Nand Bhardwaj
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Rajasthani Virasat Ka Vaibhav
राजस्थानी विरासत का वैभव
राजस्थानी लेखन की अलग-अलग विधाओं में लिखते-पढ़ते बहुत से रचनाकारों को पिछले वर्षों में हुए अच्छे सृजन के मुकाबले अगर आलोचना का पक्ष कुछ कमजोर नजर आता है तो इस पर अफसोस करने की बजाय उसके कारणों को जानने-समझने का प्रयास अवश्य करना चाहिए। also अपने बहुविध रचनाकर्म में कविता को चित्त के अधिक करीब पाने के बावजूद अन्य विधाओं के साथ मेरा वैसा ही आत्मीय रिश्ता रहा है। Rajasthani Virasat Ka Vaibhav
हर रचना अनुभव की पुनर्रचना का पर्याय मानी जाती है, लेकिन अपने तंई उस संवेदन को पूरी सघनता के साथ व्यक्त करना रचना की अपनी जरूरत होती है। कविता में अक्सर चीजों के साथ हमारे रिश्ते बदल जाते हैं। यह बदला हुआ रिश्ता हमें उनके और करीब ले जाता है। so यही प्रयत्न कविता को दूसरी विधाओं से अलग करता है। यह काव्यानुभव जितना व्यंजित होकर असर पैदा करता है, उतना मुखर होकर नहीं। इस सर्जनात्मक अभिव्यक्ति के लिए मेरा मन अपनी मातृभाषा राजस्थानी में अधिक रमता है। यद्यपि अभिव्यक्ति के बतौर हिन्दी और राजस्थानी दोनों मेरे लिए उतनी ही सहज और आत्मीय हैं और दोनों में समानान्तर रचनाकर्म जारी रखते हुए मुझे कभी कोई दुविधा नहीं होती।
Rajasthani Virasat Ka Vaibhav
संसार की किसी भाषा के साहित्य की उसके पिछले- अगले या मौजूदा समय की दूसरी साहित्य विधाओं के साथ कोई प्रतिस्पर्धा या तुलना नहीं हो सकती और न यह करना उचित ही है। all in all प्रत्येक भाषा और साहित्य का अपना विकासक्रम है, उसकी अपनी कठिनाइयां हैं और उनसे उबरने के उपाय भी उन्हीं को खोजने हैं। लोक-भाषा जन-अभिव्यक्ति का आधार होती है।
प्रत्येक जन-समुदाय अपने ऐतिहासिक विकासक्रम में जो भाषा अर्जित और विकसित करता है, in the same way वही उसके सर्जनात्मक विकास की सारी संभावनाएं खोलती है। उसकी उपेक्षा करके कोई माध्यम जनता के साथ सार्थक संवाद कायम नहीं कर सकता। इस आधारभूत सत्य के साथ ही लोक- भाषाओं को अपनी ऊर्जा को बचाकर रखना है। साहित्य का काम अपने उसी लोक-जीवन के मनोबल को बचाये रखना है। in fact दरअसल भाषा, साहित्य और संवाद के यही वे सूत्र हैं, जिन्हें जान-समझ कर ही शायद हम किसी नये सार्थक सृजन की कल्पना कर पाएं।
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