Dharamvir Bharti Books
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Vani Prakashan, उपन्यास
SAPNA ABHI BHI
भारती जी की कविता ने पाँचवें दशक के आरम्भ में अपनी जो अनूठी पहचान बनायी, वह सदी पार कर आने तक ज्यों-की-त्यों ताज़ा तो बनी ही रही, दिनों-दिन और गहराती गयी। कथ्य की परिपक्वता और शैली के वैविध्य के साथ-साथ काव्य विषयों की परिधि जिस तरह विस्तृत होती गयी, वह सचमुच आश्चर्यजनक है। अलस्सुबह का मांसल, फिर भी स्वप्निल प्यार हो; या पुराने किले में समकालीन इतिहास की संकटपूर्ण विडम्बना, या मुँह-अँधेरे महक बिखराते हरसिंगार, या पकी उम्र का प्यार, या मुनादी में जनान्दोलन की ललकार-भारती जी की संवेदना-परिधि में सब एक विशिष्ट मार्मिकता से अभिव्यक्त होते हैं। कहीं भी छद्म बौद्धिकता नहीं, बड़बोले उपदेश नहीं, सिद्धान्त छाँटने का आडम्बर नहीं-सहज संवेदनशील अभिव्यक्ति, जो सीधे मर्म को छू जाये। वर्षों की आतुर प्रतीक्षा के बाद आने वाला उनका यह काव्य संकलन उनके विशाल पाठक वर्ग के लिए एक काव्योत्सव ही नहीं है, एक अतिरिक्त विशिष्ट अनुभूति भी है, जहाँ कवि की समस्त काव्य-क्षमताएँ अपने चरमोत्कर्ष पर हैं। पर वह चरमोत्कर्ष भी विराम नहीं क्योंकि है–सपना अभी भी…
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Vani Prakashan, उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास
Yuddh-Yatra
यद्ध के मैदान में वीर सैनिकों तथा सैनिक अफसरों के साथ स्वयं लेखक धर्मवीर भारती उपस्थित रहे है। युद्ध का आखों देखा वर्णन रिपोर्ताज के रूप में विश्व साहित्य में पहली बार प्रस्तुत है। -प्रकाशक / 1971 के युद्ध की रोमांचक एवं लोमहर्षक दास्तान प्रख्यात लेखक एवं सम्पादक धर्मवीर भारती की कलम से, जहाँ उन्होंने भारत एवं पाकिस्तान के मध्य हुए इस ऐतिहासिक युद्ध का आँखों देखा हाल पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। इस ऐतिहासिक पुस्तक में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम एवं पाकिस्तानी पराभव की पल-पल की कथा रिपोर्ताज शैली में दर्ज की गयी है। भारतीय शूरवीरों के पराक्रम एवं कूटनीति का एक तथ्यपरक मर्मस्पर्शी एवं विश्वसनीय लेखाजोखा जो हिन्दी साहित्य के एक कालजयी लेखक द्वारा स्वयं युद्धभूमि में मौजूद रह कर लिखा गया है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में यह युद्ध-रिपोर्ताज अपने विशद् विवरण, रचनात्मक भाषा एवं विश्वसनीय तथ्यों की वजह से अपने आप में अद्वितीय है।
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