कौटिल्य के अर्थशास्त्र का राजनितिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन
Author : Dr. Dinesh Kumar Charan
Language : Hindi
ISBN : 9789387297821
Edition : 2020
Publisher : RG GROUP
Kautilya ke Arthshastra ka Rajnitik evam Sanskritik Adhyayan
कौटिल्य के अर्थशास्त्र का राजनितिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन : सन् 1905 में तन्जौर के एक ब्राह्मण ने ‘अर्थशास्त्र’ की एक हस्तलिखित पाण्डुलिपि मैसूर रियासत के प्राच्य पुस्तकालयाध्यक्ष श्री आर. शामशास्त्री को भेंट की और तब शामशास्त्री जी के विशेष प्रयत्नों से सन् 1909 में इस ग्रन्थ का प्रकाशन सम्भव हुआ। बीसवीं सदी के दूसरे दशक में ‘अर्थशास्त्र’ का आंग्ल विद्वानों द्वारा अनुवाद किया गया और फिर इसका अन्य यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ। वहाँ इस ग्रन्थ को बेहद रुचि के साथ पढ़ा गया। विदेशों में प्रतिष्ठित होने के बाद ही भारतीय विद्वानों का ध्यान ‘अर्थशास्त्र’ की तरफ गया। फलस्वरूप टी. गणपति शास्त्री, प्राणनाथ विद्यालंकार, रामतेज शास्त्री, उदयवीर शास्त्री, आर.पी. कांग्ले, वाचस्पति गैरोला एवं श्रीभारतीय योगी आदि सहित अनेक विद्वानों द्वारा ‘अर्थशास्त्र’ का अनुवाद किया गया। ऐतिहासिक दृष्टि से कौटिल्य ई.पू. चैथी सदी के आचार्य थे। विश्वप्रसिद्ध तक्षशिला विश्ववि़द्यालय के शिक्षक कौटिल्य की गणना समकालीन भारत के महानतम आचार्यों में की जाती थी, उन्हें समाज, धर्म, दर्शन, राजनीति, अर्थ आदि के साथ ही शस्त्र विद्या का असाधारण ज्ञान था। उनका प्रमुख एवं प्रिय कार्य अध्यापन था, किन्तु परिस्थितियों ने उन्हें राजनीति में भाग लेने के लिए बाध्य किया और अपनी प्रतिभा के बल पर वे तत्कालीन भारतीय राजनीति की धुरी सिद्ध हुए।
कौटिल्य का ‘अर्थशास्त्र’ समस्त विश्व का एक अद्भुत ग्रन्थ है। कौटिल्य ने अपने ग्रन्थ की विषय सामग्री में पूर्व प्रचलित ज्ञान की सभी धाराओं का समावेश करके इसे एकांगी होने से बचाकर बहुआयामी बनाया है। इसीलिए शताब्दियों तक शासकों ने अर्थशास्त्र का उपयोग एक शासन संहिता के रूप में करके अपने साम्राज्यों को अक्षुण्ण बनाए रखा। वर्तमान की शासकीय समस्याओं का समाधान भी अर्थशास्त्र के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। प्राचीन भारत का यह एक ऐसा विलक्षण ग्रन्थ है, जो सदैव भारतीयों को गौरवान्वित करता रहेगा।
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Weight | 0.610 kg |
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Dimensions | 8.7 × 5.57 × 1.57 in |
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