History Of Rajasthan
Showing all 24 results
-
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Baba Ramdev : Itihas evam Sahitya
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांBaba Ramdev : Itihas evam Sahitya
बाबा रामदेव : इतिहास एवं साहित्य : समृद्व और वैविध्यपूर्ण राजस्थानी लोक साहित्य में आये लोकोपकारी चरित्रों में बाबा रामदेव का स्थान सर्वोपरि है। अब तक इनके जीवन और साहित्य सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक ग्रंथ प्राप्त नहीं था। डॉ. सोनाराम बिश्नोई ने इस साहित्य का संग्रह सम्पादन कर, प्रथम बार इसका विवेचनात्मक समीक्षात्मक अध्ययन इस ग्रंथ में प्रस्तुत किया है, जो नवीन और मौलिक है। यह शोध दो खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड के प्रथम अध्याय में बाबा रामदेवजी की वंश परम्परा का ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय अध्याय में बाबा रामदेव जी के जन्म-स्थान, आविर्भाव कालीन परिस्थिति तथा उनके द्वारा सम्पादित विविध लौकिक-अलौकिक कार्यो का विवरण प्रस्तुत किया है। तृतीय अध्याय में बाबा रामदेव सम्बन्धी लोक साहित्य का परिचय दिया गया है। चतुर्थ अध्याय में इस लोक साहित्य का भक्ति, दर्शन, उपदेश, नीति, सामाजिक संस्कार और जीवनी आदि के आधार पर वर्गीकरण कर उसका विवेचन किया गया है। पंचम अध्याय में इस लोक साहित्य का साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक दृष्टि से मूल्यांकन किया गया है। इस मूल्यांकन द्वारा हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक, महान अछूतोद्वारक बाबा रामदेवजी का चरित्र उभरकर सामने आया है। द्वितीय खण्ड लेखक के अनवरत श्रम और दुरूह प्रयास का परिणाम है। इसके परिशिष्ट-क में बाबा रामदेव और उनके भक्त कवियों द्वारा रचित बाणियां, परिशिष्ट-ख में आठ कवियों द्वारा रचित बाबा रामदेव सम्बन्धी प्राचीन छंद (हिन्दी व्याख्या सहित) और परिशिष्ट-ग में तीन लोक वार्ताएं मौलिक परम्परा और हस्तलिखित ग्रंथो के आधार पर संकलित-सम्पादित की गई है, जो इस शोध ग्रंथ की महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Baneda Sangrahalaya ke Dastawej – Vol. 4
प्रो. के.एस. गुप्ता ने बनेड़ा दस्तावेजों के 1758 ई. से 1818 ई. तक तीन भाग पूर्व में प्रकाशित किए है, जिनका इतिहास जगत में अच्छा स्वागत हुआ है। इन दस्तावेजों के आधार पर प्रसिद्ध इतिहासवेत्ताओं की अनेक मान्यताओं का पुनर्वलोकन की आवश्यकता प्रतीत हुई।
विश्वास है कि दस्तावेजों का चतुर्थ भाग भी भारतीय इतिहास में नई मान्यतायें स्थापित करेगा। 1857 की क्रान्ति सम्बंधित दस्तावेजों में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली घटनाओं का दिग्दर्शन होता है। विशेषतः क्रान्ति की समाप्ति के पश्चात् अंग्रेजों ने जिस अमानुषिकता का परिचय दिया उसका विवरण इस ग्रन्थ की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है।
मुझे विश्वास है कि मेवाड़ राजस्थान ही नहीं अपितु भारतीय इतिहास लेखन में ये दस्तावेज आधारभूत स्रोत के रूप में प्रतिष्ठापित होंगे।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Col. James Tod krit Rajasthan ka Puratatva evam Itihas (PB)
-15%Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिCol. James Tod krit Rajasthan ka Puratatva evam Itihas (PB)
जैम्स टॉड कृत महान पुस्तक “राजस्थान का पुरातत्व एवं इतिहास” के नवीन संस्करण को प्रकाशित करने की बात को कोई भी व्यक्ति हल्केपन से नहीं ले सकता। महायुद्व में राजपूतों के महान योगदान को देखकर इम्पीरियल कॉन्फरेंस में इनके प्रतिनिधि को आमंत्रित किया है और यह निश्चित है कि वर्तमान महाविपत्ति के समाप्त होते ही भारतीय प्रशासन में राजपूतों को और अधिक बड़ा भाग सौपा जायेगा। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए यह अभिलाषा उत्पन्न हुई कि राजपूतों के पुरातत्त्व, इतिहास एवं उनकी सामाजिक संस्कृति को प्रकाशित कर उसे जनता के सामने प्रस्तुत किया जावे। यह पुस्तक अपने आप में उत्कृष्ट कालजयी साहित्य है और उसके साथ हमारा व्यवहार भी ऐसा ही होना चाहिए। स्वयं राजपूतों के लिये एवं उन भारतीयों के लिए जो अपने देश का इतिहास जानने में रूचि रखते है।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Col. James Tod krit Rajasthan ka Puratatva evam Itihas (vol. 1, 2, 3)
-10%Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिCol. James Tod krit Rajasthan ka Puratatva evam Itihas (vol. 1, 2, 3)
जैम्स टॉड कृत महान पुस्तक “राजस्थान का पुरातत्व एवं इतिहास” के नवीन संस्करण को प्रकाशित करने की बात को कोई भी व्यक्ति हल्केपन से नहीं ले सकता। महायुद्व में राजपूतों के महान योगदान को देखकर इम्पीरियल कॉन्फरेंस में इनके प्रतिनिधि को आमंत्रित किया है और यह निश्चित है कि वर्तमान महाविपत्ति के समाप्त होते ही भारतीय प्रशासन में राजपूतों को और अधिक बड़ा भाग सौपा जायेगा। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए यह अभिलाषा उत्पन्न हुई कि राजपूतों के पुरातत्त्व, इतिहास एवं उनकी सामाजिक संस्कृति को प्रकाशित कर उसे जनता के सामने प्रस्तुत किया जावे। यह पुस्तक अपने आप में उत्कृष्ट कालजयी साहित्य है और उसके साथ हमारा व्यवहार भी ऐसा ही होना चाहिए। स्वयं राजपूतों के लिये एवं उन भारतीयों के लिए जो अपने देश का इतिहास जानने में रूचि रखते है।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Gogadev Chauhan – Parampara aur Itihas
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांGogadev Chauhan – Parampara aur Itihas
गोगादेव चौहान – परम्परा और इतिहास : राजस्थान को लोक संस्कृति में अनेक अद्भुत विशेषताएं विद्यमान हैं। यहाँ के लोक देयता पौराणिक देवताओं से भिन्न हैं और उनमें अपनी अनेक विशिष्टताएं हैं। डॉ. बिन्ध्यराज चौहान ने ‘गोगादेव चौहान – इतिहास एवं परम्परा’ में विशुद्ध ऐतिहासिक दृष्टिकोण से लोक देवता गोगाजी से सम्बन्धित परम्पराओं के मूल में निहित गहरे से गहरे सत्य को अपनी विश्लेषणात्मक मर्मज्ञता और ऐतिहासिक सूझ के आधार पर उद्घाटित करने का सफल प्रयास किया है। रामदेवजी के भारत प्रसिद्ध रामदेवरा मेले के समकक्ष गोगामेड़ी में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने वाले मेले के नायक गोगाजी से सम्बन्धित प्रामाणिक साधनों पर आधारित सामग्री के कारण इस सम्बन्ध में प्रचलित अनेक रूढियों का बोधगम्य सत्य उजागर करने का श्रेय प्रस्तुत ग्रंथ के लेखक को प्राप्त है। गोगादेव चौहान के महमूद गजनबी से संघर्ष को लेकर इतिहासकारों के मध्य विरोधाभास रहा है, डॉ. बिन्ध्यराज चौहान ने महमूद गजनबी के सोमनाथ पर आक्रमण के समय हुए गोगा से संघर्ष, घग्घर के निकट हुए संघर्ष आदि से सम्बन्धित साधनों का विस्तार से विवेचन कर यह विश्वसनीय रूप से सिद्ध कर दिया है कि यह युद्ध थानेश्वर के निकट हुआ था।
रामसा पीर की भांति पीर (जाहर पीर) के रूप में विभिन्न धर्म-सम्प्रदायों के श्रद्धालुओं द्वारा पूज्य गोगाजी के जीवनवृत्त का अत्यंत ही प्रामाणिक विवरण न केवल अनेक भ्रांतियों के निवारण में सक्षम होगा अपितु इतिहास के गहन-गंभीर अध्येताओं के साथ ही साधारण पाठकों के लिए भी सहेज कर रखने योग्य सिद्ध होगा। गोगाजी में आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह ग्रंथ नि:सन्देह अद्वितीय निधि के रूप में ख्याति अर्जित करेगा।SKU: n/a -
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Hadoti va Tonk ke Muslim Smarak
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिHadoti va Tonk ke Muslim Smarak
प्रस्तुत पुस्तक “हाड़ौती व टोंक के मुस्लिम स्मारक” राजस्थान के ऐतिहासिक स्मारकों की स्थापत्य शैली एवं इतिहास में एक नवीन अध्याय जोड़ने का अभिनव प्रयास है।
प्रस्तुत सचित्र संदर्भयुक्त ग्रन्थ हाड़ौती एवं टोंक के मुस्लिम स्मारकों पर केंद्रित है, जिनमें प्रत्येक स्मारक से जुड़ी मौलिक जानकारियों का समावेश किया गया है। राजस्थान के दक्षिण पूर्वी हाड़ौती क्षेत्र की तीन रियासतों कोटा, बूंदी एवं झालावाड़ व राजस्थान की एकमात्र पठान रियासत टोंक विभिन्न कालखंडों में निर्मित मस्जिदों, मकबरों, दरगाहों, खानकाहों, कुओं व बावड़ियों के स्थापत्य से अत्यंत समृद्ध हैं।
विभिन्न कालखंडों में निर्मित इन स्मारकों के निर्माण में सल्तनतकाल व मुगलकाल की मुस्लिम स्थापत्य शैलियों के स्थानीय राजपूत व आधुनिक काल की ब्रिटिश स्थापत्य शैलियों के मिश्रण से जन्मी अनोखी स्थापत्य शैली की विशिष्टता एवं ऐतिहासिकता को उजागर करने का महत्त्वपूर्ण प्रयास है यह कृति।SKU: n/a -
Literature & Fiction, Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Lokavlokan (Lok Jeevan Evam Lok Sahitya Sambandhi Lekh)
Literature & Fiction, Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिLokavlokan (Lok Jeevan Evam Lok Sahitya Sambandhi Lekh)
लोकावलोकन (लोक जीवन एवं लोक साहित्य सम्बन्धी लेख) : सुपर बाजार में सब्जी खरीदते हुए हम माली के बारे में नहीं सोचते, ऐसे ही कला को जब हम मात्र मंच पर से विशिष्टजनों के लिए प्रक्षेपित या सेवार्पित की जाती हुई जिंस बना देते हैं तब हम कलाकार और उस कला के व्यापक और निर्णायक आर्थिक-सामाजिक मानवीय पहलुओं को नजरअन्दाज कर देते हैं। यदि परम्परा के मूल और मूल्यवान अंशों की रक्षा होनी है, तो सांस्कृतिक संध्याओं के मौसमी ढोल-ढमाके के परे कुछ ज्यादा ठोस, ज्यादा सुचिंतित और ज्यादा सतत प्रयासों की दरकार रहेगी। इन विधाओं, उनकी विशेषताओं और उनसे जुड़े वाद्ययंत्रों को बचाना है, तो उन्हें नये सन्दर्भों में नई सार्थकता देनी होगी। तीन संकट हैं :- संकुचन-विलोपन, अवमिश्रण-पनीलापन, विरूपण-वर्णसंकरण-शायद तीन ही संभव निदान हैं। कुछ चीजों को लगभग ज्यों-का-त्यों बनाये रखने का प्रयास, उनके ही ठीए पर, गुरु शिष्य परम्परा आदि के माध्यम से ‘सम्प्रेषण’ (ट्रांसमिशन)। शेष का अनुकूलन, रूपान्तरण, प्रतिरोपण-एडैप्टेशन, ट्रांसफौर्मेशन, ट्रांसप्लान्टेशन। इन दोनों के लिए असाध्य, शेष मरणोन्मुख की यादगार, पहचान संजोना, शव का परिरक्षण-ममिफिकेशन जैसा, म्यूजियम में रखने जैसा। कुछ लोग पूरी सदेच्छा से, लोकवार्ता को रखने के लिए लोक संस्कृति की संबंधित सीप को बनाये रखने की बात करते हैं। यह अव्यावहारिक दुराशा है। कुछ और उतनी ही सदेच्छा से कहते हैं कि लोक-कला सीखने-सिखाने की चीज नहीं है, रूपान्तरण, अनुकूलन से उसका मूल स्वरूप नष्ट होता है। मत करिये, वह जहां है वहीं अपना मूल स्वरूप लिए-दिए नष्ट हो जाने वाली है। फिर, विरूपण तो बिना एडैप्टेशन, बिना हमारे चाहे भी तो हो ही रहा है।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Maharana Kumbha : Vyaktitva evam Krititva
महाराणा कुम्भा : व्यक्तित्व एवं कृतित्व : महाराणा कुम्भा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और उनके कृत्यों में ‘शास्त्र, संगीत और साहित्य’ का सुन्दर संगम सुस्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। विभिन्न प्रकार के विरुद्ध तथा परमगुरु, शैलगुरु तोडरमल्ल, दानगुरु, चापगुरु अभिनव – भरताचार्य, नंदिकेश्वरावतार, हिन्दू सूत्राण, न्वयभरत इत्यादि से विभूषित कुम्भा के विशाल व्यक्तित्व के महत्वपूर्ण संकेत हैं। वह एक महान् विजेता, कुशल प्रशासक, उच्चकोटि के निर्माता, विशाल साहित्य का पल्लवितकार, वैदिक संस्कृति को संक्रमण काल से मुक्त कर, पुनर्जागरण स्थापित करने में प्रयासरत व्यक्तित्व था। इसीलिए कुम्भा के शासनकाल (1433 ई. से 1466 ई.) को मेवाड़ में स्वर्णयुग माना जाता है। वास्तव में कुम्भा को परमार नरेश भोज, मौर्यकालीन अशोक और समुद्रगुप्त का सामूहिक प्रतिरूप भी कहा गया है। भोज के समान संस्कृत साहित्य तथा देशज साहित्य को सृजनशीलता में तथा भवन निर्माण में भी अनुपम योगदान दिया। समुद्रगुप्त के समरूप विजय अभियानों का सूत्रपात करना तथा जनजीवन को सुखी एवं समृद्धशाली बनाने में अशोक के समकक्ष माना है। कुम्भा में एक राष्ट्रीय नायक होने के सारे गुणों के उपरान्त भी आश्चर्य है कि उनका राष्ट्रीय स्तर पर मूल्यांकन न होने का अभाव खटकता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली ने तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 10-12 जुलाई 2019 को उदयपुर में आहुत की थी। उसमें आये अधिकांश शोध पत्रों को ग्रन्थ के आकार में प्रस्तुत किया जा रहा है। आशा और विश्वास है कि यह ग्रन्थ इस अभाव की पूर्ति की ओर अग्रसर होने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Marwar mein Jatiya Panchayat aur Samaj
प्रस्तुत पुस्तक ‘मारवाड़ में जातीय पंचायत और समाज’ में राजस्थान की देशी रियासतों में से सबसे बड़ी रियासत जोधपुर राज्य में 1818 से पूर्व लगभग 100 वर्षों में प्रचलित न्याय व्यवस्था की एक पक्ष जातीय पंचायतों की कार्यप्रणाली पर विस्तृत प्रकाश डाला। साथ ही उस समय की विभिन्न जातियों की संस्कृति की विस्तृत विवेचना की, जिसमें यहाँ रहने वाली जातियों के रहन-सहन, रीति-रिवाजों एवं उनमें प्रचलित अनेक प्रथाओं की विषद विवेचना कि हैं। जातीय पंचायतों के स्वरूप, संगठन, प्रकार, कार्य पद्धति एवं उनके क्षेत्राधिकार का विस्तृत वर्णन किया।
इस पुस्तक में लेखक ने जातीय पंचायतों की समाज में भूमिका पर विस्तृत विवेचना के साथ ही जातीय पंचायतों के समक्ष आने वाले प्रमुख वाद एवं उस समय प्रचलित दंड व्यवस्था का विस्तृत उल्लेख भी किया है।
इस काल में सम्बंधित देशी रियासत एवं जातीय पंचायतों के सम्बंधों के बारे में भी बताया तथा समाज में आर्थिक राजनीतिक एवं न्यायिक महत्व के बारे में भी पुस्तक में चर्चा की गई है।
इन मुद्दों को यह जातीय पंचायतें कितना प्रभावित करती थी, इन पर भी पुस्तक में विस्तृत विवेचना की गई है। इस प्रकार लेखक ने अंग्रेजों से आने से पूर्व प्रचलित न्याय व्यवस्था को विस्तृत रूप से बताने का प्रयास किया है, जिससे आधुनिक न्याय प्रणाली एवं पूर्व प्रचलित न्याय प्रणाली के बीच तुलना की जा सके तथा इनके गुण दोषों को भी जाना जा सके। लेखक ने इस विषय पर एक सराहनीय प्रयास किया है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Mewar ki Gaurav Gathayen
मेवाड़ की गौरव गाथाएँ : ‘मेवाड़’ शक्ति, शौर्य, पराक्रम एवं बलिदान के इतिहास का वह एक नाम है, जिसकी परम पावन माटी का कण–कण अपने में निहित पवित्रता का आभास कराता है और जन–जन अपने माथे पर गौरव–तिलक लगाने के लिए स्वतः प्रेरित होता है। स्मरण रहे कि हर युग में यहाँ का व्यक्ति मातृभूमि के लिए सर्वस्व समर्पण हेतु सदैव तत्पर रहा है। एक से बढ़कर एक बलिदानियों के कई स्वर्णिम पृष्ठ मेवाड़ के इतिहास से जुड़े है। पद्मावती का अद्भुत जौहर, पन्ना–कृष्णा का अमर त्याग, गोरा–बादल जैसे युवा व बाल योद्धाओं का युद्ध कौशल, भामाशाह का महादान तो अमरचन्द बड़वा का बलिदान आज सम्पूर्ण जगत के लिऐ प्रेरणा–स्रोत बना हुआ है।
पुस्तक के लखन एवं प्रकाशन का यही उद्देश्य है कि मेवाड़ की यह थाती जन–जन तक पहुँचे और विरोचित मूल्य का प्रकाश सर्वत्र बिखरे। साथ ही यह लिखते हुए भी हर्ष का अनुभव हो रहा है कि श्री तरुण देश–प्रदेश के सुनाम इतिहासकार के साथ ही वरिष्ठ साहित्यकार भी हैं, अतः प्रस्तुत गौरव गाथाओं में इतिहास के साथ–साथ साहित्य की अनुभूति का आनन्द भी मिलेगा। इसी आशा एवं विश्वास के साथ…SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajasthan ke Aitihasik Durg
राजस्थान के ऐतिहासिक दुर्ग : राजस्थान का अर्थ है राजाओं द्वारा शासित क्षेत्र। रियासती काल में छोटे से छोटे राजा के पास कम से कम एक दुर्ग का होना अनिवार्य था, जहाँ वह अपने परिवार एवं राजकोष को सुरक्षित रख सकता था। राजस्थान में महाराणा कुंभा जैसे राजा भी हुए हैं, जिसके राज्य में सर्वाधिक 84 दुर्ग थे। एक अनुमान के अनुसार राजस्थान में लगभग प्रत्येक 10 मील पर एक दुर्ग स्थित था। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश में सर्वाधिक 656 दुर्ग महाराष्ट्र में, 330 दुर्ग मध्यप्रदेश में तथा 250 दुर्ग राजस्थान में थे। राजस्थान के 33 जिलों में शायद ही कोई ऐसा है, जिसमें 5-10 दुर्ग अथवा उनके अवशेष नहीं हों। राजाओं के राज्य समाप्त हो जाने के बाद अधिकतर दुर्ग असंरक्षित छोड़ दिये गये, जिसके कारण ये तेजी से खण्डहरों में बदलते जा रहे हैं। बहुत कम दुर्गों को राज्य अथवा केन्द्र सरकार अथवा निजी क्षेत्र के न्यासों द्वारा संरक्षण दिया जा रहा है। प्रस्तुत पुस्तक राजस्थान में कालीबंगा सभ्यता से लेकर, उत्तरवैदिक काल, महाभारत काल, मौर्य काल, शुंग काल, गुप्त काल, राजपूत काल एवं पश्चवर्ती काल में बने दुर्गों को केन्द्र में रखकर लिखी गई है। इनमें से कुछ दुर्ग अब पूरी तरह नष्ट हो गये हैं, तो कुछ दुर्ग अब भी मौजूद हैं। प्रत्येक दुर्ग को उसके मूल निर्माता राज्यवंश के क्रम में जमाया गया है, ताकि इनका इतिहास शीशे की तरह स्पष्ट हो सके। वस्तुतः इन दुर्गों का इतिहास ही राजस्थान का वास्तविक इतिहास है, जिसे प्रसिद्ध इतिहासकार एवं लेखक डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा प्रचुर शोध के पश्चात् लिखा गया है। डॉ. गुप्ता की लेखन शैली रोचक, भाषा कसी हुई और जन-जन की जिह्वा पर चढ़ने वाली है। एक बार यदि आप इस पुस्तक को पढ़ना आरम्भ करेंगे तो पूरी करके ही उठेंगे।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Rajasthan ke Pramukh Sant evam Lokdevta
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांRajasthan ke Pramukh Sant evam Lokdevta
राजस्थान के प्रमुख संत एवं लोक देवता : राजस्थान के मध्यकालीन कवि ईसरदास की ‘परमेसरा’ के रूप में पूजा और साथ ही वीर-योद्धाओं की ‘जूंझारजी’ के रूप में अर्चना इस ‘धोरा-धरती’ की लेखनी एवं खड्ग के सामर्थ्य की साक्षी है। इस क्षेत्र की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति ने इसे एकान्तिक साधना एवं मौलिक चिन्तन की एक समृद्ध परम्परा प्रदान की है। धर्म-अध्यात्म की एक ऐसी अविरत धारा को प्रवाहित किया, जिसका रसास्वादन युगों से होता रहा है। अधिकांश अध्येताओं को राजस्थान की समृद्ध संस्कृति इस आध्यात्मिक पक्ष की अपेक्षा शौर्य-गाथाओं के विवरण अधिक आकर्षित करते रहे है। राजस्थान की आध्यात्मिक संस्कृति के अध्ययन की आवश्यकता के दृष्टिकोण से इस ग्रन्थ का प्रणयन किया गया।
राजस्थान की धार्मिक-आध्यात्मिक परम्परा के सृजन एवं संवर्द्धन का अपना व्यक्तित्व है, अपनी पहिचान है। इस सर्वग्राही समष्टिवादी प्रवृति का अपना मूल्य है। इस दृष्टि से इस संस्कृति के प्रणेताओं तथा उनकी विचार-वृति का अध्ययन न केवल अपेक्षित है प्रत्युत अनिवार्य भी है। इसकी समसामयिक तथा साम्प्रतिक प्रासंगिकता तथा उपयोगिता भी सर्वथा प्रमाणित है। प्रस्तुत ग्रंथ में संत-लोक देवता संस्कृति के महत्वपूर्ण आयामों पर प्रकाश डालने का उद्यम किया गया है। आशा है कि विद्धान पाठकों के लिए यह उपादेय सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajasthan ke Veer Jujhar
राजस्थान के वीर जुझार : यह मान्यता भी प्राचीन ग्रन्थों में स्थापित मिलती है कि निरन्तर युद्ध लड़ते रहने वाले ऐसे वीर हमारे यहां हुए हैं कि वे रणस्थल नहीं छोड़ते, सिर कट जाने पर भी युद्ध करते रहते हैं। जीते जी तो युद्धरत रहते ही हैं किन्तु ऐसे वीर सिर गिर जाने पर भी शस्त्र न छोड़कर शत्रुओं का संहार कर देते हैं। बिना सिर वाले (नीचे वाले) शरीर को संस्कृत में ‘कबन्ध’ कहा जाता है। राहु और केतु की कथा सुविदित है, राहु केवल सिर हैं, केतु नीचे वाला शरीर। रामायण, महाभारत, रघुवंश आदि संस्कृत ग्रन्थों के बाद प्राकृत, अपभ्रंश, लोकभाषाओं के आदि के काव्यों में भी ऐसे वर्णन हमें इसी कारण प्राप्त होते हैं, जिनमें युद्ध में (अथवा राहु केतु वाली किसी अन्य घटना के फलस्वरूप) कबन्ध अर्थात् धड़ भी कुछ समय तक लड़ता रहा अथवा प्राण सहित रहा। बाद में ऐसे योद्धाओं के अभिलेख भी रचे गए, जिन्होंने शिरच्छेद के बाद भी युद्ध किया। ऐसे योद्धाओं को जो नाम दिए गए, उनमें एक नाम है ‘जुझार या जूंझार’। जुझारू का अर्थ होता है योद्धा यह सुविदित है। ऐसे योद्धाओं की जो रोमांचक कथाएं रामायण, महाभारत आदि से लेकर मध्यकाल के काव्य ग्रन्थों और इतिहास ग्रन्थों में भी उपलहध होती है, वे दिल दहला देने वाली होती है, यह तो स्पष्ट ही है। ऐसे योद्धाओं में से अनेकों को समाज देवता मानकर पूजने भी लगा था। कुछ योद्धा लोकदेवताओं के मन्दिर, पूजास्थल या स्मारक आज भी देखे जा सकते हैं। राजस्थान में ऐसे जुझारों की गाथाएँ कुछ शताब्दियों से पाई जाती हैं। आज के प्रबुद्ध पाठक की यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि इस बात की तलाश की जाए कि कबन्धों या जुझारों की ऐसी प्रमुख गाथाएं कहां हैं, उनका क्या स्वरूप है, क्या उनके आधार पर कोई महल, मन्दिर, चित्र या अभिलेख भी तैयार हुए हैं आदि।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajasthan ki Sanskriti mein Nari
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणRajasthan ki Sanskriti mein Nari
“इस संसार में यदि नारी न होती तो सभ्यता और संस्कृति न होती। इसीलिए किसी समाज के सांस्कृतिक विकास का मानदण्ड नारी की मर्यादा है।” – हजारी प्रसाद द्विवेदी
राजस्थान की संस्कृति में नारी का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। कुल मर्यादाओं व परम्पराओं के निर्वाह में यहाँ की नारी ने अद्वितीय आदर्श प्रस्तुत किये हैं। वीरांगना, सती और प्रेमिका के रूप में इस प्रदेश की नारी की अपनी निजी विशेषताएँ रही हैं।
संस्कारों के निर्माण में यहाँ की नारी की जो महती भूमिका रही है, वह इस प्रदेश की संस्कृति में अविस्मरणीय है। वैयक्तिक व पारिवारिक आदर्शों की स्थापना, कुल परम्पराओं का निर्वाह तथा सामाजिक व धार्मिक जीवन की समृद्धि और विकास में यहाँ की नारी के अनूठे योगदानों से इस प्रदेश की संस्कृति गरिमामय और जाज्वल्यमान बनी। संस्कृति के निर्माण और इसके संवर्धन में यहाँ की नारी सदा सचेष्ट रही है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Rajasthan mein Rajshahi ka Ant
राजस्थान में राजशाही का अन्त : जिस समय राजपूताना रियासतों को भारत में मिलाया गया था, उस समय राजाओं को यह विश्वास दिलाया गया था कि भावी लोकतंत्र में छोटी रियासतों को उनकी निकटवर्ती रियासतों में मिलाकर बड़ी प्रशासनिक इकाइयों का निर्माण किया जाएगा तथा बड़ी रियासतों को भारत के भीतर, स्वतंत्र रियासत के रूप में बने रहने दिया जाएगा, किंतु देश की आजादी के बाद रियासतों में उत्तरदायी शासन की मांग के लिए प्रजामण्डल आंदोलन चले, जिनके कारण रियासतों में बेचैनी फैल गई तथा लगभग दो वर्ष के बहुपक्षीय संघर्ष के पश्चात भारत सरकार को ये रियासतें राजस्थान में मिलानी पड़ी और राजस्थान का वर्तमान स्वरूप सामने आया। इस दौरान विभिन्न रियासतों में बहुत सी घटनाएं घटी। रियासती संविधानों का निर्माण हुआ, लोकप्रिय सरकारें बनीं किंतु जन-आक्रोश के समक्ष रियासतें टिक नहीं सकीं। जब रियासतों का विलोपन होने लगा तब सरदार पटेल पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने राजाओं के साथ धोखा किया है। इस पुस्तक में उस ऐतिहासिक युग की घटनाओं को विस्तार एवं विश्वसनीयता के साथ लिखा गया है।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajpurohit Jati ka Itihas (Vol. 1, 2)
-10%Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRajpurohit Jati ka Itihas (Vol. 1, 2)
राजपुरोहित जाति का इतिहास (भाग 1, 2) :
अनुक्रमणिका
युगयुगीन राजपुरोहित इतिहास : प्रो. जहूरखां मेहर
अपनी बात : डॉ. प्रहलाद सिंह राजपुरोहित
भूमिका : डॉ. प्रहलाद सिंह राजपुरोहित
राजपुरोहित वंश परिचय : प्रस्तावना
राजपुरोहितों के गोत्र प्रवर
राजपुरोहितों की समस्त उपजाति, खांपें
भारद्वाज गोत्रिय राजगुरु पुरोहित सोढा
वशिष्ठ गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
पीपलाद
गौतम गोत्रिय राजगुरु राजपुरोहित
पारसर गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
शांडिल्य गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
उदालिक गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
कश्यप गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
बाल वशिष्ठ गोत्र
सेवड़ों का संक्षिप्त परिचय
सेवड़ वंश के बाबत पौराणिक तथा प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार
सेवड़ राजपुरोहितों का आदिनारायण से लेकर अद्यावधि तक वंशवृक्ष विशेष जानकारी
सेवड़ राजगुरु पुरोहित का राव सीहा के साथ कन्नौज से मारवाड़ आना……….SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajputane ki Rochak evam Aitihasik Ghatnayen
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRajputane ki Rochak evam Aitihasik Ghatnayen
राजपूताने की रोचक एवं ऐतिहासिक घटनाएँ : अंग्रेजों ने भारत को दो तरह की राजनीतिक व्यवस्था के अन्तर्गत रखा। पहली तरह की व्यवस्था में भारत के बहुत बड़े भू-भाग पर अंग्रेजों का प्रत्यक्ष नियत्रंण था। इसे ब्रिटिश भारत कहा जाता था, जिसे उन्होंने 11 ब्रिटिश प्रांतों में विभक्त किया। दूसरी तरह की व्यवस्था के अन्तर्गत भारत के लगभग 565 देशी रजवाड़े थे, जिनकी संख्या समय-समय पर बदलती रहती थी। देशी राज्यों को रियासती भारत कहते थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इन रजवाड़ों के साथ अधीनस्थ सहायता के समझौते किए, जिनके अनुसार राज्यों का आंतरिक प्रशासन देशी राजा व नवाब के पास रहता था और उसके बाह्य सुरक्षा प्रबन्ध अंग्रेजों के नियंत्रण में रहते थे। इस पुस्तक में अंग्रेज शक्ति के राजपूताने की रियासतों में प्रवेश करने से लेकर वापस लौटने तक की अवधि में हुई रोचक एवं ऐतिहासिक घटनाओं को लिखा गया है।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rathore Rajvansh ke Riti-Riwaz
राठौड़़ राजवंश के रीति-रिवाज : ऐतिहासिक दृष्टि से जोधपुर मारवाड़ के राठौड़ राजवंश की संस्कृति न केवल प्राचीन है, अपितु शोध जगत के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण भी है। जोधपुर राजवंश अनेक ऐतिहासिक कालचक्रों का साक्षी रहा है। शोथ के लिए सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से जोधपुर राजघराने के नीति-रिवाज एवं परम्पराओं का अध्ययन अत्यधिक रुचिकर एव जिज्ञासापूर्ण है। यहाँ सतत् रूप से राजवंश की सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं का विकास होता रहा है।
यह पुस्तक जयनारायण व्यास विश्वविधालय, जोधपुर द्वारा सन् 1993 में स्वीकृत शोथ प्रबन्ध जोधपुर राजवंश के रीति-रिवाजों का सामजिक एवं आर्थिक अध्ययन (1600-1850ई.) का आशिक संशोधित संस्करण है। इस ग्रन्थ में जोधपुर राजवंश के रीति-रिवाजों विशेषकर राजपरिवार एवं जनाना ड्योढ़ी के नियम-कायदों, धार्मिक परम्पराओं, प्रमुख संस्कारों, राजदरबार के समसामयिक आयोजनों, शिष्टाचारों एवं विशिष्ट उत्सवों से संबंधित सामाजिक एवं आर्थिक पक्ष का विश्लेषण किया गया है, जो कि अप्रत्यक्ष रूप से मारवाड़ की सांस्कृतिक विरासत को ही इंगित करता है।
शोध की दिशा में विषय सर्वथा नवीन एवं मौलिक रहा है। विषय सामग्री का चयन विभिन्न शोध संस्थाओं में संगृहीत हस्तलिखित ग्रन्थों, अप्रकाशित ख्यातों, बहियों, वंशावलियों आदि में से किया गया है। सम्पादित पुस्तक मध्यकालीन राजस्थान के राजवंशों में रुचि रखने वाले शोधोत्सुक अध्ययनार्थियों, इतिहासवेत्ताओं एवं कला संस्कृतिविज्ञों के लिए महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ पुस्तक के रूप में उपयोगी एवं संगृहणीय सिद्ध हो सकेगी।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Sikar ka Itihas
सीकर का इतिहास : राजस्थान के शेखावटी प्रान्त का कोई श्रृंखलाबद्ध इतिहास नहीं है। राजस्थान इतिहास के लेखक कर्नल टाॅड ने प्रसंग के क्रम से आमेर के इतिहास में शेखावाटी का यत् किंचित विवरण दिया है। किन्तु वह पर्याप्त नहीं है। शेखावाटी का अतीत कालीन इतिहास बड़ा समुज्ज्वल है। शेखावतों ने स्व. बाहुबल से अपनी सत्ता स्थापित की थी। शेखावाटी के शासक शेखावतों की वीरता तो उल्लेखनीय है ही साथ ही शेखवाटी के कवियों, परोपकारी उदार सज्जनों, विद्वानों और साुध महात्माओं के चरित्र भी वर्तमान समय की पीढ़ी के लिए शिक्षणीय है।
खेतड़ी नरेश राजा अजितसिंहजी एवं उनके परम मेधावी पुत्र राजा जयसिंह जी दोनों पिता पुत्र की इच्छा शेखावाटी का सर्वांगपूर्ण इतिहास तैयार कराने की थी किन्तु असमय ही कालकवलित हो गये। उनके आग्रह पर पं. झाबरमल शर्मा ने 15 वर्ष तक इसके लिए अन्वेषण कर ऐतिहासिक सामग्री के आधार पर सीकर का इतिहास लिखा।
पं. झाबरमल्ल जी के अन्वेषण और अनुशीलन से युक्त तथ्यों पर आधारित यह शेखावाटी का इतिहास आकार में छोटा होते हुए भी ऐतिहासिक दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण एंव उपयोगी है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
The Castes of Marwar (Census Reprot of 1891)
The Castes of Marwar (Census Reprot of 1891)
It is always interesting to know something about the people with whom we have to deal and to learn their ways, manners, and customs is an amusing task. The want of a book containing descriptions of the various tribes and castes of Marwar was long felt. No attempt has hitherto been made to undertake the work on account of a great many difficulties that attended its achievement. But the census of Marwar for 1891, the charge of which was entrusted to the undersigned, made the way clear and easy. The Darbar sanctioned the publication of such a work, and the census tours made throughout the country for the purpose of inspecting the preliminary arrangements of the districts afforded suitable opportunities for the collection of the required material. The census Supervisors and Inspectors, as well as the Pargana Hakims, were provided with a set of questions dealing with the chief points to enable them to collect information regarding the ways and other social circumstances of the people, but a good many facts were investigated through personal inquiries from trustworthy representatives of various communities. Many valuable references were also obtained from the Annals and Antiquities of Rajasthan by Col. Tod. the Punjab Census Report of 1881 by Mr. Danziel Ibbetson, the Hindu tribes, and castes by the Revd. M. A. Sherring, the Races of the North-Western Provinces by Sir Henry Elliot, the Memoir of Central India by Sir John Malcolm, the Indian castes by John Wilson, also the Gazetteers of Rajputana and several other publications, to the authors of all of which the undersigned owes a good deal of obligation.
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Vismrit Satya
विस्मृत सत्य : भारत में इतिहास लेखन एवं संरक्षण की देशज परंपरा का इतिहास : प्रारंभ में कई विद्वानों ने भारतीयों में इतिहास बोध की कमी बताई। लेकिन इस क्षेत्र में हुए अग्रिम शोध और विमर्श के पश्चात् वर्तमान में यह एक स्थापित तथ्य है कि भारतीयों में इतिहास बोध रहा है और यहां इतिहास संरक्षण की एक देशज परंपरा भी रही है। परन्तु आज भी इस परंपरा के वास्तविक स्वरूप और इसके परंपरागत वाहकों के बारे में आमजन से लेकर विद्वानों तक में पूर्ण स्पष्टता नहीं है। अतः इस बिन्दु पर विचार मंथन और तथ्य अन्वेषण इस पुस्तक का मूल स्वर है। यह पुस्तक भारत में इतिहास लेखन एवं संरक्षण की देशज पंरपरा के उद्भव और विकास को समझाने के साथ ही इस परंपरा के वाहकों के बारे में भी स्पष्ट समझ पैदा करती है। फलस्वरूप साहित्य व इतिहास ग्रंथों के साथ ही समाज में फैले कई भ्रम निर्मूल साबित होते हैं।
SKU: n/a