Premchand Books
Showing all 15 results
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Vani Prakashan, उपन्यास
Ghaban
ग़बन का कथानक मुख्यतः मध्य वर्ग में दिखावे की आदत के दुष्परिणामों पर आधारित है। सामाजिक रूढ़ियों की गर्द तथा स्त्रियों में गहनों की चाहत को एक दिलचस्प कथासूत्र में बाँधा गया है। साथ ही, यह लोकप्रिय उपन्यास स्वतंत्रता संघर्ष के विभिन्न पहलुओं पर भी रोशनी डालता है।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Karmbhoomi
कर्मभूमि प्रेमचंद का राजनीतिक उपन्यास है। इस उपन्यास में विभिन्न राजनीतिक समस्याओं को कुछ परिवारों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। ये परिवार अपनी पारिवारिक समस्याओं से जूझते हुए भी राजनीतिक आन्दोलन में भाग ले रहे हैं। लेखक ने उपन्यास के सभी चरित्रों द्वारा राष्ट्रीय चेतना, आदर्श पारिवारिक व्यवस्था आदि में गाँधी दर्शन स्पष्ट किया है।
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Vani Prakashan, उपन्यास
Kayakalp
कायाकल्प प्रेमचंद का एकमात्र उपन्यास है जिसमें चमत्कार की महिमा दिखाई गई है और पूर्वजन्म को कथा का आधार बनाया गया है। लेकिन इस उपन्यास के ज़ोरदार हिस्से वे हैं जहाँ प्रेमचंद ने हाड़-मांस के आदमियों के जीवन पर दृष्टि केंद्रित कर उनके चरित्रों की अच्छाइयों और बुराइयों का चित्रण किया है। कथाकारों ने जनता के दमन की कथा पहले भी लिखी थी। इस उपन्यास की खूबी यह है कि जनता दमन से आतंकित न हो कर उसका मुकाबला करने के लिए आगे बढ़ती है। धर्म की आड़ में होने वाले सांप्रदायिक दंगों का भी असरदार चित्रण है।
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Vani Prakashan, उपन्यास
NIBANDHON KI DUNIYA
प्रेमचन्द का रचना-कर्म साहित्य और जीवन की दूरी पाटने की मुहिम है। उनका समस्त लेखन अपने परिवेश के प्रति जागरूक, उस रचनाकार की अभिव्यक्ति है जिसके विचारों में सत्य की ऊर्जा है और दृष्टि में परिवर्तन की चाह। वे आजीवन मानते रहे कि साहित्य वह मशाल है जिसकी रोशनी सामाजिक जीवन की राहों में उजाला करती है। वह समाज का अनुसरण ही नहीं करती बल्कि उसका दिशा निर्देश करती है। प्रेमचन्द का साहित्य जीवन के उच्चादर्शों, सामाजिक सचाइयों, राष्ट्रीय-सांस्कृतिक एकता के गौरवपूर्ण बिन्दुओं से झलमलाता है। सुलझी हुई सामाजिक समझ और मानवीय गरिमा के उन्नयन की बेचैनी, उन्हें हम सबका अपना लेखक बनाती है जिन पर न केवल हिन्दी साहित्य को बल्कि समूची भारतीय परम्परा को नाज़ है।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Rangbhoomi
रंगभूमि प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यासों में है। इसकी रचना महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर की गई थी। ‘रंगभूमि’ का नायक सूरदास न्याय के लिए आजीवन संघर्ष करता है, फिर भी उसके मन में किसी के प्रति कटुता नहीं है। यह उपन्यास भारत में औद्योगिक संस्कृति की शुरुआत के दौरान साधारण जन की कठिनाइयों का बेबाक चित्रण करता है।
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