Caste Of Raj. & India
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Aaj Bhi Khare Hain Talab
आज भी खरे हैं तालाब : विश्वभर में बुद्धिजीव निरन्तर दोहरा रहे हैं कि तृतीय विश्वयुद्ध पानी के कारण होगा। राजस्थान में वर्षा का औसत अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम है इसलिए जल-संग्रहण के अनेक उपाय परम्परागत रूप से किये जा रहे हैं। ‘आज भी खरे हैं तालाब’ के लेखक अनुपम मिश्र ने गहराई से राजस्थान के परम्परागत जल संग्रहण के उपायों का विवेचन किया है। प्रस्तुत ग्रंथ में राजस्थान के विभिन्न तालाबों का शोधपरक विवरण प्रस्तुत किया है। अनुपम मिश्र के लेखन की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि उन्होंने सुदूर अंचलों में स्थित तालाबों का सूक्ष्मता से अध्ययन कर उनकी समस्त विशेषताओं को प्रकट करते हुए रोचक शैली में विवरण प्रस्तुत किया है। ‘आज भी खरे हैं तालाब’ की सार्थकता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि अब तक अल्प अवधि में ही इसकी लगभग एक लाख प्रतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। निःसंदेह राजस्थान के जल स्रोतों से संबंधित यह पुस्तक इस दिशा में शोध करने वाले विषयों के साथ ही जल-संग्रहण संबंधी चेतना जागृत करने वालों के लिए भी अत्यन्त ही उपयोगी एवं लाभप्रद सिद्ध होगी।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Barahath Krishna Singh ka Jivan Charitra aur Rajputana ka Apurva Itihas (Part 1-3)
-15%Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणBarahath Krishna Singh ka Jivan Charitra aur Rajputana ka Apurva Itihas (Part 1-3)
बारहठ कृष्णसिंह का जीवन चरित्र और राजपूताना का अपूर्व इतिहास 1850-1998 (भाग 1 से 3) : प्रस्तुत पुस्तक में चारणों की उत्पत्ति और वर्णन, सौदा बारहठों के गोत्र तथा ग्रंथकर्ता का घरू इतिहास, ग्रंथकर्ता बारहठ कृष्णसिंह का जीवन-चरित्र, ग्रंथकर्ता के सिद्धांत और मंतव्या मंतव्य, चित्र : ग्रंथकर्ता बारहठ कृष्णसिंह युवावस्था में, ग्रंथकर्ता के पढ़ने का हाल, ग्रंथ की द्वितीय भूमिका और ग्रंथ लिखने के नियम, राजपूताना की रियासतों का नम्बरवार नक्शा जिसमें रियासतों की आमद, रक़बा, रईस की जाति, सलामी तोप आदि हालात, राजपूताना की रियासतों का मानचित्र, राजपूताना के रईसों के ख़िताब और उनका शब्दार्थ, हिन्दुस्तान की बादशाहत का संक्षिप्त-वृत्तांत, ग्रंथकर्ता बारहठ कृष्णसिंह के जीवन-चरित्र में राजपूताना की रियासतों का इतिहास शुरू होना और गुज़रे हुए रईसों का मुख़्तसर हालात, शाहपुरा के राजाधिराज जगतसिंह का इतिहास, शाहपुरा के राजाधिराज लछमणसिंह का इतिहास, शाहपुरा के राजाधिराज नाहरसिंह का इतिहास, उदयपुर के महाराणा स्वरूपसिंह का इतिहास, उदयपुर के महाराणा शम्भुसिंह का इतिहास, उदयपुर के महाराणा सज्जनसिंह का इतिहास, चित्र : महाराणा सज्जनसिंह, उदयपुर, देवलिया प्रतापगढ़ के महारावत दलपतसिंह का इतिहास, देवलिया प्रतापगढ़ के महारावत उदयसिंह का इतिहास, कोटा के महाराव रामसिंह द्वितीय का इतिहास, कोटा के महाराव शत्रुशाल द्वितीय का इतिहास (एक पृष्ठ त्रुटित), टोंक के नवाब महम्मद अली ख़ाँ का इतिहास, टोंक के नवाब इब्राहिम अली का इतिहास (एक पृष्ठ त्रुटित), बीकानेर के महाराजा सरदारसिंह का इतिहास, बीकानेर के महाराजा डूंगरसिंह का इतिहास, जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह का इतिहास (दो पृष्ठ अनुपलब्ध व तीन पृष्ठ पूर्ण रूप से त्रुटित), जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह का इतिहास, चित्र : महाराजा जसवंतसिंह, जोधपुर, अलवर के महाराव राजा शिवदानसिंह का इतिहास (तीन पृष्ठ त्रुटित), अलवर के महाराव राजा मंगलसिंह का इतिहास (एक पृष्ठ त्रुटित), झालरापाटन के राजराणा पृथ्वीसिंह का इतिहास, झालरापाटन के राजराणा जालिमसिंह का इतिहास, सिरोही के राव उम्मेदसिंह का इतिहास, सिरोही के राव केसरीसिंह की गद्दीनशीनी, करौली के महाराजा अर्जुनपाल का इतिहास, किशनगढ़ के महाराजा पृथ्वीसिंह का इतिहास, किशनगढ़ के महाराजा शार्दूलसिंह का इतिहास, जयपुर के महाराजा रामसिंह का इतिहास (तीन पृष्ठ अनुपलब्ध व एक पृष्ठ त्रुटित), जयपुर के महाराजा माधोसिंह का इतिहास (आधा पृष्ठ अनुपलब्ध), भरतपुर के महाराजा जसवंतसिंह का इतिहास (तीन पृष्ठ अनुपलब्ध व दो पृष्ठ त्रुटित), बूंदी के महाराव राजा रामसिंह का इतिहास, बूंदी के मिश्रण सूर्यमल्ल और ग्रंथ आदि का तीन खण्डों में विस्तृत वर्णन किया गया है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Chittor ki Maharani Padmini ki Aitihasikata
चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी की ऐतिहासिकता : अपनी मातृभूमि और संतति की रक्षा, अपनी आन तथा अस्मिता को अक्षुण्ण रखने की टेक और अपने कुल के सत और गौरव पर प्रहार का सामना करने के लिए कटिबद्ध हो जाना मनुष्य मात्र का स्वभाव है, नैसर्गिक गुण है। कुछ समुदाय व कुल इसको इतना अधिक महत्त्व देते हैं कि प्राणों का बलिदान करने में भी नहीं हिचकते। उनका यह बलिदान लगभग सभी संस्कृतियों में सराहा जाता है और उसका गौरव-गान किया जाता है। ऐसी मार्मिक घटनाओं पर राजनैतिक इतिहासकार वाद-विवाद, छिद्रान्वेषण करते ही रहते हैं पर ऐसी सभी बाधाओं को पार कर चित्तौड़ की पद्मिनी और उसके परिवार का ऐसा ही बलिदान अपने गढ़ से निकलकर जनश्रुति और लोक कलाओं के माध्यम से काल प्रवाह के साथ मेवाड़ और राजपूताने से होता हुआ समस्त भारत में फैल गया। आज तो यह गाथा मानव संस्कृति की धरोहर का एक अंग बन गई है। पद्मिनी की प्रसिद्धि चारों ओर फैली। सूफी कवि जायसी ने अवधी बोली में पद्मावत लिखा, अवधी से इसका अनुवाद दक्खिनी हिन्दी में हुआ, साथ ही इस गाथा पर आधारित रचनाएँ दक्षिण में भी होने लगी। 17वीं शती में तो द्विलिपिय रचनाएं आने लगीं, विशेषकर राजपूत मनसबदारों के लिए ऐसी पुस्तकें फारसी और देवनागरी दोनों लिपियों में लिखी जाती थी। आंबेर के राजाओं के संग्रह में ऐसी पुस्तकें उपलब्ध हैं। 16वीं से 19वीं शती तक प्रतिकृतियाँ तैयार होती रहीं और चित्रकार पद्मिनी की गाथा अंकित करते रहे। जोगी-गायक इसका गायन करते रहे, न तो कवियों व लेखकों की लेखनी रूकी और न ही चित्रकारों की तूलिका।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Col. James Tod krit Rajasthan ka Puratatva evam Itihas (PB)
-15%Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिCol. James Tod krit Rajasthan ka Puratatva evam Itihas (PB)
जैम्स टॉड कृत महान पुस्तक “राजस्थान का पुरातत्व एवं इतिहास” के नवीन संस्करण को प्रकाशित करने की बात को कोई भी व्यक्ति हल्केपन से नहीं ले सकता। महायुद्व में राजपूतों के महान योगदान को देखकर इम्पीरियल कॉन्फरेंस में इनके प्रतिनिधि को आमंत्रित किया है और यह निश्चित है कि वर्तमान महाविपत्ति के समाप्त होते ही भारतीय प्रशासन में राजपूतों को और अधिक बड़ा भाग सौपा जायेगा। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए यह अभिलाषा उत्पन्न हुई कि राजपूतों के पुरातत्त्व, इतिहास एवं उनकी सामाजिक संस्कृति को प्रकाशित कर उसे जनता के सामने प्रस्तुत किया जावे। यह पुस्तक अपने आप में उत्कृष्ट कालजयी साहित्य है और उसके साथ हमारा व्यवहार भी ऐसा ही होना चाहिए। स्वयं राजपूतों के लिये एवं उन भारतीयों के लिए जो अपने देश का इतिहास जानने में रूचि रखते है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Col. James Tod krit Rajasthan ka Puratatva evam Itihas (vol. 1, 2, 3)
-10%Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिCol. James Tod krit Rajasthan ka Puratatva evam Itihas (vol. 1, 2, 3)
जैम्स टॉड कृत महान पुस्तक “राजस्थान का पुरातत्व एवं इतिहास” के नवीन संस्करण को प्रकाशित करने की बात को कोई भी व्यक्ति हल्केपन से नहीं ले सकता। महायुद्व में राजपूतों के महान योगदान को देखकर इम्पीरियल कॉन्फरेंस में इनके प्रतिनिधि को आमंत्रित किया है और यह निश्चित है कि वर्तमान महाविपत्ति के समाप्त होते ही भारतीय प्रशासन में राजपूतों को और अधिक बड़ा भाग सौपा जायेगा। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए यह अभिलाषा उत्पन्न हुई कि राजपूतों के पुरातत्त्व, इतिहास एवं उनकी सामाजिक संस्कृति को प्रकाशित कर उसे जनता के सामने प्रस्तुत किया जावे। यह पुस्तक अपने आप में उत्कृष्ट कालजयी साहित्य है और उसके साथ हमारा व्यवहार भी ऐसा ही होना चाहिए। स्वयं राजपूतों के लिये एवं उन भारतीयों के लिए जो अपने देश का इतिहास जानने में रूचि रखते है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Deshbhakt Durgadas Rathore
देशभक्त दुर्गादास राठौड़ : मारवाड़ के शौर्यपुत्र दुर्गादास राठौड़ में अनेकानेक गुणों का समावेश था। निर्भिकता, स्वामिभक्ति, त्याग, निर्लोभ भावना, सत्यता, सहिष्णुता, शीघ्र निर्णय, संगठन, वीरता सर्वस्व न्यौछावर भावना, धर्मरक्षण, शरणागतत्सलता, स्वाभिमान एवं राष्ट्रीयता के साथ उच्च चरित्र एवं निष्काम भावना जैसे अनेक प्रण उसके सामने थे और किसी रियासत का राजा न होकर एक साधारण सामन्त के नाते दुर्गादास राठौड़ ने अपने जीवन में इन सभी गुणों को एक साथ निभाया, यही उसके चरित्र की विशेषता रही है। राजस्थान की भूमि वीर-प्रसविनी वसुन्धरा रही है जिसमें मरुधरा का विशेष महत्व है। इसी तरह दुर्गादास राठौड़ का औरंगजेब के खिलाफ किया गया दीर्घकालन संघर्ष उसे चरित्र का एक गौरपूर्ण अध्याय है।
औरंगजेब के अत्याचारों की कहानी से जनमानस संतप्त था,उस समय उसकी महान शक्ति से टक्कर लेकर भारतीय लोक जीवन केमनोबल को बनाये रखने में वीर दुर्गादास का तीस वर्षों का लम्बा संघर्ष अपने आप में एक आदर्श है। यह संघर्ष सत्ता हथियाने के लिए प्राणोत्सर्ग करने का संकल्प नहीं था वरन् अत्याचार के विरुद्ध अपने स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए अनुपम अनुष्ठान था। वीर दुर्गादास राठौड़ का एक महत्तम शक्ति सम्पन्न बादशाह के खिलाफ किया गया दीर्घकालीन संघर्ष निष्काम भावना से मात्र प्रण-पालनार्थ राठौड़ की विजय ही नहीं हुई अपितु मुगल वंश की साम्राज्य सत्ता का ही पराभव प्रारम्भ हो गया था। इस दृष्टि से यह ग्रन्थ एक स्तुत्य प्रयास है। वास्तव में यह ग्रन्थ आज के राजनीतिज्ञों एवं कल की भावी सन्तान के लिए पठन एवं मनन योग्य है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Kshatriya Jati ki Suchi
क्षत्रिय जाति की सूची : ‘क्षत्रिय जाति की सूची’ में समस्त क्षत्रियों की एकता और संगठन के लिए एक प्रशस्त एवं सर्वतो-भद्र सभागार के अनुरूप है, जिसका सृजन आधुनिक युग के प्रभात में लगभग एक शताब्दी पूर्व हुआ था। इस पुस्तक में भारत के प्राचीन इतिहास, पुराणों में वर्णित सभी क्षत्रिय-कुलों के वर्णन के अतिरिक्त मध्य-युग में राजस्थान के क्षत्रिय-कुलों की शाखाओं का भी वर्णन हुआ है। आधुनिक युग में इस प्रकार की यह प्रथम पुस्तक है, जिससे समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप क्षत्रियों को संगठित होने में बहुत महत्वपूर्ण सहायता मिलेगी। इस दृष्टि से इस पुस्तक के रचयिता ठाकुर बहादुर सिंह, बीदासर, का यह संग्रह उनकी दूरदर्शिता एवं जाति-प्रेम का परिचय देता है। भारत के प्राचीन क्षत्रियों को आधुनिक क्षत्रिय समाज से जोड़ने के लिए यह संग्रह एक सुदृढ एवं time tested सेतुबन्ध का कार्य भी करता है और इस प्रकार हमें भगवान राम, कृष्ण, बुद्ध एवं महावीर के धर्म-सम्मत जीवन-व्यवहार और सम्राट अशोक, विक्रमादित्य, भोज और हर्षवर्द्धन के प्रजा-हितैषी कार्यों से प्रोत्साहित होने की प्रेरणा देता है। आशा है क्षत्रिय-समाज अपने संगठित बल से ऋषियों द्वारा स्थापित अपने कर्तव्यों के निर्वाह-स्वरूप राष्ट्रीय सुरक्षा, राजनैतिक और प्रशासनिक कुशलता और जन-कल्याण की भावनाओं के प्रति क्रियाशील एवं सजग रहकर अन्य समाजों से मैत्री तथा सुहृदयता के सम्बन्ध सुदृढ़ करते हुए अपने बहुमुखी कर्तव्यों के प्रति तन-मन-धन से ससंकल्प उन्मुख होगा।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Kshatriya Samaj ki Kuldeviyan
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियांKshatriya Samaj ki Kuldeviyan
क्षत्रिय समाज की कुलदेवियाँ : ईश्वर के प्रति प्रेम अथवा भक्ति के स्वरूप का भाषा के द्वारा बखान करना बड़ा कठिन मार्ग है। उपासना एवं पूजा ऐसे ही तत्त्व की हो सकती है, जिसे परम रूप में पूर्ण समझा जा सके। ईश्वर विनम्र है, यही कारण है कि भक्त अपने को सर्वथा ईश्वर की दया के ऊपर छोड़ देता है।
नारद सूत्र में भक्ति के विभिन्न प्रकार मिलते हैं। सच्ची भक्ति निःस्वार्थ आचरण के द्वारा प्रकट होती है। भक्त की श्रद्धा एवं विश्वास भक्ति का मूल आधार कहा जा सकता है। इसी रूप में कुलदेवियों की परम्परागत पूजा-अर्चना अलग-अलग वंशधरों में पूजीत हो रही है, जो कुल की रक्षा करने का दायित्व ग्रहण करती है। प्रस्तुत पुस्तक में क्षत्रिय वंश की कुलदेवियों पर प्रकाश डाला गया है। देवी से प्राप्त ज्ञान अर्जन, उनके प्रति रीति-रिवाज एवं परम्पराओं का बोध कराने में यह ग्रन्थ उपयोगी सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Literature & Fiction, Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Lokavlokan (Lok Jeevan Evam Lok Sahitya Sambandhi Lekh)
Literature & Fiction, Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिLokavlokan (Lok Jeevan Evam Lok Sahitya Sambandhi Lekh)
लोकावलोकन (लोक जीवन एवं लोक साहित्य सम्बन्धी लेख) : सुपर बाजार में सब्जी खरीदते हुए हम माली के बारे में नहीं सोचते, ऐसे ही कला को जब हम मात्र मंच पर से विशिष्टजनों के लिए प्रक्षेपित या सेवार्पित की जाती हुई जिंस बना देते हैं तब हम कलाकार और उस कला के व्यापक और निर्णायक आर्थिक-सामाजिक मानवीय पहलुओं को नजरअन्दाज कर देते हैं। यदि परम्परा के मूल और मूल्यवान अंशों की रक्षा होनी है, तो सांस्कृतिक संध्याओं के मौसमी ढोल-ढमाके के परे कुछ ज्यादा ठोस, ज्यादा सुचिंतित और ज्यादा सतत प्रयासों की दरकार रहेगी। इन विधाओं, उनकी विशेषताओं और उनसे जुड़े वाद्ययंत्रों को बचाना है, तो उन्हें नये सन्दर्भों में नई सार्थकता देनी होगी। तीन संकट हैं :- संकुचन-विलोपन, अवमिश्रण-पनीलापन, विरूपण-वर्णसंकरण-शायद तीन ही संभव निदान हैं। कुछ चीजों को लगभग ज्यों-का-त्यों बनाये रखने का प्रयास, उनके ही ठीए पर, गुरु शिष्य परम्परा आदि के माध्यम से ‘सम्प्रेषण’ (ट्रांसमिशन)। शेष का अनुकूलन, रूपान्तरण, प्रतिरोपण-एडैप्टेशन, ट्रांसफौर्मेशन, ट्रांसप्लान्टेशन। इन दोनों के लिए असाध्य, शेष मरणोन्मुख की यादगार, पहचान संजोना, शव का परिरक्षण-ममिफिकेशन जैसा, म्यूजियम में रखने जैसा। कुछ लोग पूरी सदेच्छा से, लोकवार्ता को रखने के लिए लोक संस्कृति की संबंधित सीप को बनाये रखने की बात करते हैं। यह अव्यावहारिक दुराशा है। कुछ और उतनी ही सदेच्छा से कहते हैं कि लोक-कला सीखने-सिखाने की चीज नहीं है, रूपान्तरण, अनुकूलन से उसका मूल स्वरूप नष्ट होता है। मत करिये, वह जहां है वहीं अपना मूल स्वरूप लिए-दिए नष्ट हो जाने वाली है। फिर, विरूपण तो बिना एडैप्टेशन, बिना हमारे चाहे भी तो हो ही रहा है।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Marwar mein Jatiya Panchayat aur Samaj
प्रस्तुत पुस्तक ‘मारवाड़ में जातीय पंचायत और समाज’ में राजस्थान की देशी रियासतों में से सबसे बड़ी रियासत जोधपुर राज्य में 1818 से पूर्व लगभग 100 वर्षों में प्रचलित न्याय व्यवस्था की एक पक्ष जातीय पंचायतों की कार्यप्रणाली पर विस्तृत प्रकाश डाला। साथ ही उस समय की विभिन्न जातियों की संस्कृति की विस्तृत विवेचना की, जिसमें यहाँ रहने वाली जातियों के रहन-सहन, रीति-रिवाजों एवं उनमें प्रचलित अनेक प्रथाओं की विषद विवेचना कि हैं। जातीय पंचायतों के स्वरूप, संगठन, प्रकार, कार्य पद्धति एवं उनके क्षेत्राधिकार का विस्तृत वर्णन किया।
इस पुस्तक में लेखक ने जातीय पंचायतों की समाज में भूमिका पर विस्तृत विवेचना के साथ ही जातीय पंचायतों के समक्ष आने वाले प्रमुख वाद एवं उस समय प्रचलित दंड व्यवस्था का विस्तृत उल्लेख भी किया है।
इस काल में सम्बंधित देशी रियासत एवं जातीय पंचायतों के सम्बंधों के बारे में भी बताया तथा समाज में आर्थिक राजनीतिक एवं न्यायिक महत्व के बारे में भी पुस्तक में चर्चा की गई है।
इन मुद्दों को यह जातीय पंचायतें कितना प्रभावित करती थी, इन पर भी पुस्तक में विस्तृत विवेचना की गई है। इस प्रकार लेखक ने अंग्रेजों से आने से पूर्व प्रचलित न्याय व्यवस्था को विस्तृत रूप से बताने का प्रयास किया है, जिससे आधुनिक न्याय प्रणाली एवं पूर्व प्रचलित न्याय प्रणाली के बीच तुलना की जा सके तथा इनके गुण दोषों को भी जाना जा सके। लेखक ने इस विषय पर एक सराहनीय प्रयास किया है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Meena Samaj ki Kuldeviyan
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियांMeena Samaj ki Kuldeviyan
मीणा समाज की कुलदेवियां : मानव आदिकाल से ही शक्ति की उपासना करता आया है। शक्ति का आदि स्वरूप देवी है। यह आद्याशक्ति सनातन शक्ति प्रकृति है, समस्त जगत की उत्पत्ति उसी से हुई, वही विश्व की जननी है। प्रत्येक सम्प्रदाय में देवी की उपासना परम्परा रही है। भारतीय संस्कृति में देवी की महिमा प्रतिष्ठापित है तथा समाज में देवी पूजा की जड़े बहुत गहरी हैं। प्रत्येक कुल की अधिष्टात्री देवी को कुलदेवी के रूप में पूजने की यहाँ परम्परा रही है। इसी कारण हर कुल की अपनी कुलदेवी स्थापित है और वह उस कुल की वंश वृद्धि और समृद्धि की प्रदाता मानी जाती है। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने प्रयास करके मीणा समाज की 51 कुलदेवियों के सम्बद्ध में जानकारी व परिचय दिया है, जो उत्कृष्ट अन्वेषण के आधार पर आधारित है। मीणा समाज के लिए और उनके गोत्रों की पृथक-पृथक कुलदेवियों सम्बन्धी यह विवरण उपयोगी और पठनीय हैै। इससे मीणा समाज के लोग अवश्य लाभान्वित होंगे।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Mer Kshatriya Jati ka Itihas
मेर क्षत्रिय जाति का इतिहास :
मनुष्य के जन्म के समय ही उसकी जाति धर्म आदि तय हो जाते हैं। उस समय ना तो वह अपनी जाति के बारे में जानता है और ना ही अपने धर्म के बारे में। मनुष्यों के द्वारा ही धर्म और जातियों को बनाया गया।
हिन्दू धर्म में कर्म को प्रधानता दी गई है। यदि आप पुश्तैनी कर्म को छोड़कर अन्य कर्म अपनाते है तो उसी क्षण आपकी जाति बदल जायेगी। यह कर्म ही तो है जो नये-नये समाज का निर्माण करते आये है। वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण, शूद्र आदि का निर्माण कर्म के आधार पर ही तो हुआ है एवं इस कार्य प्रधान हिन्दू धर्म में किसी जाति के निर्माण में किसी दूसरी जाति या व्यक्ति का कोई दोष नहीं है। यह तो अमूक जाति के महापुरुषों के कर्मों की देन है और आज उन्हीं महापुरुषों के वंशज वर्तमान जाति में निवास करते हैं।
भारत देश में हिन्दू धर्म की प्रधानता है। हिन्दू धर्म में पहले तो कर्म के आधार पर वर्ण और जातियाँ तय होती थी लेकिन अब हिन्दू धर्म का विभाजन दलित और स्वर्ण के रूप में उभर कर सामने आया है। आज़ादी के बाद नये वर्गों सामान्य वर्ग, अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियाँ आदि का निर्माण हिन्दू धर्म के लिए घातक साबित हुआ है।
कोई भी जाति दलित नहीं है, उनके कर्म ही उनको दलित बनाते हैं। कोई भी जाति स्वर्ण नहीं है, उनके कर्म ही उनको पूजनीय बनाते हैं। इस देश में कोई दलित नहीं कोई स्वर्ण नहीं है। राजनीति ने हिन्दू समाज को बिखेर दिया है। जातियों का जब मैनें अध्ययन किया तो चैकाने वाले तथ्य सामने आये।
मीणा जाति मध्यप्रदेश के श्योपुर एवं आस-पास के जिलों में अन्य पिछड़ा वर्ग में है एवं राजस्थान की तरह अनुसूचित जनजाति में नहीं। उनके साथ ऐसा कोई भेद भाव नहीं किया जाता है। इतिहास की नज़र से देखा जाए तो मीणा जाति ने हाड़ाओं से पहले हाड़ौती व कछवाहों से पहले ढुँढाढ़ पर राज्य किया था।
कोली (शाक्य, महावर) जाति राजस्थान राज्य में अनुसूचित जाति में आती है लेकिन गुजरात राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं। स्वतंत्रता संग्राम में गुजरात के कोली समाज ने योगदान दिया था। मांधाता कोली का गुजरात में राज्य हुआ करता था। उत्तराखण्ड में कोली राजपूत होते हैं। भगवान बुद्ध स्वयं क्षत्रिय राज्य कोली वंश के राजकुमार थे।
गुर्जर जाति कश्मीर में अनुसूचित जनजाति में शामिल है जबकि राजस्थान में अन्य पिछड़ा वर्ग में है। इतिहास में गुर्जर जाति को प्रतिहार राजवंश से जोड़कर देखा जाता है। वैष्णव सम्प्रदाय के लोग ब्राह्मण होते हैं, जो सामान्य वर्ग में आते हैं लेकिन कोटा के ग्रामीण अंचल में वैष्णव बाबाजी अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल है। राजपूत सामान्य वर्ग में आते हैं लेकिन कई क्षेत्रों के राजपूत जैसे सोंधिया (मालवा), रावत (मेवाड़-मारवाड़) राजपूत अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल है।
ऐसी ही कई सैकड़ों जातियाँ हैं, जो एक क्षेत्र में कथित दलित समुदाय का हिस्सा है तो अन्य क्षेत्रें में कथित स्वर्ण समाज के रूप में देखी गई हैं।
अगर इस बात को समझ लिया जाए तो दलित-स्वर्ण के झगड़े हमेशा के लिए समाप्त हो सकते हैं। कर्म से व्यक्ति दलित या स्वर्ण हो सकता है लेकिन जाति से कोई भी दलित या स्वर्ण नहीं हो सकता हैं।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Rajasthan ke Pramukh Sant evam Lokdevta
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांRajasthan ke Pramukh Sant evam Lokdevta
राजस्थान के प्रमुख संत एवं लोक देवता : राजस्थान के मध्यकालीन कवि ईसरदास की ‘परमेसरा’ के रूप में पूजा और साथ ही वीर-योद्धाओं की ‘जूंझारजी’ के रूप में अर्चना इस ‘धोरा-धरती’ की लेखनी एवं खड्ग के सामर्थ्य की साक्षी है। इस क्षेत्र की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति ने इसे एकान्तिक साधना एवं मौलिक चिन्तन की एक समृद्ध परम्परा प्रदान की है। धर्म-अध्यात्म की एक ऐसी अविरत धारा को प्रवाहित किया, जिसका रसास्वादन युगों से होता रहा है। अधिकांश अध्येताओं को राजस्थान की समृद्ध संस्कृति इस आध्यात्मिक पक्ष की अपेक्षा शौर्य-गाथाओं के विवरण अधिक आकर्षित करते रहे है। राजस्थान की आध्यात्मिक संस्कृति के अध्ययन की आवश्यकता के दृष्टिकोण से इस ग्रन्थ का प्रणयन किया गया।
राजस्थान की धार्मिक-आध्यात्मिक परम्परा के सृजन एवं संवर्द्धन का अपना व्यक्तित्व है, अपनी पहिचान है। इस सर्वग्राही समष्टिवादी प्रवृति का अपना मूल्य है। इस दृष्टि से इस संस्कृति के प्रणेताओं तथा उनकी विचार-वृति का अध्ययन न केवल अपेक्षित है प्रत्युत अनिवार्य भी है। इसकी समसामयिक तथा साम्प्रतिक प्रासंगिकता तथा उपयोगिता भी सर्वथा प्रमाणित है। प्रस्तुत ग्रंथ में संत-लोक देवता संस्कृति के महत्वपूर्ण आयामों पर प्रकाश डालने का उद्यम किया गया है। आशा है कि विद्धान पाठकों के लिए यह उपादेय सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajasthan ke Veer Jujhar
राजस्थान के वीर जुझार : यह मान्यता भी प्राचीन ग्रन्थों में स्थापित मिलती है कि निरन्तर युद्ध लड़ते रहने वाले ऐसे वीर हमारे यहां हुए हैं कि वे रणस्थल नहीं छोड़ते, सिर कट जाने पर भी युद्ध करते रहते हैं। जीते जी तो युद्धरत रहते ही हैं किन्तु ऐसे वीर सिर गिर जाने पर भी शस्त्र न छोड़कर शत्रुओं का संहार कर देते हैं। बिना सिर वाले (नीचे वाले) शरीर को संस्कृत में ‘कबन्ध’ कहा जाता है। राहु और केतु की कथा सुविदित है, राहु केवल सिर हैं, केतु नीचे वाला शरीर। रामायण, महाभारत, रघुवंश आदि संस्कृत ग्रन्थों के बाद प्राकृत, अपभ्रंश, लोकभाषाओं के आदि के काव्यों में भी ऐसे वर्णन हमें इसी कारण प्राप्त होते हैं, जिनमें युद्ध में (अथवा राहु केतु वाली किसी अन्य घटना के फलस्वरूप) कबन्ध अर्थात् धड़ भी कुछ समय तक लड़ता रहा अथवा प्राण सहित रहा। बाद में ऐसे योद्धाओं के अभिलेख भी रचे गए, जिन्होंने शिरच्छेद के बाद भी युद्ध किया। ऐसे योद्धाओं को जो नाम दिए गए, उनमें एक नाम है ‘जुझार या जूंझार’। जुझारू का अर्थ होता है योद्धा यह सुविदित है। ऐसे योद्धाओं की जो रोमांचक कथाएं रामायण, महाभारत आदि से लेकर मध्यकाल के काव्य ग्रन्थों और इतिहास ग्रन्थों में भी उपलहध होती है, वे दिल दहला देने वाली होती है, यह तो स्पष्ट ही है। ऐसे योद्धाओं में से अनेकों को समाज देवता मानकर पूजने भी लगा था। कुछ योद्धा लोकदेवताओं के मन्दिर, पूजास्थल या स्मारक आज भी देखे जा सकते हैं। राजस्थान में ऐसे जुझारों की गाथाएँ कुछ शताब्दियों से पाई जाती हैं। आज के प्रबुद्ध पाठक की यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि इस बात की तलाश की जाए कि कबन्धों या जुझारों की ऐसी प्रमुख गाथाएं कहां हैं, उनका क्या स्वरूप है, क्या उनके आधार पर कोई महल, मन्दिर, चित्र या अभिलेख भी तैयार हुए हैं आदि।
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Rajasthani Granthagar, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Rathoron ki Kuldevi Shri Nagnechiyan Mata
Rajasthani Granthagar, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यासRathoron ki Kuldevi Shri Nagnechiyan Mata
राठौड़़ों की कुलदेवी श्री नागणेचियाँ माता : दो शब्द भारत में शक्ति की उपासना प्राचीनकाल से ही अनवरत चली आरही है। अभिलेखीय प्रमाणों से शक्ति की उपासना के अनगिनत प्रमाण मिलते है। मध्यकाल में, जीवन में युद्व और भय का वातावरण बना रहने से सूरवीर शक्ति के अवतार दुर्गा को अपनी आराध्या मानते थे। युद्व के समय योद्वा ‘जय माताजी’ का उद्घोष्ष किया करते थे। वैदिक युग से ही शक्तिपुजा का बड़ा महत्व रहा है। शक्ति के विविध अवतारों की पुजा-अर्चना का उल्लेख महाभारत काल में ही मिलता है। मूलतः बल और बुद्वि-प्रदाता के रूप में शक्ति की उपासना युगो-युगों से होती आई है और आज भी शकित के विविध रूपों की आराधना कर मनुष्ष्य अपने मनोवांछित फल प्राप्त करने की चेष्ष्टा करता रहा है। यह सर्वविदित है कि प्रत्येक कुल या जाति की एक कुलदेवी होती है, जो उस कुल-जाति की रक्षा करती है। राठौड़ वंश में कुलदेवी के रूप में नागणेचियां माताजी पूजित है। परम्परा से पूर्व में राठेश्वरी, चक्रेश्वरी, पंखिणी आदि नामों से राठौड़ों द्वारा पूजी जाती रही है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
The Castes of Marwar (Census Reprot of 1891)
The Castes of Marwar (Census Reprot of 1891)
It is always interesting to know something about the people with whom we have to deal and to learn their ways, manners, and customs is an amusing task. The want of a book containing descriptions of the various tribes and castes of Marwar was long felt. No attempt has hitherto been made to undertake the work on account of a great many difficulties that attended its achievement. But the census of Marwar for 1891, the charge of which was entrusted to the undersigned, made the way clear and easy. The Darbar sanctioned the publication of such a work, and the census tours made throughout the country for the purpose of inspecting the preliminary arrangements of the districts afforded suitable opportunities for the collection of the required material. The census Supervisors and Inspectors, as well as the Pargana Hakims, were provided with a set of questions dealing with the chief points to enable them to collect information regarding the ways and other social circumstances of the people, but a good many facts were investigated through personal inquiries from trustworthy representatives of various communities. Many valuable references were also obtained from the Annals and Antiquities of Rajasthan by Col. Tod. the Punjab Census Report of 1881 by Mr. Danziel Ibbetson, the Hindu tribes, and castes by the Revd. M. A. Sherring, the Races of the North-Western Provinces by Sir Henry Elliot, the Memoir of Central India by Sir John Malcolm, the Indian castes by John Wilson, also the Gazetteers of Rajputana and several other publications, to the authors of all of which the undersigned owes a good deal of obligation.
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