Upanishad Books
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Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Ekadashopnishad
धारावाहिक हिंदी में, मूल तथा शब्दार्थ सहित (ग्यारह उपनिषदों की सरल व्याख्या)-आर्य संस्कृति के प्राण उपनिषद हैं। उपनिषदों के अनेक अनुवाद हुए हैं, परंतु प्रस्तुत अनुवाद सब अनुवाद से विशेषता रखता है।
इस अनुवाद में हिंदी को प्रधानता दी गई है। कोई पाठक यदि केवल हिंदी भाग पढ़ जाए तो भी उसे सरलता से उपनिषद्-ज्ञान स्पष्ट हो जाएगा। पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यही है की अनुवाद में विषय को खोलकर रख दिया गया है।
साधारण पढ़े-लिखे लोगों तथा संस्कृत के अगाध पंडितों, दोनों के लिए यह नवीन ढंग का ग्रंथ है। यही इस अनुवाद की मौलिकता है। पुस्तक को रोचक बनाने के लिए स्थान-स्थान पर चित्र भी दिए गए हैं।SKU: n/a -
Gita Press, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Ishadi Nau Upanishad
इस पुस्तक में ईश, केन, कठ, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय तथा श्वेताश्वतर उपनिषद्के मन्त्र, मन्त्रानुवाद, शाङ्करभाष्य और हिन्दी में भाष्यार्थ एक ही जिल्द में प्रकाशित किया गया है। यह पुस्तक संस्कृत के विद्यार्थियों तथा ब्रह्मज्ञान के जिज्ञासुओं के लिये विशेष उपयोगी है।
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Akshaya Prakashan, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
MANDUKYA UPANISD and PRASNA UPANISAD
MANDUKYA, though it is the smallest UPANISD – it consists of only twelve short passages – it encompasses the entire range of human consciousness. It describes beautifully all the states of consciousness along with the discipline – Sadhna to raise our consciousness from the lowest to the highest, culminating in full attainment of the Self-Atman or Brahman.
The main subject discussed in the Prasna Upnisad that of Prasna (The Primal Energy) in the form of four questions. The fifth question is about Pranava. In it we get the indication about the Sadhana spiritual discipline to realise the ultimate Truth. The last question is about the Goal, about the Being whom we have to discover in ourselves.
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Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Upanishad Ek Saral Parichaya
भारतीय चिन्तन में ही नहीं, मानव-चिन्तन में उपनिषदों का चिन्तन उल्लेखनीय स्थान रखता है। उपनिषदें भारतीयों और आर्यों के आध्यात्मिक चिन्तन की विश्वसनीय स्रोत हैं। आधुनिक विचारक भी उपनिषदों को भारत का सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक साहित्य स्वीकार करते हैं। मुक्तक उपनिषद् में 108 उपनिषदों का उल्लेख है।
मुख्य प्रामाणिक सर्वसम्मत 11 उपनिषदें कही जाती हैं। इन प्रसिद्ध उपनिषदों में सर्वाधिक विख्यात ‘ईशोपनिषद्‘ यजुर्वेद का अन्तिम 40वाँ अध्याय है। इसी प्रकार शतपथ ब्राह्मण का अन्तिम भाग ही बृहदारण्यक उपनिषद् है, इसमें अद्भुत वन-संस्कृति का नमूना देखने को मिलता है। ये प्रधान उपनिषदें हैं-(1) ईश, (2) केन, (3) कठ, (4) प्रश्न, (5) मुण्डक, (6) माण्डूक्य, (7) तैत्तिरीय, (8) ऐतरेय, (9) छान्दोग्य, (10) बृहदारण्यक (11) श्वेताश्वतर। आइए, ग्यारह उपनिषदों का सरल परिचय प्राप्त करें।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Upanishad Prakash
उपनिषदों पर अनेक विद्वानों ने भाष्य टीका-टिप्पणियाँ लिखी हैं, हम उन सभी विद्वानों का सम्मान करते हुए, स्वामी दर्षनानन्द जी के भाष्य को सर्वोत्तम मानते हैं। यद्यपि स्वामी दर्षनानन्द जी ने इन उपनिषदों का भाष्य उर्दू भाषा में किया था परन्तु बाद में वेद-दर्षन, उपनिषदादि के महान् मर्मज्ञ, अनेक भाषाओं के विद्वान् स्वामी वेदानन्द (दयानन्दतीर्थ) ने इसका हिन्दी भाषान्तर, स्थान-स्थान पर अनेक उपयोगी टिप्पणियाँ तथा उपनिशत्सार लिखकर सोने पर सुहागा लोकोक्ति को चरितार्थ कर दिया।
उपनिषदों के ज्ञान ने सिद्ध कर दिया है कि मनुष्य की आत्मिक, मानसिक और सामाजिक आवष्यकताएँ किस प्रकार पूर्ण हो सकती हैं। उपनिषदों में प्रतिपादित ज्ञान केवल एक बार सुनने से ही हृदय में नहीं बैठता। बार-बार श्रवण और बार-बार मनन करने से उसका रहस्य खुलता है। यहाँ प्रथम छः उपनिषदों का भाष्य प्रस्तुत है। निःसन्देह उपनिषदों के रहस्य इतने स्पष्ट किसी भी टीका में नहीं समझाये गये।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Upanishada Rahasya – उपनिषद रहस्य
उपनिषद् शब्द का एक अर्थ ‘रहस्य‘ भी है। उपनिषद् अथवा ब्रह्म-विद्या अत्यन्त गूढ़ होने के कारण साधारण विद्याओं की भाँति हस्तगत नहीं हो सकती, इन्हें ‘रहस्य‘ कहा जाता है। इन रहस्यों को उजागर करने वालों में महात्मा नारायण स्वामीजी का नाम उल्लेखनीय है।
उपनिषदों में ब्रह्म और आत्मा की बात इतनी अच्छी प्रकार से समझाई गई है कि सामान्य बुद्धि वाले भी उसका विषय समझ लेते हैं। महात्मा नारायण स्वामीजी ने अनेक स्थानों पर सरल, सुबोध तथा रोचक कथाएँ प्रस्तुत कर इन्हें उपयोगी बना दिया है।
वास्तव में उपनिषदों में विवेचित ब्रह्मविद्या का मूलाधार तो वेद ही हैं। इस सम्बन्ध में महर्षि दयानन्दजी कहते हैं-“वेदों में पराविद्या न होती, तो ‘केन‘ आदि उपनिषदें कहाँ से आतीं ?”
आइए ग्यारह उपनिषदों के माध्यम से मानवीय भारतीय चिन्तन की एक झाँकी लंें।
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