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Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति, सही आख्यान (True narrative)
Daiveey Shakti Sampann Kinnar Aur Kinnar Akhaada
Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति, सही आख्यान (True narrative)Daiveey Shakti Sampann Kinnar Aur Kinnar Akhaada
प्राचीन भारत में कित्ररों का उल्लेख साहित्य, धर्मग्रंथों और सांस्कृतिक परंपराओं में विशेष रूप से मिलता है। किन्नरों का वर्णन बुद्धि, विद्या और बल में सामर्थ्य रखते हुए चित्रित किया गया है। किन्नरों को अक्सर अद्वितीय गुणों और क्षमताओं वाले प्राणी के रूप में देखा गया है, जो देवताओं और मनुष्यों के बीच एक सेतु का कार्य करते थे। उनके सामाजिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक महत्व को विभित्र प्राचीन ग्रंथों और ऐतिहासिक संदर्भों में व्यापक रूप से वर्णित किया गया है। महाभारत में कित्रर रूप में शिखंडी और ब्रह्नलला का स्थान विशेष है। वाल्मीकि कृत रामायण के उत्तरकांड में वर्णित किन्नरों की प्रत्यक्ष उपस्थिति मिलती है।
किन्नरों की सामाजिक स्थिति हमेशा से ही एक बहस का मुद्दा रही है। हालांकि, समय के साथ इस समुदाय ने अपनी पहचान और अधिकारों के लिए संघर्ष किया और समाज में सम्मान प्राप्त करने के लिए कई कदम उठाए। इस संघर्ष और संघर्ष के हिस्से के रूप में किन्नर अखाड़े की स्थापना की गई। किन्त्रर वर्ग के उत्थान और समाज में पर्याप्त सम्मान दिलाने के उद्देश्य को चरितार्थ करने के लिए किन्नर अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी प्रयासरत है।SKU: n/a -
Vani Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Kumbh : Aitihasik Vangmaya
‘कुम्भ’ से सम्बन्धित आख्यानों, कथाओं, मिथकों, रूपकों-प्रतीकों को समेटते हुए महाभारत एवं पुराणों में उल्लेखों-वर्णनों की विवेचना के पश्चात् प्रयाग के कुम्भ की विशेषता को रेखांकित करते हुए, उज्जैन, नासिक एवं हरिद्वार से अलग इसकी पृथक् पहचान स्थापित की है। ब्रह्मा के यज्ञ से लेकर भारद्वाज-आश्रम पर संगम के साथ ही ‘सरस्वती नदी/धारा का वैज्ञानिक सच भी रेखांकित किया है। तत्पश्चात भारतीय इतिहास के प्राचीन, मध्ययुगीन एवं आधुनिक कालों में ‘कुम्भ’ के विवरणों, दस्तावेजों के पुष्ट प्रमाण पर उसका ऐतिहासिक वर्णन किया है। अखाड़ों, उनके ‘शाही स्नान’ और ‘पेशवाई’ को भी ऐतिहासिक तिथियों द्वारा प्रमाण सहित वर्णित किया है। ‘संगम’, ‘प्रयाग’, ‘कुम्भ’ के आयोजन के उल्लेख में हिन्दू पुनर्जागरण में शंकराचार्य का महत्त्व और सांस्कृतिक एकता को दर्शाया है। इस पुस्तक का महत्त्व इसलिए भी है कि पूर्व में लिखी सम्बन्धित पुस्तकों का ‘क्रिटीक’ भी सम्मिलित है।
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