सोलह हिन्दू संस्कार (परंपरा और वर्तमान) : संस्कार-भारतीय ऋषियों की एक अभूतपूर्व परिकल्पना, जो मनुष्य जीवन की सम्पूर्ण परिधि को घेर कर उससे बाहर भी स्थित है। एक विशेष प्रयोजन हेतु शरीर और मन की शुद्धि के लिए समय-समय पर किए गए शास्त्रनिर्दिष्ट कार्य संस्कार कहलाते है तथा जातकर्म संस्कार, विवाह संस्कार आदि। साथ ही लोकाचार और देशाचार से प्राप्त गुण भी संस्कार नाम से ही अभिहित होते हैं यथा सेवा, शुश्रुषा, मधुरवाणी आदि संस्कार। व्यक्तियों में इन दोनों ही संस्कारों के कारण ही देश की संस्कृति सदैव प्रवहमान रहती है।

प्रस्तुत पुस्तक में वैदिक युग से निरन्तर चले आते तथा परिवर्धित होते संस्कारों का विवेचनात्मक वर्णन भी है और वर्तमान समय में उनमें क्या परिवर्तन आए है अथवा उनमें से कौन-कौन से शास्त्रनिर्दिष्ट संस्कार क्यों विलुप्त हो गए ? यह भी सकारण व्याख्यायित करने का प्रयत्न हैं।

हर समय और हर देश में कुछ ऐसे जीवन मूल्य होते हैं जो परिवार और समाज के द्वारा व्यक्ति के चरित्र में संस्कार के रूप में स्थापित किए जाते है, जिनसे व्यक्ति का चरित्र एवं व्यक्तित्व महनीय और उदात्त हो जाता है। ऐसे संस्कार सूत्र इस पुस्तक का वैशिष्टय हैं।