Th. Mohan Singh Kanota
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Champawaton Ka Itihas
चांपावतों का इतिहास
मारवाड़ में मुगल सत्ता के विरुद्ध यहां के शासकों द्वारा एक सशस्त्र अभियान चलाया गया। इतिहास साक्षी मा है कि इन युद्धों में चांपावत वीरों ने आत्मोत्सर्ग करते हुए अपनी परम देशभक्ति एवं स्वामिभक्ति का परिचय दिया। जब महाराजा अजितसिंह ने वयस्क होने पर दुर्गादास को मारवाड़ के प्रधान का पद देना चाहा तो दुर्गादास ने स्वयं के लिए स्वीकार न कर वह पद ठाकुर मुकुन्ददास चांपावत (पाली) को देने का आग्रह किया। इस प्रकार राठौड़ों द्वारा मारवाड़ की रक्षा तथा स्वतंत्रता के लिए किये गए युद्धों के इतिहास में चांपावत शाखा का इतिहास महत्वपूर्ण रहा है। Champawaton Ka Itihas – Thakur Mohan Singh Kanota
ठाकुर मोहनसिंहजी कानोता द्वारा चालीस अध्यायों में रचित ‘चांपावतों का इतिहास’ एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज़ है। accordingly प्रत्येक अध्याय में चांपावत शाखा की उपशाखा पर सविस्तार प्रकाश डाला गया है। प्रशाखाओं के प्रवर्त्तक, उनके ठिकानों तथा ठिकानों के भाई-बेटों के क्रियाकलापों का भी रोचक वर्णन किया गया है। साथ ही शाखा प्रमुख राव चंपकराज से लेकर इस शाखा के घरानों की विभिन्न उपशाखाओं, प्रशाखाओं की ब्यौरेवार वंशावलियां, स्वयं उनके भाइयों की जागीरें तथा उनके पुत्र-पुत्रियों के विवाह आदि संबंधों पर भी समग्रता से विचार किया गया है।
इस दृष्टि से surely यह पुस्तक चांपावत राठौड़ों की ही नहीं अपितु उनके सगे-संबंधियों कछवाहों, सिसोदियों, चौहानों, हाड़ों और भाटियों के इतिहास के लिए भी निस्संदेह सर्वथा उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है तथा उनके बारे में सविस्तार, सुव्यवस्थित एवं प्रामाणिक व विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध करवाती है। एकद्कालीन राजस्थान के कतिपय राजघरानों के इतिहास के लिए भी ऐतिहासिक दृष्टि से अहम सामग्री से परिपूर्ण है। इसमें शूरवीर चांपावत राठौड़ों की कर्मठता, स्वामिभक्ति, मारवाड़ के प्रति प्रेम साथ-साथ अपने वचन की रक्षा करने और आन-बान-शान के लिए मर-मिटने के अनेकानेक प्रसंग प्राप्त होते हैं।
Champawaton Ka Itihas – Thakur Mohan Singh Kanota (Thakur Man Singh Kanota)
इन वीर गाथाओं तथा चांपावतों के गौरवमयी इतिहास को एक पुस्तक में प्रस्तुत करना एक असाध्य कार्य है, जिसे ठाकुर मोहनसिंहजी कानोता ने अत्यंत ही सुंदर, सरल व चित्रात्मक तरीके से प्रस्तुत करने का भगीरथ प्रयास किया है। वे इसके लिए प्रशंसा के पात्र हैं। इनके द्वारा निबद्ध चांपावतों के इतिहास का धैर्यपूर्वक सविवेक अध्ययन करने पर राजस्थान और विशेषत: मारवाड़ के इतिहास के लिए अनेक ऐसे सूत्र तथा संकेत – संदर्भ प्राप्त होते हैं। प्रशाखाओं का क्रमवार सुव्यस्थित वर्णन एवं वंशावलियों के साथ सारणियां पुस्तक को और अधिक सुरुचिपूर्ण, विश्वसनीय एवं पठनीय बनाती हैं। इसमें मारवाड़ में हुए तत्कालीन युद्धों तथा संघर्षों का वर्णन तो है ही, साथ में यह पुस्तक राजस्थान का समकालीन सांस्कृतिक, साहित्यिक, सामाजिक परिदृश्य प्रस्तुत करती है। इसमें पूर्वकालीन शासकों द्वारा जनहित में किए गए कार्यों आदि का भी उल्लेख प्राप्त होता है।
all in all ठाकुर मोहनसिंहजी कानोता द्वारा लिखित ‘चांपावतों का इतिहास’ केवल राजपूत समाज के लिए ही नहीं अपितु इतिहासप्रेमियों के लिए भी धरोहरस्वरूप है। यह पुस्तक युवा पीढ़ी के लिए भी मार्गदर्शक एवं प्रेरणास्त्रोत है कि किस तरह से राजपूतों के छोटे बालकों, युवाओं तथा महिलाओं ने अपनी मातृभूमि की सेवा में अपने प्राणों की आहूति देकर इस धरा को पूजनीय बना दिया।
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