Dr. Surendera Kumar
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Hindi Books, Parimal Publications, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Manusmriti ka Punarmulyankan
यह सर्वविदित और सिद्ध तथ्य है कि प्राचीन संस्कृत साहित्य के अनेक ग्रन्थों में समय-समय पर प्रक्षेप होते रहे हैं। मनुस्मृति, वाल्मीकीय रामायण, महाभारत, निरुक्त, चरक-संहिता, पुराण आदि इसके प्रमाणसिद्ध उदाहरण हैं। प्राचीन ग्रन्थों में प्रक्षेप होने के अनेक कारण रहे हैं। उनमें से एक कारण यह भी है कि उस ग्रन्थ-विशेष की परम्परा के अर्वाचीन व्यक्ति अपने स्वतन्त्र ग्रन्थ न लिखकर उस परम्परा के प्रचलित प्रसिद्ध ग्रन्थ में ही परिवर्तन-परिवर्धन, निष्कासन-प्रक्षेपण करते रहे हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में मनु और मनुस्मृति विषयक पूर्व स्थापित उन एकांगी, समीक्षाओं, भ्रमों और भ्रान्तियों पर विचार करके उनका पुनर्मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है। विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि प्रमाणाधारित पुनर्मूल्यांकन तटस्थ पाठकों को स्वीकार्य प्रतीत होंगे और पूर्वाग्रह-गृहीत पाठकों को भी इसके निर्णय पुनर्विचार के लिए बाध्य करेंगे।SKU: n/a -
Arsh Sahitya Prachar Trust, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
THE MANUSMRITI (HB)
स्मृतियों या धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति सर्वाधिक प्रामाणिक आर्ष ग्रन्थ है। मनुस्मृति का महत्त्व इसी से ज्ञात होता है कि इसे ऋषियों ने औषध कहा है – “मनुर्वै यत्किञ्च्चावदत् तद् भैषजम्” अर्थात् मनु ने जो कुछ कहा है, वह औषध के समान गुणकारी एवं लाभकारी है। शास्त्रकारों ने मनुस्मृति के महत्त्व को निर्विवाद रूप में स्वीकार करते हुए ही यह स्पष्ट घोषणा की है कि –
“मनुस्मृति-विरुद्धा या सा स्मृतिर्न प्रशस्यते। वेदार्थोपनिबद्धत्वात् प्राधान्यं हि मनोः स्मृतेः” – बृहस्पति स्मृति, संस्कार खंड 13-14
जो स्मृति मनुस्मृति के विरुद्ध है, वह प्रशंसा के योग्य नहीं है। वेदार्थों के अनुसार वर्णन होने के कारण मनुस्मृति ही सब में प्रधान एवं प्रशंसनीय है।
इस तरह दीर्घकाल से मनु का महत्त्व शिष्टजन स्वीकारते आ रहें हैं।
मनुस्मृति से न केवल वैदिक धर्मी प्रभावित थे अपितु बौद्ध मतावलम्बी भी प्रभावित थे। इसका एक उदाहरण उन्हीं के ग्रन्थ धम्मपद से देखिए –
“अभिवादनसीलस्य निच्चं बुढ्ढापचायिनो।
चत्तारो धम्मा वड्ढन्ति आयु विद्दो यसो बलम्”।।- धम्मपद 8.20
धम्मपद का ये श्लोक मनुस्मृति के निम्न श्लोक का पाली रूपान्तरण मात्र है –
“अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते, आयुर्विद्या यशो बलम्”।। – मनुस्मृति 2.121
बोद्ध महाकवि अश्वघोष ने भी अपनी कृति वज्रसूचिकोपनिषद् मे अनेक मनु के वचनों को उद्धृत किया है।
इस तरह मनुस्मृति का व्यापक प्रचार दृष्टिगोचर होता है लेकिन विगत कुछ वर्षों से मनुस्मृति का विरोध शुरू हो गया है। इसके निम्न कारण है –
मनु में शुद्र विरोधी श्लोकों का पाया जाना।
मनु में स्त्री विरोधी श्लोकों का पाया जाना।
कुछ अवैज्ञानिक और अवांछनीय तथ्यों का मनुस्मृति में प्राप्त होना।ये सब मनुस्मृति में उत्तरोत्तर काल में हुए प्रक्षेप का परिणाम है। मनुस्मृति में कौनसा श्लोक प्रक्षिप्त है और कौनसा सही, ये ज्ञात करने के लिए ऐसे अनुसंधात्मक कार्य की आवश्यकता है जो सकारण प्रक्षिप्त श्लोंकों का तार्किक विवरण प्रस्तुत कर सकें और मनुस्मृति के शुद्ध और वास्तविक स्वरूप का दिग्दर्शन करवा सकें।
इस विषय में डॉ.सुरेन्द्र कुमार जी ने मनुस्मृति पर अनुसंधान करते हुए, अनेक वर्षों के श्रम के पश्चात् मनुस्मृति का प्रस्तुत् भाष्य प्रकाशित किया है। प्रस्तुत् भाष्य में मनुस्मृति के प्रक्षिप्त श्लोंकों का निर्धारण निम्न मानदण्डों के आधार पर किया है –
अन्तर्विरोध या परस्परविरोध (2) प्रसंगविरोध (3) विषयविरोध या प्रकरणविरोध (4) अवान्तरविरोध (5) शैलीविरोध (6) पुनरुक्ति (7) वेदविरोध।
इन मानदण्डों के आधार पर प्रक्षिप्त श्लोक निर्धारित किए है।SKU: n/a -
English Books, Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
The Manusmriti English
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Manusmriti is an ancient work on jurisprudence. Unfortunately, some misunderstandings and misconceptions are prevailing about Manu and his Manusmriti.Dr. Surendra Kumar ji an eminent Samskrita scholar has quoted many internal evidences from this book to prove that all these claims have no ground. They are false and malicious.He examined each and every Shlokas to detect the genuine from the interpolated ones. He has given convincing and logical proofs why such and such Shlokas are later additions to the body of the Manusmriti.An English translation of this book from the Ärsha Vedic point of view was not available. Arya UpadeshakaShri Pt. SatyapraksahBeegoo ji from Mauritius, voluntarily agreed to translate this into English, enhancing its value with transliteration of every Shloka, and providing the meaning of all the Samskrita words.
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Arsh Sahitya Prachar Trust, Hindi Books, Suggested Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
VISHUDDHA MANUSMRITI (HB)
Arsh Sahitya Prachar Trust, Hindi Books, Suggested Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVISHUDDHA MANUSMRITI (HB)
मनुस्मृति पर अनुसंधान करने के पश्चात्, डॉ. सुरेन्द्र कुमार जी ने मनुस्मृति के दो संस्करण प्रकाशित किये हैं, जिनकें नाम क्रमशः – विशुद्ध मनुस्मृति और मनुस्मृति है। दोनों संस्करणों में प्रक्षिप्त श्लोकों पर विचार प्रस्तुत किया है और प्रयास किया गया है कि पाठकों के समक्ष मनुस्मृति के वास्तविक सिद्धान्त दृष्टिगोचर हो। अपितु दोनों संस्करण बहुत ही महत्त्वपूर्ण और पठनीय है, किन्तु इनमें जो मौलिक भेद है, उनमें से कुछ का उल्लेख निम्न पंक्तियों में करते हैं – – विशुद्ध मनुस्मृति में सभी प्रक्षिप्त श्लोकों को पृथक कर केवल मनु के मौलिक श्लोकों को ही प्रकाशित किया गया है। – मनुस्मृति में सभी उपलब्ध श्लोकों को रखा गया है किन्तु जो श्लोक प्रक्षिप्त है उनकें प्रछिप्त होने की समीक्षा भी की गई है। – विशुद्ध मनुस्मृति में श्लोकों की व्यवस्था, इस प्रकार की गई है कि पाठकों को मनु के उपदेशों को अविरलरूप से पढ़ने का आनन्द प्राप्त हो। – मनुस्मृति में श्लोकों को इस प्रकार रखा गया है कि पाठक प्रक्षिप्त और मौलिक श्लोकों में भेद कर तुलनात्मक अध्ययन करने में सक्षम होवें।
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