Akbar Khan
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Akshaya Prakashan, Hindi Books, इतिहास
Kashmir Ke Hamlavar (PB)
0 out of 5(0)15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी पाकिस्तान शांति से नहीं बैठा था। उसकी योजना मुख्यतः तीन राज्यों को हड़पने की थी, जूनागढ़, हैदराबाद तथा जम्मू और कश्मीर। प्रथम दो में उसे सरदार पटेल की दृढ़ता के कारण सफलता नहीं मिली, परंतु तीसरा राज्य पंडित जवाहर लाल नेहरू का गृह राज्य था, अतएव इसके संबंध में सरदार पटेल को खुली छूट न मिल सकी। उधर कश्मीर के महाराजा हरि सिंह व उनका मंत्री रामचन्द्र काक जम्मू व कश्मीर को एक स्वतंत्र राज्य बनाए रखने की महत्वाकांक्षा पाले हुए थे। इन्हीं भ्रम की स्थितियों में अक्टूबर 1947 को कबायलियों को सामने रखते हुए पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर पर हमला बोल दिया। क्योंकि महाराजा ने भारत अथवा पाकिस्तान में विलय होने के संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया था, अतएव भारत अपनी सेनाएं नहीं भेज सका, फलतः कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा तेजी से हमलावरों के हाथ में चला गया। भारत अपनी सेनाएं 26 अक्टूबर, 1947 के बाद ही भेज सका जब महाराजा ने कश्मीर के भारत में अधिग्रहण के कागजों पर हस्ताक्षर कर दिए।
यह पुस्तक पाकिस्तान के मेजर जनरल अकबर खान ने लिखी है तथा इस पुस्तक का महत्व इस बात से है कि यह कश्मीर में पाकिस्तानी सेना के हस्तक्षेप का एक जीता-जागता प्रमाण है। एक पख्तून होने के नाते उन्होंने बेबाकी के साथ तथ्यों का विवरण दिया है। यद्यपि उन्होंने कबायलियों द्वारा हिन्दू व सिख निवासियों पर किए गए अत्याचार की पूरी तरह से अनदेखी कर दी है तथापि, अन्य विवरण सत्य के निकट हैं।
इस पूरे प्रकरण में सबसे गंभीर तथ्य, आजाद हिन्द फौज के कुछ पूर्व मुस्लिम सैनिकों का पाकिस्तान की ओर से भारत के विरुद्ध युद्ध करना था। यह उन लोगों के लिए एक अत्यंत अविश्वसनीय घटना थी जो इस्लाम की मूल प्रवृत्ति से अनभिज्ञ थे। इसे अपवाद मान कर उपेक्षित नहीं किया जा सकता।
पांडु की चोटी पर भारतीयों की विफलता का विवरण एक सबक सीखने के काम आ सकता है। किसी भी युद्ध में पीछे हटना, पूर्ण विनाश की पूर्व-भूमिका होती है, यदि पीछे हटने के मार्ग में पर्याप्त सुरक्षा की व्यवस्था नहीं की गई हो।
पुस्तक के अंत के अध्यायों में लेखक विभिन्न रणनीतियों की चर्चा करता है जो भारतीय सेना के लिए तथा आम भारतीयों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। हन्निबल, सिकंदर तथा बाबर की युद्ध नीति का वर्णन, लेखक के उस इतिहास बोध को दर्शाता है जिसका हम भारतीयों में नितांत अभाव है। आज यदि हम जम्मू कश्मीर के खोए हुए भाग को वापस चाहते हैं तो हमें इतिहास से सबक लेना होगा तथा एक रणनीति के तहत कार्य करना होगा। यदि हम ऐसा नहीं करते तो शत्रु वही करेगा जो करता आ रहा है। यदि हमने वर्तमान सीमाओं पर संतोष कर लिया तो हमें एक दिन उसे भी खोना पड़ सकता है। हम अपनी सीमाओं को तभी कायम रख सकते हैं, जब सतत उसे आगे बढ़ाने की चेष्टा करते रहें। वैश्विक परिदृश्य में यथास्थिति जैसी कोई वस्तु नहीं होती, यथास्थिति में रहने वाले को पीछे हटना ही पड़ता है।
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