Rajput Clans
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Aitihasik Kalkram mein Gurjar
ऐतिहासिक कालक्रम में गुर्जर : भारतीय संस्कृति को लम्बे समय तक विदेशी आक्रांताओं के आघातों से सुरक्षित रखने का दायित्व गुर्जर शासकों ने बखूवी निभाया है। इस वीर जाति ने प्रागैतिहासिक काल से आज तक अपने शौर्य से भारतीय संस्कृति को अक्षुण बनाये रखने हेतु हर कालखण्ड में महती भूमिका निभाई है। समय के थपेड़ो में कतिपय गुर्जर समूह इस्लाम या अन्य धर्मावलम्बी बनें, परन्तु वहाँ भी इन्होनें अपनी संस्कृति व स्वरुप को नही छोड़ा।
इस वीर जाति की शौर्य गाथाओं के मूल से इनकी उत्पति एवं विकास, कालान्तर में राजनैतिक पतन तक की तत्व तथा विवेचना करने का प्रयास इस पुस्तक में संकलित आलेखों में किया गया है।
यह पुस्तक सुधि पाठकों की उत्कंठा को पूर्ण करने का प्रयास है, जो इतिहास में भ्रान्तियों से मुक्त इतिहास के अध्ययन की जिज्ञासा रखते हैं। पुस्तक में प्रकाशित आलेख, प्रस्तुतकर्ता विद्वानों का स्वयं का शोध प्रयत्न है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Baba Ramdev : Itihas evam Sahitya
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांBaba Ramdev : Itihas evam Sahitya
बाबा रामदेव : इतिहास एवं साहित्य : समृद्व और वैविध्यपूर्ण राजस्थानी लोक साहित्य में आये लोकोपकारी चरित्रों में बाबा रामदेव का स्थान सर्वोपरि है। अब तक इनके जीवन और साहित्य सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक ग्रंथ प्राप्त नहीं था। डॉ. सोनाराम बिश्नोई ने इस साहित्य का संग्रह सम्पादन कर, प्रथम बार इसका विवेचनात्मक समीक्षात्मक अध्ययन इस ग्रंथ में प्रस्तुत किया है, जो नवीन और मौलिक है। यह शोध दो खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड के प्रथम अध्याय में बाबा रामदेवजी की वंश परम्परा का ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय अध्याय में बाबा रामदेव जी के जन्म-स्थान, आविर्भाव कालीन परिस्थिति तथा उनके द्वारा सम्पादित विविध लौकिक-अलौकिक कार्यो का विवरण प्रस्तुत किया है। तृतीय अध्याय में बाबा रामदेव सम्बन्धी लोक साहित्य का परिचय दिया गया है। चतुर्थ अध्याय में इस लोक साहित्य का भक्ति, दर्शन, उपदेश, नीति, सामाजिक संस्कार और जीवनी आदि के आधार पर वर्गीकरण कर उसका विवेचन किया गया है। पंचम अध्याय में इस लोक साहित्य का साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक दृष्टि से मूल्यांकन किया गया है। इस मूल्यांकन द्वारा हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक, महान अछूतोद्वारक बाबा रामदेवजी का चरित्र उभरकर सामने आया है। द्वितीय खण्ड लेखक के अनवरत श्रम और दुरूह प्रयास का परिणाम है। इसके परिशिष्ट-क में बाबा रामदेव और उनके भक्त कवियों द्वारा रचित बाणियां, परिशिष्ट-ख में आठ कवियों द्वारा रचित बाबा रामदेव सम्बन्धी प्राचीन छंद (हिन्दी व्याख्या सहित) और परिशिष्ट-ग में तीन लोक वार्ताएं मौलिक परम्परा और हस्तलिखित ग्रंथो के आधार पर संकलित-सम्पादित की गई है, जो इस शोध ग्रंथ की महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Chauhan Prithviraj Tritiya aur unka Yug
पृथ्वीराज चौहान एक राजपूत राजा थे, जिन्होंने 12वी सदी में उत्तरी भारत के दिल्ली और अजमेर साम्राज्यों पर शाशन किया था। पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के सिंहासन पर राज करने वाले अंतिम स्वत्रंत हिन्दू शाषक थे। राय पिथोरा के नाम से मशहूर इस राजपूत राजा ने चौहान वंश में जन्म लिया था। पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 में अजमेर में हुआ था। उनके पिता का नाम सोमेश्वर चौहान और माता का नाम कर्पूरी देवी था।
पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही बहुत बहादुर और युद्ध कला में निपुण थे। उन्होंने बचपन से ही शब्द भेदी बाण कला का अभ्यास किया था, जिसमे आवाज के आधार पर वो सटीक निशाना लगाते थे। 1179 में युद्ध में उनके पिता की मौत के बाद चौहान को उत्तराधिकारी घोषित किया गया। उन्होंने दो राजधानियों दिल्ली और अजमेर पर शाषन किया, जो उनको उनके नानाजी अक्रपाल और तोमर वंश के अंगपाल तृतीय ने सौंपी थी। राजा होते हुए उन्होंने अपने साम्राज्य को विस्तार करने के लिए कई अभियान चलाये और एक बहादुर योद्धा के रूप में जाने जाने लगे। उनके मोहम्मद गौरी के साथ युद्ध की महिमा कनौज के राजा जयचंद की बेटी संयुक्ता के पास पहुच गयी…SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Chittor ki Maharani Padmini ki Aitihasikata
चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी की ऐतिहासिकता : अपनी मातृभूमि और संतति की रक्षा, अपनी आन तथा अस्मिता को अक्षुण्ण रखने की टेक और अपने कुल के सत और गौरव पर प्रहार का सामना करने के लिए कटिबद्ध हो जाना मनुष्य मात्र का स्वभाव है, नैसर्गिक गुण है। कुछ समुदाय व कुल इसको इतना अधिक महत्त्व देते हैं कि प्राणों का बलिदान करने में भी नहीं हिचकते। उनका यह बलिदान लगभग सभी संस्कृतियों में सराहा जाता है और उसका गौरव-गान किया जाता है। ऐसी मार्मिक घटनाओं पर राजनैतिक इतिहासकार वाद-विवाद, छिद्रान्वेषण करते ही रहते हैं पर ऐसी सभी बाधाओं को पार कर चित्तौड़ की पद्मिनी और उसके परिवार का ऐसा ही बलिदान अपने गढ़ से निकलकर जनश्रुति और लोक कलाओं के माध्यम से काल प्रवाह के साथ मेवाड़ और राजपूताने से होता हुआ समस्त भारत में फैल गया। आज तो यह गाथा मानव संस्कृति की धरोहर का एक अंग बन गई है। पद्मिनी की प्रसिद्धि चारों ओर फैली। सूफी कवि जायसी ने अवधी बोली में पद्मावत लिखा, अवधी से इसका अनुवाद दक्खिनी हिन्दी में हुआ, साथ ही इस गाथा पर आधारित रचनाएँ दक्षिण में भी होने लगी। 17वीं शती में तो द्विलिपिय रचनाएं आने लगीं, विशेषकर राजपूत मनसबदारों के लिए ऐसी पुस्तकें फारसी और देवनागरी दोनों लिपियों में लिखी जाती थी। आंबेर के राजाओं के संग्रह में ऐसी पुस्तकें उपलब्ध हैं। 16वीं से 19वीं शती तक प्रतिकृतियाँ तैयार होती रहीं और चित्रकार पद्मिनी की गाथा अंकित करते रहे। जोगी-गायक इसका गायन करते रहे, न तो कवियों व लेखकों की लेखनी रूकी और न ही चित्रकारों की तूलिका।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Col. James Tod krit Rajasthan ka Puratatva evam Itihas (PB)
-15%Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिCol. James Tod krit Rajasthan ka Puratatva evam Itihas (PB)
जैम्स टॉड कृत महान पुस्तक “राजस्थान का पुरातत्व एवं इतिहास” के नवीन संस्करण को प्रकाशित करने की बात को कोई भी व्यक्ति हल्केपन से नहीं ले सकता। महायुद्व में राजपूतों के महान योगदान को देखकर इम्पीरियल कॉन्फरेंस में इनके प्रतिनिधि को आमंत्रित किया है और यह निश्चित है कि वर्तमान महाविपत्ति के समाप्त होते ही भारतीय प्रशासन में राजपूतों को और अधिक बड़ा भाग सौपा जायेगा। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए यह अभिलाषा उत्पन्न हुई कि राजपूतों के पुरातत्त्व, इतिहास एवं उनकी सामाजिक संस्कृति को प्रकाशित कर उसे जनता के सामने प्रस्तुत किया जावे। यह पुस्तक अपने आप में उत्कृष्ट कालजयी साहित्य है और उसके साथ हमारा व्यवहार भी ऐसा ही होना चाहिए। स्वयं राजपूतों के लिये एवं उन भारतीयों के लिए जो अपने देश का इतिहास जानने में रूचि रखते है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Col. James Tod krit Rajasthan ka Puratatva evam Itihas (vol. 1, 2, 3)
-10%Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिCol. James Tod krit Rajasthan ka Puratatva evam Itihas (vol. 1, 2, 3)
जैम्स टॉड कृत महान पुस्तक “राजस्थान का पुरातत्व एवं इतिहास” के नवीन संस्करण को प्रकाशित करने की बात को कोई भी व्यक्ति हल्केपन से नहीं ले सकता। महायुद्व में राजपूतों के महान योगदान को देखकर इम्पीरियल कॉन्फरेंस में इनके प्रतिनिधि को आमंत्रित किया है और यह निश्चित है कि वर्तमान महाविपत्ति के समाप्त होते ही भारतीय प्रशासन में राजपूतों को और अधिक बड़ा भाग सौपा जायेगा। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए यह अभिलाषा उत्पन्न हुई कि राजपूतों के पुरातत्त्व, इतिहास एवं उनकी सामाजिक संस्कृति को प्रकाशित कर उसे जनता के सामने प्रस्तुत किया जावे। यह पुस्तक अपने आप में उत्कृष्ट कालजयी साहित्य है और उसके साथ हमारा व्यवहार भी ऐसा ही होना चाहिए। स्वयं राजपूतों के लिये एवं उन भारतीयों के लिए जो अपने देश का इतिहास जानने में रूचि रखते है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Deshbhakt Durgadas Rathore
देशभक्त दुर्गादास राठौड़ : मारवाड़ के शौर्यपुत्र दुर्गादास राठौड़ में अनेकानेक गुणों का समावेश था। निर्भिकता, स्वामिभक्ति, त्याग, निर्लोभ भावना, सत्यता, सहिष्णुता, शीघ्र निर्णय, संगठन, वीरता सर्वस्व न्यौछावर भावना, धर्मरक्षण, शरणागतत्सलता, स्वाभिमान एवं राष्ट्रीयता के साथ उच्च चरित्र एवं निष्काम भावना जैसे अनेक प्रण उसके सामने थे और किसी रियासत का राजा न होकर एक साधारण सामन्त के नाते दुर्गादास राठौड़ ने अपने जीवन में इन सभी गुणों को एक साथ निभाया, यही उसके चरित्र की विशेषता रही है। राजस्थान की भूमि वीर-प्रसविनी वसुन्धरा रही है जिसमें मरुधरा का विशेष महत्व है। इसी तरह दुर्गादास राठौड़ का औरंगजेब के खिलाफ किया गया दीर्घकालन संघर्ष उसे चरित्र का एक गौरपूर्ण अध्याय है।
औरंगजेब के अत्याचारों की कहानी से जनमानस संतप्त था,उस समय उसकी महान शक्ति से टक्कर लेकर भारतीय लोक जीवन केमनोबल को बनाये रखने में वीर दुर्गादास का तीस वर्षों का लम्बा संघर्ष अपने आप में एक आदर्श है। यह संघर्ष सत्ता हथियाने के लिए प्राणोत्सर्ग करने का संकल्प नहीं था वरन् अत्याचार के विरुद्ध अपने स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए अनुपम अनुष्ठान था। वीर दुर्गादास राठौड़ का एक महत्तम शक्ति सम्पन्न बादशाह के खिलाफ किया गया दीर्घकालीन संघर्ष निष्काम भावना से मात्र प्रण-पालनार्थ राठौड़ की विजय ही नहीं हुई अपितु मुगल वंश की साम्राज्य सत्ता का ही पराभव प्रारम्भ हो गया था। इस दृष्टि से यह ग्रन्थ एक स्तुत्य प्रयास है। वास्तव में यह ग्रन्थ आज के राजनीतिज्ञों एवं कल की भावी सन्तान के लिए पठन एवं मनन योग्य है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Gogadev Chauhan – Parampara aur Itihas
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांGogadev Chauhan – Parampara aur Itihas
गोगादेव चौहान – परम्परा और इतिहास : राजस्थान को लोक संस्कृति में अनेक अद्भुत विशेषताएं विद्यमान हैं। यहाँ के लोक देयता पौराणिक देवताओं से भिन्न हैं और उनमें अपनी अनेक विशिष्टताएं हैं। डॉ. बिन्ध्यराज चौहान ने ‘गोगादेव चौहान – इतिहास एवं परम्परा’ में विशुद्ध ऐतिहासिक दृष्टिकोण से लोक देवता गोगाजी से सम्बन्धित परम्पराओं के मूल में निहित गहरे से गहरे सत्य को अपनी विश्लेषणात्मक मर्मज्ञता और ऐतिहासिक सूझ के आधार पर उद्घाटित करने का सफल प्रयास किया है। रामदेवजी के भारत प्रसिद्ध रामदेवरा मेले के समकक्ष गोगामेड़ी में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने वाले मेले के नायक गोगाजी से सम्बन्धित प्रामाणिक साधनों पर आधारित सामग्री के कारण इस सम्बन्ध में प्रचलित अनेक रूढियों का बोधगम्य सत्य उजागर करने का श्रेय प्रस्तुत ग्रंथ के लेखक को प्राप्त है। गोगादेव चौहान के महमूद गजनबी से संघर्ष को लेकर इतिहासकारों के मध्य विरोधाभास रहा है, डॉ. बिन्ध्यराज चौहान ने महमूद गजनबी के सोमनाथ पर आक्रमण के समय हुए गोगा से संघर्ष, घग्घर के निकट हुए संघर्ष आदि से सम्बन्धित साधनों का विस्तार से विवेचन कर यह विश्वसनीय रूप से सिद्ध कर दिया है कि यह युद्ध थानेश्वर के निकट हुआ था।
रामसा पीर की भांति पीर (जाहर पीर) के रूप में विभिन्न धर्म-सम्प्रदायों के श्रद्धालुओं द्वारा पूज्य गोगाजी के जीवनवृत्त का अत्यंत ही प्रामाणिक विवरण न केवल अनेक भ्रांतियों के निवारण में सक्षम होगा अपितु इतिहास के गहन-गंभीर अध्येताओं के साथ ही साधारण पाठकों के लिए भी सहेज कर रखने योग्य सिद्ध होगा। गोगाजी में आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह ग्रंथ नि:सन्देह अद्वितीय निधि के रूप में ख्याति अर्जित करेगा।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Jaat Itihas
लेखक की मान्यता है कि काला सागर के समीप प्रथम मानव का उद्भव हुआ। प्राकृतिक प्रकोपों के कारण वहां से लोग इधर-उधर चले गए। एक समुदाय भारत की ओर भी आया, वह आर्यों के नाम से जाना गया। कालान्तर में, भारतीय आर्य वर्ण एवं जातियों में विभाजित हो गए। जाटों का प्रादुर्भाव भी इसी वर्गकरण का प्रतिफल था। जाटों ने संघबद्ध जीवन पद्धति को बनाए रखा और धार्मिक-सामाजिक रूढ़ियों से मुक्त रहे। फलतः पुरोहित तथा राजा के गठबंधन से उनको संघर्ष करना पड़ा। संघर्ष में उनकी जीतें भी हुई और हारें भी। विवशतावश, वे पुनः एशिया और यूरोप के देशों की ओर गए और बड़े राज्यों का ध्वन्स करके अपने उपनिवेश स्थापित किए।
विरोधी परिस्थितियों के कारण वे फिर भारत की ओर आए और सिन्ध, पंजाब, मालवा, गुजरात और गंगा-यमुना के क्षेत्रों में बस गए। कालान्तर में उन्होंने हूणों को देश से बाहर भगाया और प्रायः प्रत्येक आक्रमणकारी का प्रतिरोध करके भारत की राजनीतिक स्थिति के निर्माण में योगदान दिया। जाटों ने, ईसापूर्व से लेकर ईसा की अठारहवीं शती तक विदेशी आक्रमणकारियों के साथ इतनी तलवार बजाई कि उसकी समता भारतीय इतिहास में नहीं मिलती। वे लेखनी से अपना इतिहास लिखने की ओर से उदासीन रहे, अतः उनकी राष्ट्रीय एवं ऐतिहासिक महत्त्व की भूमिका अंधकार में पड़ गई। यह इतिहास-ग्रंथ जाटों का ऐतिहासिक महत्त्व के राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक कार्यों पर प्रकाश डालता है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Jati Bhaskar
जाति भास्कर : हमारे देश में वर्ण, जाति, गोत्र, अवटंक, शाखा-प्रशाखादि की मान्यताएं बहुत पुराने समय से रही हैं। प्रत्येक समुदाय में इस तरह की मान्यताएं विदेशी अध्येताओं के लिए बहुत रोचक विषय रही। वर्ण और जाति का विचार कब जागा, स्पष्ट कहा नहीं जा सकता, लेकिन 1847 में रौथ ने आर्य और आर्येतर समाजों के सम्बन्ध में जिस विचार को रखा तो वैदिक सन्दर्भों को टटोला जाने लगा और ज्ञात हुआ कि आर्यों के देवता इन्द्र दासों के विजेता रहे। इन्द्र ने दस्युओं का विनाश किया और आर्यवर्ण की सुरक्षा की। वर्ण की रक्षा का भाव बहुत बाद में गीता जैसे ग्रंथ में भी आता है। आरम्भ में आर्यों का समुदाय आधारित जीवन था और गण, सभा, समिति सहित विदथ जैसी सामुदायिक संस्थाएं होती थीं, जिनके माध्यम से यज्ञादि कार्यों पर विचार होता और पशुधन आदि की चिंता को अभिव्यक्त किया जाता था। प्रारम्भिक पुराणकाल में समाज में चतुर्वर्ग की व्यवस्था का प्रतिपादन किया गया है। जातियों का वर्गीकरण कठिन है और फिर जातियों के उद्भव और विकास को पहचान पाना भी बड़ा जटिल है। आक्रमणों के बावजूद अविच्छिन्नता व टिके रहना भारतीयों का जातीय गुण रहा, पवित्रता व अपवित्रता जैसे भाव और उनका अनुकरण व्यवहार्य रहा, कुलों के अन्दर ही सर्वप्रकारेण व्यवहार रुचिकर रहा, पेशों का पक्ष और श्रम की बुनियाद अक्षुण्ण रही- ऐसे कई कारण हैं जिनके फलतः जातियों का अस्तित्व बना रहा। हालांकि विदेशी अध्येताओं ने जहाँ विदेशियों के सम्मिश्रण सम्बन्धी मत दिए हैं, वहीं भारतीयों ने अपने ढंग से यहाँ की जातिगत पहचान को स्थिरीकृत करने का प्रयास किया है। विश्वास सबके अपने-अपने हैं। न जाने कितनी सदियाँ गुजरी और अभी और गुजरेगी।
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Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, कहानियां
Kahawati Kathayen (Kahawaton ke sath Kathayen)
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, कहानियांKahawati Kathayen (Kahawaton ke sath Kathayen)
कहावती कथाएँ (कहावतों के साथ कथाएँ) : कहावतों के महत्त्व के सम्बन्ध में अनेक बातें कही जा सकती है। यह पिछली पीढ़ियों के अनमोल अनुभवों का भण्डार है। कहावतें भाषा का श्रृंगार है, इनके प्रयोग से भाषा में सजीवता का संचार होता है। कहावतें झूठ नहीं बोलती, वे मानव के अनुभव की सन्तान है। कहावतें और मुहावरे लोगों की सम्पूर्ण सामाजिक और ऐतिहासिक अनुभूतियों के संक्षिप्त रूप है। ईसा मसीह, गौतम बुद्ध और सुविख्यात दार्शनिक अरस्तू कहावतों के प्रभाव को स्वीकार कर इनका बहुलता से प्रयोग करते थे।
प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक श्री विजयदान देथा जी राजस्थानी साहित्य और संस्कृति के विद्वान थे और उनका यह अद्वितीय शोध ग्रन्थ अथक परिश्रम तथा गहन गम्भीर सोच का प्रतिफल है, जो भावी पीढ़ियों के लिये उपयोगी बना ही रहेगा। प्रस्तुत ग्रन्थ कहावतों के संकलन मात्र तक सीमित नहीं है। श्री विजयदान देथा ने राजस्थानी कहावतों की समाजशास्त्रीय, सांस्कृतिक साहित्यिक तथा भाषागत सारगर्भित विवेचना की है तथा कहावत से सम्बन्धित कथा का विवरण भी प्रस्तुत किया है। श्री विजयदान देथा ने कहावतों का रूपात्मक और विषयानुार वर्गीकरण कर अपने शोध ग्रन्थ को स्थाई महत्त्व प्रदान कर दिया है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Kshatriya Jati ki Suchi
क्षत्रिय जाति की सूची : ‘क्षत्रिय जाति की सूची’ में समस्त क्षत्रियों की एकता और संगठन के लिए एक प्रशस्त एवं सर्वतो-भद्र सभागार के अनुरूप है, जिसका सृजन आधुनिक युग के प्रभात में लगभग एक शताब्दी पूर्व हुआ था। इस पुस्तक में भारत के प्राचीन इतिहास, पुराणों में वर्णित सभी क्षत्रिय-कुलों के वर्णन के अतिरिक्त मध्य-युग में राजस्थान के क्षत्रिय-कुलों की शाखाओं का भी वर्णन हुआ है। आधुनिक युग में इस प्रकार की यह प्रथम पुस्तक है, जिससे समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप क्षत्रियों को संगठित होने में बहुत महत्वपूर्ण सहायता मिलेगी। इस दृष्टि से इस पुस्तक के रचयिता ठाकुर बहादुर सिंह, बीदासर, का यह संग्रह उनकी दूरदर्शिता एवं जाति-प्रेम का परिचय देता है। भारत के प्राचीन क्षत्रियों को आधुनिक क्षत्रिय समाज से जोड़ने के लिए यह संग्रह एक सुदृढ एवं time tested सेतुबन्ध का कार्य भी करता है और इस प्रकार हमें भगवान राम, कृष्ण, बुद्ध एवं महावीर के धर्म-सम्मत जीवन-व्यवहार और सम्राट अशोक, विक्रमादित्य, भोज और हर्षवर्द्धन के प्रजा-हितैषी कार्यों से प्रोत्साहित होने की प्रेरणा देता है। आशा है क्षत्रिय-समाज अपने संगठित बल से ऋषियों द्वारा स्थापित अपने कर्तव्यों के निर्वाह-स्वरूप राष्ट्रीय सुरक्षा, राजनैतिक और प्रशासनिक कुशलता और जन-कल्याण की भावनाओं के प्रति क्रियाशील एवं सजग रहकर अन्य समाजों से मैत्री तथा सुहृदयता के सम्बन्ध सुदृढ़ करते हुए अपने बहुमुखी कर्तव्यों के प्रति तन-मन-धन से ससंकल्प उन्मुख होगा।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Kshatriya Samaj ki Kuldeviyan
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियांKshatriya Samaj ki Kuldeviyan
क्षत्रिय समाज की कुलदेवियाँ : ईश्वर के प्रति प्रेम अथवा भक्ति के स्वरूप का भाषा के द्वारा बखान करना बड़ा कठिन मार्ग है। उपासना एवं पूजा ऐसे ही तत्त्व की हो सकती है, जिसे परम रूप में पूर्ण समझा जा सके। ईश्वर विनम्र है, यही कारण है कि भक्त अपने को सर्वथा ईश्वर की दया के ऊपर छोड़ देता है।
नारद सूत्र में भक्ति के विभिन्न प्रकार मिलते हैं। सच्ची भक्ति निःस्वार्थ आचरण के द्वारा प्रकट होती है। भक्त की श्रद्धा एवं विश्वास भक्ति का मूल आधार कहा जा सकता है। इसी रूप में कुलदेवियों की परम्परागत पूजा-अर्चना अलग-अलग वंशधरों में पूजीत हो रही है, जो कुल की रक्षा करने का दायित्व ग्रहण करती है। प्रस्तुत पुस्तक में क्षत्रिय वंश की कुलदेवियों पर प्रकाश डाला गया है। देवी से प्राप्त ज्ञान अर्जन, उनके प्रति रीति-रिवाज एवं परम्पराओं का बोध कराने में यह ग्रन्थ उपयोगी सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Literature & Fiction, Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Lokavlokan (Lok Jeevan Evam Lok Sahitya Sambandhi Lekh)
Literature & Fiction, Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिLokavlokan (Lok Jeevan Evam Lok Sahitya Sambandhi Lekh)
लोकावलोकन (लोक जीवन एवं लोक साहित्य सम्बन्धी लेख) : सुपर बाजार में सब्जी खरीदते हुए हम माली के बारे में नहीं सोचते, ऐसे ही कला को जब हम मात्र मंच पर से विशिष्टजनों के लिए प्रक्षेपित या सेवार्पित की जाती हुई जिंस बना देते हैं तब हम कलाकार और उस कला के व्यापक और निर्णायक आर्थिक-सामाजिक मानवीय पहलुओं को नजरअन्दाज कर देते हैं। यदि परम्परा के मूल और मूल्यवान अंशों की रक्षा होनी है, तो सांस्कृतिक संध्याओं के मौसमी ढोल-ढमाके के परे कुछ ज्यादा ठोस, ज्यादा सुचिंतित और ज्यादा सतत प्रयासों की दरकार रहेगी। इन विधाओं, उनकी विशेषताओं और उनसे जुड़े वाद्ययंत्रों को बचाना है, तो उन्हें नये सन्दर्भों में नई सार्थकता देनी होगी। तीन संकट हैं :- संकुचन-विलोपन, अवमिश्रण-पनीलापन, विरूपण-वर्णसंकरण-शायद तीन ही संभव निदान हैं। कुछ चीजों को लगभग ज्यों-का-त्यों बनाये रखने का प्रयास, उनके ही ठीए पर, गुरु शिष्य परम्परा आदि के माध्यम से ‘सम्प्रेषण’ (ट्रांसमिशन)। शेष का अनुकूलन, रूपान्तरण, प्रतिरोपण-एडैप्टेशन, ट्रांसफौर्मेशन, ट्रांसप्लान्टेशन। इन दोनों के लिए असाध्य, शेष मरणोन्मुख की यादगार, पहचान संजोना, शव का परिरक्षण-ममिफिकेशन जैसा, म्यूजियम में रखने जैसा। कुछ लोग पूरी सदेच्छा से, लोकवार्ता को रखने के लिए लोक संस्कृति की संबंधित सीप को बनाये रखने की बात करते हैं। यह अव्यावहारिक दुराशा है। कुछ और उतनी ही सदेच्छा से कहते हैं कि लोक-कला सीखने-सिखाने की चीज नहीं है, रूपान्तरण, अनुकूलन से उसका मूल स्वरूप नष्ट होता है। मत करिये, वह जहां है वहीं अपना मूल स्वरूप लिए-दिए नष्ट हो जाने वाली है। फिर, विरूपण तो बिना एडैप्टेशन, बिना हमारे चाहे भी तो हो ही रहा है।
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Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Maharaja Agrasen evam Agrawal Samaj ka Sampurn Itihas
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणMaharaja Agrasen evam Agrawal Samaj ka Sampurn Itihas
महाराजा अग्रसेन एवं अग्रवाल समाज का सम्पूर्ण इतिहास : इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने महाराजा श्री अग्रसेनजी के जीवन सम्बंधित प्रामाणिक महत्वपूर्ण तथ्यों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। पुस्तक में महाराजा अग्रसेनजी की शासन प्रणाली, उनके सिद्धांत, अग्रोहा का विवरण, वर्तमान अग्रोहा धाम, अग्रवालों के गोत्र, उपनाम, वैश्य वर्ण और जातियां, अग्रोहा से सम्बंधित लोक कथाएं, महालक्ष्मी ब्रतकथा, उरुचरितम् तथा भाटों के गीत, अग्रवाल समाज के संस्कार एवं रीति-रिवाज, देश के विभिन क्षेत्रों में नाम कमाने वाले अग्रवाल गौरव, श्री पीठ का महत्व एवं कुलदेवी महालक्ष्मी की स्तुति, श्री अग्रचालीसा, अग्रस्तुति, उनके भजन, आरती इत्यादि महत्वपूर्ण विषयों को सम्मिलित करके गागर में सागर भरने की एक छोटी सी कोशिश की है। आज तक अग्रसेन, अग्रोहा और अग्रवालों पर लिखी गई पुस्तकों का सार मिलाकर एक ऐसी पुस्तक लिखी है, जिसे पढ़कर अग्रवाल समाज की समस्त जानकारी प्राप्त होगी तथा प्रत्येक अग्रवाल भाई का सर गर्व से ऊँचा हो जायेगा।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Meena Samaj ki Kuldeviyan
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियांMeena Samaj ki Kuldeviyan
मीणा समाज की कुलदेवियां : मानव आदिकाल से ही शक्ति की उपासना करता आया है। शक्ति का आदि स्वरूप देवी है। यह आद्याशक्ति सनातन शक्ति प्रकृति है, समस्त जगत की उत्पत्ति उसी से हुई, वही विश्व की जननी है। प्रत्येक सम्प्रदाय में देवी की उपासना परम्परा रही है। भारतीय संस्कृति में देवी की महिमा प्रतिष्ठापित है तथा समाज में देवी पूजा की जड़े बहुत गहरी हैं। प्रत्येक कुल की अधिष्टात्री देवी को कुलदेवी के रूप में पूजने की यहाँ परम्परा रही है। इसी कारण हर कुल की अपनी कुलदेवी स्थापित है और वह उस कुल की वंश वृद्धि और समृद्धि की प्रदाता मानी जाती है। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने प्रयास करके मीणा समाज की 51 कुलदेवियों के सम्बद्ध में जानकारी व परिचय दिया है, जो उत्कृष्ट अन्वेषण के आधार पर आधारित है। मीणा समाज के लिए और उनके गोत्रों की पृथक-पृथक कुलदेवियों सम्बन्धी यह विवरण उपयोगी और पठनीय हैै। इससे मीणा समाज के लोग अवश्य लाभान्वित होंगे।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Mewar ki Gaurav Gathayen
मेवाड़ की गौरव गाथाएँ : ‘मेवाड़’ शक्ति, शौर्य, पराक्रम एवं बलिदान के इतिहास का वह एक नाम है, जिसकी परम पावन माटी का कण–कण अपने में निहित पवित्रता का आभास कराता है और जन–जन अपने माथे पर गौरव–तिलक लगाने के लिए स्वतः प्रेरित होता है। स्मरण रहे कि हर युग में यहाँ का व्यक्ति मातृभूमि के लिए सर्वस्व समर्पण हेतु सदैव तत्पर रहा है। एक से बढ़कर एक बलिदानियों के कई स्वर्णिम पृष्ठ मेवाड़ के इतिहास से जुड़े है। पद्मावती का अद्भुत जौहर, पन्ना–कृष्णा का अमर त्याग, गोरा–बादल जैसे युवा व बाल योद्धाओं का युद्ध कौशल, भामाशाह का महादान तो अमरचन्द बड़वा का बलिदान आज सम्पूर्ण जगत के लिऐ प्रेरणा–स्रोत बना हुआ है।
पुस्तक के लखन एवं प्रकाशन का यही उद्देश्य है कि मेवाड़ की यह थाती जन–जन तक पहुँचे और विरोचित मूल्य का प्रकाश सर्वत्र बिखरे। साथ ही यह लिखते हुए भी हर्ष का अनुभव हो रहा है कि श्री तरुण देश–प्रदेश के सुनाम इतिहासकार के साथ ही वरिष्ठ साहित्यकार भी हैं, अतः प्रस्तुत गौरव गाथाओं में इतिहास के साथ–साथ साहित्य की अनुभूति का आनन्द भी मिलेगा। इसी आशा एवं विश्वास के साथ…SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Pratiharon ka Mool Itihas
प्रतिहारों का मूल इतिहास : भारत के इतिहास में कुछ वंश बहुत महत्त्वपूर्ण रहे हैं, उनके साम्राज्य बड़े विस्तृत थे और उन्होंने साहित्य का बड़ा प्रसार किया। कुछ वंशों ने, जिनको जिस धर्म में आस्था थी, उसको बहुत फैलाया, परन्तु क्षत्रिय सभी धर्मों के प्रति उदार और सहिष्णु थे। शासक वर्ग जिस धर्म को मानता था, उसके अलावा अन्य धर्मों को संरक्षण प्रदान करते थे एवं दान-पुण्य देकर प्रोत्साहन देते थे। भारत के महान सम्राज्यों में प्रतिहारों का भी एक बड़ा साम्राज्य रहा है। इसकी एक विशेषता रही है कि जैसे मौर्य, नागवंश तथा गुप्तवंश आदि थे, उनके विरोधी दुश्मन एक तरफ ही थे, जिससे उपरोक्त वंशों के शासकों को अपने राज्यों तथा साम्राज्य के एक ही दिशा में शत्रु का सामना करना पड़ता था, जिससे वे सफल भी रहे। परन्तु प्रतिहारों के पश्चिम में खलीफा जैसी विश्वविजयी शक्ति से इनका मुकाबला चलता था। दक्षिण में राष्ट्रकूटों (राठौड़ों) से टक्कर थी, जो किसी भी सूरत में इनसे कम शक्तिशाली नहीं थे। पूर्व में बंगाल के पाल भी इनके शत्रु थे, वे इन जितने शक्तिशाली नहीं थे, फिर भी प्रतिहारों को उनसे युद्धों में व्यस्त रहना पड़ता था। अरब जो कि इनके शत्रु थे, उनके एक व्यापारी ने लिखा है कि प्रतिहारों को अपने साम्राज्य की समस्त दिशाओं में (चारों ओर) लाखों की संख्या में सैनिक रखने पड़ते है। इस प्रकार मौर्य, नागों और गुप्तों के मुकाबले में प्रतिहारों की शक्ति का आंकलन किया जाये तो प्रतिहारों की शक्ति उनसे अधिक होना सिद्ध होता है।
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