Vrindavan Lal Verma Books
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Bhuvanvikram
ठहरिए’ गौरी की माँ के गले का कंप कम हो गया था और स्वर पैना- ‘ठहरिए, मैं कुछ और कह रही हूँ ।’ भुवन को रुकना पड़ा । चुपचाप, सुन्न । वह कहती रही-‘ आप हम दीन- दुखियों के साथ खिलवाड़ करना चाहते हैं! याद रखिए, हम भी क्षत्रिय हैं।’ ‘कैसा खिलवाड़, माँजी. .कैसा?’ ‘जैसा अभी-अभी कर रहे थे हमारी भोलीभाली गौरी के साथ. .मैं स्पष्ट पूछती हूँ-क्या आप उसके साथ वैदिक रूप से विवाह करने को तैयार होंगे?’ अब भुवन का सिर ऊँचा हुआ । ‘अवश्य, माँजी, अवश्य। ‘उसके गले में न कैप था, न घबराहट। ‘आप गंगा की और अपने पुरुखों की सौगंध खाते हैं? स्मरण करिए, राम आपके पुराने पूर्वज हैं।’ ‘मैं सौगंध खाता हूँ माँजी।’ गौरी आँगन में होकर सुन रही थी। पृथ्वी को पैर के नख से कुरेद रही थी, जिसपर दो आँसू आ टपके। ‘पक्का वचन?’ गौरी की माँ का स्वर अब धीमा पड़ गया था। ‘पक्का, माँजी, बिलकुल पक्का। उतनी बड़ी सौगंध खा चुका हूँ। आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत माता-पिता के आशीर्वाद से पहला काम यही करूँगा।’ ‘अच्छा बेटा, सुखी रहो तुम दोनों। ‘गौरी की माँ का गला काँप रहा था। उस कैप के साथ आँखों में आँसू भी थे। गौरी आँसू पोंछती हुई घर के एक कमरे में चली गई।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Garh Kundaar
मानवती के .हाथ में अग्निदत्त ने कमान दी और तीर अपने हाथ में लिया । दोनों के हाथ काँप रहे थे । अग्निदत्त का कंधा मानवती के कंधे से सटा हुआ था । सहसा मानवती की आँखों से आँसुओ की धारा बह निकली ।
मानवती ने कहा – ” क्या होगा, अंत में क्या होगा, अग्निदत्त?”
” मेरा बलिदान?”
” और मेरा क्या होगा?
” तुम सुखी होओगी । कहीं की रानी ”
” धिक्कार है तुमको! तुमको तो ऐसा नहीं कहना चाहिए । ”
” आज मुझे आँखों के सामने अंधकार दिख रहा है । ‘
‘ मानवती की आँखों में कुछ भयानकतामय आकर्षण था । बोली – ” आवश्यकता पड़ने पर स्त्रियाँ सहज ही प्राण विसर्जन कर सकती हैं । ” अग्निदत्त ने उसके कान के पास कहा- ” संसार में रहेंगे तो हम -तुम दोनों एक -दूसरे के होकर रहेंगे और नहीं तो पहले अग्निदत्त तुम्हारी बिदा लेकर… । ”
दलित सिंहनी की तरह आँखें तरेरकर मानवती ने कहा- ” क्या? आगे ऐसी बात कभी मत कहना । इस सुविस्तृत संसार में हमारे-तुम्हारे दोनों के लिए बहुत स्थान है । ”
-इसी उपन्यास से वर्माजी का पहला उपन्यास, जिसने उन्हें श्रेष्ठ उपन्यासकारों की श्रेणी में स्थापित कर दिया ।
हमारे यहाँ से प्रकाशित,वर्माजी की प्रमुख कृतियाँ,मृगनयनी झाँसी की रानी,अमरबेल विराटा की पद्यिनी,टूटे काँटे महारानी दुर्गावती,कचनार माधवजी सिंधिया,गढ़ कुंडार अपनी कहानीSKU: n/a -
Prabhat Prakashan, उपन्यास
Jhansi Ki Rani
रानी ने घोड़े की लगाम अपने दाँतों में थामी और दोनों हाथों से तलवार चलाकर अपना मार्ग बनाना आरंभ कर दिया। रानी की दुहत्थु तलवारें आगे का मार्ग साफ करती चली जा रही थीं। रानी के साथ केवल चार सरदार और उनकी तलवारें रह गईं। रानी ने देशमुख की सहायता के लिए सुंदर को इशारा किया और स्वयं संगीनबरदारों को दोनों हाथों की तलवारों से खटाखट साफ करके आगे बढ़ने लगीं। एक संगीनबरदार की हूल रानी के सीने के नीचे पड़ी। उन्होंने उसी समय तलवार से उस संगीनबनदार को खतम किया। हूल करारी थी, परंतु आँतें बच गईं।
रानी ने सोचा, स्वराज्य की नींव बनने जा रही हूँ। रानी के खून बह निकला।
—इसी उपन्यास से
अदम्य साहस, शौर्य और देशभक्ति की प्रतिमूर्ति झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर केंद्रित इस उपन्यास में बाबू वृंदावनलाल वर्मा ने तत्कालीन राजनीतिक-सामाजिक परिवेश का ऐसा सजीव चित्रण किया है मानो पूरा घटनाक्रम हमारी आँखों के सामने हो रहा हो। झाँसी की रानी का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। रानी स्वराज्य के लिए लड़ीं, स्वराज्य के लिए मरीं और स्वराज्य की नींव का पत्थर बनीं।
अद्भुत, प्रेरणाप्रद, पठनीय ऐतिहासिक औपन्यासिक कृति!SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, उपन्यास
Kachnar
महंत ने कहा- ‘सुमंतपुरी, तुमने एक बार मुझसे प्रश्न किया था कि मै र्द्वजन्म में कौन था।… आज उस प्रश्न का उत्तर देने का समय आ गया है।
.. .सुमंतपुरी, तुम उस जन्म में राजा थे, यह बात मैं पहले बतला चुका हूँ।’ सुमंतपुरी- ‘मैं कहाँ का राजा था, महाराज ‘
महंत-‘तुम सुमंतपुरी, र्द्वजन्म में इसी धामोनी के राजा थे।’
सुमंतपुरी- ‘धामोनी का!’
कचनार- ‘धामोनी के?’
महंत- ‘हो धामोनी के। मेरी बात में कोई संदेह नहीं।’
कचनार- ‘तो महाराज, अंत- पुरीजी का शरीर किसी और का है और आत्मा किसी और की है? कृपा करके समझाइए। मैं बहुत भ्रम में पड़ गई हूँ।
-एक जन्म में तीन जन्मों के स्मरण की ऐसी अनूठी, पर ऐतिहासिक कथा, जिससे चिकित्सा शास्त्र के अच्छे-अच्छे विद्वान् भी चकरा गए।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, उपन्यास
Lagan
कहानी के चरित नायक देवसिंह का असली नाम नंदलाल था। यह बड़ा शक्तिशाली पुरुष था। अस्सी वर्ष की अवस्था में इसको दमरू नामक लोधी ने देखा है, जो सुल्तानपुरा में (चिरगाँव से डेढ़ मील उत्तर) रहता है। इसकी आयु इस समय नब्बे वर्ष की है। वह नंदलाल के बल की बहुत-सी आँखोंदेखी घटनाएँ बतलाता है। नंदलाल का भीषण पराक्रम, जिसका कहानी में वर्णन किया है, सच्ची घटना है। किंवदंती के रूप में अब भी आसपास के देहात में वह प्रसिद्ध है। कुछ घटनाएँ कल्पनामूलक हैं।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Lalitaditya
राजा ने यथाशक्ति नम्रता के साथ कहा-‘ हम कश्मीर नरेश, भारत सम्राट् ललितादित्य हैं । तुक्खर देश की ओर जा रहे हैं । ‘
साधु के मुख पर आश्चर्य की एक रेखा तक नहीं खिंची । उसी समता, तटस्थता के साथ बोला-‘ जानते हो, पूर्वजन्म में क्या थे?’
राजा के भीतर विनय की बाढ़-सी आ गई । नम्रता के साथ उत्तर दिया-‘ मैं नहीं जानता, जान ही नहीं सकता । आप योगी हैं, अवश्य हैं । आप ही बतलाइए ।’
साधु ने कुछ क्षण ध्यान लगाने के बाद कहा-‘ तुम पूर्वजन्म में एक समृद्ध गृहस्थ के नौकर थे, जो खेती कराता था । तुम उसका हल जोतते थे । वह गाँव श्रीनगर से बहुत दूर है जहाँ तुम उस भूमि-स्वामी के खेतों में हल जोतकर अपना जीवन चलाते थे । जिन दिनों तुम हल चलाते, भूमि-स्वामी तुम्हारे लिए खेत पर रोटी औंर पानी भेजता था । एक दिन गरमी की ऋतु में बड़े-बड़े बैलों का भारी हल चलाते-चलाते थक गए । दिन- भर हल चलाया, परंतु न रोटी आई और न पानी मिला । आसपास कहीं भी पानी था ही नहीं । भूख और प्यास के मारे तुम्हारा गला सूख गया । तड़प रहे थे कि थोड़ी- सी दूरी पर रोटी-पानी लानेवाला दिखलाई पड़ा । प्रसन्न हो गए । वह एक मोटी रोटी लाया था और एक छोटा-सा घड़ा पानी का । तुमने खाने के लिए हाथ-मुँह धोया ही था कि कहीं से एक ब्राह्मण हाँफता- हाँफता तुम्हारे पास आकर बोला-‘ मत खाओ, मैं भूखों मरा जा रहा हूँ ‘ ।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, उपन्यास
Madhavji Scindhia
यह बात उस युग की है जिसके लिए कहा जाना है कि मराठे और जाट हल की नोक से, सिक्ख तलवार की धार से और दिल्ली के सरदार बोतल की छलक से इतिहास लिख रहे थे! और अंग्रेज उस समय क्या थे? क्लाइव के विविध रूपों के समन्वय -व्यवसाय सिपाहीगीरी, भेड़ की खाल उतारनेवाली राजनीतिज्ञता, बेईमानी, शूरता, धूर्तता । उस युग में चुनाव नहीं होते थे, परंतु राजनीतिक, राजनीतिज्ञ और राजदर्शी तो थे ही । और राजनीति के क्षेत्र में भयंकर महत्त्वाकांक्षी भी । राजदर्शी वह जो भेड़ के बाल काटे और राजनीतिक वह जो भेड़ की खाल खींच डालने पर ही जुट पड़े । ऐसे समय में माधवजी (महादजी सिंधिया) पैदा हुए । आँधी-तूफान की भँवरों और असंख्य धक्कों में छाती ताने, सिर सीधा किए हुए एक ही माधव – शायद उस युग में दूसरा कोई नहीं । तभी तो कीन ने कहा था, ” एशिया – भर के जननायकों में कोई भी ऐसा नाम नहीं है जो माधवजी सिंधिया की बराबरी कर सके ।” और जनरल मालकम ने उन्हें ‘Steel Under Velvet Gloves’, ‘ मखमली दस्तानों में फौलाद ‘ की उपाधि प्रदान की । -इसी पुस्तक के परिचय से भारत के महान् राजदर्शी माधवजी सिंधिया का चरित्र प्रस्तुत कर वर्माजी ने भारतीय साहित्य को वह अमर कृति उपलब्ध करा दी है जो आनेवाले समय में भी समाज और राजनीतिज्ञों का मार्गदर्शन करती रहेगी ।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Maharani Durgawati
दुर्गावती उद्यान में घूमने लगी। फूलों पर अधमुँदी बड़ी-बड़ी ओंखें रिपट-रिपट सी जा रही थीं, पँखुड़ियों की गिनती तो बहुत दूर की बात थी। कभी ऊँचे परकोटे पर दृष्टि जाती, कभी नीचे के परकोटे और ढाल पर, दूर के पहाड़ों पर और बीच के मैदानों के हरे- भरे लहराते खेतों पर। दूर के जंगल में जैसे कुछ टटोल रही हो, फुरेरू आती और नसें उमग पड़तीं। क्या ऐसे धनुष-बाण नहीं बनाए जा सकते, जिनसे कोस भर की दूरी का भी लक्ष्यवेध किया जा सके? हमारे कालंजर की फौलाद संसार भर में प्रसिद्ध है, यहाँ के खग, भाले, तीर, छुरे युगों से ख्याति पाए हुए हैं। सुनते हैं, कभी चार हाथ लंबा तीर तैयार किया जाता था, जो हाथी तक को वेधकर पार हो जाता था। चंदेलों का वैभव फिर लौट सकता है. बघेले, बुंदेले और चंदेले मिलकर चलें तो सबकुछ कर सकते हैं; तुर्क, मुगल, पठान, सबको हरा सकते हैं। कैसे एक हों?
महारानी दुर्गावती उपन्यास में इतिहास, जनता और लेखक एक में घुल-मिल गए हैं। चित्रण में, वर्णन में, भाषा में और शैली में लक्ष्मीबाई जैशा ही तेवर है। लोक-रस कुछ और गाढ़ा ही है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, उपन्यास
Mrignayani
मानसिंह ने नाहर का बारीकी के साथ निरीक्षण किया। नाहर ने केवल एक तीर खाया था। राजा ने पूछा ‘नाहर की गरदन पर किसका तीर बैठा?’
निन्नी ने सिर झुका लिया। लाखी ने तुरंत सामने होकर उत्तर दिया, ‘निन्नी—मृगनयनी का।’
राजा ने दूसरा प्रश्न किया, ‘अरने के माथे पर बरछी किसकी खोंसी हुई है?’
लाखी बोली, ‘मृगनयनी की।’
‘वाह! धन्य हो!! तुम दोनों धन्य हो!!!’ मानसिंह के मुँह से निकला और उसने अपने गले से सोने का रत्नजडि़त हार निकालकर निन्नी के गले में डाल दिया।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, उपन्यास
Phoolon Ki Boli
सिद्ध : ताँबे के चूर्ण को मल्लिका की आँच यानी अपनो सखो माया की सहायता से किसी बड़ी आँच में पिघलाकर पलाश के पत्तों के रस से मिला दिया जाय और फिर मुचकुंद का संयोग किया जाय तो चोखा सोना बन जाएगा।
कामिनी : मुचकुंद का संयोग क्या और कैसा?
सिद्ध : बस, स्वर्ण-रसायन में इतनी ही पहेली और है, थोड़ी देर में बतलाता हूँ; परंतु सोचता हूँ पहले हीरे-मोती बना दूँ। अपना सारा स्वर्ण लाओ।
दोनों : बहुत अच्छा।
( दोनों जाती हैं और थोड़ी देर में अपना सब गहना लेकर आ जाती हैं।)
सिद्ध : (गहनों को देखकर) तुम्हारे गहनों में कोई हीरे तो नहीं जड़े हैं?
कामिनी : नहीं, सिद्धराज।
माया : नहीं, महाराज।
सिद्ध : कोई मोती?
कामिनी : बहुत थोड़े से।
माया : मेरे पास तो बिलकुल नहीं हैं।
सिद्ध : कुमुदिनी, तुम अपने मोती गिन लो।
-इस पुस्तक से
स्वर्ण-रसायन के मोह और लोभ में हमारे देश के कुछ लोग कितने अंधे हो जाते हैं और सोना बनवाने के फेर में किस तरह अपने को लुटवा डालते हैं, यह बहुधा सुनाई पड़ता रहता है। वर्माजी ने उज्जैन के नगरसेठ व्याडि तथा कुछ अन्य के स्वर्ण-मोह और एक ठग सिद्ध एवं उसके शिष्य की कथा को आधार बनाकर यह नाटक लिखा है। निश्चय ही यह कृति पाठकों का भरपूर मनोरंजन करेगी।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, उपन्यास
Soti Aag (Doobata Shankhnaad)
देवकी की आँखों में कृतज्ञता के आँसू थे । उसने शबनम से कहा- ‘ बहिन, आपका जस कभी नहीं भूलूँगी । ‘
शबनम बोली-‘ दीदी, इसमें जस किस बात का? हम लोगों ने थोड़ा – सा फर्ज अदा किया तो कौन- सा बड़ा काम किया?’
‘ हम लोगों के लिए नवाब साहब ने अपने आपको संकट में डाल लिया है । ‘
‘ वाह! वाह! यह सब कुछ नहीं है । हम लोग आपस में एक दूसरे की मदद न करेंगे तो -क्या बाहरवाले मदद करने आएँगे ”
‘ अगर मैं किसी तरह अपने अब्बाजान पास पहुँच पाती तो उनके हाथ जोड़ती विलायतियो का साथ छोड़िए और हिदुस्तानियों को अपना समझिए । ‘
‘प्यारी बहिन आप किसी और आफत में न पड़ जाना, नवाब साहब तो हम थोड़े-से हिंदुओं के लिए पूरी जोखिम सिर पर ले ही चुके हैं । ‘
‘ आप बार-बार यह क्यों कहती हैं? ‘ थोड़ी देर के लिए मान लीजिए कि हम लोग किसी ऐसी जगह होते जहाँ हिंदुओं की बहुतायत होती और थोड़े से हिंदुओं ने शरारत की होती और हम लोग उनके बीच में फँस जाते तो आप क्या हाथ पर – हाथ धरे बैठी रहतीं ? राजा साहब क्या किनारा खींच जाते ? ”
– इसी उपन्यास से
दिल्ली के लिए हिंदू, मुसलमान दंगे कई नई बात नहीं है फिर भी ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं जब हिंदू मुसलमान ने अपनी जान देकर भी दूसरे की जान बचाई । ऐसी ही तो इतिहास -प्रसिद्ध घटना को वर्माजी न इस उपन्यास में प्रस्तुत किया है ।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, उपन्यास
Tute Kaante
नूरबाई ने अपनी हँसी को समेटा । गरदन ने जरा-सी लचक खाई । बालों की एक काली लट गोरे गालों को छूकर कान के पास पहुँच गई । नूरबाई की बड़ी-बड़ी मद- भरी आँखें एक बार पूरी खुलीं, बरौनियों ने भौंहों का स्पर्श किया और फिर नीची पड़ गईं । वह मोहन को तिरछी चितवन देखने लगी । होंठों पर नुकीली मुसकान थी ।
एक क्षण बाद उसने कहा, ‘मैंने सब पा लिया, सब । और आँचल बाँधकर गाँठ लगा ली ।SKU: n/a