Cinema
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Vani Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Bollywood Selfie (Hindi, Anant Vijay)
बॉलीवुड सेल्फी हिन्दी की ऐसी किताब है जिसमें फिल्मी सितारों की जिन्दगी से जुड़ी प्रामाणिक कहानियाँ हैं। इस किताब में लेखक ने सितारों से जुड़े प्रसंगों को इस तरह से पाठकों के सामने पेश किया है कि पूरा दौर जीवन्त हो उठता है। इसमें ग्यारह फिल्मी हस्तियों को केन्द्र में रखकर उनकी जिन्दगी का विश्लेषण और अनछुए पहलुओं को उजागर किया गया है। इस किताब के नाम से ही साफ है कि इसमें सितारों के जीवनानुभव के आधार पर लेखक उनके व्यक्तित्व का विश्लेषण करते हैं। इस तरह से यह किताब हिन्दी में अपनी तरह की अकेली किताब है। अपनी एक टिप्पणी में हिन्दी आलोचना के शिखर पुरुष नामवर सिंह ने लेखक अनंत विजय की भाषा के बारे में कहा है कि – मैं अनंत विजय के लिखने की शैली की दाद दूँगा। इतनी अच्छी भाषा है, पारदर्शी भाषा है और पारदर्शी भाषा होते हुए भी थोडे़ से शब्दों में हर लेख अपने आप में इस तरह बाँधे रखता है कि आप आलोचना को कहानी की तरह पढ़ते चले जायें। ये निबन्ध नहीं लगते बल्कि एक अच्छी दिलचस्प कहानी के रूप में हैं, इतनी रोचक, पठनीय और इतनी गठी हुई भाषा से ही मैंने पहली बार अनंत विजय की प्रतिभा को जाना। फिल्मी सितारों की जिन्दगी से जुड़े अनबूझे पहलुओं को लेखक अनंत विजय प्रोफेसर नामवर सिंह के उपरोक्त कथन को इसी पुस्तक में साकार करते हैं। फिल्मी सितारों पर लिखी इस किताब में भाषा की रोचकता के साथ पाठक एक विशेष अनुभव यह भी करेंगे कि पुस्तक को जहाँ से भी पढ़ना आरम्भ करेंगे, वही रोचकता अन्त तक बनी रहेगी। हिन्दी में फिल्म लेखन पर गम्भीर किन्तु रोचक लेखन हुआ है। फिल्मों की समीक्षा तो बहुत लिखी जाती है लेकिन फिल्म और उससे जुड़े रोचक प्रसंग पुस्तकाकार रूप में उपलब्ध नहीं हैं। इस किताब में ऐसी तमाम कमियों को पूरा करने का प्रयास किया गया है।
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Vani Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Lata : Sur Gatha
नकी आवाज़ से चेहरे बनते हैं। ढेरों चेहरे,जो अपनी पहचान को किसी रंग-रूप या नैन –नक्शे से नहीं, बल्कि सुर और रागिनी के आइनें में देखने से आकार पते हैं। एक ऐसी सलोनी निर्मिती, जिसमे सुर का चेहरा दरअसल भावनाओं का चेहरा बन जाता है। कुछ-कुछ उस तरह,जैसे बचपन में पारियों की कहानियों में मिलने वाली एक रानी परी का उदारता और प्रेम से भीगा हुआ व्यक्तित्व हमको सपनों में भी खुशियों और खिलोंनों से भर देता था। बचपन में रेडियों या ग्रामोफोन पर सुनते हुए किसी प्रणय-गीत या नृत्य की झंकार में हमें कभी यह महसूस ही नही हुआ कि इस बक्से के भीतर कुछ निराले द्गंग से मधुबाला या वहीदा रहमान पियानो और सितार कि धुन पर थिरक रही हैं, बल्कि वह एक सीधी-सादी महिला कि आवाज़ कम झीना सा पर्दा है, जिस पर फूलों का भी हरसिंगार कि पंखुरियों का रंग और धरती पर चंद्रमा कि टूटकर गिरी हुई किरणों का झिलमिल पसरा है।
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