रैगर जाति का इतिहास एवं संस्कृति : इतिहास तथा धार्मिक ग्रन्थों में रैगर जाति के विषय में कुछ भी लिखा हुआ नहीं है। ऐसी स्थिति में रैगर जाति के इतिहास एवं संस्कृति पर पुस्तक लिखना निश्चित रूप से दुरुह और दुसाध्य कार्य है। श्री चन्दनमल नवल ने रैगर जाति के दुर्लभ ऐतिहासिक तथ्यों की खोज की, इकट्ठा किया तथा सत्यता की कसौटी पर कसकर विश्वसनीयता प्रदान की। पुस्तक में उल्लेखित तथ्य बोलते हैं कि श्री नवल सही इतिहास की खोज में अनेकों जगह गए हैं, लोगों से मिले हैं तथा जानकारियाँ प्राप्त की हैं।
श्री नवल रैगर जाति से सम्बन्धित कई नई जानकारियाँ पहली बार समाने लाए हैं। हुरड़ा का शिलालेख, रैगरों के ऐतिहासिक कार्य, रैगर जाति के रीति-रिवाज तथा रैगर जाति पर निर्भर मंगणियार जातियों पर पहली बार विस्तार से लिखा गया है। इसके अलावा रैगर जाति की उत्पत्ति, गौत्र, शिक्षा, संत-महात्मा, धार्मिक एवं सांस्कृतिक संस्थान तथा आर्थिक स्थिति का इस पुस्तक में मार्मिक चित्रण किया गया है। संक्षिप्त में कहा जा सकता है कि इस एक ग्रन्थ में रैगर जाति की ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं अन्य सभी तरह की जानकारी उपलब्ध है। यह ग्रन्थ रैगर जाति के लोगों के लिए तो महत्त्वपूर्ण है ही मगर अन्य पाठकों के लिए भी ज्ञानवर्धक है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक प्रत्येक पाठक के लिए पठनीय, उपयोगी तथा संग्रहणीय है।