Ved
Showing 1–24 of 48 results
-
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Atharvaveda
मन्त्र, शब्दार्थ, भावार्थ तथा मन्त्रानुक्रमणिका सहित प्रस्तुत। मन्त्र भाग स्वामी जगदीष्वरानन्दजी द्वारा सम्पादित मूल वेद संहिताओं से लिया गया है।
वेद चतुष्टय में अथर्ववेद अन्तिम है। परमात्मा प्रदत्त इस दिव्य ज्ञान का साक्षात्कार सृष्टि के आरम्भ में महर्षि अंगिरा ने किया था। इसमें 20 काण्ड, 111 अनुवाक, 731 सूक्त तथा 5977 मन्त्र हैं।
वस्तुतः अथर्ववेद को नाना ज्ञान-विज्ञान समन्वित बृहद् विश्वकोश कहा जा सकता है। मनुष्योपयोगी ऐसी कौन-सी विद्या है जिससे सम्बन्धित मन्त्र इसमें न हों। लघु कीट पंतग से लेकर परमात्मा पर्यन्त पदार्थों का इन मन्त्रों में सम्यक् विवेचन हुआ है।
केनसूक्त, उच्छिष्टसूक्त, स्कम्भसूक्त, पुरुषसूक्त जैसे अथर्ववेद में आये विभिन्न सूक्त विश्वाधार पामात्मा की दिव्य सत्ता का चित्ताकर्षक तथा यत्र-तत्र काव्यात्मक शैली में वर्णन करते हैं। जीवात्मा, मन, प्राण, शरीर तथा तद्गत इन्द्रियों और मानव के शरीरान्तर्गत विभिन्न अंग-प्रत्यंगों का तथ्यात्मक विवरण भी इस वेद में है।
जहाँ तक लौकिक विद्याओं का सम्बन्ध है, अथर्ववेद में शरीरविज्ञान, मनोविज्ञान, कामविज्ञान, औषधविज्ञान, चिकित्साविज्ञान, युद्धविद्या, राजनीति, प्रशासन-पद्धति आदि के उल्लेख आये हैं। साथ ही कृषिविज्ञान, कीटाणु आदि रोगोत्पादक सूक्ष्म जन्तुओं के भेद-प्रभेद का भी यहाँ विस्तारपूर्वक निरूपण किया गया है।
अथर्ववेद की नौ शाखाएँ मानी जाती हैं। इसका ब्राह्मण गोपथ और उपवेद अर्थवेद है।
SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Complate Ved Gujarati Set (8 Vol.)
-10%Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिComplate Ved Gujarati Set (8 Vol.)
સારના પ્રાચીનતમ જ્ઞાનનું ઉદ્ગમસ્થાનવેદો છે. વેદ એ ઈશ્વરીય જ્ઞાન-વિજ્ઞાન એ છે. એ જ્ઞાન-ગંગોત્રીનો પ્રવાહ સંસારના પટ પર અનેક વહેણોમાં પ્રવાહિત થયેલ છે, સર્વવિદ્વાનોએ બુદ્ધિની એરણ પર તર્કનાહથોડાથી ટીપીને પ્રતિપાદન કરેલ છે.
તેનું પર્વ અને પાશ્ચાત્ય વેદ એ ઈશ્વરોક્ત –પરમ સત્ય અને સર્વસત્ય વિદ્યાઓથી યુક્ત છે. સૃષ્ટિની આદિમાં ઋષિઓનાં હૃદયમાં પ્રેરણા દ્વારા જે સત્ય જ્ઞાનપ્રદાન કર્યું અને જેમણે તેનો આવિષ્કાર કર્યો, તે જ્ઞાનને વેદ કહે છે. તે વેદ સૃષ્ટિના આરંભથી લઈને ગુરુ-શિષ્ય પરંપરા દ્વારા ઉત્તરોત્તર સાંભળીને, કંઠસ્થ કરીને જાળવી રાખવામાં આવ્યા તેથી તેને “શ્રુતિ’ પણ કહે છે.
વેદ ચાર છે – તેમાં ઋગ્યેદ એ સંસારના પ્રાણી અને પદાર્થ સંબંધી, આત્મા અને પરમાત્મા સંબંધી-વિષયક જ્ઞાનકાંડ છે. યજુર્વેદ મનુષ્યોનાં કર્મસંબંધી કર્મકાંડ, સામવેદ ઉપાસના કાંડ અને અથર્વવેદવિજ્ઞાન કાંડ છે.
સામવેદ પરિચય : સામવેદની તેર વિભિન્ન શાખાઓનાં નામ ગ્રંથોમાં મળે છે. પરંતુ તેમાંથી વર્તમાનમાં
કૌથુમીય, રાણાયનીય અને જૈમિનીય એ ત્રણ શાખાઓ જ પ્રાપ્ત છે. કૌથુમીય અને રાણાયનીયમાં માત્ર પ્રપાઠકે = અધ્યાયો વગેરેની ભિન્નતા છે, પરન્તુ જૈમીની શાખામાં મંત્રોની શાખા અને પાઠમાં પણ ભિન્નતા જોવા મળે છે. સામવેદનું વર્ગીકરણ મુખ્ય આર્થિક અને ગાન એમ બે વિભાગમાં જોવા મળે છે, આર્થિકએ ઋચાઓ-મંત્રોનો સમૂહ છે, તેના પૂર્વાચિક અને ઉત્તરાચિકમુખ્ય બે ભાગ છે-વચ્ચે સંક્ષિપ્ત મહામાન્ય આર્થિક પણ છે.
પૂર્વાર્ચિકમાં રાણાયનીય શાખા અનુસાર છ પ્રપાઠક છે. તેને બે અને ત્રણ ભાગમાં પ્રપાઠકાઈ અને તેમાં દશતિ મંત્રોથી વિભક્ત કરેલ છે. કૌથુમ શાખામાં છ અધ્યાયમાં અનેકખંડો અથવાદશતિ =સક્ત અર્થાત્ મંત્રોનો સમૂહ આવેલ છે. દશતિથી દશ‘ત્ર-ઋચાઓ = મંત્રોનું ગ્રહણ થાય છે, પરન્તુ તેમાં અધિક અથવા ન્યૂન સંખ્યા પ – મળે છે.
SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Manusmriti (Chapter II) Tattva-Bodhini
(श्रीकुल्लूकभट्ट प्रणीत ‘मन्वर्थ मुक्तावलीÓ तथा मेधातिथि प्रणीत अनुभाष्य सहित) भारत एक धर्मप्राण देश है। इस धर्म का प्रतिपादक मनुस्मृति एक महत्त्वपूर्ण एवं प्रामाणिक ग्रन्थ है। इसकी लोकप्रियता ही इसकी उपयोगिता को प्रकट करती है। हमारे प्राचीनकाल के महॢष अपने गम्भीर चिन्तन एवं गहन अनुशीलन के लिए विख्यात रहे हैं। महॢष मनु उसी शृंखला में एक कड़ी है जिनकी सुप्रसिद्ध कृति है—मनुस्मृति। आज के भौतिकवादी युग में मनुष्य अपना आध्यात्मिक एवं नैतिक बल खो चुका है। उसके चरित्र-बल का ह्रïास हो चुका है और वह अपने सामाजिक एवं राष्ट्रीय कत्र्तव्यों के प्रति प्रमादग्रस्त हो गया है। अत: मानव को सच्चे अर्थ में मनुष्य की कोटि में लाने के लिए, उसे सदाचार-बल का सम्बल देने के लिए, सामाजिक कत्र्तव्यों के प्रति जागरूक बनाने के लिए, मातृ-पितृ एवं आचार्य के प्रति अपने दायित्वों का बोध कराने के लिए, आत्मस्वरूप से परिचित कराकर मोक्ष लाभ के लिए, पुरुषार्थ चतुष्ट्य का सम्पादन कराने के लिए, पातकों से मुक्त होकर विशुद्ध जीवन जीने के लिए, पाशविक बन्धन से मुक्त होने एवं मुक्त होकर विशुद्ध जीवन जीने के लिए, पाशविक बन्धन से मुक्त होने एवं आत्मस्वरूप से परिचित होने के लिए, मानसिक सुख-शान्ति के लिए एक आदर्श मानव-समाज एवं राज्य की स्थापना के लिए आज मनुस्मृति जैसे ग्रन्थ के परिशीलन की महती अपेक्षा है।
SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Rigveda Complete (4 Volumes)
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिRigveda Complete (4 Volumes)
ग्रन्थ का नाम – ऋग्वेद संहिता
भाष्यकार – स्वामी दयानन्द सरस्वती जी एवम् आर्य मुनि जी
वेद परमात्मा प्रदत्त ज्ञान राशि है। समस्त आर्ष ग्रन्थ इस बात की घोषणा करते हैं कि वेद अपौरुषेय वाक् है जो सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा द्वारा ऋषियों के हृदय में प्रकाशित होता हैं। महाभारत इतिहास ग्रन्थ में वेदव्यास जी लिखते हैं –
“अनादिनिधना नित्या वागुत्सृष्टा स्वयम्भुवा।
आदौ वेदमयी दिव्या यतः सर्वाः प्रवृत्तयः।।’’ – शान्तिपर्व अ. 224/55
अर्थात् परमात्मा प्रदत्त यह वेदवाणी नित्य हैं, इसी वेदमयी दिव्यवाक् के कारण सारा जगत् अपने कार्यों में प्रवृत्त है। यह प्राचीनकाल से विश्व के मार्गदर्शक रहे हैं, इसलिए महर्षि मनु ने – “वेदश्चक्षुः सनातनम्” कहा है।
वेदों में ऋग्वेद का विषय वस्तु ज्ञान है। महर्षि दयानन्द जी का उपदेश है कि ऋग्वेद में प्रकृति से ब्रह्माण्ड पर्यन्त तत्वों का मूल ज्ञान निहित है तथा महर्षि अपनी बनाई भाष्यभूमिका में यह भी लिखते हैं कि वेदों का मुख्य तात्पर्य परमेश्वर को ही प्राप्त कराना है।
ऋग्वेद में कुल 10 मंडल, 85 अनुवाक्, 1028 सूक्तों के सहित 10521 मंत्र हैं। मंत्रों को ऋचाएँ भी कहा जाता है।
ऋग्वेद पर स्कन्द, नारायण, सायण, हरदत्त आदि विद्वानों नें भाष्य किया है। लेकिन अधिकांश भाष्य कर्मकांड परक और ऐतिहासिक परक हैं, जिससे वेदों का गूढार्थ प्रकट नहीं होता है। विडंबना है कि आचार्य सायण अपनी ऋग्भाष्य भूमिका में वेदों में इतिहास होने का प्रबल खंडन करके नैरुक्त पक्ष की स्थापना करते हैं लेकिन अपने वेदभाष्य में वे नैरुक्त पक्ष को दर्शानें मे असफल रहे और अधिकतर ऐतिहासिक अर्थ ही करते रहे। किन्तु महर्षि दयानन्द जी ने वैदिक शब्दों को यौगिक मानकर नैरुक्त पक्ष से अर्थ किए हैं, जिससे वेदों का नित्यत्व स्थापित होता है। स्वामी जी ने ऋग्वेद के मंडल 7 और सूक्त 61 तक भाष्य किया था। ये भाष्य वेदांगों, ब्राह्मणग्रंथों के प्रमाणों से युक्त होने से प्राचीन आर्षशैली पर आधारित हैं। सायणादि द्वारा वेद भाष्य करने में निरूक्तादि की उपेक्षा करके अर्थ करने के कारण उनके किए भाष्य में अंधविश्वास, पशुवध, मांसाहारादि दोष परिलक्षित होते हैं वहीं ऋषि दयानन्द द्वारा वेद भाष्य में निरूक्त, छंद, आदि का ध्यान रखा गया है जिसके कारण उनका भाष्य इन सब दोषों से मुक्त और सृष्टि के उच्चतम आध्यात्मिक विज्ञान से युक्त है। जहां अन्य वेदभाष्य विग्रहवादी बहुदेवों की उपासना की शिक्षा से युक्त हैं वही स्वामी जी का भाष्य एक निराकार सत्ता की उपासना की स्थापना करता है। इस प्रकार अनेको विशेषताओं से युक्त होने के कारण ऋषि दयानन्द कृत वेदभाष्य में अनेक गुणों का परिलक्षण होता है।
प्रस्तुत् वेदभाष्य 7 मंडल और 61 सूक्त तक महर्षि दयानन्दकृत है, जिसकी विशेषताएँ वर्णित की जा चुकी हैं तथा शेष भाग 10 मंडल तक सम्पूर्ण आर्यमुनि जी कृत हैं। आर्यमुनि जी ने वेदार्थ में स्वामी दयानन्द जी की वेदभाष्य शैली का ही अनुसरण किया है। अतः यह वेदभाष्य दर्शन, धर्म, नीति, लौकिक ज्ञान-विज्ञान आदि मानवहितों से युक्त है और दोष-रूपी अंधविश्वास, बहुदेववाद, हिंसादि की कल्पनाओं से परे है। ये भाष्य चार खंडों में प्रकाशित हैं, जिसकी छपाई आकर्षक और सुन्दर है। इसमें अन्त में परिशिष्ट रूप में सम्पूर्ण वेद मंत्रों की अनुक्रमणिका भी दी गई हैं जिससे कोई भी मंत्र आसानी से खोजा जा सकता है।
वेदों के अध्ययन द्वारा ज्ञान-विज्ञान और अध्यात्म की लहरों में स्वयं को डुबोने के लिए, इस वेदभाष्य को अवश्य प्राप्त करके चिंतन एवम् मनन सहित स्वाध्याय करें और अपने जीवन को दिव्य बनावें।
SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Samveda (HB)
मन्त्र, शब्दार्थ, भावार्थ तथा मन्त्रानुक्रमणिका सहित प्रस्तुत। मन्त्र भाग स्वामी जगदीष्वरानन्दजी द्वारा सम्पादित मूल वेद संहिताओं से लिया गया है।
इस वेद में कुल 1875 मंत्रों का संग्रह है। उपासना को प्रधानता देने के कारण चारों वेदों में आकार की दृष्टि से लघुतम सामवेद का विशिष्ट महत्त्व है।
यह संसार विधि है और वेद परमात्मा द्वारा प्रदत्त उसका विधान है। हम इस संसार में कैसे रहें? हमारा अपने प्रति क्या कर्तव्य है? हमारा दूसरों-परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के प्रति क्या कर्तव्य है? हमारा ईश्वर के साथ क्या सम्बन्ध है? हम परमात्मा की उपासना क्यों करें, कैसे करें, कहाँ करें-आदि सभी बातों का समाधान हमें वेद से प्राप्त होगा। इन सब बातों को जानने के लिए वेद का पठन-पाठन अत्यावश्यक है।
जीवन का चरम और परम लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति है। सामवेद बहुत विस्तार के साथ इसी लक्ष्य की ओर इंगित करता है। सामवेद में संकेतरूप में योग के सभी अंगों-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि-सभी का विवेचन है। योगाभ्यास कहाँ करे़ं? क्यों करें, कैसे करें-आदि सभी तथ्यों का विवेचन है।
सामवेद का यह भाष्य महर्षि दयानन्द की शैली, संस्कृत और आर्य भाषा-हिन्दी में उनकी विचारसरणी पर किया गया है। पाठक देखेंगे कि मन्त्र-मन्त्र में, पद्य-पद्य में जिस प्रकार ऋषि दयानन्द के भावों को प्रतिष्ठित किया गया है।
-स्वामी दीक्षानन्द सरस्वतीSKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Smritiyon Mein Rajneeti Aur Arthashastra
स्मृतियां वेदों की व्याख्या हैं, अत: हिन्दू-जनमानस में इन्हें वेदों जैसी ही प्रतिष्ठा प्राप्त है। आचार, व्यवहार और प्रायश्चित खण्डों में विभक्त स्मृतियाँ हिन्दू-जीवन के आचार-शास्त्र के रूप में समादृत रहीं हैं। स्मृतियों के आचार-पक्ष पर तो शोध और स्वतंत्र पुस्तकों के रूप में पर्याप्त कार्य विद्वानों ने सम्पन्न किया है, पर व्यवहारपक्ष पर, जिसका सम्बन्ध विशेषत: राजनीति और अर्थशास्त्र से है, अभी तक कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया गया है। जबकि स्मृतियों में निरूपित राजनीतिक, आर्थिक-सिद्धान्त हजारों वर्ष तक भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के मेरुदण्ड रहे हैं। यही नहीं, इन सिद्धान्तों को यत्किंचित परिवर्तन-संशोधन के साथ वर्तमान युग में अपनाना श्रेयस्कर ही नहीं, अपितु भारतीयता को पृथक पहचान के लिए आवश्यक भी है।
SKU: n/a