स्व० गुरुदत्त के उपन्यासों की अनेक प्रकार से आलोचनाएँ होती रही हैं। उन्हें हम समीक्षा नहीं कह सकते, वे विशुद्ध आलोचनाएँ ही थीं। उन आलोचनाओं का मुख्य कारण था उपन्यासकार के रूप में स्व० श्री गुरुदत का लोकप्रिय होना। शिविर विशेष से सम्बन्धित उपन्यासकार जब स्व० श्री गुरुदत्त की भाँति लोकप्रियता प्राप्त नहीं कर सके तो उन्होंने श्री गुरुदत्त की आलोचना में ही अपना समय व्यतीत करना आरम्भ किया। इसका सुपरिणाम यह हुआ। आलोचक के पक्ष में नहीं अपितु आलोच्य के पक्ष में। उपन्यासकार और उसकी कृतियाँ इसमें अधिकाधिक लोकप्रिय होती गयीं। इन आलोचनाओं में एक आक्षेप था उनकी कृतियों में उपदेशात्मकता की अत्यधिक मात्रा। किन्तु हमारे उपन्यासकार ने इसे किसी प्रकार का कोई अवगुण नहीं स्वीकार किया। उनका कहना था कि लेखक की रसपूर्ण रचना यदि सदुपदेश भी देती है तो इसे सोने पर सोहागा ही समझना चाहिए। श्रेष्ठ साहित्य का स्वरूप बुद्धि को व्यावसायात्मिका बनाने वाला होता है। इसी के लिए वे अपनी कृतियों के माध्यम से यत्नशील भी रहे।
Ganga kee Dhaara
गंगा की धारा
हमारी यह मान्यता रही है कि उपन्यास-सम्राट् स्व० श्री गुरुदत्त कालातीत साहित्य के स्रष्टा थे। साहित्य का, विशेषतया उपन्यास साहित्य का, सबसे बड़ा समालोचन समय होता है। सामान्यता यह देखने में आता है कि अधिकांश उपन्यासकारों का गौरव अल्पकालीन होता है इसका मुख्य कारण होता है उसकी रचना की महत्ता का अल्पकाल में प्रभावशून्य हो जाना। वास्तव में वह रचनाकार ही गौरवशाली माना जाता है जिसकी रचना साहित्य की स्थायी सम्पत्ति बन जाती है। इसकी यथार्थ परीक्षा काल ही करता है। स्व० श्री गुरुदत्त उन रचनाकारों में से थे जिनकी कृतियाँ कालातीत हैं। उसका मुख्य कारण है उनकी रचनाओं का सोद्देश्य होना। क्योंकि उद्देश्य को काल की सीमा में नहीं बाँधा जा सकता है, अतः उसके आधार पर रचित साहित्य भी काल की सीमा में सीमित नहीं किया जा सकता। यदि लेखक किसी उद्देश्य विशेष को आधार बनाकर रचना नहीं करता है तो वह श्रेष्ठ लेखक नहीं कहा जा सकेगा।
Rs.540.00 Rs.600.00
Weight | 0.710 kg |
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Dimensions | 8.7 × 5.57 × 1.57 in |
- AUTHOR : Guru Datt
- ISBN : NA
- Language : Hindi
- Publisher: Hindi Sahitya Sadan
- Binding : PB
- Pages : 672
- WEIGHT : 710 Kg
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