वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
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English Books, Parimal Publications, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Complete Bhavisya Mahapurana Set of 3
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English Books, Parimal Publications, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिComplete Bhavisya Mahapurana Set of 3
Purāņas are the treasure house of knowledge. The Paurāņika literature is encyclopedic and it includes diverse topics such as cosmogony, cosmology, genealogies of gods & goddesses, kings sages, demigods, folk tales, pilgrimages, temples, medicine, astronomy, grammar, mineralogy, theology and philosophy.
The number of Purāṇas are eighteen. The Bhavisya Purāņa is the embodiment of knowledge of Present, Past and Future. It seems it has been written by sage Vyāsa at the end of all seventeen Purāņas.
Bhavisya Purāna is adorned with fourteen vidyās (knowledge) of the four Vedas, the six Angas of the Vedas, Dharmaśāstra, Mīmāṁsā, Tarka or Nyāya and other Purāņas. In addition to these fourteen vidyās, this Purāņa contains four other vidyās such asĀyurveda, Dhanurveda, Gandharvaveda and Arthaśāstra.
Bhavisya Purāņa has been divided into four parvas, 1. Brāhma Parva, 2. Madhyama Parva, 3. Pratisarga Parva, 4. Uttara Parva. Brāhma Parva deals with the stories of gods and goddesses, but on the whole the emphasis on this parva is praising and worshipping Sungod with merits of listening to his glory, performing his holy vratas (vows) and observing his fast. Madhyama Parva of the Bhavisya Purāņa is primarily a Tantra-related work. It has been divided into three parts. Third Pratisarga Parva of the Bhavișya Purāņa is a treasure of Indian history of Medieval period in which future incidents have been presented in past tense. The last parva of the Bhavisya Purāņa is Uttara Parva. This parva is the treasure of Karmakāņda and charities observing festivity.
The present edition of Bhavişya Purāņa is the first ever complete English translation of the original Sanskrit text in devanāgarī that also includes an exhaustive introduction, notes and an index of Sanskrit verses at the end of third volume of this book.
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Chaukhamba Prakashan, Gita Press, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Complete Puran Set of 18
Chaukhamba Prakashan, Gita Press, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिComplete Puran Set of 18
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- Sankshipt Bramha Puran
- Sankshipt Padma Puran
- Shrivishnu Puran
- Sri Vayu Maha Purana (Mul Puran)
- Shrimad Bhagwat Mahapuran (set of 2 Volumes)
- Sankshipt Narad Puran
- Sankshipt Markandeya Puran
- Abridged Agni Puran(Code1362)
- Sri Bhavishya Mahapuranam (Set Of 3 Vols)
- Brahmavaivart Puran, Kewal Hindi
- Abridged Ling Mahapuran (Code1985)
- Abridged Varah Puran (Code1361
- Sankshipt Skand Puran
- Sri Vaman Puran
- Koorm Puran
- Matsya Puran
- Sankshipt Garud Puran
- Brahmanda Puranam (Set Of 2 Volumes)
+ 1 more Puran - ShriShiv Mahapuran (Set Of 2 Volume)
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English Books, Parimal Publications, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Complete Vedas Set of 9
The word ‘Veda’ means ‘knowledge’ and is derived from the Sanskrit root ‘vid’, means ‘to know’. It does not refer to one single literary work, but indicates a huge corpus of literature, which arose in the course of many centuries and has been handed down from one generation to another generation by verbal transmission. ‘Veda’ is also called ‘Shruti’ meaning what is heard, as opposed to the ‘Smriti’ composed by sages at a later stage recounting the content of the Vedic texts. This referes the purely oral-aural method which was (and is) used for it.
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Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति, सही आख्यान (True narrative)
Daiveey Shakti Sampann Kinnar Aur Kinnar Akhaada
Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति, सही आख्यान (True narrative)Daiveey Shakti Sampann Kinnar Aur Kinnar Akhaada
प्राचीन भारत में कित्ररों का उल्लेख साहित्य, धर्मग्रंथों और सांस्कृतिक परंपराओं में विशेष रूप से मिलता है। किन्नरों का वर्णन बुद्धि, विद्या और बल में सामर्थ्य रखते हुए चित्रित किया गया है। किन्नरों को अक्सर अद्वितीय गुणों और क्षमताओं वाले प्राणी के रूप में देखा गया है, जो देवताओं और मनुष्यों के बीच एक सेतु का कार्य करते थे। उनके सामाजिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक महत्व को विभित्र प्राचीन ग्रंथों और ऐतिहासिक संदर्भों में व्यापक रूप से वर्णित किया गया है। महाभारत में कित्रर रूप में शिखंडी और ब्रह्नलला का स्थान विशेष है। वाल्मीकि कृत रामायण के उत्तरकांड में वर्णित किन्नरों की प्रत्यक्ष उपस्थिति मिलती है।
किन्नरों की सामाजिक स्थिति हमेशा से ही एक बहस का मुद्दा रही है। हालांकि, समय के साथ इस समुदाय ने अपनी पहचान और अधिकारों के लिए संघर्ष किया और समाज में सम्मान प्राप्त करने के लिए कई कदम उठाए। इस संघर्ष और संघर्ष के हिस्से के रूप में किन्नर अखाड़े की स्थापना की गई। किन्त्रर वर्ग के उत्थान और समाज में पर्याप्त सम्मान दिलाने के उद्देश्य को चरितार्थ करने के लिए किन्नर अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी प्रयासरत है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Das Pramukh Upnishad (PB)
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिDas Pramukh Upnishad (PB)
“दे दीप्यमान, फिर भी गुप्त- यह आत्मा (ब्रह्म) हृदय रूपी गुहा में निवास करती है। वह सबकुछ, जो गतिशील है, श्वास लेता है, देखता है, अर्थात् समस्त इंद्रियाँ आत्मा में वास करती हैं, वह ज्ञान (शिक्षा) से परे है, सजीव निर्जीव समस्त जीवों/पदार्थों से श्रेष्ठ है।’ ‘इस प्रकाशमान, अविनाशी ब्रह्म, जो समस्त आधारों का आधार है, में संपूर्ण ब्रह्मांड, यह जगत् एवं समस्त जीव-जंतु निहित हैं। यह परम ब्रह्म ही जीवन है, यही वाणी है, यही वह तत्त्व है, जो अमर है, अविनाशी है। हे पुत्र ! तुमको इसी ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त कर उसी में प्रवेश करना है।’
‘हमारे पवित्र ज्ञानरूपी धनुष पर भक्तिरूपी तीर चढ़ाओ, ध्यानरूपी प्रत्यंचा को खींचो और लक्ष्य-भेद करो।’
‘पृथ्वी, चित्त, प्राण, वितान, स्वर्ग इत्यादि उसके आवरण हैं। वह एकमात्र ही है; ब्रह्म ज्ञान ही मनुष्य को अमरत्व (मोक्ष) तक पहुँचाने वाला पुल है।’
– इसी पुस्तक से
प्रत्येक उपनिषद् किसी-न-किसी वेद के खंड से जुड़ा हुआ है और उसी खंड के अनुसार उसका नामकरण किया गया है। उदाहरण के लिए कठोपनिषद् यजुर्वेद की कठ शाखा के अंतर्गत आता है। भारतीय वाड्मय के अत्यंत महत्त्वपूर्ण अंग ‘उपनिषदों’ में से दस प्रमुख उपनिषदों का अत्यंत सरल एवं सहज भावानुवाद है। इनका अध्ययन पाठकों को जीवन का असली अर्थ और मर्म समझने की दृष्टि उत्पन्न करेगा।”
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Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Ekadashopnishad
धारावाहिक हिंदी में, मूल तथा शब्दार्थ सहित (ग्यारह उपनिषदों की सरल व्याख्या)-आर्य संस्कृति के प्राण उपनिषद हैं। उपनिषदों के अनेक अनुवाद हुए हैं, परंतु प्रस्तुत अनुवाद सब अनुवाद से विशेषता रखता है।
इस अनुवाद में हिंदी को प्रधानता दी गई है। कोई पाठक यदि केवल हिंदी भाग पढ़ जाए तो भी उसे सरलता से उपनिषद्-ज्ञान स्पष्ट हो जाएगा। पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यही है की अनुवाद में विषय को खोलकर रख दिया गया है।
साधारण पढ़े-लिखे लोगों तथा संस्कृत के अगाध पंडितों, दोनों के लिए यह नवीन ढंग का ग्रंथ है। यही इस अनुवाद की मौलिकता है। पुस्तक को रोचक बनाने के लिए स्थान-स्थान पर चित्र भी दिए गए हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति, सही आख्यान (True narrative)
GANGA AVTARAN : RAHASYA EVAM PRAYOJAN
Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति, सही आख्यान (True narrative)GANGA AVTARAN : RAHASYA EVAM PRAYOJAN
सनातन धर्म में नदियों को देवी का स्वरूप माना जाता है। धरती पर गंगा का अवतरण भागीरथ जी के प्रयास के द्वारा ही संभव हो सका। मां गंगा पापविमोचनी है, मंदाकिनी है, जाह्नवी है, कई नामों से इस धरती पर पुकारा जाता है। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को स्वर्ग में बहने वाली गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने की कथा कई महाकाव्यों, पुराणों और अन्य हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलती है। सबसे पहले गंगा के अवतरण की कथा वाल्मीकि रचित रामायण के बालकांड के सर्ग ३४ से सर्ग ४४ में मिलती है। आकाश से हिमालय पर उतरती हैं। सत्रह सौ मील धरती सींचती हुई सागर में विश्राम करने चली जाती हैं। वह कभी थकती नहीं, अटकती नहीं। वह तारती हैं, उबारती हैं और भलाई करती हैं। यही उनका काम है। वह इसमें सदा लगी रहती हैं।
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Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति, सही आख्यान (True narrative)
Ganga Teerth
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भारत में गंगा नदी को बहुत पवित्र के साथ उनको माता का दर्जा प्राप्त है। गंगा केवल जीवनदायिनी नहीं है, बल्कि वह सभी पापों को नष्ट करती है और मोक्ष की प्राप्ति करवाती है। जन्म से लेकर मृत्यु तक गंगा के जल का हर कार्य में प्रयोग किया जाता है। धार्मिक दृष्टि से गंगा कामनाओं को पूर्ण करने वाली, पापों को हरने वाली, मंगलकरणी, सुख, समृद्धि, शांति देने वाली मानी गई है। भारतीय ऋषि-महर्षियों को गंगा के वैज्ञानिक महत्व एवं अद्भुत प्राकृतिक संरचना का ज्ञान था, इसी कारण गगीता व अन्य शास्त्र-पुराणों में गंगा भारतीय संस्कृति का प्राण बताया है। भारतीय जन मानस में गंगा को परब्रह्म, निर्विकार, निराकार, पापहारिणी और सत्-चित् आनंद का प्रतीक माना जाता है। वे जीवन पोषण की पूर्णता हैं तो पूर्णमुक्ति की संदेश वाहक तथा कारक भी।
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Chaukhamba Prakashan, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति, सही आख्यान (True narrative)
Garga Samhita (Set of 2 Volumes)
Chaukhamba Prakashan, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति, सही आख्यान (True narrative)Garga Samhita (Set of 2 Volumes)
आज से अड़तालीस वर्ष पहले जब में गुरुदेव स्वर्गीय श्रीदामोदरलाल गोस्वामीजीके पास काव्य प्रकाश पढ़ता था तो एक दिन एक गुर्जरविद्वान् और परम वैष्णव श्रीलाड़िलीलालजी पधारे। सभी वेदों, पुराणों और छहों शास्त्रोंपर उनका अनोखा अधिकार था। गुरुदेव और उनमें जब धारावाहिक संस्कृतमें वार्तालाप होनेका क्रम चला तो मैं मंत्रमुग्ध होकर सुनने लगा । प्रसंग था श्रीमद्भागवतकी रासपंचाध्यायीका । धीरे-धीरे वे दोनों श्रीमद्भागन्दले श्रीगर्गसंहितापर उतर गये और उसके सरस प्रसंगोंपर ऊहापोह होने लगा। दोके दोनों जैसे अपने ज्ञानका खजाना खोलकर बैठ गये थे। जब कभी कोई संशयका प्रसंग आता तो गुरुदेव गोस्वामीजीके संकेतपर मैं सम्बद्ध ग्रन्थ उनकी इलमारीसे निकालकर दे देता था। विशेषता यह थी कि इतने जटिल प्रसंगपर दोनोंके परिसंवादमें तल्खी नाममात्रको भी नहीं दिख रही थी। कभी-कभी कोई रुचिकर बात आनेपर दोनों ठठाकर हँसते, परस्पर एक दूसरेको वाहवाही देते और पानकी गिलौरी जमाकर फिर अपने-अपने विषयकी व्युत्पत्तिपर डट जाते थे। यह क्रम लगभग तीन घंटे चला। उन ऋषितुल्य महानुभावोंका वह सरस और मृदुल संवाद मेरे जीवनका सम्बल बन गया
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति, सही आख्यान (True narrative)
Indra Vijay
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति, सही आख्यान (True narrative)Indra Vijay
An Old and Rare Book
पण्डित मधुसूदन ओझा ग्रन्थमाला 6 – इन्द्रविजयः – पण्डित मधुसूदन ओझा शोध प्रकोष्ठ | Pandit Madhusudan Ojha Granthamala 6 – Indravijay – Pt. Madhusudan Ojha Research CellSKU: n/a -
English Books, Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Inside Vedas
1951 में भारतीय विद्या भवन से डॉ आर. सी. मजूमदार के निर्देशन में ‘वैदिक ऐज‘ भाग एक प्रकाशित हुआ था। इस भाग में वेदों के विषय में जो विचार प्रस्तुत किये गए थे, वे मुख्यतः सायण, महीधर के वाममार्गी भाष्यकारों और मैक्समूलर, ग्रिफ्फिथ के पश्चिमी अनुवादों पर आधारित थे। स्वामी दयानन्द के वेद विषयक क्रांतिकारी चिंतन की पूर्णतः अनदेखी की गई थी। बहुत कम लोगों को ज्ञात रहा कि अंग्रेजी में आर्यसमाज के सिद्धस्त लेखक श्री पन्नालाल परिहार द्वारा ‘इनसाईड वेदास‘ के नाम से वैदिक ऐज का प्रतिउत्तर प्रकाशित हुआ था। जो अपने आप में अनुपम कृति थी।
इस पुस्तक में लेखक ने अंग्रेजी भाषा में अनेक पाठों के माध्यम से वेदों की उपयोगिता, वेदों की विषय वस्तु, वेदों के भाष्यों और वेदार्थ प्रक्रिया, वेदों के विषय में भ्रांतियां, वेदों में आये विभिन्न सूक्तों में बताये गए सन्देश आदि का परिचय दिया हैं। लेखक ने सायण-महीधर के वेद भाष्य में गलतियां और स्वामी दयानन्द के वेद भाष्य में सत्यार्थ का अच्छा विवरण दिया हैं। वैदिक ऐज में वेद विषयक भ्रांतियों का लेखक ने सुन्दर और सटीक प्रतिउत्तर देकर भ्रमनिवरण किया हैं।
यह पुस्तक अंग्रेजी भाषा में लिखी एक अनुपम कृति हैं। मेरे विचार से विदेशों, दक्षिण भारत और महानगरों में रहने वाले युवाओं को वेद विषयक जानकारी देने में यह पुस्तक एक स्तम्भ का कार्य करेगी। ऐसी पुस्तक को विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के पाठयक्रम में लगाया जाना चाहिए। वर्तमान परिवेश को देखते हुए वेद विषयक अंग्रेजी पुस्तकों की आर्यसमाज को नितांत आवश्यकता हैं। इसके लिए दूरगामी नीति बननी चाहिए।
-डॉ विवेक आर्यSKU: n/a
















