Maharana Kumbha
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Maharana Kumbha : Vyaktitva evam Krititva
महाराणा कुम्भा : व्यक्तित्व एवं कृतित्व : महाराणा कुम्भा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और उनके कृत्यों में ‘शास्त्र, संगीत और साहित्य’ का सुन्दर संगम सुस्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। विभिन्न प्रकार के विरुद्ध तथा परमगुरु, शैलगुरु तोडरमल्ल, दानगुरु, चापगुरु अभिनव – भरताचार्य, नंदिकेश्वरावतार, हिन्दू सूत्राण, न्वयभरत इत्यादि से विभूषित कुम्भा के विशाल व्यक्तित्व के महत्वपूर्ण संकेत हैं। वह एक महान् विजेता, कुशल प्रशासक, उच्चकोटि के निर्माता, विशाल साहित्य का पल्लवितकार, वैदिक संस्कृति को संक्रमण काल से मुक्त कर, पुनर्जागरण स्थापित करने में प्रयासरत व्यक्तित्व था। इसीलिए कुम्भा के शासनकाल (1433 ई. से 1466 ई.) को मेवाड़ में स्वर्णयुग माना जाता है। वास्तव में कुम्भा को परमार नरेश भोज, मौर्यकालीन अशोक और समुद्रगुप्त का सामूहिक प्रतिरूप भी कहा गया है। भोज के समान संस्कृत साहित्य तथा देशज साहित्य को सृजनशीलता में तथा भवन निर्माण में भी अनुपम योगदान दिया। समुद्रगुप्त के समरूप विजय अभियानों का सूत्रपात करना तथा जनजीवन को सुखी एवं समृद्धशाली बनाने में अशोक के समकक्ष माना है। कुम्भा में एक राष्ट्रीय नायक होने के सारे गुणों के उपरान्त भी आश्चर्य है कि उनका राष्ट्रीय स्तर पर मूल्यांकन न होने का अभाव खटकता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली ने तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 10-12 जुलाई 2019 को उदयपुर में आहुत की थी। उसमें आये अधिकांश शोध पत्रों को ग्रन्थ के आकार में प्रस्तुत किया जा रहा है। आशा और विश्वास है कि यह ग्रन्थ इस अभाव की पूर्ति की ओर अग्रसर होने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
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