Caste system
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Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Jaat Itihas
लेखक की मान्यता है कि काला सागर के समीप प्रथम मानव का उद्भव हुआ। प्राकृतिक प्रकोपों के कारण वहां से लोग इधर-उधर चले गए। एक समुदाय भारत की ओर भी आया, वह आर्यों के नाम से जाना गया। कालान्तर में, भारतीय आर्य वर्ण एवं जातियों में विभाजित हो गए। जाटों का प्रादुर्भाव भी इसी वर्गकरण का प्रतिफल था। जाटों ने संघबद्ध जीवन पद्धति को बनाए रखा और धार्मिक-सामाजिक रूढ़ियों से मुक्त रहे। फलतः पुरोहित तथा राजा के गठबंधन से उनको संघर्ष करना पड़ा। संघर्ष में उनकी जीतें भी हुई और हारें भी। विवशतावश, वे पुनः एशिया और यूरोप के देशों की ओर गए और बड़े राज्यों का ध्वन्स करके अपने उपनिवेश स्थापित किए।
विरोधी परिस्थितियों के कारण वे फिर भारत की ओर आए और सिन्ध, पंजाब, मालवा, गुजरात और गंगा-यमुना के क्षेत्रों में बस गए। कालान्तर में उन्होंने हूणों को देश से बाहर भगाया और प्रायः प्रत्येक आक्रमणकारी का प्रतिरोध करके भारत की राजनीतिक स्थिति के निर्माण में योगदान दिया। जाटों ने, ईसापूर्व से लेकर ईसा की अठारहवीं शती तक विदेशी आक्रमणकारियों के साथ इतनी तलवार बजाई कि उसकी समता भारतीय इतिहास में नहीं मिलती। वे लेखनी से अपना इतिहास लिखने की ओर से उदासीन रहे, अतः उनकी राष्ट्रीय एवं ऐतिहासिक महत्त्व की भूमिका अंधकार में पड़ गई। यह इतिहास-ग्रंथ जाटों का ऐतिहासिक महत्त्व के राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक कार्यों पर प्रकाश डालता है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Jati Bhaskar
जाति भास्कर : हमारे देश में वर्ण, जाति, गोत्र, अवटंक, शाखा-प्रशाखादि की मान्यताएं बहुत पुराने समय से रही हैं। प्रत्येक समुदाय में इस तरह की मान्यताएं विदेशी अध्येताओं के लिए बहुत रोचक विषय रही। वर्ण और जाति का विचार कब जागा, स्पष्ट कहा नहीं जा सकता, लेकिन 1847 में रौथ ने आर्य और आर्येतर समाजों के सम्बन्ध में जिस विचार को रखा तो वैदिक सन्दर्भों को टटोला जाने लगा और ज्ञात हुआ कि आर्यों के देवता इन्द्र दासों के विजेता रहे। इन्द्र ने दस्युओं का विनाश किया और आर्यवर्ण की सुरक्षा की। वर्ण की रक्षा का भाव बहुत बाद में गीता जैसे ग्रंथ में भी आता है। आरम्भ में आर्यों का समुदाय आधारित जीवन था और गण, सभा, समिति सहित विदथ जैसी सामुदायिक संस्थाएं होती थीं, जिनके माध्यम से यज्ञादि कार्यों पर विचार होता और पशुधन आदि की चिंता को अभिव्यक्त किया जाता था। प्रारम्भिक पुराणकाल में समाज में चतुर्वर्ग की व्यवस्था का प्रतिपादन किया गया है। जातियों का वर्गीकरण कठिन है और फिर जातियों के उद्भव और विकास को पहचान पाना भी बड़ा जटिल है। आक्रमणों के बावजूद अविच्छिन्नता व टिके रहना भारतीयों का जातीय गुण रहा, पवित्रता व अपवित्रता जैसे भाव और उनका अनुकरण व्यवहार्य रहा, कुलों के अन्दर ही सर्वप्रकारेण व्यवहार रुचिकर रहा, पेशों का पक्ष और श्रम की बुनियाद अक्षुण्ण रही- ऐसे कई कारण हैं जिनके फलतः जातियों का अस्तित्व बना रहा। हालांकि विदेशी अध्येताओं ने जहाँ विदेशियों के सम्मिश्रण सम्बन्धी मत दिए हैं, वहीं भारतीयों ने अपने ढंग से यहाँ की जातिगत पहचान को स्थिरीकृत करने का प्रयास किया है। विश्वास सबके अपने-अपने हैं। न जाने कितनी सदियाँ गुजरी और अभी और गुजरेगी।
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Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Kshatriya Jati ki Suchi
क्षत्रिय जाति की सूची : ‘क्षत्रिय जाति की सूची’ में समस्त क्षत्रियों की एकता और संगठन के लिए एक प्रशस्त एवं सर्वतो-भद्र सभागार के अनुरूप है, जिसका सृजन आधुनिक युग के प्रभात में लगभग एक शताब्दी पूर्व हुआ था। इस पुस्तक में भारत के प्राचीन इतिहास, पुराणों में वर्णित सभी क्षत्रिय-कुलों के वर्णन के अतिरिक्त मध्य-युग में राजस्थान के क्षत्रिय-कुलों की शाखाओं का भी वर्णन हुआ है। आधुनिक युग में इस प्रकार की यह प्रथम पुस्तक है, जिससे समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप क्षत्रियों को संगठित होने में बहुत महत्वपूर्ण सहायता मिलेगी। इस दृष्टि से इस पुस्तक के रचयिता ठाकुर बहादुर सिंह, बीदासर, का यह संग्रह उनकी दूरदर्शिता एवं जाति-प्रेम का परिचय देता है। भारत के प्राचीन क्षत्रियों को आधुनिक क्षत्रिय समाज से जोड़ने के लिए यह संग्रह एक सुदृढ एवं time tested सेतुबन्ध का कार्य भी करता है और इस प्रकार हमें भगवान राम, कृष्ण, बुद्ध एवं महावीर के धर्म-सम्मत जीवन-व्यवहार और सम्राट अशोक, विक्रमादित्य, भोज और हर्षवर्द्धन के प्रजा-हितैषी कार्यों से प्रोत्साहित होने की प्रेरणा देता है। आशा है क्षत्रिय-समाज अपने संगठित बल से ऋषियों द्वारा स्थापित अपने कर्तव्यों के निर्वाह-स्वरूप राष्ट्रीय सुरक्षा, राजनैतिक और प्रशासनिक कुशलता और जन-कल्याण की भावनाओं के प्रति क्रियाशील एवं सजग रहकर अन्य समाजों से मैत्री तथा सुहृदयता के सम्बन्ध सुदृढ़ करते हुए अपने बहुमुखी कर्तव्यों के प्रति तन-मन-धन से ससंकल्प उन्मुख होगा।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Kshatriya Samaj ki Kuldeviyan
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियांKshatriya Samaj ki Kuldeviyan
क्षत्रिय समाज की कुलदेवियाँ : ईश्वर के प्रति प्रेम अथवा भक्ति के स्वरूप का भाषा के द्वारा बखान करना बड़ा कठिन मार्ग है। उपासना एवं पूजा ऐसे ही तत्त्व की हो सकती है, जिसे परम रूप में पूर्ण समझा जा सके। ईश्वर विनम्र है, यही कारण है कि भक्त अपने को सर्वथा ईश्वर की दया के ऊपर छोड़ देता है।
नारद सूत्र में भक्ति के विभिन्न प्रकार मिलते हैं। सच्ची भक्ति निःस्वार्थ आचरण के द्वारा प्रकट होती है। भक्त की श्रद्धा एवं विश्वास भक्ति का मूल आधार कहा जा सकता है। इसी रूप में कुलदेवियों की परम्परागत पूजा-अर्चना अलग-अलग वंशधरों में पूजीत हो रही है, जो कुल की रक्षा करने का दायित्व ग्रहण करती है। प्रस्तुत पुस्तक में क्षत्रिय वंश की कुलदेवियों पर प्रकाश डाला गया है। देवी से प्राप्त ज्ञान अर्जन, उनके प्रति रीति-रिवाज एवं परम्पराओं का बोध कराने में यह ग्रन्थ उपयोगी सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Maharaja Agrasen evam Agrawal Samaj ka Sampurn Itihas
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणMaharaja Agrasen evam Agrawal Samaj ka Sampurn Itihas
महाराजा अग्रसेन एवं अग्रवाल समाज का सम्पूर्ण इतिहास : इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने महाराजा श्री अग्रसेनजी के जीवन सम्बंधित प्रामाणिक महत्वपूर्ण तथ्यों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। पुस्तक में महाराजा अग्रसेनजी की शासन प्रणाली, उनके सिद्धांत, अग्रोहा का विवरण, वर्तमान अग्रोहा धाम, अग्रवालों के गोत्र, उपनाम, वैश्य वर्ण और जातियां, अग्रोहा से सम्बंधित लोक कथाएं, महालक्ष्मी ब्रतकथा, उरुचरितम् तथा भाटों के गीत, अग्रवाल समाज के संस्कार एवं रीति-रिवाज, देश के विभिन क्षेत्रों में नाम कमाने वाले अग्रवाल गौरव, श्री पीठ का महत्व एवं कुलदेवी महालक्ष्मी की स्तुति, श्री अग्रचालीसा, अग्रस्तुति, उनके भजन, आरती इत्यादि महत्वपूर्ण विषयों को सम्मिलित करके गागर में सागर भरने की एक छोटी सी कोशिश की है। आज तक अग्रसेन, अग्रोहा और अग्रवालों पर लिखी गई पुस्तकों का सार मिलाकर एक ऐसी पुस्तक लिखी है, जिसे पढ़कर अग्रवाल समाज की समस्त जानकारी प्राप्त होगी तथा प्रत्येक अग्रवाल भाई का सर गर्व से ऊँचा हो जायेगा।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Pratiharon ka Mool Itihas
प्रतिहारों का मूल इतिहास : भारत के इतिहास में कुछ वंश बहुत महत्त्वपूर्ण रहे हैं, उनके साम्राज्य बड़े विस्तृत थे और उन्होंने साहित्य का बड़ा प्रसार किया। कुछ वंशों ने, जिनको जिस धर्म में आस्था थी, उसको बहुत फैलाया, परन्तु क्षत्रिय सभी धर्मों के प्रति उदार और सहिष्णु थे। शासक वर्ग जिस धर्म को मानता था, उसके अलावा अन्य धर्मों को संरक्षण प्रदान करते थे एवं दान-पुण्य देकर प्रोत्साहन देते थे। भारत के महान सम्राज्यों में प्रतिहारों का भी एक बड़ा साम्राज्य रहा है। इसकी एक विशेषता रही है कि जैसे मौर्य, नागवंश तथा गुप्तवंश आदि थे, उनके विरोधी दुश्मन एक तरफ ही थे, जिससे उपरोक्त वंशों के शासकों को अपने राज्यों तथा साम्राज्य के एक ही दिशा में शत्रु का सामना करना पड़ता था, जिससे वे सफल भी रहे। परन्तु प्रतिहारों के पश्चिम में खलीफा जैसी विश्वविजयी शक्ति से इनका मुकाबला चलता था। दक्षिण में राष्ट्रकूटों (राठौड़ों) से टक्कर थी, जो किसी भी सूरत में इनसे कम शक्तिशाली नहीं थे। पूर्व में बंगाल के पाल भी इनके शत्रु थे, वे इन जितने शक्तिशाली नहीं थे, फिर भी प्रतिहारों को उनसे युद्धों में व्यस्त रहना पड़ता था। अरब जो कि इनके शत्रु थे, उनके एक व्यापारी ने लिखा है कि प्रतिहारों को अपने साम्राज्य की समस्त दिशाओं में (चारों ओर) लाखों की संख्या में सैनिक रखने पड़ते है। इस प्रकार मौर्य, नागों और गुप्तों के मुकाबले में प्रतिहारों की शक्ति का आंकलन किया जाये तो प्रतिहारों की शक्ति उनसे अधिक होना सिद्ध होता है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajpurohit Jati ka Itihas (Vol. 1, 2)
-10%Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRajpurohit Jati ka Itihas (Vol. 1, 2)
राजपुरोहित जाति का इतिहास (भाग 1, 2) :
अनुक्रमणिका
युगयुगीन राजपुरोहित इतिहास : प्रो. जहूरखां मेहर
अपनी बात : डॉ. प्रहलाद सिंह राजपुरोहित
भूमिका : डॉ. प्रहलाद सिंह राजपुरोहित
राजपुरोहित वंश परिचय : प्रस्तावना
राजपुरोहितों के गोत्र प्रवर
राजपुरोहितों की समस्त उपजाति, खांपें
भारद्वाज गोत्रिय राजगुरु पुरोहित सोढा
वशिष्ठ गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
पीपलाद
गौतम गोत्रिय राजगुरु राजपुरोहित
पारसर गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
शांडिल्य गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
उदालिक गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
कश्यप गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
बाल वशिष्ठ गोत्र
सेवड़ों का संक्षिप्त परिचय
सेवड़ वंश के बाबत पौराणिक तथा प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार
सेवड़ राजपुरोहितों का आदिनारायण से लेकर अद्यावधि तक वंशवृक्ष विशेष जानकारी
सेवड़ राजगुरु पुरोहित का राव सीहा के साथ कन्नौज से मारवाड़ आना……….SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajput Shakhaon ka Itihas
प्रस्तुत ग्रन्थ में बौद्ध धर्म का त्याग कर आने वाले क्षत्रियों और वेदोद्धार के लिये किये गये कुमारिल एवं आदि शंकराचार्य के प्रयासों का उल्लेख करके कई क्षत्रिय वंशों के विषय में प्रचलित कतिपय भ्रामक मतों का खण्डन किया गया है। यह ग्रन्थकार की सराहनीय उपलब्धि है। इस प्रकार विद्वान लेखक ने हमारे इतिहास को लिखने के लिये सांस्कृतिक गहराई में जाने की जो प्रेरणा प्रदान की है उसके लिये वह हम सब की बधाई के पात्र हैं। आशा है कि उनका इस प्रकार अध्ययन और लेखन निरन्तर जारी रहेगा। भारतीय संस्कृति के प्रेमी सज्जनों के लिये और इतिहास-लेखन में रुचि रखने वाले प्रत्येक भारतीय के लिये यह ग्रन्थ पठनीय है, क्योंकि इसमें किसी संकुचित जातिवाद की अभिव्यक्ति के स्थान पर उस व्यापक राष्ट्रवादी क्षात्र धर्म के बीज दृष्टिगत होते हैं, जो अथर्ववेदीय ‘बृहत् संवेश्यं राष्ट्रम्’ की कल्पना में प्रस्फुटित हुआ। इसीलिये यह ग्रन्थ वैदिक वर्ण व्यवस्था को महिमा मण्डित करते हुए स्पष्ट कहता है कि, ‘उस समय कोई जाति प्रथा नहीं थी, अपितु गुणों और कर्मों के अनुसार चार वर्णों की रचना होती थी।’ क्षत्रियों अथवा राजपूतों के इतिहास पर अब तक लिखे गये ग्रन्थों में श्री देवीसिंह मंडावा की प्रस्तुत पुस्तक ‘राजपूत शाखाओं का इतिहास’ सर्वाधिक प्रामाणिक और विश्वसनीय मानी जायेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। लेखक के व्यापक अध्ययन और अनुशीलन के पश्चात् लिखा गया यह ग्रन्थ राजपूतों के विषय में प्रचारित अनेक भ्रमों का निवारण करता है। इस पुस्तक में जो निष्कर्ष दिये गये हैं, वे सभी अनेक ऐसे प्रमाणों पर आश्रित हैं, जिन्हें प्रस्तुत करने के लिये लेखक ने बड़े परिश्रमपूर्वक अनुसंधान कार्य किया है। विशेषत: राजपूतों को शकों, कुशानों या हूणों की सन्तान कहने वाले इतिहासकारों का खण्डन करने के लिये जो अनेक प्रमाण प्रस्तुत किये हैं, उसके लिये श्री सिंह साधुवाद के पात्र है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajput Vanshawali
राजपूत वंशावली | Rajpoot Vanshawali : राजपूत ग्रन्थमाला में समस्त देश के राजपूतों की उत्पत्ति के 36 वंश, प्रत्येक वंश की शाखा, परशाखा आदि का विस्तृत विवेचन एवं प्रत्येक वंश के गोत्र, प्रवर, कुलदेवी, कुलदेवता एवं पवित्र परम्पराओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। राजपूत वंशावली ग्रन्थ से समस्त क्षत्रिय समाज को अपने विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त होगी, जिसमें समाज में संगठनात्मक विचारधारा को बल मिलेगा।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
The Castes of Marwar (Census Reprot of 1891)
The Castes of Marwar (Census Reprot of 1891)
It is always interesting to know something about the people with whom we have to deal and to learn their ways, manners, and customs is an amusing task. The want of a book containing descriptions of the various tribes and castes of Marwar was long felt. No attempt has hitherto been made to undertake the work on account of a great many difficulties that attended its achievement. But the census of Marwar for 1891, the charge of which was entrusted to the undersigned, made the way clear and easy. The Darbar sanctioned the publication of such a work, and the census tours made throughout the country for the purpose of inspecting the preliminary arrangements of the districts afforded suitable opportunities for the collection of the required material. The census Supervisors and Inspectors, as well as the Pargana Hakims, were provided with a set of questions dealing with the chief points to enable them to collect information regarding the ways and other social circumstances of the people, but a good many facts were investigated through personal inquiries from trustworthy representatives of various communities. Many valuable references were also obtained from the Annals and Antiquities of Rajasthan by Col. Tod. the Punjab Census Report of 1881 by Mr. Danziel Ibbetson, the Hindu tribes, and castes by the Revd. M. A. Sherring, the Races of the North-Western Provinces by Sir Henry Elliot, the Memoir of Central India by Sir John Malcolm, the Indian castes by John Wilson, also the Gazetteers of Rajputana and several other publications, to the authors of all of which the undersigned owes a good deal of obligation.
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Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Yadavon ka Brihat Itihas (Vol. 1, 2)
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणYadavon ka Brihat Itihas (Vol. 1, 2)
यादवों का बृहत इतिहास : “भाग 1 में यादव वंश का उद्भव, हैहय वंश का विस्तार, सूर्य एवं चन्द्र वंशों का प्रसार, आर्यों का निवास स्थान, वैदिक एवं वैदिकोत्तर काल, त्रेता और द्वापर में यादव, श्रीकृष्ण और उनका युग, महाभारत युद्ध का काल, यादव और गणतन्त्र प्रणाली, यादवों का वृज्जि अथवा वज्जि गणराज्य, यादवों का कलिंग साम्राज्य, यादवों का कलचुरि राजवंश, कलचुरिओं का कर्नाटक राज्य, राष्ट्रकुटों (यादवों) का कन्नौज और बदायूं पर शासन, राष्ट्रकूट यादवों का दक्षिण भारत में शासन, सातवाहन यादव, पल्लव यादव : उनका उद्भव, आन्ध्रप्रदेश के पल्लव यादव, केरल के चेर (यादव) शासक, अय व मुषिक और कुलशेखर यादव, यादवों का ट्रावनकोर राज्य, यादवों की सामाजिक स्थिति, दक्षिण भारत में यादव, यादवों का पांड्य वंश, यादवों का होयसल वंश, यादवों की देवगिरी राज्य, यादवों का विजयनगर साम्राज्य, वडियार यादवों का मैसूर राज्य आदि शीर्षकों पर जानकारी प्रदान की गई है।
भाग 2 में यादव और आभीर एवं अहीर : व्युत्पति एवं सम्बन्ध, यादव वंश की शाखाएं, श्री कृष्ण के पुत्रों के वंशज, गुजरात के यादव शासक (1472-1947 ई.), यादवों का गुप्तवंश, मौखरी/मौखरिया/महांखरियां वंश : उत्पत्ति एवं राजस्थान, उत्तर प्रदेश के मांखरिया, मौखरी सम्राट यशोवर्मन और उसके उत्तराधिकारी, यादवों का पाल राजवंश (625-1150 ई.), यादवों का सैहपुर अथवा सिंहपुर का राजवंश, यादवों का जाजम/जादौं/भाटी राजवंश, जैसलमेर राज्य की स्थापना, राज्य का उत्कर्ष और अन्त, यादवों के करौली और ब्रज जनपद राज्य, अहीरों का रेवाड़ी राज्य, यादव जो जाट हो गए, अहीरों का आवास और विस्तार, धार्मिक विश्वास और रीति रिवाज, विभिन्न राज्यों में प्रमुख यादवगण, समकालीन यादव और राजनीति, यादवों की संस्कृति एवं इतिहास को देन आदि शीर्षकों पर जानकारी प्रदान की गई है।
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Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
क्षत्रिय राजवंश | Kshatriya Rajvansh
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणक्षत्रिय राजवंश | Kshatriya Rajvansh
सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय, भारतीय काल गणना, भारतीय इतिहास, आर्यों की वर्ण व्यवस्था, सूर्य वंश, सोमवंश, चन्द्रवंश, महाभारत की युगीन जनपद, राजपूतों की उत्पत्ति, कछवाहा, राठौड़, गुहिलोत, चौहान, देवड़ा, प्रतिहार, कुमार (कमाष) जेठवा राजवंश, निंकुभ राजवंश, हुल राजवंश, चालुक्य (सोलंकी) राजवंश, तोमर राजवंश, तंवर, गोहिल, गुर्जर, कलचूरी, राष्ट्रकूट, परमार, चावड़ा, यादव, यौधय, मकवाना, शिलाहार, चन्देल, गौड़, कटोच, राजपूत, मुस्लिम राजपूत एवं अन्य राजवंश आदि के राजवंश, राज्य एवं खांपें और ठिकाने, भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन, ब्रिटिशकाल, स्वतंत्र भारत में राजपूत जाति का संगठन, आन्दोलन एवं योगदान, विभिन्न क्षेत्रों में राजपूतों को राजनैतिक योगदान एवं विश्वविख्यात व्यक्तित्व, राजपूतों के विवाह सम्बंध एवं गोत्र प्रवरादि संस्कार, लोकदेवता तंवर शिरोमणि बाबा रामदेव जी का वंशक्रम आदि और भी बहुत कुछ…
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Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
राजपूतों की गौरव गाथा | Rajputon ki Gaurav Gatha
ये ठाकुर रघुबीरसिंहजी के बड़े पुत्र है। इनकी शिक्षा सेन्ट जेवियर स्कूल जयपुर तथा सादूल पब्लिक स्कूल बीकानेर में हुई है। ये डूँगर कॉलेज बीकानेर छात्र संघ के महासचिव रहे और ग्वालियर राजमाता सिंधिया से छात्रसंघ का उदघाटन करवाया। कॉलेज में महाराजा डूंगरसिंह की प्रतिमा लगाकर केन्द्रीय पर्यटन मंत्री महाराजा डॉ. करणसिंह कश्मीर से उसका अनावरण करवाया। इन्होंने बीकानेर में वीर दुर्गादास राठौड़ का स्मारक बनाया, जिसका प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर ने 05.04.1991 ई. को अनावरण किया। 1975ई. में ये राजस्थान सरकार के एक उपक्रम में अधिकारी लगे और इसी साल इन्होंने भगवान बुद्ध का गुरुदेव गोयनका जी द्वारा उपदेशित धर्म ग्रहण किया और 1986 में विपश्यनाध्यान के आचार्य बने। इन्होंने गोयनका जी और संघ के साथ भगवान बुद्ध के सभी तीर्थ किए एवं 2004ई. में बर्मा म्यान्मार देश की पूज्य गुरुदेव गोयनका जी के संघ के साथ 13 दिन की धर्म यात्रा की वहाँ World Buddhist Summit में भाग लिया इन्होंने निम्न पुस्तकें लिखी :-
1. बीदावत राठौड़ों का इतिहास 1987ई.
2. राजपूतों की गौरवगाथा
3. Dhamma Ashok
4. बीदावत राठौड़ का बृहत-इतिहासSKU: n/a