Kshemkaran Das Trivedi
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Atharvaveda
मन्त्र, शब्दार्थ, भावार्थ तथा मन्त्रानुक्रमणिका सहित प्रस्तुत। मन्त्र भाग स्वामी जगदीष्वरानन्दजी द्वारा सम्पादित मूल वेद संहिताओं से लिया गया है।
वेद चतुष्टय में अथर्ववेद अन्तिम है। परमात्मा प्रदत्त इस दिव्य ज्ञान का साक्षात्कार सृष्टि के आरम्भ में महर्षि अंगिरा ने किया था। इसमें 20 काण्ड, 111 अनुवाक, 731 सूक्त तथा 5977 मन्त्र हैं।
वस्तुतः अथर्ववेद को नाना ज्ञान-विज्ञान समन्वित बृहद् विश्वकोश कहा जा सकता है। मनुष्योपयोगी ऐसी कौन-सी विद्या है जिससे सम्बन्धित मन्त्र इसमें न हों। लघु कीट पंतग से लेकर परमात्मा पर्यन्त पदार्थों का इन मन्त्रों में सम्यक् विवेचन हुआ है।
केनसूक्त, उच्छिष्टसूक्त, स्कम्भसूक्त, पुरुषसूक्त जैसे अथर्ववेद में आये विभिन्न सूक्त विश्वाधार पामात्मा की दिव्य सत्ता का चित्ताकर्षक तथा यत्र-तत्र काव्यात्मक शैली में वर्णन करते हैं। जीवात्मा, मन, प्राण, शरीर तथा तद्गत इन्द्रियों और मानव के शरीरान्तर्गत विभिन्न अंग-प्रत्यंगों का तथ्यात्मक विवरण भी इस वेद में है।
जहाँ तक लौकिक विद्याओं का सम्बन्ध है, अथर्ववेद में शरीरविज्ञान, मनोविज्ञान, कामविज्ञान, औषधविज्ञान, चिकित्साविज्ञान, युद्धविद्या, राजनीति, प्रशासन-पद्धति आदि के उल्लेख आये हैं। साथ ही कृषिविज्ञान, कीटाणु आदि रोगोत्पादक सूक्ष्म जन्तुओं के भेद-प्रभेद का भी यहाँ विस्तारपूर्वक निरूपण किया गया है।
अथर्ववेद की नौ शाखाएँ मानी जाती हैं। इसका ब्राह्मण गोपथ और उपवेद अर्थवेद है।
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