Spiritual Personalities
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Hindi Books, Lokbharti Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Aadi Shankaracharya : Jeevan Aur Darshan (HB)
-17%Hindi Books, Lokbharti Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांAadi Shankaracharya : Jeevan Aur Darshan (HB)
आठवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में जैन धर्म, बौद्ध धर्म तथा अन्य अनेक सम्प्रदायों और मत-मतान्तरों का बोलबाला था। जैन धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म अधिक शक्तिशाली सिद्ध हुआ। जैन धर्म को खुलकर चुनौती दी। जैन धर्म भी वैदिक धर्म का कम विरोधी नहीं था। बौद्ध और जैन धर्मों के अतिरिक्त सातवीं-आठवीं शताब्दी में अन्य धार्मिक सम्प्रदाय भी प्रचलित हो गए थे। उनमें भागवत, कपिल, लोकायतिक (चार्वाक), काणाडी, पौराणिक, ऐश्वर, कारणिक, कारंधमिन (धातुवादी), सप्ततान्त्व (मीमांसक), शाब्दिक (वैयाकरण), पांचेरात्रिक प्रमुख थे। ये सभी सम्प्रदाय वेद-विरोधक और श्रुति-निन्दक थे। ऐसी विषम और भयावह स्थिति में धार्मिक जगत में किसी ऐसे उत्कट त्यागी, निस्पृह, वीतराग, धुरंधर विद्वान, तपोनिष्ठ, उदार, सर्वगुण-संपन्न अवतारी पुरुष की महान आवश्यकता थी जो धर्म की विशृंखलित कड़ियों को एकाकार करके उसे सुदृढ़ बनाता और धर्म का वास्तविक स्वरूप सबके सम्मुख प्रस्तुत करता। मध्वाचार्य ने शंकराचार्य के अवतार का वर्णन विस्तार के साथ किया है। उसका सारांश इस प्रकार है—”भगवती भूदेवी और समस्त देवताओं ने जगत-सृष्टा ब्रह्मा के साथ कैलाश पर्वत पर जाकर पिनाकपाणी आशुतोष भगवान शंकर की आर्त्त वाणी में करबद्ध स्तुति की। तब भगवान शंकर उन लोगों के सम्मुख अत्यन्त तेजस्वी रूप में प्रकट हुए और उन्हें इस प्रकार आश्वासन दिया—‘हे देवगण, मैं समस्त घटनाओं से भली-भाँति विज्ञ हूँ। अतः मैं मनुष्य का रूप धारण कर आप लोगों की मनोकामना पूर्ण करूँगा। दुष्टाचार विनाश के लिए तथा धर्म के स्थापन के लिए, ब्रह्मसूत्र के तात्पर्य निर्णायक भाष्य की रचना कर, अज्ञानमूलक द्वैतरूपी अन्धकार को दूर करने के लिए मध्यकालीन सूर्य की भाँति चार शिष्यों के साथ चार भुजाओं से युक्त विष्णु के समान इस भूतल पर यतियों में श्रेष्ठ शंकर नाम से अवतरित होऊँगा। मेरे समान ही आप लोग भी मनुष्य-शरीर धारण कर मेरे कार्य में हाथ बँटाइए।’ इतना कहकर और देवताओं को अन्य आवश्यक निर्देश देकर भगवान शंकर अन्तर्धान हो गए!” आचार्य शंकर का भारतीय दार्शनिकों में अप्रतिम स्थान है। पाश्चात्य दार्शनिक भी उन्हें श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं और उनकी प्रतिभा के सम्मुख नतमस्तक हैं। उनके बाल्यकाल से देहलीला सँवरण तक की घटनाएँ चमत्कारिक एवं दैवी शक्ति से परिपूर्ण हैं। इसलिए उन्हें भगवान आशुतोष शंकर का अवतार माना जाता है। उन्होंने वैदिक धर्म का पुनरुद्धार किया और उसके वास्तविक स्वरूप को सही अर्थ में समझाने की चेष्टा की। इस महान प्रयास में उन्हें तत्कालीन धर्मों और सम्प्रदायों से लोहा लेना पड़ा। शैवों, शाक्तों, वैष्णवों, बौद्धों, जैनों एवं कापालिकों आदि से शास्त्रार्थ करना पड़ा। अपनी असाधारण प्रतिभा और अकाट्य तर्कों द्वारा उन्हें पराजित किया। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण में चार शंकराचार्य को अभिषिक्त कर भारतीय वैदिक संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन का उत्तरदायित्व उन्हें सौंपा। उन्होंने शैवों, शाक्तों एवं वैष्णवों को एक सूत्र में बाँधा। इससे वैदिक धर्म अत्यन्त शक्तिशाली हो गया। मात्र बत्तीस वर्ष की अल्पायु में उन्होंने अद्वितीय आश्चर्यजनक कार्य किए।
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Hindi Books, Rajkamal Prakashan, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Aadi Shankaracharya Jeevan Aur Darshan (PB)
-10%Hindi Books, Rajkamal Prakashan, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांAadi Shankaracharya Jeevan Aur Darshan (PB)
अपने अनुयायियों को मृत और आचार्य शंकर के शिष्यों और भक्तों को सुरक्षित देखकर क्रकच क्रोध से आगबबूला हो गया। उसी अवस्था में वह यतीन्द्र शंकर के समक्ष उपस्थित होकर कहने लगा, ‘‘हे नास्तिक, अब मेरी शक्ति का प्रभाव देखो। तुमने तो दुष्कर्म किये हैं, उनका फल भोगो।’’ इतना कहकर वह हाथ में मनुष्य की खोपड़ी लेकर आँख मूँदकर ध्यानमुद्रा में खड़ा हो गया। वह भैरव-तंत्र का प्रकाण्ड पंडित था। उसकी इस क्रिया के प्रभाव से रिक्त खोपड़ी मदिरा से भर गई। उसने आधी पी ली और पुनः ध्यानमुद्रा में स्थित हुआ। इतने में ही क्रकच के सम्मुख नरमुण्डों की माला पहने, हाथ में त्रिशूल लिये, विकट अट्टहास और गर्जन करते हुए, आग की लपट के समान लाल-लाल जटावाले महाकापाली भैरव प्रकट हो गये।
क्रकच ने अपने इष्टदेव को देखकर प्रसन्न भाव से प्रार्थना की, ‘‘हे भगवन्, आपके भक्तों से द्रोह रखने वाले इस शंकर को अपनी दृष्टिमात्र से भस्म कर दीजिए।’’ क्रकच की प्रार्थना सुनकर महाकापाली ने उत्तर दिया, ‘‘अरे दुष्ट, शंकर तो मेरे अवतार हैं। इनका वध करके, क्या मैं अपना ही वध करूँ? क्या तुम मेरे शरीर से द्रोह करते हो?’’ ऐसा कहकर भैरव महाकापाली ने क्रोध से क्रकच का सिर अपने त्रिशूल से काट दिया।SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Adhunik Bharat Ke Yug Pravartak Sant (PB)
Vishwavidyalaya Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांAdhunik Bharat Ke Yug Pravartak Sant (PB)
योग, साधना, तप, संयम इन भावों को जिन महान संतों ने अपने माध्यम से चरितार्थ ही नहीं किया; बल्कि दर्शन को एक नयी दिशा भी दी उन संन्यासियों में अग्रणी रामकृष्ण परमहंस देव थे। उनके पश्चात् यह शृंखला स्वामी विवेकानन्द, स्वामी रामतीर्थ, महॢष रमण, श्री अरविन्द, स्वामी रामानन्द के माध्यम से निरन्तर भारतीय संस्कृति को सम्मानित करती रही है, साथ ही भारतीय दर्शन को दिव्य अनुभूतिपरक दर्शन का बाना पहनाकर संसार में अग्रणी स्थान प्रदान करती रही है। आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो पुन: हमारा देश विपत्ति के भँवर में फँसा इन्हीं योगियों की ओर देख रहा है। इन्हीं योगियों की जीवन दृष्टि, इनके विचार ही मृतप्राय हो रही भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवन प्रदान कर सकते हैं। हम भूल चुके हैं हमारे देश की मिट्टïी में, जलवायु में अभी भी योग और साधना की शक्ति है। जिसके प्रति जागरूक होकर व्यक्ति अपनी चेतना को जागृत कर सकता है। भ्रमपूर्ण आसक्तियों पर, मन पर, शरीर पर अंकुश लगाकर जीवन के शाश्वत आनन्द की ओर अग्रसर हो सकता है। यह पुस्तक उन सभी दुर्लभ विचारों को प्रस्तुत करने की चेष्टा करती है जो व्यक्ति को दिशा प्रदान कर सकते हैं। इन योगियों की विशिष्टता यही है कि योग साधना एवं संन्यास का रास्ता अपनाकर भी इन्होंने निरन्तर मानव जाति के बीच रहकर बड़ी सरलता से, व्यक्ति की आत्म चेतना को जगाने का प्रयास किया है।
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Vishwavidyalaya Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Baba Neeb Karauri Ke Alaukika Prasang [PB]
बाबा नीब करौरी अपने समय के महानतम संत थे। उनके जन्म काल के बारे में कोई प्रामाणिक विवरण उपलब्ध नहींं है लेकिन कुछ भक्त उनके जीवन का विस्तार 18वीं शताब्दी से २०वीं शताब्दी तक मानते हैं। बहरहाल उन्होंने ११ सितम्बर १९७३ को लौकिक शरीर त्याग दिया। वे सर्वज्ञ थे, सर्वशक्तिमान थे और सर्वव्यापक थे। वे कहते थे, ”मैं हवा हूँ, मुझे कोई रोक नहीं सकता। मैं धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए पृथ्वी पर आया हूँ”
बाबा ने कथा, प्रवचन, आडम्बर, प्रचार-प्रसार से दूर रह कर दीन-दु:खियों की सेवा में अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया। भक्तों का आर्तनाद सुनकर तुरन्त पहुँच जाते और उसे संकट से उबार देते। वे भक्त-वत्सल थे, गरीब नवाज थे और संकटमोचक थे।
बाबा नीब करौरी का सम्पूर्ण जीवन अलौकिक क्रिया-कलापों से भरा हुआ है। कोई शक्ति उन्हें एक जगह बाँध कर नहीं रख सकती थी। वे एक साथ भारत में भी होते और लंदन में भी। लखनऊ में भी और कानपुर में भी। पवन वेग से क्षण भर में ही कहीं भी अवतरित हो जाते। उन्हें कमरे में कैद करके रखना असम्भव था। सूक्ष्म रूप में बाहर निकल जाते और वांछित कार्य सम्पन्न कर लौट आते। महाराजजी का हर क्षण अलौकिक होता—वे स्वयं अलौकिक जो थे।
महाराजजी के भक्तों ने उनकी अलौकिक घटनाओं, लीलाओं और प्रसंगों को विभिन्न पुस्तकों में संकलित किया है। ये पुस्तकें अंग्रेजी में भी हैं और हिन्दी में भी। इस पुस्तक में महाराजजी के सभी अलौकिक किक्रया-कलापों को एक जगह संकलित करने का प्रयास किया गया है।
अनुक्रम : श्री चरणों में, सन्दर्भ, मेरे नीब करौरी बाबा, वाणीसिद्ध महात्मा १. बाबा नीब करौरी का जीवन और महाप्रयाण २. अलौकिक लीलाओं की लम्बी शृंखला ३. बाबा के महाप्रयाण के बाद की कुछ लीलाएँ ४. नीब करौरी बाबा के वैचारिक प्रसंग।SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Brahmarshi Devraha-Darshan
जब आनन्द में अवसाद, शान्ति में अशान्ति, योग में भोग की प्रवृत्ति बढ़ती है तो युगद्रष्टा गुरु की खोज में सभी विकल रहते हैं। ब्रह्मर्षि देवराहा बाबा इस कलियुग में अप्रतिम गुरु थे जो भगवत्स्वरूप थे जिनके दर्शन, स्पर्श और शुभाशीष से तत्व ज्ञान की प्राप्ति सम्भव थी। उनके अन्त:करण से प्रस्फुटित वाणी में मानव पर मंत्रवत् प्रभाव डालने की क्षमता थी। वे भारतीय संस्कृति के विग्रह थे जो दया, ममता, कल्याण के स्तोत्र थे। पूज्य देवराहा बाबा का सर्वात्म दर्शन मानव में सद्भाव, प्रेम और विश्वशान्ति का उत्प्रेरक तत्व है जिसकी आज सर्वाधिक आवश्यकता है। ब्रह्मर्षि देवराहा बाबा के नाम की जितनी प्रसिद्धि है, उनके परिचय की उतनी ही अल्पता है। उनके दिव्य व्यक्तित्व को सांगोपांग रूप में प्रस्तुत करने में डॉ० अर्जुन तिवारी का प्रयास प्रशंसनीय है। बाबा के शिष्य डॉ० तिवारी ने पत्रकार-सुलभ प्रवृत्ति के चलते युग-प्रवर्तक संत, भक्त और योगी की जीवन-गाथा को प्रामाणिक रूप में उपस्थापित किया है। श्रद्धार्चन, जीवन-जाह्नïवी, सर्वात्मभक्ति-योग, प्रवचन-पीयूष, सुबोध कथा, सूक्ति-मुक्ता और अनुगतों की अनुभूति नामक अध्यायों में ब्रह्मर्षि से संदर्भित अनुकरणीय तथ्य हैं। इसका प्रत्येक शब्द आध्यात्मिक अनुभूति से स्फूर्त है जिसके चिन्तन और मनन से मन को अलौकिक शान्ति मिलती है और चित्त निर्मल होता है। —रामकुमार त्रिपाठी
विषयानुक्रमणिका : प्रथम अध्याय : श्रद्धार्चन द्वितीय अध्याय : जीवन-जाह्नïवी तृतीय अध्याय : सर्वात्मभक्ति-योग चतुर्थ अध्याय : प्रवचन-पीयूष पंचम अध्याय : सुबोध कथा षष्ठï अध्याय : सूक्ति मुक्ता सप्तम अध्याय : अनुगतों की अनुभूति।SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Kashi Ke Vidyaratna Sanyasi [PB]
काशीस्थ मनीषियों ने वेदान्त के प्रसार तथा प्रचार के निमित्त जो कार्य किया, वह वेदान्त के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से अंकित करने योग्य है। तथ्य तो यह है कि वेदान्त की सार्वभौम मौलिक रचनाओं के निमित्त दार्शनिक समाज काशी के विद्वानों का चिरऋणी रहेगा। इस अभिनव प्रयास में विरक्त संन्यासियों तथा अनुरक्त गृहस्थों, दोनों का स?िमलित योगदान सदैव श्लाघनीय तथा स्मरणीय रहेगा। विद्वान् संन्यासियों के रचनाकलाप का अनुशीलन करने से एक विशिष्ट तथ्य की अभिव्यक्ति होती है और वह है ज्ञानमार्गी ग्रन्थों के प्रणयन के साथ ही भक्तिमार्गी ग्रन्थों का निर्माण। आदि शङ्कïराचार्य ने काशी को अपनी कर्मस्थली बनाकर उसे गौरव ही प्रदान नहीं किया, अपितु उस प्राचीन पर?परा का भी अनुसरण किया जो विद्वानों से अपने सिद्धान्तों के परीक्षण तथा समीक्षण के लिए काशी में आने के लिए आग्रह करती थी। काशीस्थ विद्वानों का अद्वैत के प्रति दृढ़ आग्रह और अद्वैतविषयक ग्रन्थों के प्रणयन के प्रति नैसॢगक निष्ठा बोधग?य है। यहाँ विशिष्ट वेदान्त-तत्त्वज्ञ संन्यासियोंं का ही संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है—श्री गौड़ स्वामी, श्री तैलंग स्वामी, स्वामी भास्करानन्द सरस्वती, स्वामी मधुसूदन सरस्वती, श्री देवतीर्थ स्वामी, स्वामी महादेवाश्रम, स्वामी विशुद्धानन्द सरस्वती, स्वामी ज्ञानानन्द, स्वामी करपात्रीजी, दतिया के स्वामीजी, स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती। ‘अद्वैतसिद्धि’ के प्रणेता श्री मधुसूदन सरस्वती एक साथ ही प्रौढ़ दार्शनिक तथा सहृदय भक्त दोनों थे। ‘अद्वैतसिद्धि’ जैसे प्रमेयबहुल ताॢकक ग्रन्थ के निर्माण का श्रेय जहाँ उन्हें प्राप्त है, वहीं ‘भक्तिरसायन’ जैसे भक्तिरस के प्रतिष्ठापक ग्रन्थ की रचना का गौरव भी उन्हें उपलब्ध है। चतुर्दशशती के वेदान्तज्ञ संन्यासियों में स्वामी ज्ञानानन्द का विशिष्ट स्थान था। आज भी करपात्रीजी महाराज की, जहाँ कट्टïर अद्वैत के प्रतिपादन में ताॢकक बुद्धि का विलास मिलता है, वहीं ‘रासपञ्चाध्यायी’ के विशद अनुशीलन में तथा ‘भक्तिरसार्णव’ जैसे भक्तिरस के संस्थापक ग्रन्थ के निर्माण में उनका भक्तिरसाप्लुत स्निग्ध हृदय भी अभिव्यक्त होता है। काशी के अद्वैती संन्यासियों की यह परमपरा आज भी जागरूक है।
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Vishwavidyalaya Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Neeb Karoli Ke Baba
घोर कलियुग की इस बीसवी शताब्दी मे भी भारत भूमि पर अनेक ऐसे सत –महात्माओं ने जन्म लिया जिनका मूल उद्देश्य सभवत मानव समाज का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उपकार करना ही था । ऐसे संत –महात्माओं को इसीलिए अवतारी पुरुष कह सकते हैं क्योकि इन्होने भगवान राम और कृष्ण की ही तरह पृथ्वी का भार हल्का किया और अपने भक्तो का असीम उपकार किया ।
वैसे तो बाबा का विराट् स्वरूप है इनके लीला –कौतुक भी अगणित है, इन पर साहित्य भी प्रचुर मात्रा मे उपलब्ध है तो भी हमे बाबा की जिस छवि के दर्शन हुए तथा इसके फलस्वरूप जो सुख प्राप्त हुआ उसका कुछ अंश ही सही अपने पाठको तक पहुँचाने के लिए हम् प्रयत्नशील है ।
सिद्धि माँ की असीम कृपा की अनुभूति हम इस क्षण प्रत्यक्ष रूप रवे कर रहे हैं । उन्हीं के आशीर्व्राद से यह प्रयास सभव हुआ है ।
हम उन महानुभावो के प्रति भी आभार व्यक्त करना अपना कर्त्तव्य समझते हैं जिनके संस्मरणों का उल्लेख हमने इस पुस्तिका मे किया है ।
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Vishwavidyalaya Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Parashuram (Epic)
कविवर श्यामनारायण पाण्डेय आधुनिक हिन्दी साहित्य में एक श्रेष्ठ वीर काव्य प्रणेता के रूप में विख्यात थे। ‘हल्दीघाटी’ और ‘जौहर’ जैसे वीर-रस प्रधान प्रबन्ध काव्यों की रचना करके आपने प्रभूत यश अॢजत किया। प्रस्तुत प्रबन्ध काव्य परशुराम इसी परम्परा में रचित एक उत्कृष्ट कृति है। कवि ने तेईस सर्गों के इस सांस्कृतिक महाकाव्य में भृगुवंशावतंस भगवान् परशुराम को नायक के रूप में अवतरित किया है, प्रतिनायक है हैहय वंशी प्रतापी सम्राट सहस्रार्जुन। सहस्रार्जुन को कवि ने एक धर्म-विध्वंसक, अनाचार-रत, लोक-पीड़क, मदान्ध एवं निरंकुश शासक के रूप में चित्रित किया है। हैहयवंशी सहस्रार्जुन शक्तिमद से उन्मत्त होकर आश्रम संस्कृति प्रधान आर्य धर्म को समूल विनष्ट करने पर तुला हुआ था। भृगुवंशी परशुराम ने बिखरी हुई आश्रम-शक्ति को संघटित किया और अपने नेतृत्व में अत्याचारी सहस्रार्जुन का वध करके आर्य-धर्म की ध्वजा फ हरायी।
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Vishwavidyalaya Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Tulasi Ki Kavyabhasha
भक्तिकाल के कवियों में गोस्वामी तुलसीदास का स्थान सर्वोपरि है। उनकी पंक्तियाँ शिक्षित-अशिक्षित सबकी जुबान से सुनने को मिलती हैं। उनका ‘मानसÓ परम् परावादी लोगों को जितना प्रिय है, उतना ही आधुनिक पाठकों को भी। वह जितना प्रिय धर्म के अनुयाइयों को है उससे कम प्रिय धर्म का निषेध करने वालों को नहीं। इसका एक ही मुख्य कारण है कि वह हर तरह जन-जीवन से जुड़ा है। तुलसी का काव्य प्रेम, संघर्ष, आत्मसम्मान एवं निष्कम्प आत्मविश्वास का काव्य है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में यदि कहें तो—”उनकी वाणी के प्रभाव से आज भी हिन्दू भक्त, अवसर के अनुसार सौन्दर्य पर मुग्ध होता है, सम्मार्ग पर पैर रखता है, विपत्ति में धैर्य धारण करता है, कठिन कर्म में उत्साहित होता है, दया से आद्र्र होता है, बुराई पर ग्लानि करता है, शिष्टता का अवलम्बन करता है और मानव जीवन के महत्त्व का अनुभव कराता है।
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Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Uttarakhand Ki Sant Parampara
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियांUttarakhand Ki Sant Parampara
अनुक्रमणिका : 1. साधकों का सिद्ध क्षेत्र—उत्तराखण्ड 2. साधु-सन्त और महात्मा (सन्त पुरुषों का अवतरण क्योंं होता है?) 3. सन्तोंं की पहचान 4. सन्त सुधा 5. भक्ति व भाव 6. सन्त महिमा 7. उत्तराखण्ड की सन्त विभूतियाँ 8. जगद्गुरु शंकराचार्य (684-716 ई०) 9. कूर्मांचल की विभूति—सोमबारी महाराज 10. परम पूज्य श्री सोमबारी महाराज 11. हैडिय़ाखान महाराज— साहब सदाशिव 12. कूर्मांचल से अन्तर्धान 13. श्री हैडिय़ाखान बाबा एवं सोमबारी महाराज 14. खाकी बाबा 15. योगी श्यामाचरण लाहिड़ी की आत्मकथा 16. स्वामी विवेकानन्द (1863-1902 ई०) 17.श्री श्री 1008 बनखण्डी महाराज (बुद्धिगिरि जी महाराज) 18. उत्तरकाशी में सन्त समागम 19. स्वामी कृष्णानन्द जी महाराज 20. अवधूत रामानन्द जी महाराज 21. स्वामी रामतीर्थ की टिहरी-गढ़वाल की यात्राएँ 22. श्री 1008 बाबा काली कमली वाला (स्वामी विशुद्धानन्द जी महाराज) 23. श्री रौखडिय़ा बाबा 24. श्री नारायण स्वामी 25. परमहंस स्वामी श्री शिवानन्द जी महाराज 26. श्री बाल-ब्रह्मïचारी जी महाराज 27. महाराज के अनन्य भक्त—भवानीदास साह कुमय्याँ 28. माँ आनन्दमयी 29. बाबा श्री सीतारामदास ओंकारनाथ (1892-1982 ई०) 30. हनुमान के परमभक्त नीब करौरी वाले बाबा 31. संन्यासी स्वामी प्रणवानन्द 32. स्वामी चिन्मयानन्द जी 33. महर्षि महेश योगी (1921 ई०) 34. सिद्ध योगी स्वामी राय (1925 ई०)
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