ED. YATINDRA MISHRA BOOKS
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Vani Prakashan, कहानियां
Devpriya
लगभग पिछली एक शताब्दी से समूची भारतीय आलोचना और अभी भी क्षीण रूप से सक्रिय शास्त्र-रचना की एक बड़ी कमजोरी यह रही है कि उसने शास्त्रीय कलाओं, उनमें आये महत्वपूर्ण परिवर्तनों और उनके माध्यम से पुनर्नवा होती परम्परा पर बहुत कम ध्यान दिया है। शास्त्रीय नृत्य और संगीता दोनों ही इस दुर्लक्ष्यता के शिकार रहे हैं। दोनों ही कलाओं में बहुत सारे परिवर्तन आये हैं, नये प्रभाव ‘सक्रिय और नवाचार हुए हैं: यह सब कई स्तरों पर। ‘विचारोत्तेजक’ है – खेद यही है कि ऐसी विचारोत्तेजना ने हमारी आलोचना में बहुत कम अपने होने का कोई साक्ष्य दिया है। इस सन्दर्भ में हमारे समय की एक महत्वपूर्ण और विचारशील सोनल मानसिंह पर एकाग्र यह पुस्तक हिन्दी में ही नहीं समूचे भारतीय परिदृश्य में अपना अलग स्थान रखती है। एक बहुश्रुत और स्पष्टभाषी कलाकार से संवाद पर आधारित यतीन्द्र मिश्र की यह पुस्तक पहल है, जो मार्गदर्शी भी है। एक कलाप्रेमी कवि का एक वरिष्ठ नर्तकी से संवाद अपने आप में रोमांचक और अभूतपूर्व है। वो एक स्तर पर दो। भिन्न सर्जनात्मकताओं के बीच संवाद भी है। सोनल मानसिंह की भावप्रवणता और कलाकौशल शुरू से ही विचार-पगे रहे हैं। उन्हें शास्त्रीय नृत्य के क्षेत्र में। ‘सक्रिय रहने का अनुभव है उनकी नागरिकता सिर्फ़ शास्त्र-विहित मामला नहीं है। वह अनेक क्षेत्रों के ‘सस्पर्श और उनसे संवाद-सम्पर्क में रही है। इस कारण ‘उनसे बातचीत का रेज बहुत बड़ा हुआ है। शास्त्र परम्परा, नृत्य, संगीत रंगमच, साहित्य, प्रयोग गुरू ‘राजनीति सिनेमा अध्यात्म आदि बहुत सारे विषयों पर सोनल ने इन संवादों में अपने विचार, अनुभव, भावनाएँ, प्रतिक्रियाएँ मत-स्पष्टता और आत्मीयता से व्यक्त किये हैं।
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Vani Prakashan, कहानियां
GIRIJA
गिरिजा देवी का संगीत रचना सुनते हुए मन की उसाँस किसी अँधेरेी गह्वर गुफ़ा से निकलकर एक बिम्ब विधान रचती है, यह एक कला का दूसरी कला के प्रति अपने गहन आभार का स्तुतिगान भी है। संगीत के असीम कुहासे और मौन को भेदता हुआ एक भित्ति चित्र। यतीन्द्र मिश्र की यह पुस्तक एक बार पुनः इस बात की पुष्टि करती है कि हर कला संगीत के सर्वोपरि शिखर पर पहुँचने का स्वप्न देखती है। कविता के भीतर से उठता हुआ संगीत का स्वप्न…किसी संगीतकार की कला को संगीत में बाँधना कुछ वैसा ही दुष्कर कार्य है, जितना बहते झरने की कलकल धारा को अपनी मुट्ठी में समो पाना। किन्तु जितनी बूँदें भी हाथ लगती हैं, उनमें समूचे ‘सम्पूर्ण’ का रोमांचित स्वर अनुगूँजित हो जाता है।
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