MANOHAR SHYAM JOSHI BOOKS
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Vani Prakashan, उपन्यास
BUNIYAAD
दूरदर्शन-धारावाहिक के रूप में ‘ बुनियाद’ को देश के लाखों- करोड़ों दर्शकों ने देखा और सराहा। उसकी इस सफलता को लेकर लेखक की खुसी जायज भी है। खासकर इसलिए भी इसके मध्यम से लेखक लोगो को समझ पाया और उनके हिसाब से सोच पाया। परिवारिक जीवन की डँसता कहता यह उपन्यास लेखक की दूरगामी सोच का नतीजा है जिसे पढ़ कर पाठक चिंतन करने के लिए प्रेरित होता है।
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Vani Prakashan, उपन्यास
BUNIYAD-II
“अपने तमाम फिष्ल्मी लटकों-झटकों के बावजूद, हमारे लाख नाक-भौं सिकोड़ने के बावजूद जिस निरन्तरता से ‘बुनियाद’ ने एक-से-एक चरित्रा हमें दिए, वैसे दूरदर्शन ने अब तक के इतिहास में न दिए होगे हवेलीराम का दृढ़ आदर्शवाद, लाजो का धरती जैसा ‘माँ’ – रूप और विभाजन की विभीषिका को पृष्ठभूमि बनाकर चलती हुई कहानी, तमाम उत्तर भारत के आधुनिक मध्यवर्ग की नींव की तरह हमें छूती रही। अगर दूरदर्शन वाले इस सीरियल से मनमानी छेड़छाड़ न करते और जोशी-सिप्पी को थोड़ी अधिक आजशदी देते तो यह आजादी के बाद के परिवार का और इस तरह समाज का राजनीतिक-सांस्कृतिक अध्ययन बन गया होता। फिर भी, इतने दबावों, आपाधापी और सेंसरों के बाद, ‘बुनियाद’ सीरियलों के इतिहास में एक निशान छोड़ने वाला है।” -सुधीश पचौरी
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