sanatan
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Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Dalit Utthaan Ke Agradoot Pandit Madan Mohan Malviy
Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Dalit Utthaan Ke Agradoot Pandit Madan Mohan Malviy
कितना प्राचीन अपना देश है। कालखंड से देश की प्राचीनता तिथि से तय नहीं किया जा सकता। यहां का सामाजिक जीवन भी भारत की ही तरह प्राचीन है। भारत का सामाजिक जीवन अत्यंत विविधतापूर्ण है तथा उसकी सामाजिक संस्थाएं सतत प्रवाहमान है। महाभारत में ऐसे समाज का चित्रण है जो अधिक मुक्त और स्पंदनशील है। मालवीय जी ने कहा ‘‘जन्म-जाति की उच्चता या नीचता के स्थान पर गुण एवं कर्म पर इसके आगे जाति-पाँति नहीं मानता।’’ २३ जनवरी, १९२७ से २६ जनवरी के बीच प्रयाग में त्रिवेणी तट पर अर्धकुम्भ के अवसर पर ‘अखिल भारतवर्षीय सनातन धर्म महासभा’ का अधिवेशन हुआ। चार दिन के इस कार्यक्रम के तीन दिनों की अध्यक्षता मालवीय जी की रही, परन्तु २५ जनवरी को महाराजा दरभंगा कामेश्वर सिंह बहादुर के सभापतित्व में विद्वतमंडली और प्रतिनिधियों द्वारा बड़े महत्वपूर्ण प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किये गये ‘महासभा’ के इसी अधिवेशन के माध्यम से अछूतों को ‘मंत्र-दीक्षा’ देने का प्रस्ताव भी उन्होंने स्वीकृत कराया। तत्पश्चात सन १९२७ में महाशिवरात्रि के दिन काशी में दशाश्वमेध घाट पर उन्होंने सभी वर्णों के लोगों को मंत्र दीक्षा दी। ये मंत्र इस प्रकार थे- ‘ॐ नम: शिवाय’, ‘ॐ नमो नारायणाय’, ‘ॐ रामाय नम:’, ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ आदि।
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Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)
Kumbh Kee Apriy Ghatanaon Ka Vishleshan
Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)Kumbh Kee Apriy Ghatanaon Ka Vishleshan
कुम्भ मेला में हर अखाड़ा अपना महत्व और स्थान रखने की कोशिश करता है, और जब हजारों साधु-संत एक साथ होते हैं, तो कभी-कभी यह प्रतिस्पर्धा हिंसक रूप ले लेती है। प्रत्येक अखाड़ा अपने आपको प्रमुख और प्रभावशाली मानता है, और कुम्भ मेला एक ऐसा अवसर होता है जब विभिन्न अखाड़े अपनी धार्मिक और सामाजिक स्थिति साबित करने की कोशिश करते हैं। कुम्भ मेले में प्रमुख स्थान पर स्नान करने के लिए बहुत प्रतिस्पर्धा होती है। हर अखाड़ा यह चाहता है कि वह सबसे पहले स्नान करने के लिए अपने साधुओं को भेजे, जो धार्मिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह संघर्ष पारंपरिक तौर पर अखाड़ों की आंतरिक प्रतिस्पर्धा, सम्मान और पद की चाहत से जुड़ा होता है। कुम्भ मेला अपने धार्मिक महत्व के बावजूद कभी-कभी इन संघर्षों के कारण चर्चा में रहता है, लेकिन इसका उद्देश्य और महत्व समग्र रूप से भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को समर्पित है।….. १८२० का हरिद्वार कुम्भमेला इतिहास में दर्ज वह कुम्भ है, जिसमें ज्ञात स्रोतों के मुताबिक भगदड़ से ४५० से भी ज्यादा तीर्थयात्रियों की मौत हुई और १००० से ज्यादा लोग घायल हुए। इसके बाद १८४० के प्रयाग कुम्भ मेले में ५० से अधिक मौतें हुई। तत्कालीन सरकारी तंत्र में लगातार मची उथल-पुथल और व्यवस्था के मामूली इंतजामों के कारण इसके बाद के प्रत्येक कुम्भ में भी भगदड़ से तीर्थयात्री मरते रहे, जिनका आधिकारिक ब्यौरा तक उपलब्ध नहीं है। यदि २०वीं शताब्दी की बात करें तो १९०६ के प्रयाग कुम्भ मेले में भगदड़ से ५० से अधिक मौतें हुईं और १०० से ज्यादा लोग घायल हुए थे। प्रयागराज में होने वाले कुंभ और माघ मेले के इतिहास में देश की आजादी के बाद १९५४ के कुंभ को भी दुर्घटना की वजह से याद किया जाता है। इस मेले में मौनी अमावस्या के दिन त्रिवेणी बांध पर मची भगदड़ में सैकड़ों श्रद्धालुओं को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
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Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)
Kumbh Snaan Se Bimari Phailane Ka Dushprachaar
Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)Kumbh Snaan Se Bimari Phailane Ka Dushprachaar
किसी खास जगह पर और किसी खास समय पर ही कुंभ लगने के पीछे एक पूरा विज्ञान है। आज आधुनिक विज्ञान ने बहुत से प्रयोग किए हैं जिससे पता चला है कि पानी की अपनी स्मृति यानी याद्दाश्त होती है। भारत में कुंभ मेला, यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त अमूर्त सांस्कृतिक विरासत है, जो पृथ्वी पर सबसे बड़े मानव समागमों में से एक है। चक्रीय रूप से होने वाला यह आध्यात्मिक संगम अपनी धार्मिक जड़ों एवं मान्यताओं से आगे बढ़कर विज्ञान और औषधीय स्वरुप है।
जैसे-जैसे हम इस कालातीत संगम की गहराई में उतरते हैं, तो पाते हैं कि इसकी प्रासंगिकता अनुष्ठानिक सीमाओं से कहीं आगे तक फैली हुई है, जो समकालीन दुनिया के लिए एक गहन चिंतन, मनन, मंथन और शोध आधारित अध्ययन का विषयवस्तु है। इस संगम की खगोलीय प्राचीनता और उसके धार्मिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक महत्व पर एक अद्वितीय वैज्ञानिक दृष्टि प्रदान करना आज समय की आवश्यकता है ताकि इस संगम की पीछे छुपे रहस्यों और खगोलीय वैज्ञानिता के पहलुओं को उजागर किया जा सके। पौराणिक मान्यताओं और यह संगम यह दर्शाता है कि किस प्रकार सौरमंडल के खगोलीय पिंड एक विशेष अवस्था में पहुंचकर जल और जीवन को प्रकृति एवं परमात्मा से जोड़कर सनातन संस्कृति में महा पर्व का रूप धारण कर लेते हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)
Maha Kumbh Samaajik Samarasata Aur Hindu Samagam
Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)Maha Kumbh Samaajik Samarasata Aur Hindu Samagam
कुम्भ के आयोजन का उद्देश्य सामूहिक चिंतन था। ऋषि, महर्षि, ब्रह्मर्षि एक समय और स्थान विशेष पर बड़ी संख्या में उपस्थित होकर समाज, राष्ट्र और प्रकृति की समस्याओं पर सामूहिक चिंतन करते थे और चिंतन निष्कर्ष रुपी अमृत से समाज, राष्ट्र और प्रकृति लाभान्वित होती थी। इसका उद्देश्य है कि व्यष्टि और समष्टि जीवन को धर्मादर्श के उच्च सिंहासन पर सुदृढ़ रूप में प्रतिष्ठित करना। धर्म की मृत संजीवनी से अनुप्रेरित कर, समाज और राष्ट्रीय जीवन के प्रत्येक स्तर को संचारित करते हुए उसे शाश्वत कल्याण में विमंडित करना था।
कुंभ में जाति-पांति, ऊंच-नीच का भेदभाव भुलाकर सभी एक ही रंग में रंगे दिखाई देते हैं, जो वास्तव में भारतीय संस्कृति का परिचायक है। भारतवासी, राजा-प्रजा, धनी-दरिद्र, भद्र-अभद्र, पंडित-मूर्ख, गृहस्थ-वनवासी आदि सभी अपने धर्म के नाम पर भेदभाव और द्वंद्व भूल जाते हैं। बिना बुलावे के करोड़ों लोग इस उत्सव में सम्मिलित होते हैं।समग्र राष्ट्र की शिराओं में इस आयोजन की ऊर्जा स्पंदित होती है। जबरदस्त ज्वार उफनाता है कि उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम सब मिलकर एक हो जाते हैं, सब एक-दूसरे को प्रेरणा देते हैं, एक दूसरे से प्रेरणा लेते हैं। अपनी आध्यात्मिक तृषा बुझाते हैं, एक नया आत्मविश्वास, आत्मसम्मान के साथ जिंदा रहने की, शक्ति पाते है।
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Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Pandit Deenadayaal Upaadhyaay Kee Kahasyamay Mrtyu Ka Sach
Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Pandit Deenadayaal Upaadhyaay Kee Kahasyamay Mrtyu Ka Sach
१९६७ के कालीकट अधिवेशन में उपाध्याय जी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। वह मात्र ४३ दिन जनसंघ के अध्यक्ष रहे। १०/११ फरवरी, १९६८ की रात्रि में मुगलसराय स्टेशन पर उनकी हत्या कर दी गई। टखना टूटा था, सिर पर चोट लगी थी, दाहिने बांह पर खून का निशान था और मुट्ठी में ५ रुपये का नोट। ११ फरवरी को प्रात: पौने चार बजे सहायक स्टेशन मास्टर को खंभा नं० १२७६ के पास कंकड़ पर पड़ी हुई लाश की सूचना मिली। प्रात:काल रेलवे का डाक्टर घटना स्थल पर पहुंचा और जांच-पड़ताल करने के बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया। रेलवे पुलिस ने शव का फोटो खींचा। शव को कोई पहचान न सका और उसे लावारिस घोषित कर दिया। लगभग छ: घंटे के बाद शव को प्लेटफार्म पर लाकर रखा गया। मुगलसराय नगर के संघ कार्यकर्ता गुरुबक्श सिंह कपाही ने शव की पहचान दीनदयाल उपाध्याय के रूप में की। पल भर में बिजली के करंट की तरह यह समाचार जनता में फैल गया। सभी लोग स्तब्ध रह गये । जनसंघ के अनेकानेक कार्यकर्ता वहां एकत्रित हो गये । लखनऊ और दिल्ली को इस दु:खद घटना की सूचना तुरन्त फोन द्वारा दी गई। पू० गुरुजी को भी फोन से सूचना दी गई। दिल्ली में संसदीय दल की जो बैठक चल रही थी वह तुरन्त स्थगित हो गई। भागदौड़ शुरू हो गई। चारों ओर शोक की लहर फैल गई। लोगों ने कहा कि ऐसे कर्मयोगी और तपस्वी के प्राणों का दुश्मन कौन बन बैठा। यह रहस्य अभी तक बना हुआ है।
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Pandit Deendayal Upadhyay Krtitv Vyaktitv Tatha Viraasat
Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Pandit Deendayal Upadhyay Krtitv Vyaktitv Tatha Viraasat
सहृदयता, बुद्धिमता, सक्रियता एवं अध्ययनसायी वृत्ति वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक व्यक्ति नहीं, अपितु एक विचार और जीवन-शैली हैं। भारत और भारतीयता उनके जीवन और चिंतन का आवृत्त है। राष्ट्रसेवा को सर्वोपरि मानने वाले और राष्ट्र एवं समाज के प्रति आजीवन समर्पित रहने वाले पंडित जी ने अपने मौलिक चिंतन से राष्ट्र-जीवन को प्रेरित और प्रभावित किया।
पंडित दीनदयाल जी ने एकात्म मानव दर्शन की एक ऐसी दार्शनिक अवधारणा भारत की राजनीति को देने का काम किया है, जो कि अन्य अवधारणाओं से सर्वथा भिन्न है, और भारत की संस्कृति, भारत की परंपरा एवं भारत की प्रकृति के सर्वथा अनुरूप है।
पंडित दीनदयाल जी का स्पष्ट रूप से यह कहना था कि व्यक्ति के संबंध में, समाज के संबंध में, परिवार के संबंध में, सृष्टि के संबंध में कभी भी एकांगी विचार नहीं होना चाहिए।
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Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Samajik Samarasata Aur Sant Samaaj
सृष्टि में सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान है और उनमें एक ही चैतन्य विद्यमान है। भारतीय संस्कृति में कभी भी किसी के साथ किसी भी तरह का भेदभाव स्वीकार नहीं किया गया है। हमारे वेदों में भी जाति या वर्ण के आधार पर किसी भेदभाव का उल्लेख नहीं है। गुलामी के सैकड़ों वर्षो में आक्रमणकारियों द्वारा हमारे धार्मिक ग्रंथों में कुछ मिथ्या बातें जोड़ दी गई, जिससे उनमें कई विकृतियां आ गईं। इसके कारण आज भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई है। वेदों में जाति के आधार पर नहीं, बल्कि कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था बतायी गयी है। संतों का समाज में समरसता भावजागरण में योगदान अमूल्यऔर अतुलनीय है।……………..
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English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Sanatan : Then, Now, Forever (PB)
-15%English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Sanatan : Then, Now, Forever (PB)
“SANATAN: Then, Now, Forever’ is a captivating story inspired by Hindu epics like the Mahabharata, Ramayana, Panchatantra, and Shiva Puranas. It follows the remarkable life of Eka, a simple hunter who is blessed, and cursed, with immortal- ity, living from 1300 B.C. to the present day.
The story starts at the dawn of time, tracing key events like the churning of the ocean (Samudra Manthan) and the battles of Kurukshetra. It follows the rise of Buddhism, the revival of Hinduism under Adi Shankaracharya, the reign of Hindu kings, the invasions and conquests of Bharat, and the British Raj, culminating in the fight for Independence and extending into a futuristic Bharat in 2123.
Throughout his endless journey, Eka meets other mythological characters, immortal beings (Chiranjeevis), and important historical figures, embodying the idea that ‘You either die a hero or live long enough to see yourself become the villain.’ The book dives into the challenges of eternal life, showing how even an immortal can be drawn into darkness over time.
This epic tale encourages readers to think about what it means to live forever and how everything changes with time. Yet, through it all, Sanatan remains unchanged-then, now, and forever.”
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Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)
Sanatan Dharm Evan Parampara Ke Rakshak Akhade
Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)Sanatan Dharm Evan Parampara Ke Rakshak Akhade
भारत में वैदिक सनातन परंपरा की रक्षा, विकास और धर्म के प्रचार-प्रसार में जगतगुरु आध शंकराचार्य जी का योगदान अद्वितीय है। अद्वैत वेदांत के प्रणेता, सनातन धर्म के प्राणधार, कश्मीर से कन्याकुमारी तक सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोने वाले, जगदगुरु आदि शैकराचार्य ने ढाई हजार साल पूर्व सनातन धर्म की रक्षा के लिए दशनामी संन्यासी संप्रदाय की नींव डालकर जो परंपराएं स्थापित की थीं उनका दशनामी संन्यासी संप्रदाय आज भी पूरी मजबूती से निर्वहन कर रहा है।
जगद्वरु आदि शंकराचार्य ने देश की चारों दिशाओं में चार आध्यात्मिक पीठों की स्थापना की थी और दशनामी संन्यास परंपरा को दस संन्यासी नामों में विभक्त किया था और हर एक पीठ के साथ इन संन्यासी दशनामों को संबद्ध किया गया।दशनामी संप्रदाय से जुड़े साधु संत शास्त्र और शस्त्र परंपरा पारंगत होते हैं। दशनामी संन्यासी अदम्य साहस और कुशल प्रतिभाशाली नेतृत्व के धनी होते हैं। इस सम्प्रदाय के साघु भगवा वस्त्र धारण करते हैं और गले में रुद्राक्ष की माला पहनते हैं और अपने माथे पर चंदन का त्रिपुंड लगाते हैं और शरीर में राख मलते हैं। बहुत से नागा संन्यासी श्मशान साधना के लिए कपाल धारण करने के साथ-साथ श्मशान की राख से भी अपने शरीर का सम्मान करते हैं।
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Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
TIRTHRAJ PRAYAG AUR MAHAKUMBHA
‘प्रयागस्य पवेशाद्वै पापं नश्यति: तत्क्षणात्।’ प्रयाग में प्रवेश मात्र से ही समस्त पाप कर्म का नाश हो जाता है । प्रयाग को ब्रह्मवैवर्त पुराण में तीर्थराज कहा गया है। सभ्यता के आरंभ से ही यह ऋषियों की तपोभूमि रही है। यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ माधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विध्यमान हैं। जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है। प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अत: ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ का आयोजन होता है। प्रयाग सोम, वरूण तथा प्रजापति की जन्मस्थली है। प्रयाग का वर्णन वैदिक तथा बौद्ध शास्त्रों के पौराणिक पात्रों के सन्दर्भ में भी रहा है। यह महान ऋषि भारद्वाज, ऋषि दुर्वासा तथा ऋषि पन्ना की ज्ञानस्थली थी। ऋषि भारद्वाज यहां लगभग ५००० ई०पू० में निवास करते हुए १०००० से अधिक शिष्यों को पढ़ाया।
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Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Varna and caste system and Ambedkar (Holistic view)
Hindi Books, Luminous Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Varna and caste system and Ambedkar (Holistic view)
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः । तस्य कर्तारमप मां विद्धयकर्तारमव्ययम् ।। 4/13 ।। भारत का सामाजिक जीवन अत्यंत वैविध्यपूर्ण तथा उसकी सामाजिक संस्थाएँ सतत् प्रवाह शील है। भारतीय राजनीतिक मंच पर अस्पृश्यता के बढ़ते हुए खतरे को उजागर करने वाले प्रमुख व्यक्ति थे अंबेडकर। डॉक्टर अंबेडकर ने दलित मुक्ति पर अपनी सारी शक्ति केंद्रित करने के उद्देश्य से 1924 में “बहिष्कृत हितकारी” सभा की स्थापना की और मराठी पाक्षिक “बहिष्कृत भारत” का प्रकाशन प्रारंभ किया। वस्तुतः दलितों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने और उनके विकास को सुनिश्चित करने की दिशा में अनेक प्रयास बहुत पहले से चल रहे थे। डॉक्टर अंबेडकर को इन प्रयासों की निरंतरता में देखा जाना उचित है। प्रो.विवेकानंद तिवारी ने अपनी पुस्तक “वर्ण एवं जाति व्यवस्था तथा अम्बेडकर” (समग्र दृष्टि) पर प्रशंसनीय परिश्रम किया है तथा महत्वपूर्ण संदर्भ जुटाए हैं। पाठकों के लिए ये पठनीय विवेचनीय है।
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