Swami Dayananad Books
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Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Complate Ved Gujarati Set (8 Vol.)
-10%Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिComplate Ved Gujarati Set (8 Vol.)
સારના પ્રાચીનતમ જ્ઞાનનું ઉદ્ગમસ્થાનવેદો છે. વેદ એ ઈશ્વરીય જ્ઞાન-વિજ્ઞાન એ છે. એ જ્ઞાન-ગંગોત્રીનો પ્રવાહ સંસારના પટ પર અનેક વહેણોમાં પ્રવાહિત થયેલ છે, સર્વવિદ્વાનોએ બુદ્ધિની એરણ પર તર્કનાહથોડાથી ટીપીને પ્રતિપાદન કરેલ છે.
તેનું પર્વ અને પાશ્ચાત્ય વેદ એ ઈશ્વરોક્ત –પરમ સત્ય અને સર્વસત્ય વિદ્યાઓથી યુક્ત છે. સૃષ્ટિની આદિમાં ઋષિઓનાં હૃદયમાં પ્રેરણા દ્વારા જે સત્ય જ્ઞાનપ્રદાન કર્યું અને જેમણે તેનો આવિષ્કાર કર્યો, તે જ્ઞાનને વેદ કહે છે. તે વેદ સૃષ્ટિના આરંભથી લઈને ગુરુ-શિષ્ય પરંપરા દ્વારા ઉત્તરોત્તર સાંભળીને, કંઠસ્થ કરીને જાળવી રાખવામાં આવ્યા તેથી તેને “શ્રુતિ’ પણ કહે છે.
વેદ ચાર છે – તેમાં ઋગ્યેદ એ સંસારના પ્રાણી અને પદાર્થ સંબંધી, આત્મા અને પરમાત્મા સંબંધી-વિષયક જ્ઞાનકાંડ છે. યજુર્વેદ મનુષ્યોનાં કર્મસંબંધી કર્મકાંડ, સામવેદ ઉપાસના કાંડ અને અથર્વવેદવિજ્ઞાન કાંડ છે.
સામવેદ પરિચય : સામવેદની તેર વિભિન્ન શાખાઓનાં નામ ગ્રંથોમાં મળે છે. પરંતુ તેમાંથી વર્તમાનમાં
કૌથુમીય, રાણાયનીય અને જૈમિનીય એ ત્રણ શાખાઓ જ પ્રાપ્ત છે. કૌથુમીય અને રાણાયનીયમાં માત્ર પ્રપાઠકે = અધ્યાયો વગેરેની ભિન્નતા છે, પરન્તુ જૈમીની શાખામાં મંત્રોની શાખા અને પાઠમાં પણ ભિન્નતા જોવા મળે છે. સામવેદનું વર્ગીકરણ મુખ્ય આર્થિક અને ગાન એમ બે વિભાગમાં જોવા મળે છે, આર્થિકએ ઋચાઓ-મંત્રોનો સમૂહ છે, તેના પૂર્વાચિક અને ઉત્તરાચિકમુખ્ય બે ભાગ છે-વચ્ચે સંક્ષિપ્ત મહામાન્ય આર્થિક પણ છે.
પૂર્વાર્ચિકમાં રાણાયનીય શાખા અનુસાર છ પ્રપાઠક છે. તેને બે અને ત્રણ ભાગમાં પ્રપાઠકાઈ અને તેમાં દશતિ મંત્રોથી વિભક્ત કરેલ છે. કૌથુમ શાખામાં છ અધ્યાયમાં અનેકખંડો અથવાદશતિ =સક્ત અર્થાત્ મંત્રોનો સમૂહ આવેલ છે. દશતિથી દશ‘ત્ર-ઋચાઓ = મંત્રોનું ગ્રહણ થાય છે, પરન્તુ તેમાં અધિક અથવા ન્યૂન સંખ્યા પ – મળે છે.
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Arsh Sahitya Prachar Trust, Hindi Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Maharishi Dayanand Sarswati Ka Jeevan Charitra
Arsh Sahitya Prachar Trust, Hindi Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणMaharishi Dayanand Sarswati Ka Jeevan Charitra
आर्य समाज के संस्थापक,आधुनिक भारत के महान चिन्तक एवं समाज सुधारक महर्षि दयानंद सरस्वती जी का जीवन चरित्र | 19 वीं शताब्दी में ऋषि जीवन का महत्व, भारतीय इतिहास का काल-विभाजन, ऋषि दयानंद के अविर्भाव का परिस्तिथि, भौतिक तथा आरंभिक अशांति के परिणाम, शांतिदूत के आगमन के चिन्ह |
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Rigveda Complete (4 Volumes)
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिRigveda Complete (4 Volumes)
ग्रन्थ का नाम – ऋग्वेद संहिता
भाष्यकार – स्वामी दयानन्द सरस्वती जी एवम् आर्य मुनि जी
वेद परमात्मा प्रदत्त ज्ञान राशि है। समस्त आर्ष ग्रन्थ इस बात की घोषणा करते हैं कि वेद अपौरुषेय वाक् है जो सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा द्वारा ऋषियों के हृदय में प्रकाशित होता हैं। महाभारत इतिहास ग्रन्थ में वेदव्यास जी लिखते हैं –
“अनादिनिधना नित्या वागुत्सृष्टा स्वयम्भुवा।
आदौ वेदमयी दिव्या यतः सर्वाः प्रवृत्तयः।।’’ – शान्तिपर्व अ. 224/55
अर्थात् परमात्मा प्रदत्त यह वेदवाणी नित्य हैं, इसी वेदमयी दिव्यवाक् के कारण सारा जगत् अपने कार्यों में प्रवृत्त है। यह प्राचीनकाल से विश्व के मार्गदर्शक रहे हैं, इसलिए महर्षि मनु ने – “वेदश्चक्षुः सनातनम्” कहा है।
वेदों में ऋग्वेद का विषय वस्तु ज्ञान है। महर्षि दयानन्द जी का उपदेश है कि ऋग्वेद में प्रकृति से ब्रह्माण्ड पर्यन्त तत्वों का मूल ज्ञान निहित है तथा महर्षि अपनी बनाई भाष्यभूमिका में यह भी लिखते हैं कि वेदों का मुख्य तात्पर्य परमेश्वर को ही प्राप्त कराना है।
ऋग्वेद में कुल 10 मंडल, 85 अनुवाक्, 1028 सूक्तों के सहित 10521 मंत्र हैं। मंत्रों को ऋचाएँ भी कहा जाता है।
ऋग्वेद पर स्कन्द, नारायण, सायण, हरदत्त आदि विद्वानों नें भाष्य किया है। लेकिन अधिकांश भाष्य कर्मकांड परक और ऐतिहासिक परक हैं, जिससे वेदों का गूढार्थ प्रकट नहीं होता है। विडंबना है कि आचार्य सायण अपनी ऋग्भाष्य भूमिका में वेदों में इतिहास होने का प्रबल खंडन करके नैरुक्त पक्ष की स्थापना करते हैं लेकिन अपने वेदभाष्य में वे नैरुक्त पक्ष को दर्शानें मे असफल रहे और अधिकतर ऐतिहासिक अर्थ ही करते रहे। किन्तु महर्षि दयानन्द जी ने वैदिक शब्दों को यौगिक मानकर नैरुक्त पक्ष से अर्थ किए हैं, जिससे वेदों का नित्यत्व स्थापित होता है। स्वामी जी ने ऋग्वेद के मंडल 7 और सूक्त 61 तक भाष्य किया था। ये भाष्य वेदांगों, ब्राह्मणग्रंथों के प्रमाणों से युक्त होने से प्राचीन आर्षशैली पर आधारित हैं। सायणादि द्वारा वेद भाष्य करने में निरूक्तादि की उपेक्षा करके अर्थ करने के कारण उनके किए भाष्य में अंधविश्वास, पशुवध, मांसाहारादि दोष परिलक्षित होते हैं वहीं ऋषि दयानन्द द्वारा वेद भाष्य में निरूक्त, छंद, आदि का ध्यान रखा गया है जिसके कारण उनका भाष्य इन सब दोषों से मुक्त और सृष्टि के उच्चतम आध्यात्मिक विज्ञान से युक्त है। जहां अन्य वेदभाष्य विग्रहवादी बहुदेवों की उपासना की शिक्षा से युक्त हैं वही स्वामी जी का भाष्य एक निराकार सत्ता की उपासना की स्थापना करता है। इस प्रकार अनेको विशेषताओं से युक्त होने के कारण ऋषि दयानन्द कृत वेदभाष्य में अनेक गुणों का परिलक्षण होता है।
प्रस्तुत् वेदभाष्य 7 मंडल और 61 सूक्त तक महर्षि दयानन्दकृत है, जिसकी विशेषताएँ वर्णित की जा चुकी हैं तथा शेष भाग 10 मंडल तक सम्पूर्ण आर्यमुनि जी कृत हैं। आर्यमुनि जी ने वेदार्थ में स्वामी दयानन्द जी की वेदभाष्य शैली का ही अनुसरण किया है। अतः यह वेदभाष्य दर्शन, धर्म, नीति, लौकिक ज्ञान-विज्ञान आदि मानवहितों से युक्त है और दोष-रूपी अंधविश्वास, बहुदेववाद, हिंसादि की कल्पनाओं से परे है। ये भाष्य चार खंडों में प्रकाशित हैं, जिसकी छपाई आकर्षक और सुन्दर है। इसमें अन्त में परिशिष्ट रूप में सम्पूर्ण वेद मंत्रों की अनुक्रमणिका भी दी गई हैं जिससे कोई भी मंत्र आसानी से खोजा जा सकता है।
वेदों के अध्ययन द्वारा ज्ञान-विज्ञान और अध्यात्म की लहरों में स्वयं को डुबोने के लिए, इस वेदभाष्य को अवश्य प्राप्त करके चिंतन एवम् मनन सहित स्वाध्याय करें और अपने जीवन को दिव्य बनावें।
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Rigvedadibhashyabhumika
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिRigvedadibhashyabhumika
चारों वेदों के भाष्य की भूमिका, स्वामी दयानन्द सरस्वती चारों वेदों का जो भाष्य रचना चाहते थे, उस भाष्य के आधारभूत 35 विषयों का इस भूमिका में निरूपण किया है। इसलिए ऋग्वेदादीभाष्यभूमिका को अच्छी प्रकार से पढ़े बिना स्वामी दयानन्द सरस्वती का वेद-भाष्य यथावत् समझ में नहीं आ सकता। -पं. युधिष्ठर मीमांसक
वेद की उत्पत्ति, रचना, प्रामाण्य-अप्रामाण्य, वेदोक्त धर्म आदि अनेक विषयों पर इस ग्रन्थ में स्पष्ट विचार किया गया है। पूर्व के वेदभाष्यकारों के अनेक अनार्ष मतों का विवेचन करके सप्रमाण वैदिक आर्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। वेद के सिद्धान्तों को समझने के लिए यह ग्रन्थ अपूर्व है।
-श्री देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्यायमहर्षि ने इस भूमिका में पहले इस प्रष्न का उत्तर दिया है कि वेद क्या हैं और वेदोत्पत्ति का अत्यन्त सूक्ष्म विषय, सारगर्भित रीति से, निरूपण करने के पष्चात् वेदमन्त्रों के प्रमाणों से वेदों के विषयों को दर्षाते हुए, वेदों के सच्चे महत्व का बोधन कराया है। वेदों को वे सूर्यवत् स्वतःप्रमाण और शेष समस्त ग्रन्थों को परतःप्रमाण ठहराते हैं। -पं. लेखराम
महर्षि दयानन्द ने अपनी योगदृष्टि द्वारा वैदिक तत्त्वों को साक्षात् कर वेदभाष्यों के रचने का संकल्प किया। जिन नियमों और सिद्धान्तों के आधार पर महर्षि वेदभाष्य करना चाहते थे, उनका विस्तृत वर्णन ऋग्वेदादीभाष्यभूमिका ग्रन्थ में किया गया है। -प्रो. विष्वनाथ विद्यालंकार
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य
Satyarth Prakash (By Pt. Bhagvatdutt)
-5%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्यSatyarth Prakash (By Pt. Bhagvatdutt)
सन् 1925 में श्री गोविन्दराम जी ने अनेक विषेषताओं से युक्त सत्यार्थ प्रकाष का प्रथम संस्करण ऋषि जन्म शताब्दी के अवसर पर कलकत्ता से प्रकाषित किया था।
उसके पष्चात सन् 1962 में पं. भगवद्दत्त जी रिसर्च स्कॉलर ने उपयोगी शब्द सूचियों, प्रमाण सूचियों परिषिष्ठों आदि अनेक विषेषताओं के साथ सत्यार्थ प्रकाष का सम्पादन किया।
पं. भगवद्दत्त जी द्वारा सम्पादित इस सत्यार्थ प्रकाष में पाठकों की सुविधा, जिज्ञासा की शांति एवम् शोध में लगे व्यक्तियों के लिए अनेक विषिष्टताएं उपलब्ध हैं।
इस संस्करण में ऋषि की मूल प्रति से भी मिलान का यथासम्भव प्रयास किया है, तथा अनेक अषुद्धियों को भी सुधारा गया है। सभी पैराग्राफों पर क्रमांक देना इसकी एक अनूठी विषेषता है।
इन सब विषेषताओं के लिए पं. भगवद्दत्त जी, पं. जयदेव विद्यालंकार, पं. रामचन्द्र देहलवी, पं. वीरसेन वेदश्रमी, स्वामी जगदीष्वरानन्द तथा पं. युधिष्ठिर मीमांसक जी के प्रति हम आभार प्रकट करते हैं।
पं. गुरुदत्त विद्यार्थी जी ने कहा था कि ‘‘मैंने सत्यार्थ प्रकाष को 18 बार पढ़ा है, जितनी बार भी मैंने इसे पढ़ा, मुझे प्रत्येक बार नया-नया ज्ञान प्रकाष मिला है
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Shrimad Bhagawad Geeta Siddhant
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताShrimad Bhagawad Geeta Siddhant
भारतवर्ष में शताब्दियों से श्रीमद्भगवद्गीता का ऐसी महान् महिमा, श्रद्धा तथा सम्मान से पठन-पाठन क्यों है? बड़े-बड़े पाश्चात्य विद्वान् भी मुक्तकण्ड से क्यों प्रशंसा करते हैं?
इसका एकमात्र उत्तर यही है कि यह ग्रन्थ आर्यधर्म के मार्मिक तत्त्वों का भण्डार है। यह ग्रन्थ दार्शनिक विचारों का गूढ़-से-गूढ़ रहस्यों तथा विषयों का पुंज है। यह सर्वभौम नैतिक सिद्धान्तों का कोष है। साम्प्रदायिक भेदभावों से रहित एक निष्पक्ष ज्ञान विषयक गुटिका है।
स्वामी दर्शनानन्दजी ने गीता संबंधी समाधान प्रत्येक अध्याय के अन्त में ‘गीता प्रवचन’ नाम से वेद सम्मत विवेचन प्रस्तुत किए हैं। विचारशील सज्जन इनका लाभ उठाएँ। -स्वामी दर्शनानन्दSKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Swami Dayanand Sarswati Ka Vedic Darshan
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिSwami Dayanand Sarswati Ka Vedic Darshan
पुस्तक का नाम – स्वामी दयानन्द का वैदिक दर्शन
अनुवादक का नाम – ड़ॉ. स्वरुपचन्द्र दीपक
महर्षि दयानन्द जी एक युगपुरुष थे। सत्य, विद्या, योग, तप, ईश्वरभक्ति, देशभक्ति, प्रेम, सेवा, धर्म और दर्शन की दृष्टि से वे किसी से कम न थे। उनके दर्शन पर स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती जी नें एक अंग्रेजी पुस्तक “ए क्रिटिकल स्टडी ऑफ द फिलॉसफी ऑफ दयानन्द” लिखी थी। वह पुस्तक ज्ञान की दर्जनों विधाओं को आत्मसात् करती एक मूल्यवान् पुस्तक है। उसमें वेद, विज्ञान, उपनिषद् एवं दर्शनशास्त्र के गम्भीरतम तत्त्व अनुस्यूत हैं। इस पुस्तक का अथक परिश्रम से हिन्दी अनुवाद डॉ. रुपचन्द्र दीपक जी ने किया ताकि इस पुस्तक का लाभ जनसामान्य भी उठा सके।
प्रस्तुत पुस्तक स्वामी सत्यप्रकाश जी की पुस्तक का हिन्दी रुपान्तरण है। इस पुस्तक में जो-जो विषय सम्मलित किये गये हैं उनका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है –
इस पुस्तक में अध्यायों का 15 भागों में विभाजन किया गया है।
प्रथम अध्याय आप्त जीवन की पृष्ठभूमि के नाम से है। इसमें स्वामी दयानन्द जी के जीवन चरित्र का वर्णन किया गया है।
द्वितीय अध्याय वैदिक दर्शन के नाम से है। इसमें वेदमन्त्रों का अन्तःभाव प्रकट किया गया है। स्वामी दयानन्द प्रतिपादित एकेश्वरवाद की व्याख्या की गई है। एकतत्त्ववाद और त्रेतवाद में अन्तर स्पष्ट किया है। सृष्टि उत्पत्ति और मोक्ष के स्वरुप को इस अध्याय में समझाया गया है।
तृतीय अध्याय भारतीय षड्दर्शनों में समन्वय के नाम से है। इसमें स्वामी दयानन्द जी का दर्शनों पर दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है।
चतुर्थ अध्याय दयानन्द की ज्ञानमीमांसा नाम से है। इसमें बौद्ध, जैन, रामानुज, शङ्कर आदि के दर्शनों की समीक्षा की गई है तथा उनकी स्वामी दयानन्द जी के दर्शन से तुलना की गई है।
पञ्चम अध्याय ईश्वर मीमांसा पर है। इसमें नास्तिकों की युक्तियों का खण्डन किया गया है।
षष्ठं अध्याय जीवात्मा के विषय पर है। इसमें जीवों के अनेकत्व का प्रतिपादन किया है तथा जीवधारियों की कृत्रिम उत्पत्ति के प्रयासों का खड़न किया गया है।
सप्तं अध्याय कार्य कारण सिद्धान्त पर आधारित है। कार्य-कारण सिद्धान्त की इसमें दार्शनिक मीमांसा की गई है।
अष्टम अध्याय में निमित्त और उपादान कारणों की समीक्षा की गई है तथा इस सम्बन्ध में स्वामी दयानन्द जी का मन्त्वय दर्शाया गया है।
नवम अध्याय मूल प्रकृति पर है। इस अध्याय में दर्शनों में प्रकृति और शंकराचार्य के मत में प्रकृति और स्वामी दयानन्द के मत में प्रकृति के उपादान, मूलकारणों पर समीक्षा की गई है।
दशम अध्याय में मन, चित्त, चेतना, योग आदि सूक्ष्म विषयों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है।
एकादश अध्याय में पुनर्जन्म मीमांसा की गई है। जिसके अन्तर्गत जैन-बौद्ध के पुनर्जन्म विषयक मान्यताओं की समीक्षा की गई है। स्वामी दयानन्द जी के पारलौकिक सिद्धान्तों का वर्णन किया गया है।
द्वादश अध्याय में मोक्ष के स्वरुप और मोक्ष के पश्चात् पुनरावर्ती पर विचार प्रकट किया गया है।
त्रयोदश और चतुर्दश अध्याय में जीवन के प्रतिदृष्टिकोँण और आचार शास्त्र के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है।
पञ्चदश अध्याय में स्वामी दयानन्द जी के मन्तव्य-अमन्तव्य को प्रस्तित किया गया है।
इस कृति के द्वारा वैदिक दार्शनिक सिद्धान्तों का पाठकों को पूर्ण रस प्राप्त करना चाहिए।
स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती द्वारा अंग्रेजी में लिखित पुस्तक । A Critical Study of the Philosophy of Dayanand ज्ञान की दर्जन विधाओं को आत्मसात करती एक मूल्यवान पुस्तक है। इसमें वेद, विज्ञान, उपनिषद् एवं दर्शन शास्त्र गम्भीरतम तत्त्व अनुस्यूत हैं। विद्वानों को इसके अनुवाद की दशको से अपेक्षा थी।
महर्षि दयानन्द के दर्शन पर स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती द्वारा लिखित उक्त पुस्तक अंग्रेजी में लिखी गई प्रथम मौलिक पुस्तक थी।
किसी लेखक को पढ़ने का पूर्ण रस तो उसकी मूल कृति में ही मिलता है।
उसकी सामग्री पाठकों को उनकी भाषा में मिल सके, अनुवादक का यही प्रयास रहा है।SKU: n/a -
English Books, Govindram Hasanand Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
The Light of Truth
English Books, Govindram Hasanand Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणThe Light of Truth
This English translation of Satyarth Prakash, which includes Sanskrit text, its transliteration and English translation, is a unique work of Swami Dayanand Saraswati. In a very short period of time its first edition was sold out last year. Vedic scholar Pt. Satyaprakash Beegoo of Mauritius put his great efforts and edited it again. Present edition is corrected accordingly.
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Yajurveda
यजुर्वेद का मुख्य विषय मानवोचित कर्म को बताना है तथापि यह नहीं कहा जा सकता कि इस वेद में कर्म के अत्यरिक्त कोई अन्य विषय व्याख्यात नहीं हुआ है। यजुर्वेद में इनसे पृथक् ईश्वर, जीव, प्रकृति, सृष्टि-रचना, जीवन-मृत्यु आदि दार्शनिक विषयों पर गहन चिंतन प्राप्त होता है। दार्शनिक तत्व के साथ-साथ समाज शास्त्र जिसमें मनुष्यों के सर्वहितकारी नियम, वर्ण और आश्रम व्यवस्था, नारी सम्मान आदि का मूल, बीज रुप में उल्लेखित है। राष्ट्र भावना का और राष्ट्र में मनुष्यों के योगदान पर यजुर्वेद प्रकाश डालता है और राष्ट्र को सबल बनाने का उपाय बताता है। यजुर्वेद पर्यावरण के महत्व और उसकी सुरक्षा पर भी उपदेश करता है। यजुर्वेद का मन्त्र “द्यौः शान्तिः.-यजु.36-17” अनेक स्थानों पर दृष्टिगोचर होता है जिसमें समस्त ब्रह्माण्ड सभी के लिए शान्तिदायक हो ऐसी प्रार्थना की गयी है। यहां शान्तिदायक ब्रह्माण्ड तभी होगा जब इनका संतुलन बना रहे और ये प्रदूषणादि दोषों से पृथक रहें। इस प्रकार यजुर्वेद पर्यावरण के महत्व पर उपदेश करता है। इस वेद में अनेक विषयों का उपदेश है, जैसे औषधिशास्त्र का “सुमित्रिया न आप ओषधयः सन्तु”- ऋ.6.22 आदि। गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त पर, जैसे – आकृष्णेन रजसा वर्तमानो..-ऋ.33.43 आदि।
कृषि विद्या पर भी कृषन्तु भूमिं शुनं – यजु.12.69 आदि अनेक मन्त्र हैं। पशुपालन और गौरक्षा का “यजमानस्य पशुन् पाहि”-यजु.1.1 आदि मन्त्रों द्वारा उपदेश हैं। गणित विद्या पर “एका च मे तिस्त्रश्च मे तिस्त्रश्च.”- यजु.18.24 आदि मन्त्रों द्वारा उपदेश है। यजुर्वेद के 18वें अध्याय में अनेक खनिजों के नामों को बताया गया है।
प्रस्तुत भाष्य महर्षि दयानन्द सरस्वती रचित है। इस भाष्य में ऊपर वर्णित सभी विषयों के अतिरिक्त अन्य विषयों का भी समावेश है। यह भाष्य नैरुक्त प्रक्रिया से सम्पन्न विज्ञान और दर्शनों की कसौटियों पर खरा उतरता है। जहां अन्य भाष्य केवलमात्र कर्मकांड युक्त है, वहीं ये भाष्य लौकिक, अलौकिक आदि ज्ञान-विज्ञान से युक्त है। इस भाष्य में व्यवहारिक ज्ञान की प्रचुरता है। भाष्यकार ने भाष्य में अर्थ प्रमाण की दृष्टि से निरूक्त, अष्टाध्यायी, तैत्तरीय संहिता, शतपथ ब्राह्मण का प्रमाण दिया है, जिससे भाष्य की शैली की प्रमाणिकता सिद्ध होती है। सभी मन्त्रों का उत्तम और जीवन में उपयोगी विषयों के अनुरूप यह भाष्य है। इस भाष्य के अध्ययन करने पर आप स्वयं कह उठेंगे कि “सर्वज्ञानमयो हि सः।
भाष्यकार : महर्षि दयानन्द सरस्वती
सम्पूर्ण यजुर्वेद भाष्य प्रथम बार कंप्यूटर द्वारा मुद्रित, शुद्धतम् सामग्री, नयनाभिराम डिजिटल छपाई, आकर्षक आवरण, उत्तम कागज, सुंदर टाइप, शब्दार्थ व मन्त्रानुक्रमणिका सहित एक खण्ड में प्रस्तुत |
यजुर्वेद का विषय केवल कर्मकाण्ड ही नहीं है, बल्कि इसमें वर्णित है अध्यात्म एवं दर्शन ,सृष्टि-रचना तथा मोक्ष, नैतिक तथा आचारमूलक शिक्षाएं , मनोविज्ञान बुद्धिवाद, समाज दर्शन , राष्ट्र भावना, पर्यावरण का संरक्षण। काव्य तत्व के अतिरिक्त यजुर्वेद में विद्यमान है, विश्व मानव की एकता जैसे उपयोगी विषय ।
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Govindram Hasanand Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य
Yug-Pravartak Swami Dayananad
लालाजी ने स्वयं स्वीकार किया था की-‘आर्यसमाज मेरी माता है‘ जिसने उन्हें देशभक्ति का पाठ पढ़ाया और ‘महर्षि दयानंद मेरे धर्म पिता हैं‘, जिनके विचारों से प्रेरणा लेकर उन्होंने स्वदेश को पराधीनता की बेड़ियों से छुटकारा दिलाने का प्रयास किया।
उसी नवजागरण के सूत्रधार ऋषि दयानंद के जीवन चरित को लालाजी ने लिखा है। स्वामी दयानंद के आविर्भाव की परिस्थितियों की विवेचना तथा महर्षि के जीवन की प्रमुख घटनाओं एवं उनके विचारों की विस्तृत जानकारी देने वाला यह ग्रंथ, स्वामी दयानंद के जीवन चरितों की श्रृंखला में अपना एक पृथक् महत्व रखता है।
लाला लाजपतराय कि यह अनुपम कृति पाठकों को उस महापुरुष के जीवन एवं कार्य से परिचित कराएगी जिसने न केवल देश के इतिहास को ही प्रभावित किया, अपितु जिसके द्वारा मानव के सर्वांगीण कल्याण की समग्र कल्पना भी की गई थी।SKU: n/a