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Janambhoomi-Matribhoomi


बँगला में सुविख्यात यह उपन्यास उन लोगों की व्यथा-कथा है, जिनकी जन्मभूमि तो विदेश है, लेकिन मातृभूमि भारत है। वहाँ जनमे बच्चों की समस्याएँ कुछ अलग हैं। अपनी जड़ों से उखड़कर विदेश में जा बसे बच्चों के सामने एक ओर तो विदेशों का स्थूल आकर्षण, वहाँ का वातावरण, वहाँ की संस्कृति व परंपराएँ उन पर अपना प्रभाव डाल रही हैं, दूसरी ओर उन्हें अपने माता-पिता से यह शिक्षा मिलती है कि उनका देश भारत है। वहाँ की संस्कृति ही उनकी अपनी संस्कृति है।
अमेरिका और भारत—दोनों देशों की पृष्‍ठभूमि समेटे इस उपन्यास के सभी चरित्र बेहद सजीव और वास्तविक लगते हैं।
विभिन्न मानवीय संबंधों की उलझनों का विश्‍लेषण। मानव चरित्र के उन तंतुओं पर प्रकाश, उन पर करारा आघात, जो जिंदगी के ताने-बाने को जटिल बनाते हैं। अत्यंत रोचक एवं पठनीय उपन्यास।

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Vani Basu

जन्म : 11 मार्च, 1939 को।
शिक्षा-दीक्षा-कर्म कोलकाता में।
कॉलेज में अंग्रेजी का अध्यापन। बँगला कथा साहित्य की प्रतिष्‍ठित लेखिका। अब तक कुल अठारह उपन्यास (बँगला में) प्रकाशित। प्रस्तुत उपन्यास बँगला से हिंदी में अनूदित, जो आधुनिक बँगला कथा-साहित्य में अति ख्यात हुआ। यह इनकी कथा-यात्रा का पहला पड़ाव था।

Weight 0.310 kg
Dimensions 8.7 × 5.57 × 1.57 in
  •  Vani Basu
  •  9788188266456
  •  Hindi
  •  Prabhat Prakashan
  •  2010
  •  162
  •  Hard Cover

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