Spiritual
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Garuda Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Kalki Tu Kahan Hai: Life story of Swami Pranavanand Saraswati
-10%Garuda Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणKalki Tu Kahan Hai: Life story of Swami Pranavanand Saraswati
कल्कि तू कहाँ है: स्वामी प्रणवानंद की जीवन गाथा ‘मेजर जनरल जीडी बख्शी द्वारा लिखित पुस्तक स्वामी प्रणवानंद के जीवन के बारे में बात करती है। उन्होंने अपने जीवन के 12 साल जंगल में बिताए और कैसे उनके श्रम का भुगतान हुआ। एक पुस्तक जो जीवन के प्रति आपके विचारों को बदल देगी क्योंकि आप स्वामी प्रणवानंद के जीवन से बहुत कुछ सीखेंगे।
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Religious & Spiritual Literature, Vishwavidyalaya Prakashan, बौद्ध, जैन एवं सिख साहित्य, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Tibbat Ka Agyat Gupt Matha
Religious & Spiritual Literature, Vishwavidyalaya Prakashan, बौद्ध, जैन एवं सिख साहित्य, संतों का जीवन चरित व वाणियांTibbat Ka Agyat Gupt Matha
प्रस्तुत पुस्तक अत्यन्त रहस्यमय योगिसिद्ध विभूति श्री शंकर स्वामी जी की अनुभूति का उनके ही शब्दों में अवतरित वाङ्मय स्वरूप है। वे इस जागतिक आयाम के निवासियों को इस ग्रंथ के माध्यम से उस इन्द्रियातीत जगत् की ओर उन्मुख होने का एक संदेश दे रहे हैं। इस ग्रन्थ में जो कुछ अंकित है, वह उनके प्रत्यक्ष (मंदार महल में लेखक श्रीमत् स्वामीजी के कायाशोधन संस्कार, नागार्जुन कृत आत्मिक गवेषणागार, प्राय: दो हजार वर्ष प्राचीन सिद्धाश्रम के पारिजात महल में युत्सुंग लामाजी का काया परित्याग एवं श्रीमत् स्वामीजी की आत्मा के त़ड़ित वेग से भूलोक की परिधि दिक्मंडल को पार कर नक्षत्रलोक की ओर धावमान के वृत्तांत आदि ) पर आधारित है। इसमें किञ्चित भी कल्पना का लेश नहीं है। आशा है कि वे इसी तरह अपने अलौकिक अनुभवों को ग्रंथरूप में सँजोकर भारत तथा विश्व के जिज्ञासुओं एवं सत्यान्वेषी लोगों को अनुप्राणित करते रहेंगे।
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Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, बौद्ध, जैन एवं सिख साहित्य, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Tibbat Ka Rahasyamayi Yog wa Alaukik Gyanganj
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, बौद्ध, जैन एवं सिख साहित्य, संतों का जीवन चरित व वाणियांTibbat Ka Rahasyamayi Yog wa Alaukik Gyanganj
बौद्ध इस स्थान को ‘शम्भाला’ कहते हैं। तिब्बत के लामाओं द्वारा निदेर्शित / संचालित सामान्य मानवीय ज्ञान, अनुभव, तर्क, समझ से परे भावातीत, लोकोत्तर इस शान्तिदायक घाटी को पश्चिम में ‘शांग्री-ला’ के नाम से जाना जाता है। भारतीयों के लिए यह ज्ञानपीठ ‘ज्ञानगंज’ है-अनश्वर, शाश्वत, अमर सत्ता (लोगों) की रहस्मयात्मक, अद्भुत, आश्चर्यजनक आध्यात्मिक दुनिया।
श्रीमत् शंकर स्वामीजी द्वारा प्रस्तुत यह पुस्तक अपने आप में अतुलनीय, अनुपम, अद्वितीय है क्योंकि आज तक अनेकानेक आध्यात्मिक महात्माओं ने इस अद्भुत स्थान का भ्रमण किया है किन्तु किसी ने भी अपने भ्रमणोपरान्त अनुभव के आधार पर ऐसा विलक्षण यात्रावृत्तान्त नहीं लिखा जैसा श्रीमत् शंकर स्वामी जी ने लिखकर इस पुस्तक के रूप प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक ‘ज्ञानगंज’ व तत्सम्बन्धी योग पर जिज्ञासु पाठकों की अतृप्त जिज्ञासा को किंचित् शान्त कर सकेगी।‘अलौकिक’, इस शब्द का अर्थ तो बहुत से लोग जानते होंगे, लेकिन ऐसे लोग बिरले ही होंगे, जिन्होंने इसे अनुभव किया हो। इस जगत् में ऐसे व्यक्तियों की संख्या भी कम होगी, जो अलौकिक शब्द की गूढ़ता और उसके रहस्य को अनुभव न करना चाहते हो। उत्तराखण्ड के वारणावत शिखरधाम स्थित आश्रम के महाराज श्रीमत् शंकर स्वामी महाराज ने अपनी इस पुस्तक में कई बार इस बात का उल्लेख किया है कि उन्होंने अस्वाभाविक परिस्थितयों में अपनी चेतना को विलुप्त होता पाया। चेतना तभी लौटी, जब वे उन परिस्थितयों से बाहर आ चुके थे। अपने साथ घटित घटनाओं को जब उन्होंने शब्दों में पिरोना शुरू किया तो उनके अन्तर्मन के वे भाव भी मानों साकार होते चले गये, जिन्हें उन्होंने ज्ञानपीठ ज्ञानगंज की सम्पूर्ण यात्रा के दौरान अनुभव किया था। यही वजह है कि शान्त और गहन वातावरण में गम्भीरतापूर्वक इस पुस्तक का अध्ययन करने पर हमारे अन्तर्मन में वे शब्द उतरने लगते है और उनमें निहित अलौकिकता का आभास दे जाते है।
जो भी व्यक्ति अलौकिक जगत् के प्रभाव, उनके एहसास का अनुभव करना चाहते है, उन्हें श्रीमत् शंकर महाराज की इस पुस्तक का अध्ययन, मनन-चिन्तन अवश्य करना चाहिए। महाराज ने वही लिखा है, जो उनके साथ घटित हुआ है, जिसे उन्होंने अनुभव किया है, यही कारण है कि उनका लेखन पढ़ने के दौरान हमारी आँखों के सामने चलचित्र सा दिखलाई पड़ता है। लगता है कि हम पुस्तक नहीं पढ़ रहे हैं, पुस्तक में वर्णित घटनाओं में प्रवेश कर रहे हैं।
यह ग्रन्थ स्वनामधन्य शंकर स्वामी की तिब्बत यात्रा का एक आभास मात्र कहा जा सकता है। उनकी यह यात्रा ऐसी अलौकिक तथा रहस्यमयी रही है, जिस पर सामान्य बुद्धि हठात् विश्वास नहीं कर सकती, तथापि जो तत्त्ववेत्ता हैं तथा रहस्यमयी घटनाओं से दो-चार हो चुके है, उनकी विमल प्रज्ञा में ऐसी घटनायें प्रकृति की ही एक लीला के रूप में मान्य एवं विश्वस्त रूप से प्रकट होती रहती है। उनको इस सम्बन्ध में कोई आश्चर्य तथा संशय का तनिक भी आभास नहीं होता। युग-युगान्तर से यह सब होता चला आया है, आगे भी होता रहेगा। प्रकृति की अनन्त क्रीड़ा में प्रतिक्षण ऐसे विस्मय तथा आश्चर्य का उन्मेष होता रहता है। इनको संशयात्मक दृष्टिकोण से न देख कर अनुसंधान तथा विज्ञान के अन्वेषक के रूप में देखना उचित होगा।प्रस्तुत पुस्तक में तिब्बत के रहस्यमय मठ ज्ञानगंज का वर्णन है। इस सम्बन्ध में किंचित् प्रकाश प्रक्षेपण मैंने अपने ग्रन्थ ‘रहस्मयमय सिद्धभूमि तथा सूर्यविज्ञान’ में किया था, तथापि वह सुनी-सुनाई तथा यत्र-तत्र से संकलित बातों पर आधारित था। यह पुस्तक पूर्णत: ‘आंखिन की देखी’ पर आधारित यथार्थपरक है। इस ज्ञानगंज के सम्बन्ध में पूज्य गुरुदेव महामहोपाध्याय डा. गोपीनाथ जी कविराज से मैंने सुना था।
पूज्य स्वामी जी द्वारा वर्णित ज्ञानगंज कोई कपोल कल्पना नहीं है। वह यथार्थ तथा प्रामाणिक स्थल है, जिसका प्रत्यक्ष दर्शन करके पूज्य स्वामीजी ने इस पुस्तक के रूप में वहाँ का घटनाक्रम जनसाधारण हेतु प्रस्तुति किया है। यह श्लाघनीय प्रयत्न स्तुत्य भी है।SKU: n/a