Cultural
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Vani Prakashan, उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatiya Gram
भारत के ग्राम समुदायों में तेजी से सामाजिक परिवर्तन हो रहे हैं। सन 1947 में स्वतन्त्रता मिलने के बाद से आधुनिकीकरण की दिशा में देश ने महत्त्वपूर्ण चरण उठाये हैं: बहु-उद्देशीय नदी-घाटी योजनाएँ, कृषि को यंत्रीकृत करने की योजनाएँ और नये उद्योगों को विकसित करने के कार्यक्रम सम्बन्धी कई राष्ट्रीय योजनाएँ कार्यान्वित हुईं जिन्होंने कुछ ही दशाब्दियों में ग्रामीण भारत का स्वरूप बदल दिया। भारतीय ग्राम समुदायों के परम्परागत जीवन और उनमें दीख पड़ने वाली सामाजिक परिवर्तन की प्रवृत्तियों का अध्ययन न केवल समाज के अध्येताओं के लिए, वरन् योजनाकारों, प्रशासकों और उन सबके लिए जिनकी मानव कल्याण और सामाजिक परिवर्तन में रुचि है, महत्त्व का है। यह पुस्तक एक भारतीय ग्राम की सामाजिक संरचना और जीवन-विधि का वर्णन प्रस्तुत करती है।
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Vani Prakashan, उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Samay Aur Sanskriti
परम्परा की अनिवार्य महत्ता और उसके राजनीतिकरण से होने वाले विनाश को पहचान कर ही हम वास्तविक भारतीयता को जान सकते हैं। इसके लिए समस्त सामाजिक बोध से युक्त इतिहास-दृष्टि की जरूरत है क्योंकि अन्तर्द्वन्द्व और विरोधाभास हिन्दू-अस्मिता के सबसे बड़े शत्रु हैं। दूसरी तरफ समाज के चारित्रिक ह्रास के कारक रूप में संक्रमणशील समाज के सम्मुख परिवर्तन की छद्म आधुनिकता और धर्म के दुरुपयोग के घातक ख़तरे मौजूद हैं। पश्चिम के दायित्वहीन भोगवादी मनुष्य की नकल करने वाले समाज में संचार के माध्यमों की भूमिका सांस्कृतिक विकास में सहायक न रहकर नकारात्मक हो गयी है। ऐसे में बुद्धिजीवी वर्ग की समकालीन भूमिका और भी जरूरी तथा मुश्किल हो गयी है। श्यामाचरण दुबे का समाज-चिन्तन इस अर्थ में विशिष्ट है कि वे कोरे सिद्धान्तों की पड़ताल और जड़ हो चुके अकादमिक निष्कर्षों के पिष्ट-प्रेषण में व्यर्थ नहीं होता। इसीलिए उनका चिन्तन उन तथ्यों को पहचानने की समझ देता है जिन्हें जीवन जीने के क्रम में महसूस किया जाता है लेकिन उन्हें शब्द देने का काम अपेक्षाकृत जटिल होता है।
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Aryan Books International, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
SARASWATI BAH RAHI HAI : सरस्वती बह रही है
-10%Aryan Books International, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिSARASWATI BAH RAHI HAI : सरस्वती बह रही है
सरस्वती बह रही है: भारतीय संस्कृति का निरंतर प्रवाह
यह पुस्तक प्राचीन भारत की दो प्रमुख परस्पर विरोधी मान्यताओं पर विचार करती है।
प्रथम-कुछ भारतीय और अधिकांश पाश्चात्य विद्वानों की मान्यता है कि ऋग्वैदिक सरस्वती नदी अफ़ग़ानिस्तान की हेलमण्ड नदी है। लेखक ने ऋग्वेद के पूरे साक्ष्यों का विश्लेषण किया और यह दिखाने का प्रयास किया है कि पूर्वोक्त मान्यता सर्वथा निराधार है। ये मान्यताएँ ऋग्वैदिक साक्ष्यों के विपरीत जाती हैं। दूसरी ओर ऋग्वेद की ही भौगोलिक सामग्रियाँ स्पष्ट करती हैं कि ऋग्वैदिक सरस्वती और दूसरी कोई नहीं, आज की सरस्वती-घग्गर नदी है और यह दोनों साथ मिल कर हरियाणा और पंजाब से होकर बहती थीं। यद्यपि अब यह सिरसा के पास सूख गयी हैं और इसका सूखा क्षेत्र कहीं कहीं तक़रीबन 8 किलोमीटर चैड़ा है। अन्ततः यह नदी अरब सागर में जाकर मिलती थी।
दूसरा-आर्यो ने भारतवर्ष पर आक्रमण किया जिसके फलस्वरूप हड़प्पा सभ्यता का अस्तित्व मिट गया। लेखक का कहना है कि ऐसे किसी आक्रमण के होने के कोई संकेत नहीं मिलते। हड़प्पा सभ्यता और वैदिक सभ्यता एक ही सिक्के के दो पक्ष हैं। यदि आप 4500 वर्ष पूर्व के हड़प्पा के आवासों मे जाएँ तो यह देख कर आश्चर्यचकित न हों कि स्त्री अपनी माँग मे सिंदूर भर रही है। हरियाणा-राजस्थान के किसान पूर्व की भाँति आज भी अपने खेत जोतते हैं। योगासन, जो आज पाश्चात्य देशों ने भी अपनायें हैं, वह भी हड़प्पा वासियों की ही देन हैं और यदि आप नमस्ते से अभिवादन करना चाहते हैं तो हड़प्पावासी प्रसन्न होकर हाथ जोड़ नमस्ते करते मिल जाएँगे। अतः भारत की आत्मा सदैव जीवित रही है और जीवित रहेगी।SKU: n/a