1- अन्ना – अरविंद आंदोनलन के पीछे खड़ी थी टीम सोनिया’!
2- अन्ना के गिरफ़्तारी से लेकर ‘आआपा’ के निर्माण तक सब कुछ था फ़िक्स!
3- भारत में राजनैतिक अस्थिरता के लिए विदेशी फ़ंडिंग का खेल
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1- अन्ना – अरविंद आंदोनलन के पीछे खड़ी थी ‘टीम सोनिया’!
2- अन्ना के गिरफ़्तारी से लेकर ‘आआपा’ (AAP) के निर्माण तक सब कुछ था फ़िक्स!
3- भारत में राजनैतिक अस्थिरता के लिए विदेशी फ़ंडिंग का खेल
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Rs.30.00
1- अन्ना – अरविंद आंदोनलन के पीछे खड़ी थी टीम सोनिया’!
2- अन्ना के गिरफ़्तारी से लेकर ‘आआपा’ के निर्माण तक सब कुछ था फ़िक्स!
3- भारत में राजनैतिक अस्थिरता के लिए विदेशी फ़ंडिंग का खेल
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Pages – 78
File Size – 5.1 MB
Language – Hindi
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मोदी सरकार – 2014 से 2024 तक! हिन्दुओं से धोखा – भारत से द्रोह !
2014 में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी थी। मोदी ने चुनाव के समय हिंदूओं से ढेर सारे वायदे किए थे, लेकिन आज सत्ता में 10 साल होने के उपरांत भी उनमें से एक भी वादा पूरा नहीं किया गया है। यही नहीं मुस्लिम तुष्टिकरण, वंशवाद और भ्रष्टाचार में मोदी सरकार ने कांग्रेस का पुराना रिकोर्ड भी ध्वस्त कर दिया है। आज भारत की विदेश नीति ऐसी लचर है कि हमारे सभी पड़ोसी देशों में चीन का विस्तार हो चुका है और चीन हमारी करीब 4000 वर्ग किलोमीटर जमीन को भी हड़प चुका है।
Vinayak Damodar Savarkar
वीर सावरकर रचित ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ विश्व की पहली इतिहास पुस्तक है, जिसे प्रकाशन के पूर्व ही प्रतिबंधित होने का गौरव प्राप्त हुआ। इस पुस्तक को ही यह गौरव प्राप्त है कि सन् 1909 में इसके प्रथम गुप्त संस्करण के प्रकाशन से 1947 में इसके प्रथम खुले प्रकाशन तक के अड़तीस वर्ष लंबे कालखंड में इसके कितने ही गुप्त संस्करण अनेक भाषाओं में छपकर देश-विदेश में वितरित होते रहे। इस पुस्तक को छिपाकर भारत में लाना एक साहसपूर्ण क्रांति-कर्म बन गया। यह देशभक्त क्रांतिकारियों की ‘गीता’ बन गई। इसकी अलभ्य प्रति को कहीं से खोज पाना सौभाग्य माना जाता था। इसकी एक-एक प्रति गुप्त रूप से एक हाथ से दूसरे हाथ होती हुई अनेक अंत:करणों में क्रांति की ज्वाला सुलगा जाती थी।
पुस्तक के लेखन से पूर्व सावरकर के मन में अनेक प्रश्न थे—सन् 1857 का यथार्थ क्या है? क्या वह मात्र एक आकस्मिक सिपाही विद्रोह था? क्या उसके नेता अपने तुच्छ स्वार्थों की रक्षा के लिए अलग-अलग इस विद्रोह में कूद पड़े थे, या वे किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक सुनियोजित प्रयास था? यदि हाँ, तो उस योजना में किस-किसका मस्तिष्क कार्य कर रहा था? योजना का स्वरूप क्या था? क्या सन् 1857 एक बीता हुआ बंद अध्याय है या भविष्य के लिए प्रेरणादायी जीवंत यात्रा? भारत की भावी पीढ़ियों के लिए 1857 का संदेश क्या है? आदि-आदि। और उन्हीं ज्वलंत प्रश्नों की परिणति है प्रस्तुत ग्रंथ—‘1857 का स्वातंत्र्य समर’! इसमें तत्कालीन संपूर्ण भारत की सामाजिक व राजनीतिक स्थिति के वर्णन के साथ ही हाहाकार मचा देनेवाले रण-तांडव का भी सिलसिलेवार, हृदय-द्रावक व सप्रमाण वर्णन है। प्रत्येक भारतीय हेतु पठनीय व संग्रहणीय, अलभ्य कृति!
Of late scores of intellectuals, common man, reporters, so-called social activists, Retd. judges, Ex IASs have joined hands to support the removal of SC proceedings (contempt of court) against Advocate Prashant Bhushan. Download this FREE PDF which contains the statement in solidarity with Mr. Prashant Bhushan endorsing the withdrawal of contempt proceedings.
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