Bhartiya Sanskriti
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Akshaya Prakashan, Hindi Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatiy Sanskrti Ka Kshitij
“भारतीय संस्कृति के क्षितिज दो विदुषियों के लेखों का संग्रह है। इसके प्रमुख विषय मंगोलिया, जापान, तिब्बत, इंडोनीसिया तथा यूरोप के देशों के साथ के सांस्कृतिक संबंध हैं। इन लेखों के माध्यम से अनेक देशों में विद्यमान भारतीय ज्ञान परम्पराओं पर विदेशी भाषाओं में अनूदित संस्कृत ग्रंथों के अथाह सागर का सिंहावलोकन एवं शताब्दियों से स्थापित सांस्कृतिक संबंधों के विराट स्वरूप के दर्शन होते. हैं। मंगोलिया एवं तिब्बत के विहारों में बौद्ध धर्म से सारा वातावरण जीवंत हो उठता है। इंडोनीसिया एवं अन्य दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में पुष्पित एवं पल्लवित संस्कृति, वहां व्याप्त भारतीय दर्शन, विभिन्न प्रकार की कलाएं एवं संस्कार आदि विषयों के अतिरिक्त, प्रणव एवं चेतना जैसे गहन दार्शनिक तत्वों का विवरण भी इस ग्रंथ में प्रस्तुत है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatiya Sanskriti
भारतीय संस्कृति एक ओर जहाँ सत्य की सतत खोज में रत है और इस खोज के निमित्त जहाँ वे केवल आडंबरों का ही नहीं, बल्कि व्यक्तित्व के हर नाम व रूप के संपूर्ण विसर्जन की पक्षधरता करती है, वहीं दूसरी ओर इस संस्कृति में जैसा अद्भुत समन्वय है वह मानवता के लिए एक श्रेष्ठतम देन है। इस संस्कृति की विशेषता ही यह है कि वह हर बात, हर पक्ष के लिए राजी है तथा और तो और, असत्य को भी परमात्मा की छाया के रूप में मान्यता देती है; क्योंकि लक्ष्य है सत्य और असत्य से ऊपर उठकर, उसका अतिक्रमण करके यह जानने की चेष्टा कि पूर्णत्व है क्या?
—इसी पुस्तक से
प्रखर चिंतक व विचारक नरेंद्र मोहन का भारतीय धर्म, संस्कृति, कला व साहित्य के प्रति विशेष अनुराग रहा। उनके उसी अनुराग ने उनकी लेखनी को यह पुस्तक लिखने की प्रेरणा दी, जिसमें उन्होंने भारतीय संस्कृति के सभी पक्षों पर एक सार्थक चर्चा की है। विश्वास है कि यह कृति भारतीय जनमानस में समाहित भारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठा को और प्रबल करेगी।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Bhartiya Sanskriti ka Pravah
Govindram Hasanand Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनBhartiya Sanskriti ka Pravah
लेखक ने इस पुस्तक में भारत की संस्कृति के जीवन की गाथा सुनाने का यत्न किया है। भारत युग-युगांतरों के परिवर्तनों, क्रांतियों और तूफानों में से निकलकर आज भी उसी संस्कृति का वेष धारण किए विरोधी शक्तियों की चुनौतियों का उत्तर दे रहा है।
यद्यपि सदियों से काल चक्र हमारा शत्रु रहा है, तो भी हमारी हस्ती नहीं मिटी। इसकी तह में कोई बात है, वह बात क्या है? लेखक ने इन प्रश्नों का उत्तर देने का यत्न किया है।
यदि अतीत का अनुभव भविष्य का सूचक हो सकता है तो हमें आशा रखनी चाहिए की भविष्य में जो भी अंधड़ आयेंगे वह हमारी संस्कृति की हस्ती को न मिटा सकेंगे।SKU: n/a