabhu – जीवन ही है प्रभु !
ध्यान की गहराइयों में वह किरण आती है, वह रथ आता है द्वार पर जो कहता है: सम्राट हो तुम, परमात्मा हो तुम, प्रभु हो तुम, सब प्रभु है, सारा जीवन प्रभु है। जिस दिन वह किरण आती है, वह रथ आता है, उसी दिन सब बदल जाता है। उस दिन जिंदगी और हो जाती है। उस दिन चोर होना असंभव है। सम्राट कहीं चोर होते हैं! उस दिन क्रोध करना असंभव है। उस दिन दुखी होना असंभव है। उस दिन एक नया जगत शुरू होता है। उस जगत, उस जीवन की खोज ही धर्म है। इन चर्चाओं में इस जीवन, इस प्रभु को खोजने के लिए क्या हम करें, उस संबंध में कुछ बातें मैंने कही हैं। मेरी बातों से वह किरण न आएगी, मेरी बातों से वह रथ भी न आएगा, मेरी बातों से आप उस जगह न पहुंच जाएंगे। लेकिन हां, मेरी बातें आपको प्यासा कर सकती हैं। मेरी बातें आपके मन में घाव छोड़ जा सकती हैं। मेरी बातों से आपके मन की नींद थोड़ी बहुत चौंक सकती है। हो सकता है, शायद आप चौंक जाएं और उस यात्रा पर निकल जाएं जो ध्यान की यात्रा है। तो निश्र्चित है, आश्र्वासन है कि जो कभी भी ध्यान की यात्रा पर गया है, वह धर्म के मंदिर पर पहुंच जाता है। ध्यान का पथ है, उपलब्ध धर्म का मंदिर हो जाता है। और उस मंदिर के भीतर जो प्रभु विराजमान है, वह कोई मूर्तिवाला प्रभु नहीं है, समस्त जीवन का ही प्रभु है।
ओशोइस पुस्तक के कुछ विषय बिंदु:
* परमात्मा को कहां खोजें?
* क्यों सबमें दोष दिखाई पड़ते हैं?
*जिंदगी को एक खेल और एक लीला बना लेना
* क्या ध्यान और आत्मलीनता में जाने से बुराई मिट सकेगी?समीक्षा
समीक्षा इस पुस्तक के कुछ विषय बिंदु: परमात्मा को कहां खोजें? क्यों सबमें दोष दिखाई पड़ते हैं? जिंदगी को एक खेल और एक लीला बना लेना क्या ध्यान और आत्मलीनता में जाने से बुराई मिट सकेगी?SKU: n/a -
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JEEVAN KI KHOJ
प्यास
जीवन क्या है? उस जीवन के प्रति प्यास तभी पैदा हो सकती है, जब हमें यह स्पष्ट बोध हो जाए, हमारी चेतना इस बात को ग्रहण कर ले कि जिसे हम जीवन जान रहे हैं, वह जीवन नहीं है। जीवन को जीवन मान कर कोई व्यक्ति वास्तविक जीवन की तरफ कैसे जाएगा? जीवन जब मृत्यु की भांति दिखाई पड़ता है, तो अचानक हमारे भीतर कोई प्यास, जो जन्म-जन्म से सोई हुई है, जाग कर खड़ी हो जाती है। हम दूसरे आदमी हो जाते हैं। आप वही हैं, जो आपकी प्यास है। अगर आपकी प्यास धन के लिए है, मकान के लिए है, अगर आपकी प्यास पद के लिए है, तो आप वही हैं, उसी कोटि के व्यक्ति हैं। अगर आपकी प्यास जीवन के लिए है, तो आप दूसरे व्यक्ति हो जाएंगे। आपका पुनर्जन्म हो जाएगा। ओशोSKU: n/a -
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JEEVAN KRANTI KE SUTRA
जीवन क्या है?
वीणा स्वयं संगीत नहीं है, वीणा से संगीत पैदा हो सकता है।
जन्म स्वयं जीवन नहीं है, जन्म से जीवन पैदा हो सकता है।
और कोई चाहे तो जन्म की वीणा को कंधे पर रखे हुए मृत्यु के दरवाजे तक पहुंच जाए, उसे जीवन नहीं मिल जाएगा।
जन्म तो मिलता है मां-बाप से, जीवन कमाना पड़ता है स्वयं। जन्म मिलता है दूसरों से, जीवन पाना पड़ता है खुद।
जन्म मिलता है, जीवन खोजना पड़ता है।
जीवन की खोज एक कला है।
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JEEVAN RAHASHYA
इस पुस्तक का पहला प्रश्न ‘लोभ’ से शुरू होता है जिसके उत्तर में ओशो कहते हैं कि साधना के मार्ग पर ‘लोभ’ जैसे शब्द का प्रवेश ही वर्जित है क्योंकि यहीं पर बुनियादी भूल होने का डर है।
फिर तनाव की परिभाषा करते हुए ओशो कहते हैं : सब तनाव गहरे में कहीं पहुंचने का तनाव है और जिस वक्त आपने कहा, कहीं नहीं जाना तो मन के अस्तित्व की सारी आधारशिला हट गई।
फिर क्रोध, भीतर के खालीपन, भय इत्यादी विषयों पर चर्चा करते हुए ओशो प्रेम व सरलता—इन दो गुणों के अर्जन में ही जीवन की सार्थकता बताते हैं।SKU: n/a -
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JYOTISH VIGYAN
ज्योतिष के तीन हिस्से हैं।
एक, जिसे हम कहें अनिवार्य, एसेंशियल, जिसमें रत्ती भर फर्क नहीं होता। वही सर्वाधिक कठिन है उसे जानना। फिर उसके बाहर की परिधि है: नॉन-एसेंशियल, जिसमें सब परिवर्तन हो सकते हैं। मगर हम उसी को जानने को उत्सुक होते हैं। और उन दोनों के बीच में एक परिधि है–सेमी-एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य, जिसमें जानने से परिवर्तन हो सकते हैं, न जानने से कभी परिवर्तन नहीं होंगे। तीन हिस्से कर लें। एसेंशियल, जो बिलकुल गहरा है, अनिवार्य, जिसमें कोई अंतर नहीं हो सकता। उसे जानने के बाद उसके साथ सहयोग करने के सिवाय कोई उपाय नहीं है। धर्मों ने इस अनिवार्य तथ्य की खोज के लिए ही ज्योतिष की ईजाद की, उस तरफ गए। उसके बाद दूसरा हिस्सा है: सेमी-एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य। अगर जान लेंगे तो बदल सकते हैं, अगर नहीं जानेंगे तो नहीं बदल पाएंगे। अज्ञान रहेगा, तो जो होना है वही होगा। ज्ञान होगा, तो ऑल्टरनेटिव्स हैं, विकल्प हैं, बदलाहट हो सकती है। और तीसरा सबसे ऊपर का सरफेस, वह है: नॉन-एसेंशियल। उसमें कुछ भी जरूरी नहीं है। सब सांयोगिक है।
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