Shri Shankaracharya
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Hindi Books, Lokbharti Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Aadi Shankaracharya : Jeevan Aur Darshan (HB)
-17%Hindi Books, Lokbharti Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांAadi Shankaracharya : Jeevan Aur Darshan (HB)
आठवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में जैन धर्म, बौद्ध धर्म तथा अन्य अनेक सम्प्रदायों और मत-मतान्तरों का बोलबाला था। जैन धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म अधिक शक्तिशाली सिद्ध हुआ। जैन धर्म को खुलकर चुनौती दी। जैन धर्म भी वैदिक धर्म का कम विरोधी नहीं था। बौद्ध और जैन धर्मों के अतिरिक्त सातवीं-आठवीं शताब्दी में अन्य धार्मिक सम्प्रदाय भी प्रचलित हो गए थे। उनमें भागवत, कपिल, लोकायतिक (चार्वाक), काणाडी, पौराणिक, ऐश्वर, कारणिक, कारंधमिन (धातुवादी), सप्ततान्त्व (मीमांसक), शाब्दिक (वैयाकरण), पांचेरात्रिक प्रमुख थे। ये सभी सम्प्रदाय वेद-विरोधक और श्रुति-निन्दक थे। ऐसी विषम और भयावह स्थिति में धार्मिक जगत में किसी ऐसे उत्कट त्यागी, निस्पृह, वीतराग, धुरंधर विद्वान, तपोनिष्ठ, उदार, सर्वगुण-संपन्न अवतारी पुरुष की महान आवश्यकता थी जो धर्म की विशृंखलित कड़ियों को एकाकार करके उसे सुदृढ़ बनाता और धर्म का वास्तविक स्वरूप सबके सम्मुख प्रस्तुत करता। मध्वाचार्य ने शंकराचार्य के अवतार का वर्णन विस्तार के साथ किया है। उसका सारांश इस प्रकार है—”भगवती भूदेवी और समस्त देवताओं ने जगत-सृष्टा ब्रह्मा के साथ कैलाश पर्वत पर जाकर पिनाकपाणी आशुतोष भगवान शंकर की आर्त्त वाणी में करबद्ध स्तुति की। तब भगवान शंकर उन लोगों के सम्मुख अत्यन्त तेजस्वी रूप में प्रकट हुए और उन्हें इस प्रकार आश्वासन दिया—‘हे देवगण, मैं समस्त घटनाओं से भली-भाँति विज्ञ हूँ। अतः मैं मनुष्य का रूप धारण कर आप लोगों की मनोकामना पूर्ण करूँगा। दुष्टाचार विनाश के लिए तथा धर्म के स्थापन के लिए, ब्रह्मसूत्र के तात्पर्य निर्णायक भाष्य की रचना कर, अज्ञानमूलक द्वैतरूपी अन्धकार को दूर करने के लिए मध्यकालीन सूर्य की भाँति चार शिष्यों के साथ चार भुजाओं से युक्त विष्णु के समान इस भूतल पर यतियों में श्रेष्ठ शंकर नाम से अवतरित होऊँगा। मेरे समान ही आप लोग भी मनुष्य-शरीर धारण कर मेरे कार्य में हाथ बँटाइए।’ इतना कहकर और देवताओं को अन्य आवश्यक निर्देश देकर भगवान शंकर अन्तर्धान हो गए!” आचार्य शंकर का भारतीय दार्शनिकों में अप्रतिम स्थान है। पाश्चात्य दार्शनिक भी उन्हें श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं और उनकी प्रतिभा के सम्मुख नतमस्तक हैं। उनके बाल्यकाल से देहलीला सँवरण तक की घटनाएँ चमत्कारिक एवं दैवी शक्ति से परिपूर्ण हैं। इसलिए उन्हें भगवान आशुतोष शंकर का अवतार माना जाता है। उन्होंने वैदिक धर्म का पुनरुद्धार किया और उसके वास्तविक स्वरूप को सही अर्थ में समझाने की चेष्टा की। इस महान प्रयास में उन्हें तत्कालीन धर्मों और सम्प्रदायों से लोहा लेना पड़ा। शैवों, शाक्तों, वैष्णवों, बौद्धों, जैनों एवं कापालिकों आदि से शास्त्रार्थ करना पड़ा। अपनी असाधारण प्रतिभा और अकाट्य तर्कों द्वारा उन्हें पराजित किया। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण में चार शंकराचार्य को अभिषिक्त कर भारतीय वैदिक संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन का उत्तरदायित्व उन्हें सौंपा। उन्होंने शैवों, शाक्तों एवं वैष्णवों को एक सूत्र में बाँधा। इससे वैदिक धर्म अत्यन्त शक्तिशाली हो गया। मात्र बत्तीस वर्ष की अल्पायु में उन्होंने अद्वितीय आश्चर्यजनक कार्य किए।
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Hindi Books, Rajkamal Prakashan, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Aadi Shankaracharya Jeevan Aur Darshan (PB)
-10%Hindi Books, Rajkamal Prakashan, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांAadi Shankaracharya Jeevan Aur Darshan (PB)
अपने अनुयायियों को मृत और आचार्य शंकर के शिष्यों और भक्तों को सुरक्षित देखकर क्रकच क्रोध से आगबबूला हो गया। उसी अवस्था में वह यतीन्द्र शंकर के समक्ष उपस्थित होकर कहने लगा, ‘‘हे नास्तिक, अब मेरी शक्ति का प्रभाव देखो। तुमने तो दुष्कर्म किये हैं, उनका फल भोगो।’’ इतना कहकर वह हाथ में मनुष्य की खोपड़ी लेकर आँख मूँदकर ध्यानमुद्रा में खड़ा हो गया। वह भैरव-तंत्र का प्रकाण्ड पंडित था। उसकी इस क्रिया के प्रभाव से रिक्त खोपड़ी मदिरा से भर गई। उसने आधी पी ली और पुनः ध्यानमुद्रा में स्थित हुआ। इतने में ही क्रकच के सम्मुख नरमुण्डों की माला पहने, हाथ में त्रिशूल लिये, विकट अट्टहास और गर्जन करते हुए, आग की लपट के समान लाल-लाल जटावाले महाकापाली भैरव प्रकट हो गये।
क्रकच ने अपने इष्टदेव को देखकर प्रसन्न भाव से प्रार्थना की, ‘‘हे भगवन्, आपके भक्तों से द्रोह रखने वाले इस शंकर को अपनी दृष्टिमात्र से भस्म कर दीजिए।’’ क्रकच की प्रार्थना सुनकर महाकापाली ने उत्तर दिया, ‘‘अरे दुष्ट, शंकर तो मेरे अवतार हैं। इनका वध करके, क्या मैं अपना ही वध करूँ? क्या तुम मेरे शरीर से द्रोह करते हो?’’ ऐसा कहकर भैरव महाकापाली ने क्रोध से क्रकच का सिर अपने त्रिशूल से काट दिया।SKU: n/a -
RAMAKRISHNA MATH, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Acharya Shankar (Hindi)
अद्वैत दर्शन के महान प्रतिपादक शंकराचार्य को शायद ही किसी परिचय की आवश्यकता है। उसके बारे में स्वामी विवेकानन्द कहते हैं, ‘शंकराचार्य का उदय हुआ और उन्होंने एक बार फिर वेदांत दर्शन को पुनर्जीवित किया। उन्होंने इसे एक तर्कवादी दर्शन बनाया। उपनिषदों में तर्क अक्सर बहुत अस्पष्ट होते हैं। उन्होंने अद्वैत की अद्भुत सुसंगत प्रणाली पर काम किया, युक्तिसंगत और पुरुषों के सामने रखा। यह इस महान शिक्षक की एक प्रामाणिक जीवनी है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Jagadguru Adya Shankaracharya (HB)
-20%Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणJagadguru Adya Shankaracharya (HB)
शंकराचार्य एक ऐसे शास्त्राचार्य का नाम है, जो संस्कृति-रक्षा को युद्ध मानकर शास्त्रार्थ करता है और जिसका अस्त्र-शस्त्र सबकुछ शास्त्र तथा जिसका युद्ध मात्र शास्त्रार्थ है एवं जिसकी शति हजारो-हजार वर्षों की ऋषि-प्रति-ऋषि एवं तपस्या-प्रति-तपस्या सिद्ध ज्ञान-संपदा है। वह न तो खलीफाओं की तरह युद्ध करता है और न नियोजित बोधिसवों की तरह, न ही जैसा देश, वैसा वेश, वैसा धर्म का सिका चलानेवाले ईसाई पादरियों की तरह। वह शास्त्र के शस्त्र से शास्त्रार्थ का युद्ध लड़ना जानता है—धर्म के क्षेत्र में ज्ञान तथा न्याय के निर्धारित विधानों के सर्वथा अनुरूप। यह युद्ध षड्दर्शनों तथा षड्चक्रों के साधकों के साथ-साथ इन ब्रह्मवादी शैव-दर्शन के तंत्रोन्मुख कश्मीरी शैवों से भी होता है और वह सोलह वर्षों में सभी विवादों का समाधान ढूँढ़कर वैदिक संस्कृति को पुन: स्थापित करता है। शंकराचार्य जैसा आचार्य होना, एक योगसिद्ध-ज्ञानसिद्ध तथा ध्यानसिद्ध आचार्य होना और ऐसे आचार्य का एक सिद्ध जगद्गुरु हो जाने का भी कोई विशेष अर्थ होता है।
वह समय आ गया है, जब पुन: एक बार भारत को जगद्गुरु शंकराचार्य का मात्र दर्शन-चिंतन-मंथन वाला युग नहीं, वरन् भारत डॉट कॉम विश्वगुरुवाले नए युग का भी गौरवशाली जगद्गुरु पद प्राप्त होना चाहिए।
भारतीय धर्म-दर्शन-संस्कृति परंपराओं के ध्वजवाहक कोटि-कोटि हृदयों के आस्थापुंज जगद्गुरु शंकराचार्य के प्रेरणाप्रद-अनुकरणीय जीवन पर केंद्रित पठनीय उपन्यास।
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Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Jagadguru Shri Shankaracharya (HB)
-10%Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणJagadguru Shri Shankaracharya (HB)
हमारे राष्ट्र निर्माताओं में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य का स्थान बहुत ऊँचा है। कई विद्वानों ने तो उन्हें आधुनिक हिंदू धर्म का जनक ही कहा है। शंकराचार्य ने समस्त हिंदू-राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने एवं उसे संगठित करने का प्रयास किया। देश के चारों कोनों पर चार धामों के प्रति श्रद्धा केंद्रित करते हुए उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष की, मातृ-भू की मूर्ति जन-जन के हृदय पर अंकित कर दी। पंचायतन का पूजन प्रारंभ कर विभिन्न संप्रदायों को एक-दूसरे के आराध्य देवों के प्रति केवल सहिष्णुता का भाव ही नहीं तो सभी देवताओं के प्रति अपने इष्टदेव के माध्यम से वही श्रद्धा एवं आदर का भाव व्यक्त करने को प्रेरित किया, इसके अनुसार प्रत्येक पाँचों देवताओं—विष्णु, शुक्र, शक्ति, गणपति और सूर्य की पूजा करता है। अपनी श्रद्धा के अनुसार अपने इष्टदेव को बीच में तथा चारों ओर अन्य चार देवताओं को रखकर पूजन करने की उसे छूट है। चार धामों के समान ही उन्होंने समाज को धर्म मार्ग पर नियंत्रित एवं अनुशासित रखने के लिए चार शंकराचार्यों की अध्यक्षता में भारत के चारों कोनों में चार मठ स्थापित किए।
—दीनदयाल उपाध्यायSKU: n/a -
Prabhat Prakashan, Suggested Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Jagadguru Shri Shankaracharya (PB)
Prabhat Prakashan, Suggested Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणJagadguru Shri Shankaracharya (PB)
हमारे राष्ट्र निर्माताओं में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य का स्थान बहुत ऊँचा है। कई विद्वानों ने तो उन्हें आधुनिक हिंदू धर्म का जनक ही कहा है। शंकराचार्य ने समस्त हिंदू-राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने एवं उसे संगठित करने का प्रयास किया। देश के चारों कोनों पर चार धामों के प्रति श्रद्धा केंद्रित करते हुए उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष की, मातृ-भू की मूर्ति जन-जन के हृदय पर अंकित कर दी। पंचायतन का पूजन प्रारंभ कर विभिन्न संप्रदायों को एक-दूसरे के आराध्य देवों के प्रति केवल सहिष्णुता का भाव ही नहीं तो सभी देवताओं के प्रति अपने इष्टदेव के माध्यम से वही श्रद्धा एवं आदर का भाव व्यक्त करने को प्रेरित किया, इसके अनुसार प्रत्येक पाँचों देवताओं—विष्णु, शुक्र, शक्ति, गणपति और सूर्य की पूजा करता है। अपनी श्रद्धा के अनुसार अपने इष्टदेव को बीच में तथा चारों ओर अन्य चार देवताओं को रखकर पूजन करने की उसे छूट है। चार धामों के समान ही उन्होंने समाज को धर्म मार्ग पर नियंत्रित एवं अनुशासित रखने के लिए चार शंकराचार्यों की अध्यक्षता में भारत के चारों कोनों में चार मठ स्थापित किए।
—दीनदयाल उपाध्यायSKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Vidrohi Sannyasi
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, धार्मिक पात्र एवं उपन्यासVidrohi Sannyasi
श्री नगर से कामरूप-कामाख्या और कलकत्ता से कोच्चि तक आदिशंकर के नाम की पारसमणि हमारा मार्ग प्रदीप्त करती गई। उस महान् यात्री के पदचिह्न खोजते हुए अनायास ही भारत भर की प्रदक्षिणा कब संपन्न हो गई पता नहीं चला।
हर सुधार कालांतर में स्वयं रूढि़ बन जाता है, हर क्रांति को पोंगापंथी बनते हुए और मुक्ति-योद्धाओं को तानाशाह बनते देखना इतिहास की आदत है। वे विद्रोही थे, उन्होंने मानव बलि समेत तत्समय के ढोंग, पाखंड, वामाचार का प्राणपण से विरोध किया। संन्यासी होते हुए उनमें यह कहने का साहस था कि मैं न मूर्ति हूँ, न पूजा हूँ, न पुजारी हूँ, न धर्म हूँ, न जाति हूँ।
आदिशंकराचार्य के पास आज के युवाओं के सभी प्रश्नों का उत्तर है, उनकी जिज्ञासाओं और कुंठाओं के भी। उनसे बड़ा प्रबंधन गुरु कौन होगा, जिसने शताब्दियों पहले केरल के गाँव से यात्रा प्रारंभ कर संपूर्ण राष्ट्र की चेतना और जीवन-पद्धति को बदल दिया।
जो संन्यासी संसार के सारे अनुशासनों से परे हुआ करते थे, उन्हें अखाड़ों और आश्रमों में संगठित कर अनुशासित और नियमबद्ध कर दिया। बौद्धों और हिंदुओं के संघर्ष को शांत कर दिया। शैवों, वैष्णवों, शाक्तों, गाणपत्यों, सभी को एक सूत्र में पिरो दिया।
उस अद्भुत तेजस्वी बालक, चमत्कारी किशोर और सम्मोहक युवा शंकर की यह कथा आपको उनके विख्यात जीवन के अज्ञात प्रसंगों का दिग्दर्शन करा पाएगी, यह इस पुस्तक का विनम्र उद्देश्य है।SKU: n/a -
Gita Press, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Vishnu Sahasranama ( Code 0819)
प्रार्थना
महाभारतमें भगवान्के अनन्य भक्त पितामह भीष्मद्वारा भगवान्के जिन परम पवित्र सहस्र नामोंका उपदेश किया गया, उसीको श्रीविष्णुसहस्रनाम कहते हैं । भगवान्के नामोंकी महिमा अनन्त है । हीरा, लाल, पन्ना सभी बहुमूल्य रत्न हैं पर यदि वे किसी निपुण जड़ियेके द्वारा सम्राट्के किरीटमें यथास्थान जड़ दिये जायँ तो उनकी शोभा बहुत बढ़ जाती है और अलग अलग एक एक दानेकी अपेक्षा उस जड़े हुए किरीटका मूल्य भी बहुत बढ़ जाता है । यद्यपि भगवान्के नामके साथ किसी उदाहरणकी समता नहीं हो सकती, तथापि समझनेके लिये इस उदाहरणके अनुसार भगवान्के एक सहस्र नामोंको शास्त्रकी रीतिसे यथास्थान आगे पीछे जो जहाँ आना चाहिये था वहीं जड़कर भीष्म सदृश निपुण जड़ियेने यह एक परम सुन्दर, परम आनन्दप्रद अमूल्य वस्तु तैयार कर दी है । एक बात समझ रखनी चाहिये कि जितने भी ऐसे प्राचीन नामसंग्रह, कवच या स्तवन हैं वे कविकी तुकबन्दी नहीं हैं । सुगमता और सुन्दरताके लिये आगे पीछे जहाँ तहाँ शब्द नहीं जोड़ दिये गये हैं । परन्तु इस जगत् और अन्तर्जगत्का रहस्य जाननेवाले, भक्ति, ज्ञान, योग और तन्त्रके साधनमें सिद्ध, अनुभवी पुरुषोंद्वारा बड़ी ही निपुणता और कुशलताके साथ ऐसे जोड़े गये हैं कि जिससे वे विशेष शक्तिशाली यन्त्र बन गये हैं और जिनके यथा रीति पठनसे इहलौकिक और पारलौकिक हु कामना सिद्धिके साथ ही यथाधिकार भगवान्की अनन्यभक्ति या सायुज्य मुक्तितककी प्राप्ति सुगमतासे हो सकती है । इसीलिये इनके पाठका इतना महात्मय है और इसीलिये सर्वशास्त्रनिष्णात परम योगी और परम ज्ञानी सिद्ध महापुरुष प्रात स्मरणीय आचार्यवर श्रीआद्यशङ्कराचार्य महाराजने लोककल्याणार्थ इस श्रीविष्णुसहस्रनामका भाष्य किया है । आचार्यका यह भाष्य ज्ञानियों और भक्तों दोनोंके लिये ही परम आदरकी वस्तु है ।
पूज्यपाद स्वामीजी श्रीभोलेबाबाजीने भाष्यका हिन्दी भाषान्तर कर पाठकोंपर बड़ा उपकार किया है । मेरी प्रार्थना है कि पाठक इसका अध्ययन और मनन करके विशेष लाभ उठावें ।
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