mahabharat character
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Ashwatthama
अर्जुन को शस्त्रविद्या देते समय पिताश्री बहुधा गहन विचारों में डूब जाया करते। उनके मुख पर अनेक प्रकार के भाव आते-जाते रहते। आँखों में अनेक बार क्रोध झलक उठता। शब्द-भेदी बाण व अन्धकार में बाण चलाने की विद्या अर्जुन ने पिताश्री से ही प्राप्त की थी। सत्य कहता हूँ दिशाओ अर्जुन को लेकर सबके साथ पिताश्री का पक्षपाती व्यवहार मैं समझ नहीं सका। कठिन तप द्वारा ऋषि अगस्त्य से ब्रह्मास्त्र प्राप्त करने वाले द्रोणाचार्य, विद्या जिज्ञासु कर्ण को सूत पुत्र कहकर नकारने वाले भारद्वाज पुत्र द्रोण, अन्य शिष्यों से चुपचाप मुझे गूढ़तर विद्याओं का अभ्यास करवाते पिताश्री, निषादराज के पुत्र एकलव्य से गुरुदक्षिणा में अँगूठा माँग लेने वाले गुरु द्रोण, इन समस्त रूपों में कौन-सा सत्य रूप था गुरु द्रोण का, मैं कभी भी समझ नहीं सका। परन्तु राजकुमारों से गुरुदक्षिणा में द्रुपदराज को युद्ध में पराजित करने का वचन लेने वाले गुरु द्रोण को मैं आज समझ सकता हूँ। आज मुझे पिताश्री का अर्जुन से अधिक स्नेह का कारण समझ आ रहा है।
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Ashwatthama (PB)
अर्जुन को शस्त्रविद्या देते समय पिताश्री बहुधा गहन विचारों में डूब जाया करते। उनके मुख पर अनेक प्रकार के भाव आते-जाते रहते। आँखों में अनेक बार क्रोध झलक उठता। शब्द-भेदी बाण व अन्धकार में बाण चलाने की विद्या अर्जुन ने पिताश्री से ही प्राप्त की थी। सत्य कहता हूँ दिशाओ अर्जुन को लेकर सबके साथ पिताश्री का पक्षपाती व्यवहार मैं समझ नहीं सका। कठिन तप द्वारा ऋषि अगस्त्य से ब्रह्मास्त्र प्राप्त करने वाले द्रोणाचार्य, विद्या जिज्ञासु कर्ण को सूत पुत्र कहकर नकारने वाले भारद्वाज पुत्र द्रोण, अन्य शिष्यों से चुपचाप मुझे गूढ़तर विद्याओं का अभ्यास करवाते पिताश्री, निषादराज के पुत्र एकलव्य से गुरुदक्षिणा में अँगूठा माँग लेने वाले गुरु द्रोण, इन समस्त रूपों में कौन-सा सत्य रूप था गुरु द्रोण का, मैं कभी भी समझ नहीं सका। परन्तु राजकुमारों से गुरुदक्षिणा में द्रुपदराज को युद्ध में पराजित करने का वचन लेने वाले गुरु द्रोण को मैं आज समझ सकता हूँ। आज मुझे पिताश्री का अर्जुन से अधिक स्नेह का कारण समझ आ रहा है।
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Rajpal and Sons, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Draupadi
द्रौपदी महाभारत ही नहीं, भारतीय जीवन तथा संस्कृति का एक अत्यन्त विलक्षण और महत्त्वपूर्ण चरित्र है-परन्तु साहित्य ने अब तक उसे प्रायः छुआ नहीं था। उपन्यास के रूप में इस रचना का एक विशिष्ट पक्ष यह भी है कि इसे एक महिला ने उठाया और वाणी दी है, जिस कारण वे इसके साथ न्याय करने में पूर्ण सफल हुई हैं। डा. प्रतिभा राय उड़िया की अग्रणी लेखिका हैं जिनके अनेक उपन्यास प्रकाशित होकर लोकप्रिय हो चुके हैं। उन पर अनेक पुरस्कार मिले हैं, फिल्में बनी हैं तथा कई कृतियां हिन्दी में भी सामने आ चुकी हैं। कृष्ण समर्पित तथा पांच पांडवों की ब्याही द्रौपदी का जीवन अनेक दिशाओं में विभक्त है, फिर भी उसका व्यक्तित्व बँटता नहीं, टूटता नहीं, वह एक ऐसी इकाई के रूप में निरन्तर जीती है जो तत्कालीन घटनाचक्र को अनेक विशिष्ट आयाम देने में समर्थ है। नारी-मन की वास्तविक पीड़ा, सुख-दुःख और व्यक्तिगत अन्तर्संबंधों की जटिलता को गहराई से पकड़ पाना, इस उपन्यास की विशेषता है।
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Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Draupadi Ki Aatmakatha
द्रौपदी का चरित्र अनोखा है। पूरी दुनिया के इतिहास में उस जैसी दूसरी कोई स्त्रा् नहीं हुई। महाभारत में द्रौपदी के साथ जितना अन्याय होता दिखता है, उतना अन्याय इस महाकथा में किसी अन्य स्त्रा् के साथ नहीं हुआ। द्रौपदी संपूर्ण नारी थी। वह कार्यकुशल थी और लोकव्यवहार के साथ घर-गृहस्थी में भी पारंगत। लेकिन द्रौपदी जैसी असाधारण नारी के बीच भी एक साधारण नारी छिपी थी, जिसमें प्रेम, ईर्ष्या, डाह जैसी समस्त नारी-सुलभ दुर्बलताएँ मौजूद थीं। द्रौपदी का अनंत संताप उसकी ताकत थी। संघर्षों में वह हमेशा अकेली रही। पाँच पतियों की पत्नी होकर भी अकेली। प्रतापी राजा द्रुपद की बेटी, धृष्टद्युम्न की बहन, फिर भी अकेली। पर द्रौपदी के तर्क, बुद्धिमत्ता, ज्ञान और पांडित्य के आगे महाभारत के सभी पात्र लाचार नजर आते हैं। जब भी वह सवाल करती है, पूरी सभा निरुत्तर होती है।
महाभारत आज भी उतना ही प्रासंगिक और उपयोगी है, वही समस्याएँ और चुनौतियाँ हमारे सामने हैं। राजसत्ता के भीतर होनेवाला षड्यंत्र हों या राजसत्ता का बेकाबू मद या फिर बिक चुकी शिक्षा व्यवस्था हो या फिर छल-कपट से मारे जाते अभिमन्यु। आज भी द्रौपदियों का अपमान हो रहा है। कर्ण नदी-नाले में रोज बह रहे हैं।
‘कृष्ण की आत्मकथा’ जैसी महती कृति के यशस्वी लेखक श्री मनु शर्मा ने महाभारत के पात्रों और घटनाओं की आज के संदर्भ में नई व्याख्या कर उपेक्षित द्रौपदी की पीड़ा और अडिगता को जीवंतता प्रदान की है। नारी की अस्मिता को सम्मान देनेवाली अत्यंत पठनीय कृति।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Karna Ki Atmakatha (HB)
-15%Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, धार्मिक पात्र एवं उपन्यासKarna Ki Atmakatha (HB)
‘यही तो विडंबना है कि तू सूर्यपुत्र होकर भी स्वयं को सूतपुत्र समझता है, राधेय समझता है; किंतु तू है वास्तव में कौंतेय। तेरी मां कुंती है।” इतना कहकर वह रहस्यमय हंसी हंसने लगा। थोड़ी देर बाद उसने कुछ संकेतों और कुछ शब्दों के माध्यम से मेरे जन्म की कथा बताई।
”मुझे विस्वास नहीं होता, माधव!” मैंने कहा। ”मैं समझ रहा था कि तुम विस्वास नहीं कसेगे। किंतु यह भलीभाति जानी कि कृष्ण राजनीतिक हो सकता है, पर अविश्वस्त नहीं। ”उसने अपनी मायत्वी हँसी में घोलकर एक रहस्यमय पहेली मुझे पिलानी चाही, चो सरलता से मेरे गले के नीचे उतर नहीं रही थी। वह अपने प्रभावी स्वर में बोलता गया, ”तुम कुंतीपुत्र हो। यह उतना ही सत्य है जितना यह कहना कि इस समय दिन है, जितना यह कहना कि मनुष्य मरणधर्मा है, जितना यह कहना कि विजय अन्याय की नहीं बल्कि न्याय की होती है।”
”तो क्या मैं क्षत्रिय हूँ?” एक संशय मेरे मन में अँगड़ाई लेने लगा, ‘आचार्य परशुराम ने भी तो कहा था कि भगवान् भूल नहीं कर सकता। तू कहीं-न- कहीं मूल में क्षत्रिय है। जब लोगों ने सूतपुत्र कहकर मेरा अपमान क्यों किया?’ मेरा मनस्ताप मुखरित हुआ, ”जब मैं कुंतीपुत्र था तो संसार ने मुझे सूतपुत्र कहकर मेरी भर्त्सना क्यों की?”
”यह तुम संसार से पूछो। ”हँसते हुए कृष्ण ने उत्तर दिया।
”और जब संसार मेरी भर्त्सना कर रहा था तब कुंती ने उसका विरोध क्यों नहीं किया?”SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Mahabharat Ke Patra
महाभारत के पात्र
बचपन में बड़े-बुजुर्गों से सुना था कि ‘महाभारत ग्रंथ’ घर में नहीं रखना चाहिए, क्योंकि इससे घर में ‘महाभारत’ अर्थात् लड़ाई होती है। ‘महाभारत’ का अर्थ ही ‘लड़ाई’ का ग्रन्थ घोषित कर दिया गया। also तब जिज्ञासा होना स्वाभाविक था कि क्या किसी ग्रंथ को पढ़ने से भी कोई व्यक्ति युद्ध में प्रवृत हो सकता है? तब ऐसे ग्रंथ को अवश्य पढ़ना चाहिए और इस कसौटी पर देखना चाहिए कि क्या इससे हिंसक प्रवृत्ति होती है। Mahabharat Ke Patra
परन्तु जब सेवानिवृत्ति पश्चात् उक्त ग्रन्थ पढ़ा तो विस्मय का ठिकाना नहीं रहा, जिस ग्रंथ को श्री वेद व्यासजी ने लिखा और जिस ग्रंथ में भगवान श्री कृष्ण के मुख से निसृत ‘ श्रीमद्भगवद्गीता’ का उपदेश है उसमें युद्ध करने या हिंसक प्रवृत्ति का तो उल्लेख ही नहीं है। all in all इस ग्रंथ में जो उपदेश है वह मानव मात्र के कल्याण के लिये है। युद्ध करने का उपदेश अपने धर्म के अनुसार जो कर्म निश्चित किया गया है, उसको करने के लिये है। तब फिर प्रश्न होता है कि महाभारत युद्ध” हुआ उसमें केवल दुर्योधन की मात्र राज्य लिप्सा ही एक मात्र कारण था या अन्य कारण भी थे? अगर मात्र राज्य लिप्सा ही कारण होता तो दुर्योधन को इतने अन्य राजाओं का सहयोग नहीं मिलता और इसी तरह पाण्डवों को भी श्री कृष्ण जैसे उस समय के सर्वश्रेष्ठ नीतिज्ञ, वीर तथा अन्यों का सहयोग नहीं मिलता।
Mahabharat Ke Patra (Characters of Mahabharata)
अतः यह युद्ध नैतिकता बनाम अनैतिकता, धर्म विरुद्ध अधर्म, सदाचार बनाम अनाचार में प्रवृत शक्तियों के मध्य था। और इसमें पाण्डवों की जय मानव स्वातन्त्रय के सत्य की जय है, धर्म की जय है, मानवता की जय है। महाभारत मात्र वीर गाथा नहीं है, युद्ध गाथा भी नहीं है यह मनुष्यत्व की कठिन यात्रा का काव्य है। और इस युद्ध में जो प्रमुख नायक थे, उनके चारित्रिक गुणों, अवगुणों के कारण यह युद्ध हुआ। और जब कोई घटना घटित होती है तो उसके प्रारम्भ होने की पृष्ठभूमि पहले से ही तैयार होती है। accordingly लेखक ने इसी दृष्टिकोण को रख कर विश्लेषण करने का प्रयास किया है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Mahabharat Mein Ashva Mimansa
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताMahabharat Mein Ashva Mimansa
महाभारत में अश्व मीमांसा : प्राचीन काल में अश्व मानव के सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन का महत्वपूर्ण अंग रहा है। वेद, ब्राह्मणग्रन्थ, उपनिषद, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, स्मृतियों, पुराणों, महाकाव्य आदि ग्रन्थों में अश्व सम्बन्धी सामग्री प्राप्त होती है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र तथा शुक्रनीति में अश्वों के लक्षणों, जाति, वर्ण आदि की विशद व्याख्या की गई है। वराहमिहिर की बृहत्संहिता, अपराजितपृच्छा, कामन्दकनीति, नीतिवाक्यामृत आदि ग्रन्थों में प्रासंगिक रूप से अश्व-विवेचन है। इन ग्रन्थों के समान महाभारत में अश्वों से सम्बन्धित कोई अलग अध्याय नहीं है, परन्तु महाभारत के लगभग सभी पर्यों में अश्वविषयक विषयवस्तु की प्रचुरता है।
डॉ. संदीप जोशी द्वारा सम्पादित तथा जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर द्वारा सन् 2008 में प्रकाशित अश्वशास्त्रम् में अश्वों के विविध पक्षों का विस्तृत विवेचन किया गया है। अश्वों के अष्टविध लक्षण कहे गये है, आवर्त, वर्ण (रंग) सत्व (बल), छाया, गन्ध, चाल, स्वर तथा शरीर महाभारत में अश्वों के अष्टविध लक्षणों का आलेखन हुआ है।
भारतीय संस्कृति में अश्व-पूजा का विशेष महत्व रहा है। अश्वों में देवों का निवास कहा गया हैं श्रीमद्भगवद्गीता में उच्चैःश्रवा अश्व की ईश्वर की विभूति में गणना की गई है।
महाभारत अनेक युद्धों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करता है। चतुरंगिणी सेना में अश्वसेना का विशेष महत्व था। स्थारूढ़ योद्धाओं की रक्षापंक्ति के रूप में अश्वसेना ने अपनी विशेष भूमिका निभायी है। सोमेदेवसूरी के नीतिवाक्यामृत में कहा गया है कि अश्वसेना, सेना की चलती फिरती रक्षापंक्ति (प्राचीर) है – अश्वबल सैन्यस्य जगम : प्राकार :। अश्वशास्त्रम् यह प्रतिपादित करता है कि अश्वहीन सेना जड़ से कटे हुए वृक्ष के समान नष्ट हो जाती है – अविहीनं यान्त्यन्तं छिन्नमूला इव द्रुमाः।
सैन्य संगठन की इकाइयों के विषय में महाभारत विशिष्ट जानकारी प्रदान करता है। इन्द्रियों को अश्व की संज्ञा तथा शरीर-रथ रूपक अध्यात्म चिन्तन का निर्देश देता है।
“महाभारत में अश्व मीमांसा” पुस्तक में लेखिका ने अपने गहन अध्ययन का परिचय दिया है। अश्व शब्द की व्यापकता की चर्चा उल्लेखनीय है। आशा है अश्वविषयक चर्चा – विचारणा, लेखन आदि क्षेत्रों में यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी तथा शोध के नये आयाम प्रस्तुत करेगी।
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Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Mahatma Vidur 0188
Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताMahatma Vidur 0188
धर्मावतार महात्मा विदुर का जीवन-चरित्र आदर्श व्यवहार, लोक-कल्याण तथा दृढ़ ईश्वर-विश्वास और भक्ति का अनुपम उदाहरण है। उनका सदाचार और भगवत्प्रेम सर्वथा स्तुत्य है। प्रस्तुत पुस्तक में महाभारत एवं श्रीमद्भागवत के आधार पर विदुरजी की स्पष्टवादिता, नीति-निपुणता, निःस्पृहता, भगवद्भक्ति, संतोष आदि का ओजस्वी और सरल भाषा में बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया गया है।
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Rajpal and Sons, उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Main Bheeshm Bol Raha Hoon
महाभारत में सबसे विशिष्ट चरित्र भीष्म पितामह का है। अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने आजन्म ब्रह्मचारी रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की और साथ ही राजसिंहासन पर अपने अधिकार को भी तिलांजलि दी। दुर्योधन के विचारों, नीतियों और दुष्कर्मों के घोर विरुद्ध रहते हुए भी कौरवों के पक्ष की सेवा करने की विवशता को स्वीकार किया। राजदरबार में द्रौपदी चीरहरण के समय क्रोध और लज्जा से दाँत पीसकर रह गए। परंतु खुलकर विरोध करने में विवश रहे। महाभारत युद्ध में भी कौरव सेना का सेनापतित्व करना पड़ा। जबकि मन से पाण्डवों के पक्षधर थे। उनका हृदय पाण्डवों के साथ था, शरीर कौरवों की सेवा में। अनेक अन्तर्विरोधों से भरे भीष्म पितामह के चरित्र को बहुत ही पैनी दृष्टि से परखते हुए रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है इसके लेखक भगवतीशरण मिश्र ने।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, कहानियां, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Panch Pandav
प्रस्तुत पुस्तक पाँच पांडवों के व्यक्तित्व तथा उनके जीवन पर आधारित है। महाभारत के अनुसार पाँचों पांडव राजा पांडु के पुत्र थे। सबसे बड़े पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर, भीमसेन तथा अर्जुन पांडु की पहली पत्नी रानी वुंक्तती से उत्पन्न हुए तथा नकुल और सहदेव राजा पांडु की दूसरी रानी माद्री के पुत्र थे। पाँचों पांडवों का लालन-पान रानी वुंक्तती ने ही किया था। बचपन से ही पाँचों पांडव शूरवीर, बलशाली, नीतिवान, बुद्धिमान तथा विवेकी थे। महाभारत में पाँचों पांडवों के जीवन से जुड़ी अनेक कथाएँ प्रचलित हैं, जिनके माध्यम से इनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है।
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Shakuni
महाभारत एक ऐसी महागाथा है, जो कई मायनों में अद्भुत है। इसका हरेक पात्र अपने आप में बेहद अहम है और उसका अपना दृष्टिकोण है। यही वजह है कि महाभारत की मूल कथा को आधार बनाकर कथाकारों ने श्रीकृष्ण से लेकर भीष्म, कुन्ती, अर्जुन, भीम, युधिष्ठिर, कर्ण, द्रौपदी, गान्धारी, दुर्योधन, द्रोण, अश्वत्थामा आदि के चरित्र पर आधारित कथा व उपन्यास लिखे हैं। लेकिन इस महागाथा के एक बेहद अहम पात्र ‘शकुनि’ की न केवल अनदेखी की गयी है वरन् उसका चित्रण केवल और केवल खलनायक के रूप में ही किया गया है। हर खलनायक में एक नायक छुपा होता है, उसी प्रकार शकुनि के चरित्र का भी यदि सूक्ष्म अवलोकन किया जाये तो कई ऐसी बातें उभरकर आती हैं जो न केवल उसके चरित्र की नकारात्मकता को कम करती हैं, बल्कि कई बार तो उससे सहानुभूति भी होने लगती है। ये उपन्यास शकुनि को नायक के रूप में प्रस्तुत नहीं करता वरन् महाभारत की अहम घटनाओं को एक दूसरे दृष्टिकोण से देखने का एक प्रयास है।
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Shikhandi
पितामह ने बड़े उत्साह से कहा, “तुम लोग जानते ही हो कि तुम्हारी सेना में मेरे वध के लिए कौन सबसे अधिक उत्कण्ठित है।” “शिखण्डी।” सारे पाण्डव सहमत थे। पितामह हँस पड़े, “अम्बा ने ही पुनर्जन्म लिया है। वह अन्तिम बार विदा होते हुए कह गयी थी कि वह उस जन्म में मेरी हत्या न कर पायी तो दूसरा जन्म लेगी। लगता है शिखण्डी के रूप में आयी है, नहीं तो मुझसे क्या इतनी शत्रुता है शिखण्डी की। पता नहीं यह उनकी शत्रुता है या प्यार है। प्रेम नहीं मिला तो शत्रुता पाल ली। कौन जाने लोहा-चुम्बक एक-दूसरे के शत्रु होते हैं या मित्र। किन्तु वे एक-दूसरे की ओर आकृष्ट अवश्य होते हैं। शिखण्डी मेरी ओर खिंच रहा है।… शिखण्डी या शिखण्डिनी।…” पितामह हँसे, “शिखण्डी को अनेक लोग आरम्भ में स्त्री ही मानते रहे हैं। मैं आज भी उसे स्त्री रूप ही मानता हूँ। लगता है कि कुछ देय है मेरी ओर। अम्बा को उसका देय नहीं दे पाया। शिखण्डिनी को दूँगा। उसकी कामना पूरी करूँगा। उसे कामनापूर्ति का वर देता हूँ।” “पर वह अम्बा नहीं है तात! वह शिखण्डी है, द्रुपद का पुत्र । महारथी शिखण्डी। वह शस्त्रधारी योद्धा है। वह आपका वध कर देगा।” भीम के मुख से जैसे अकस्मात ही निकला। “जानता हूँ।” भीष्म बोले, “तभी तो उसे कामनापूर्ति का वर दे रहा हूँ।” “यह तो आत्मवध है पितामह!” कृष्ण बोले। “नहीं! यह तो मेरी मुक्ति है वासुदेव ! स्वैच्छिक मुक्ति! मेरे पिता ने मुझे यही वर दिया था।” वे जैसे किसी और लोक से बोल रहे थे, “मैं जब कुरुवंश का नाश रोक नहीं सकता, तो इस जीवन रूपी बन्धन में बँधे रहने का प्रयोजन क्या है। मैं स्वेच्छा से मुक्त हो रहा हूँ।
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Gita Press, Hindi Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Shri Bhishma Pitamah 0138
श्री भीष्मपितामह का जीवन त्याग और शौर्य का अनुपम उदाहरण है। भगवान् श्री कृष्ण के प्रति इनकी भक्ति अनुकरणीय है। इस पुस्तक में महाभारत एवं श्रीमद्भागवत के आधार पर श्री भीष्मपितामह के सम्पूर्ण जीवन-चरित्र का अत्यन्त रसमय वर्णन किया गया है।
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English Books, Gita Press, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Shri Bhishma Pitamah, English 2187
English Books, Gita Press, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताShri Bhishma Pitamah, English 2187
The entire life of Bhishma Pitamah is an excellent example of renunciation and valour. His sense of devotion towards Lord Shri Krishna is worth imitating upon. The remarkable events of Bhishma Pitamaha’s life based on the Mahabharat and the SrimadBhagavat have been picturesquely described in this book
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