History Of Chauhan
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Gogadev Chauhan – Parampara aur Itihas
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांGogadev Chauhan – Parampara aur Itihas
गोगादेव चौहान – परम्परा और इतिहास : राजस्थान को लोक संस्कृति में अनेक अद्भुत विशेषताएं विद्यमान हैं। यहाँ के लोक देयता पौराणिक देवताओं से भिन्न हैं और उनमें अपनी अनेक विशिष्टताएं हैं। डॉ. बिन्ध्यराज चौहान ने ‘गोगादेव चौहान – इतिहास एवं परम्परा’ में विशुद्ध ऐतिहासिक दृष्टिकोण से लोक देवता गोगाजी से सम्बन्धित परम्पराओं के मूल में निहित गहरे से गहरे सत्य को अपनी विश्लेषणात्मक मर्मज्ञता और ऐतिहासिक सूझ के आधार पर उद्घाटित करने का सफल प्रयास किया है। रामदेवजी के भारत प्रसिद्ध रामदेवरा मेले के समकक्ष गोगामेड़ी में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने वाले मेले के नायक गोगाजी से सम्बन्धित प्रामाणिक साधनों पर आधारित सामग्री के कारण इस सम्बन्ध में प्रचलित अनेक रूढियों का बोधगम्य सत्य उजागर करने का श्रेय प्रस्तुत ग्रंथ के लेखक को प्राप्त है। गोगादेव चौहान के महमूद गजनबी से संघर्ष को लेकर इतिहासकारों के मध्य विरोधाभास रहा है, डॉ. बिन्ध्यराज चौहान ने महमूद गजनबी के सोमनाथ पर आक्रमण के समय हुए गोगा से संघर्ष, घग्घर के निकट हुए संघर्ष आदि से सम्बन्धित साधनों का विस्तार से विवेचन कर यह विश्वसनीय रूप से सिद्ध कर दिया है कि यह युद्ध थानेश्वर के निकट हुआ था।
रामसा पीर की भांति पीर (जाहर पीर) के रूप में विभिन्न धर्म-सम्प्रदायों के श्रद्धालुओं द्वारा पूज्य गोगाजी के जीवनवृत्त का अत्यंत ही प्रामाणिक विवरण न केवल अनेक भ्रांतियों के निवारण में सक्षम होगा अपितु इतिहास के गहन-गंभीर अध्येताओं के साथ ही साधारण पाठकों के लिए भी सहेज कर रखने योग्य सिद्ध होगा। गोगाजी में आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह ग्रंथ नि:सन्देह अद्वितीय निधि के रूप में ख्याति अर्जित करेगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Mer Kshatriya Jati ka Itihas
मेर क्षत्रिय जाति का इतिहास :
मनुष्य के जन्म के समय ही उसकी जाति धर्म आदि तय हो जाते हैं। उस समय ना तो वह अपनी जाति के बारे में जानता है और ना ही अपने धर्म के बारे में। मनुष्यों के द्वारा ही धर्म और जातियों को बनाया गया।
हिन्दू धर्म में कर्म को प्रधानता दी गई है। यदि आप पुश्तैनी कर्म को छोड़कर अन्य कर्म अपनाते है तो उसी क्षण आपकी जाति बदल जायेगी। यह कर्म ही तो है जो नये-नये समाज का निर्माण करते आये है। वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण, शूद्र आदि का निर्माण कर्म के आधार पर ही तो हुआ है एवं इस कार्य प्रधान हिन्दू धर्म में किसी जाति के निर्माण में किसी दूसरी जाति या व्यक्ति का कोई दोष नहीं है। यह तो अमूक जाति के महापुरुषों के कर्मों की देन है और आज उन्हीं महापुरुषों के वंशज वर्तमान जाति में निवास करते हैं।
भारत देश में हिन्दू धर्म की प्रधानता है। हिन्दू धर्म में पहले तो कर्म के आधार पर वर्ण और जातियाँ तय होती थी लेकिन अब हिन्दू धर्म का विभाजन दलित और स्वर्ण के रूप में उभर कर सामने आया है। आज़ादी के बाद नये वर्गों सामान्य वर्ग, अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियाँ आदि का निर्माण हिन्दू धर्म के लिए घातक साबित हुआ है।
कोई भी जाति दलित नहीं है, उनके कर्म ही उनको दलित बनाते हैं। कोई भी जाति स्वर्ण नहीं है, उनके कर्म ही उनको पूजनीय बनाते हैं। इस देश में कोई दलित नहीं कोई स्वर्ण नहीं है। राजनीति ने हिन्दू समाज को बिखेर दिया है। जातियों का जब मैनें अध्ययन किया तो चैकाने वाले तथ्य सामने आये।
मीणा जाति मध्यप्रदेश के श्योपुर एवं आस-पास के जिलों में अन्य पिछड़ा वर्ग में है एवं राजस्थान की तरह अनुसूचित जनजाति में नहीं। उनके साथ ऐसा कोई भेद भाव नहीं किया जाता है। इतिहास की नज़र से देखा जाए तो मीणा जाति ने हाड़ाओं से पहले हाड़ौती व कछवाहों से पहले ढुँढाढ़ पर राज्य किया था।
कोली (शाक्य, महावर) जाति राजस्थान राज्य में अनुसूचित जाति में आती है लेकिन गुजरात राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं। स्वतंत्रता संग्राम में गुजरात के कोली समाज ने योगदान दिया था। मांधाता कोली का गुजरात में राज्य हुआ करता था। उत्तराखण्ड में कोली राजपूत होते हैं। भगवान बुद्ध स्वयं क्षत्रिय राज्य कोली वंश के राजकुमार थे।
गुर्जर जाति कश्मीर में अनुसूचित जनजाति में शामिल है जबकि राजस्थान में अन्य पिछड़ा वर्ग में है। इतिहास में गुर्जर जाति को प्रतिहार राजवंश से जोड़कर देखा जाता है। वैष्णव सम्प्रदाय के लोग ब्राह्मण होते हैं, जो सामान्य वर्ग में आते हैं लेकिन कोटा के ग्रामीण अंचल में वैष्णव बाबाजी अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल है। राजपूत सामान्य वर्ग में आते हैं लेकिन कई क्षेत्रों के राजपूत जैसे सोंधिया (मालवा), रावत (मेवाड़-मारवाड़) राजपूत अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल है।
ऐसी ही कई सैकड़ों जातियाँ हैं, जो एक क्षेत्र में कथित दलित समुदाय का हिस्सा है तो अन्य क्षेत्रें में कथित स्वर्ण समाज के रूप में देखी गई हैं।
अगर इस बात को समझ लिया जाए तो दलित-स्वर्ण के झगड़े हमेशा के लिए समाप्त हो सकते हैं। कर्म से व्यक्ति दलित या स्वर्ण हो सकता है लेकिन जाति से कोई भी दलित या स्वर्ण नहीं हो सकता हैं।SKU: n/a