SWAMI KARAPATRI JI MAHARAJ
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Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Bhramar Geet : Darshnik Vivechan (HB)
-10%Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनBhramar Geet : Darshnik Vivechan (HB)
‘श्रीमद्भागवत’ के दशम-स्कन्ध के अन्तर्गत चार गीत उपलब्ध होते हैं; ‘वेणु-गीत’, ‘गोपी-गीत’, ‘युगल-गीत’ और ‘भ्रमर-गीत’। ये गीत अत्यन्त भावपूर्ण हैं। इनके श्रवण, अध्ययन एवं मनन से अन्त:करण की शुद्धि होती है, साथ ही भगवत्-चरणारविन्दों में दृढ़ प्रीति का उदय होता है। दशम-स्कन्ध का 47वाँ अध्याय ‘भ्रमर-गीत’ आख्यात है; इस गीत में गोप-बालिकाओं ने भगवान् श्रीकृष्ण को उलाहना देने के ब्याज से उनका संकीर्तन किया है।
श्रीमद्भागवत में आनन्द-कन्द, परमानन्द, परमात्मा श्रीकृष्णचन्द्र के नाना प्रकार की लीलाओं का वर्णन है। यह लीलाएँ भी दो प्रकार की हैं—सम्प्रयोगात्मक एवं विप्रयोगात्मक। गोवर्धन-लीला, नाग नाथने की लीला, चीर-हरण लीला, दधि-दान लीला आदि सम्प्रयोगात्मक लीलाएँ हैं। इनमें श्रीभगवान् और उनके भक्तों के सम्मिलन की लीलाएँ हैं; विप्रयोगात्मक लीलाओं के अन्तर्गत भक्तों का भगवान् के साथ वियोग हो जाता है; भगवान् से वियुक्त होकर भक्त जिस अतुलनीय संताप का अनुभव करता है, वही विशेष महत्त्वपूर्ण है। जैसे आतप से संतप्त प्राणी ही छाया के सुख का यथार्थ अनुभव कर पाता है वैसे ही विप्रलम्भ से रस की निष्पत्ति होने पर ही संप्रयोग-सुख का गूढ़ स्वाद मिलता है। श्रृंगार-रस रूप अमृत के दो चषक हैं—एक सम्प्रयोगात्मक रस से और दूसरा विप्रयोगात्मक रस से परिपूर्ण है तथापि दोनों परस्पर पूरक हैं।
सम्प्रयोगात्मक सुख की पूर्ण उपलब्धि के लिए पूर्व-राग अनिवार्य है। प्रियतम-मिलन की सम्भावना ही पूर्व-राग है। सम्भावना के आधार पर ही उत्कट उत्कंठा वृद्धिगत होती है; उत्कट उत्कंठा से ही तीव्र प्रयास सम्भव होता है। ‘वेणुगीत’ में पूर्वराग का ही वर्णन है। भौतिक लाभ की तृष्णा से विनिर्मुक्त हो भगवत्-पदाम्बुज-सम्मिलन की आशा-लता को पल्लवित-प्रफुल्लित करना ही पूर्व-राग है।
भगवान के सौन्दर्य, माधुर्य, सौरस्य, सौगन्ध्य आदि के गुण-गणों का रसास्वादन ही भगवत्-सम्प्रयोग है। सम्भोग-सुख-प्राप्ति के अनन्तर वियोग हो जाने पर जो अतुलनीय ताप होता हैै वह पूर्व-राग के ताप की अपेक्षा कई गुणा अधिक होता है। ‘भ्रमर-गीत’ में विप्रलम्भ-शृंगार का ही वर्णन है।SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Bhramar Geet : Darshnik Vivechan (PB)
Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनBhramar Geet : Darshnik Vivechan (PB)
‘श्रीमद्भागवत’ के दशम-स्कन्ध के अन्तर्गत चार गीत उपलब्ध होते हैं; ‘वेणु-गीत’, ‘गोपी-गीत’, ‘युगल-गीत’ और ‘भ्रमर-गीत’। ये गीत अत्यन्त भावपूर्ण हैं। इनके श्रवण, अध्ययन एवं मनन से अन्त:करण की शुद्धि होती है, साथ ही भगवत्-चरणारविन्दों में दृढ़ प्रीति का उदय होता है। दशम-स्कन्ध का 47वाँ अध्याय ‘भ्रमर-गीत’ आख्यात है; इस गीत में गोप-बालिकाओं ने भगवान् श्रीकृष्ण को उलाहना देने के ब्याज से उनका संकीर्तन किया है।
श्रीमद्भागवत में आनन्द-कन्द, परमानन्द, परमात्मा श्रीकृष्णचन्द्र के नाना प्रकार की लीलाओं का वर्णन है। यह लीलाएँ भी दो प्रकार की हैं—सम्प्रयोगात्मक एवं विप्रयोगात्मक। गोवर्धन-लीला, नाग नाथने की लीला, चीर-हरण लीला, दधि-दान लीला आदि सम्प्रयोगात्मक लीलाएँ हैं। इनमें श्रीभगवान् और उनके भक्तों के सम्मिलन की लीलाएँ हैं; विप्रयोगात्मक लीलाओं के अन्तर्गत भक्तों का भगवान् के साथ वियोग हो जाता है; भगवान् से वियुक्त होकर भक्त जिस अतुलनीय संताप का अनुभव करता है, वही विशेष महत्त्वपूर्ण है। जैसे आतप से संतप्त प्राणी ही छाया के सुख का यथार्थ अनुभव कर पाता है वैसे ही विप्रलम्भ से रस की निष्पत्ति होने पर ही संप्रयोग-सुख का गूढ़ स्वाद मिलता है। श्रृंगार-रस रूप अमृत के दो चषक हैं—एक सम्प्रयोगात्मक रस से और दूसरा विप्रयोगात्मक रस से परिपूर्ण है तथापि दोनों परस्पर पूरक हैं।
सम्प्रयोगात्मक सुख की पूर्ण उपलब्धि के लिए पूर्व-राग अनिवार्य है। प्रियतम-मिलन की सम्भावना ही पूर्व-राग है। सम्भावना के आधार पर ही उत्कट उत्कंठा वृद्धिगत होती है; उत्कट उत्कंठा से ही तीव्र प्रयास सम्भव होता है। ‘वेणुगीत’ में पूर्वराग का ही वर्णन है। भौतिक लाभ की तृष्णा से विनिर्मुक्त हो भगवत्-पदाम्बुज-सम्मिलन की आशा-लता को पल्लवित-प्रफुल्लित करना ही पूर्व-राग है।
भगवान के सौन्दर्य, माधुर्य, सौरस्य, सौगन्ध्य आदि के गुण-गणों का रसास्वादन ही भगवत्-सम्प्रयोग है। सम्भोग-सुख-प्राप्ति के अनन्तर वियोग हो जाने पर जो अतुलनीय ताप होता हैै वह पूर्व-राग के ताप की अपेक्षा कई गुणा अधिक होता है। ‘भ्रमर-गीत’ में विप्रलम्भ-शृंगार का ही वर्णन है।SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Gopi Geet (Darshanik Vivechan)
-10%Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, संतों का जीवन चरित व वाणियांGopi Geet (Darshanik Vivechan)
गोपी गीत (दार्शनिक विवेचन)
सकलशास्त्रपारावारीण द्वादशदर्शनकाननपच्चानन निगमागमपारदृश्वा परब्रह्मïस्वरूप पूज्यपाद श्री स्वामी करपात्रीजी महाराज के गोपी-गीतविषयक प्रवचनों का संग्रह ‘गोपी-गीत’ सुधी सहृदय तथा भक्त पाठकों के लिए प्रकाशित कर हम अपने को अत्यन्त-कृतकृत्य मान रहे हैं। पूज्य चरणों का श्रीमद्भागवत पर असाधारण स्वाध्याय था। इस महान् ग्रन्थ के वे सभी कोने झाँक आये थे। उनकी असाधारण अद्वैतनिष्ठा एवं तदनुसारिणी प्रतिभा उनके भक्त-हृदय के अन्तरतम को कभी बोझिल नहीं कर सकी। भगवद्विषयक तीव्र विरहजन्य ताप की ज्वाला में तप्त होकर भगवान् की ही शरण में अन्तिम परम विश्राम पाने की इच्छा से समुद्भूत (जीवात्माओं की) प्राय: समस्त चेष्टïाओं को वे अपने प्रवचनों में भिन्न-भिन्न प्रकार के मनोहारी ढंगों से प्रस्तुत कर श्रोतृवृन्द के हृदय में सम्प्रयोग, विप्रयोग तथा उभयावस्था में भी रस का पोषण और उसकी सर्वथा स्वतन्त्रता (मोक्ष) को अत्यन्त सरल ढंग से स्थापित कर देते थे।SKU: n/a