Author – Deokinandan Gautam
ISBN – 9789350482650
Language – Hindi
Pages – 232
Deokinandan Gautam
Rs.255.00 Rs.300.00
Author – Deokinandan Gautam
ISBN – 9789350482650
Language – Hindi
Pages – 232
Weight | .280 kg |
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Dimensions | 8.7 × 5.51 × 1.57 in |
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काला पानी की भयंकरता का अनुमान इसी एक बात से लगाया जा सकता है कि इसका नाम सुनते ही आदमी सिहर उठता है। काला पानी की विभीषिका, यातना एवं त्रासदी किसी नरक से कम नहीं थी। विनायक दामोदर सावरकर चूँकि वहाँ आजीवन कारावास भोग रहे थे, अत: उनके द्वारा लिखित यह उपन्यास आँखों-देखे वर्णन का-सा पठन-सुख देता है। इस उपन्यास में मुख्य रूप से उन राजबंदियों के जीवन का वर्णन है, जो ब्रिटिश राज में अंडमान अथवा ‘काला पानी’ में सश्रम कारावास का भयानक दंड भुगत रहे थे। काला पानी के कैदियों पर कैसे-कैसे नृशंस अत्याचार एवं क्रूरतापूर्ण व्यवहार किए जाते थे, उनका तथ वहाँ की नारकीय स्थितियों का इसमें त्रासद वर्णन है। इसमें हत्यारों, लुटेरों, डाकुओं तथा क्रूर, स्वार्थी, व्यसनाधीन अपराधियों का जीवन-चित्र भी उकेरा गया है। उपन्यास में काला पानी के ऐसे-ऐसे सत्यों एवं तथ्यों का उद्घाटन हुआ है, जिन्हें पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
हमारे राष्ट्र निर्माताओं में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य का स्थान बहुत ऊँचा है। कई विद्वानों ने तो उन्हें आधुनिक हिंदू धर्म का जनक ही कहा है। शंकराचार्य ने समस्त हिंदू-राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने एवं उसे संगठित करने का प्रयास किया। देश के चारों कोनों पर चार धामों के प्रति श्रद्धा केंद्रित करते हुए उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष की, मातृ-भू की मूर्ति जन-जन के हृदय पर अंकित कर दी। पंचायतन का पूजन प्रारंभ कर विभिन्न संप्रदायों को एक-दूसरे के आराध्य देवों के प्रति केवल सहिष्णुता का भाव ही नहीं तो सभी देवताओं के प्रति अपने इष्टदेव के माध्यम से वही श्रद्धा एवं आदर का भाव व्यक्त करने को प्रेरित किया, इसके अनुसार प्रत्येक पाँचों देवताओं—विष्णु, शुक्र, शक्ति, गणपति और सूर्य की पूजा करता है। अपनी श्रद्धा के अनुसार अपने इष्टदेव को बीच में तथा चारों ओर अन्य चार देवताओं को रखकर पूजन करने की उसे छूट है। चार धामों के समान ही उन्होंने समाज को धर्म मार्ग पर नियंत्रित एवं अनुशासित रखने के लिए चार शंकराचार्यों की अध्यक्षता में भारत के चारों कोनों में चार मठ स्थापित किए।
—दीनदयाल उपाध्याय
सुभाषचंद्र बोस की ‘भारत की खोज’; जवाहरलाल नेहरू की तुलना में उनके जीवन में काफी पहले ही हो गई; यानी उन दिनों वे अपनी किशोरावस्था में ही थे। वर्ष 1912 में पंद्रह वर्षीय सुभाष ने अपनी माँ से पूछा था; ‘स्वार्थ के इस युग में भारत माता के कितने निस्स्वार्थ सपूत हैं; जो अपने निजी स्वार्थ को त्याग कर इस आंदोलन में हिस्सा ले सकते हैं? माँ; क्या तुम्हारा यह बेटा अभी तैयार है?’’ 1921 में भारतीय सिविल सेवा से त्यागपत्र देकर वह आजादी की लड़ाई में कूदने ही वाले थे कि उन्होंने अपने बड़े भाई शरत को पत्र लिखा; ‘‘केवल बलिदान और कष्ट की भूमि पर ही हम अपने राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।’’ दिसंबर 1937 में बोस ने अपनी आत्मकथा के दस अध्याय लिखे; जिसमें 1921 तक की अपनी जीवन का वर्णन किया था और ‘माई फेथ-फिलॉसोफिकल’ शीर्षक का एक चिंतनशील अध्याय भी था। सदैव ऐसा नहीं होता कि जीवन के बाद के समय में लिखे संस्मरणों को शुरुआती; बचपन के दिनों की प्राथमिक स्रोत की सामग्री के साथ पढ़ा जाए।
बोस के बचपन; किशोरावस्था व युवावस्था के दिनों के सत्तर पत्रों का एक आकर्षक संग्रह इस आत्मकथा को समृद्ध बनाता है। इस प्रकार यह ऐसी सामग्री उपलब्ध कराता है; जिसकी सहायता से उन धार्मिक; सांस्कृतिक; नैतिक; बौद्धिक तथा राजनीतिक प्रभावों का अध्ययन किया जा सकता है; जिनसे भारत के इस सर्वप्रथम क्रांतिधर्मी राष्ट्रवादी के चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण हुआ।
This book is about Shri Ashutosh Maharaj Ji, whose disciples have a firm conviction that he is established in the highest state of Samadhi but the medical world considers him to be clinically dead.
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