Author: K.L. Joshi
ISBN: 8171101720
Bound: Hard Bound
Publishing Date: 2003
Publisher: Parimal Publications
Pages: 1400
Language: English
Atharvaveda Samhita (Set Of 3 Vol)
Atharvaveda Samhita (Set Of 3 Vol)
Rs.1,350.00 Rs.1,500.00
| Weight | 2.800 kg |
|---|---|
| Dimensions | 9.5 × 6.9 × 5.5 in |
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0 out of 5(0)हिंदू सम्राट् हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) को ‘भारत का नेपोलियन’ कहा जाता है। वैश्य परिवार में जनमे हेमू ने 22 लड़ाइयाँ लड़ीं व जीतीं। दिल्ली पर अधिकार करने के बाद हेमू ने अपनी बहादुरी और दूरदर्शिता से राजा विक्रमादित्य की उपाधि प्राप्त की।
इस पुस्तक में हेमू के व्यक्तित्व के यथार्थपरक चित्रण हेतु बिहार के सासाराम क्षेत्र में प्रचलित लोकगीतों व भगवत मुदित द्वारा रचित रसिक अनन्यमाल व राजस्थान से मिले कुछ तथ्यों को भी आधार बनाया गया है, जिससे प्रतीत होता है कि हेमू एक कुशल संगठक, जनप्रिय नेता, श्रेष्ठ घुड़सवार, तलवारबाज तथा तुलगमा सैनिकों की भाँति घोड़े की पीठ पर बैठे-बैठे ही धनुष से बाणों का संधान करनेवाले एक महान् योद्धा व सेनानायक थे।
उन्होंने लगभग 350 वर्षों की दासता के बाद दिल्ली में पुनः हिंदू साम्राज्य की स्थापना की, लेकिन भारत के भाग्य को यह स्वीकार न था। अतः पानीपत के दूसरे युद्ध में हेमू की आँख में लगे तीर ने जीती बाजी को पराजय में परिवर्तित कर दिया। फिर भी हेमू का स्वाभिमान, देशभक्ति, अपूर्व साहस और बलिदान हम सभी राष्ट्रप्रेमियों के लिए सदैव प्रेरणा का अथाह स्रोत बना रहेगा।
भारत के गौरव सम्राट् हेमचंद्र विक्रमादित्य की प्रेरणाप्रद जीवनी, जो नई पीढ़ी को उनके पराक्रम और शूरवीरता से परिचित करवाएगी।SKU: n/a -
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Rated 5.00 out of 5(1)हमारे राष्ट्र निर्माताओं में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य का स्थान बहुत ऊँचा है। कई विद्वानों ने तो उन्हें आधुनिक हिंदू धर्म का जनक ही कहा है। शंकराचार्य ने समस्त हिंदू-राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने एवं उसे संगठित करने का प्रयास किया। देश के चारों कोनों पर चार धामों के प्रति श्रद्धा केंद्रित करते हुए उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष की, मातृ-भू की मूर्ति जन-जन के हृदय पर अंकित कर दी। पंचायतन का पूजन प्रारंभ कर विभिन्न संप्रदायों को एक-दूसरे के आराध्य देवों के प्रति केवल सहिष्णुता का भाव ही नहीं तो सभी देवताओं के प्रति अपने इष्टदेव के माध्यम से वही श्रद्धा एवं आदर का भाव व्यक्त करने को प्रेरित किया, इसके अनुसार प्रत्येक पाँचों देवताओं—विष्णु, शुक्र, शक्ति, गणपति और सूर्य की पूजा करता है। अपनी श्रद्धा के अनुसार अपने इष्टदेव को बीच में तथा चारों ओर अन्य चार देवताओं को रखकर पूजन करने की उसे छूट है। चार धामों के समान ही उन्होंने समाज को धर्म मार्ग पर नियंत्रित एवं अनुशासित रखने के लिए चार शंकराचार्यों की अध्यक्षता में भारत के चारों कोनों में चार मठ स्थापित किए।
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0 out of 5(0)राजनीतिक गुलामी से भी त्रासद होती है सामाजिक गुलामी। कुछ इसे मानते हैं, कुछ नहीं। जो मानते हैं उनमें भी इसका उच्छेद करने की पहल करने का नैतिक साहस बहुधा नहीं होता। औरों की तरह शाहूजी के जीवन में भी यह त्रासदी प्रकट हुई। राजा थे, चाहते तो आसानी से इससे पार जाने का मानसिक सन्तोष पा सकते थे। मगर नहीं, उन्होंने अपनी व्यक्तिगत त्रासदी को सामूहिक त्रासदी में देखा और मनुष्य की आत्मा तक को जला और गला देने वाली इस मर्मान्तक घुटन और पीड़ा को सामूहिक मुक्ति में बदल देने का संकल्प लिया।
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