Author: Shri Anirvan
Year: 2016
Binding: (HB)
ISBN: 9788188643592
Pages : 359
Language: English
Katha Upanisad
Rs.500.00
| Weight | .550 kg |
|---|---|
| Dimensions | 8.66 × 5.57 × 1.57 in |
Based on 0 reviews
Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.
Related products
-
Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Jagadguru Shri Shankaracharya (HB)
-10%
Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणJagadguru Shri Shankaracharya (HB)
Rated 5.00 out of 5(1)हमारे राष्ट्र निर्माताओं में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य का स्थान बहुत ऊँचा है। कई विद्वानों ने तो उन्हें आधुनिक हिंदू धर्म का जनक ही कहा है। शंकराचार्य ने समस्त हिंदू-राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने एवं उसे संगठित करने का प्रयास किया। देश के चारों कोनों पर चार धामों के प्रति श्रद्धा केंद्रित करते हुए उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष की, मातृ-भू की मूर्ति जन-जन के हृदय पर अंकित कर दी। पंचायतन का पूजन प्रारंभ कर विभिन्न संप्रदायों को एक-दूसरे के आराध्य देवों के प्रति केवल सहिष्णुता का भाव ही नहीं तो सभी देवताओं के प्रति अपने इष्टदेव के माध्यम से वही श्रद्धा एवं आदर का भाव व्यक्त करने को प्रेरित किया, इसके अनुसार प्रत्येक पाँचों देवताओं—विष्णु, शुक्र, शक्ति, गणपति और सूर्य की पूजा करता है। अपनी श्रद्धा के अनुसार अपने इष्टदेव को बीच में तथा चारों ओर अन्य चार देवताओं को रखकर पूजन करने की उसे छूट है। चार धामों के समान ही उन्होंने समाज को धर्म मार्ग पर नियंत्रित एवं अनुशासित रखने के लिए चार शंकराचार्यों की अध्यक्षता में भारत के चारों कोनों में चार मठ स्थापित किए।
—दीनदयाल उपाध्यायSKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedon Ki Kathayen- Harish Sharma
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVedon Ki Kathayen- Harish Sharma
0 out of 5(0)कहते हैं धर्म वेदों में प्रतिपादित है। वेद साक्षात् परम नारायण है। वेद में जो अश्रद्धा रखते हैं, उनसे भगवान् बहुत दूर हैं। वेदों का अर्थ है—भिन्न-भिन्न कालों में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा आविष्कृत आध्यात्मिक सत्यों का संचित कोष। वास्तव में जीवन को सुंदर व साधक बनानेवाला प्रत्येक विचार ही मानो वेद है। मैक्स म्यूलर का तो यहाँ तक कहना था कि वेद मानव जाति के पुस्तकालय में प्राचीनतम ग्रंथ हैं।
वेद संख्या में चार हैं—ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद। वेद का शाब्दिक अर्थ है ‘ज्ञान’ या ‘जानना’। ये हमारे ऋषि-तपस्वियों की निष्कपट, निश्छल भावना की अभिव्यक्ति हैं। इनमें जीवन को सद्मार्ग पर प्रशस्त करने का आह्वान है। इतना ही नहीं, वेदों में आत्मा-परमात्मा, देवी-देवता, प्रकृति, गृहस्थ-जीवन, सृष्टि, लोक-परलोक के साथ-साथ नाचने-गाने आदि की बातें भी निहित हैं। इन सबका एक ही उद्देश्य है—मानव-कल्याण।
एक ओर जहाँ वेदों में ईश-भक्ति और अध्यात्म की महिमा गाई गई है, वहीं दूसरी ओर कर्म को ही कल्याण का मार्ग कहा गया है।
वेद हमारे अलौकिक ज्ञान की अनुपम धरोहर हैं। अत: इनके प्रति जन-सामान्य की जिज्ञासा होना स्वाभाविक है, इसलिए वेदों के गूढ़ ज्ञान को हमने कथारूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। इन कथा-कहानियों के माध्यम से सुधी पाठक न केवल इन्हें पढ़-समझ सकते हैं, बल्कि पारंपरिक वैदिक ज्ञान को आत्मसात् कर लोक-परलोक भी सुधार सकते हैं।SKU: n/a -
Vani Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Nahin, Kahin Kuchh Bhi Nahin…
0 out of 5(0)TASLIMA NASRIN
तसलीमा नसरीन बांग्लादेश की लेखिका हैं। उनकी आत्मकथा का 6वां खंड ‘नहीं,कहीं कुछ भी नहीं..’ के रोप में पाठकों के सामने है जिसे उन्होने अपनी माँ को समर्पित किया है। जिसमे उनके जीवन के वो पल मौजूद है जो उनकी माँ को केंद्र में रख कर लिखे हैं।
SKU: n/a -
Literature & Fiction, Vani Prakashan
Yuddh – 2 (Hindi, Narendra Kohali)
0 out of 5(0)युद्ध-2
‘दीक्षा’, ‘अवसर’, ‘संघर्ष की ओर’ तथा ‘युद्ध’ के अनेक सजिल्द, अजिल्द तथा पॉकेटबुक संस्करण प्रकाशित होकर अपनी महत्ता एवं लोकप्रियता प्रमाणित कर चुके हैं। महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में इसका धारावाहिक प्रकाशन हुआ है। उड़िया, कन्नड़, मलयालम, नेपाली, मराठी तथा अंग्रेज़ी में इसके विभिन्न खण्डों के अनुवाद प्रकाशित होकर प्रशंसा पा चुके हैं। इसके विभिन्न प्रसंगों के नाट्य रूपान्तर मंच पर अपनी क्षमता प्रदर्शित कर चुके हैं तथा परम्परागत रामलीला मण्डलियाँ इसकी ओर आकृष्ट हो रही हैं। यह प्राचीनता तथा नवीनता का अद्भुत संगम है। इसे पढ़कर आप अनुभव करेंगे कि आप पहली बार एक ऐसी रामकथा पढ़ रहे हैं, जो सामयिक, लौकिक, तर्कसंगत तथा प्रासंगिक है। यह किसी अपरिचित और अद्भुत देश तथा काल की कथा नहीं है। यह इसी लोक और काल की, आपके जीवन से सम्बन्धित समस्याओं पर केन्द्रित एक ऐसी कथा है, जो सार्वकालिक और शाश्वत है और प्रत्येक युग के व्यक्ति का इसके साथ पूर्ण तादात्म्य होता है।SKU: n/a



There are no reviews yet.