Author – Prof. Suryaprasad Dixit
ISBN – 9789352295821
Lang. – Hindi
Pages –260
Binding – PB
Awadh Sanskriti Vishwakosh – 2
हिन्दी भाषा और साहित्य के इतिहास में अवध का महत्वपूर्ण स्थान है। विद्वानों ने इसे ‘मध्य देश’ कहा है। लन्दन विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. रुपर्ट स्नेल ने किसी प्रसंग में ठीक ही कहा था कि काशी विद्या की नगरी है, किन्तु वहाँ लिखी-बोली जा रही खड़ीबोली हिन्दी पर जनपदीय बोलियों का बड़ा प्रभाव है। दिल्ली केन्द्रीय महानगर है, परन्तु वहाँ की हिन्दी पंजाबीपन से प्रेरित है। मानक हिन्दी का रूप तो गंगा-यमुना के मैदान अर्थात् अन्तर्वेद में प्राप्त होता है। यही कारण है कि हिन्दी के मानकीकरण का आन्दोलन आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के माध्यम से यहीं से शुरू हुआ। यह उल्लेखनीय है कि द्विवेदी जी बैसवारा के निवासी थे और ‘सरस्वती’ पत्रिका इलाहाबाद से प्रकाशित होती थी। इस क्षेत्र के साहित्यकारों ने रचनात्मक क्षेत्र में सदैव अपनी अग्रणी भूमिका निभायी है। मुल्ला दाऊद ने ‘चन्दायन’ महाकाव्य लिखकर सूफी काव्य धारा का प्रवर्तन किया। उसे जायसी ने पदमावत द्वारा शिखर पर पहुंचा दिया। तात्पर्य यह कि सूफी काव्य और महाकाव्य इसी क्षेत्र के प्रयोग हैं। सरहपाद के ‘दूहाकोश’, गोरखनाथ की ‘सबदी’ और विद्यापति की अवहट्ट भाषा में अवधी का गहरा पट है, जिससे यह सिद्ध होता है कि हिन्दी जगत की सबसे पुरानी काव्य भाषा है अवधी। गोस्वामी जी ने ‘रामचरितमानस’ जैसा महाकाव्य रचकर इसे विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित कर दिया। ‘मानस’ की परम्परा में। यहाँ दर्जनों रामकाव्य रचे गये हैं, जो हिन्दी की अमूल्य निधि हैं।
Rs.500.00
Weight | .500 kg |
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Dimensions | 8.50 × 5.51 × 1.57 in |
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